समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र (Sociology and Economics)
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में सामाजिक विज्ञान होने के नाते घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्री तथा अर्थशास्त्री कुछ सामान्य बातों का अध्ययन करते हैं, परन्तु इनके दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए, श्रम-विभाजन का अध्ययन अर्थशास्त्र में भी किया जाता है तथा समाजशास्त्र में भी। अर्थशास्त्र में एडम स्मिथ (Adam Smith) ने इसके महत्व पर बल दिया तथा इसे वस्तुओं के अधिक उत्पादन तथा अधिक अच्छी श्रेणी की वस्तुओं से सम्बन्धित किया। दुर्खीम (Durkheim) ने समाजशास्त्र में श्रम विभाजन का समाज पर पड़ने वाला प्रभाव देखा कि कैसे आधुनिक समाजों में श्रम-विभाजन के कारण व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाते हैं तथा इससे सामाजिक एकता बनाए रखने में सहायता मिलती है। वास्तव में, आर्थिक प्रक्रियाएँ समाज को प्रभावित करती हैं, जबकि सामाजिक प्रक्रियाएँ आर्थिक पहलू से भी सम्बन्धित हो सकती हैं। जहाँ पर समाजशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र की सीमाओं का आलोचनात्मक परीक्षण भी किया है और आर्थिक घटनाओं के अध्ययन में योगदान दिया है और अर्थशास्त्र के सिद्धान्त की कमियाँ बताई हैं, वहीं पर अर्थशास्त्री अपने अध्ययनों में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का सहारा लेते हैं। अर्थशास्त्री आर्थिक विश्लेषणों में ‘अन्य वस्तुओं के समान होने पर’ जैसे कथन के अत्यधिक प्रयोग से परेशान होते नजर आते हैं। जैसे-जैसे समाज में आर्थिक प्रक्रियाएँ विकसित होती रहती हैं, वैसे-वैसे ही मनुष्य का सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता रहता है। मैकाइवर (MacIver) के अनुसार, “आर्थिक घटनाएँ सदैव ही सामाजिक आवश्यकताओं और क्रियाओं से प्रभावित होती हैं और स्वयं भी सदैव ही उन्हें प्रभावित करती रहती हैं। “
बॉटोमोर (Bottomore) का कहना है कि अर्थशास्त्र के प्रति समाजशास्त्र का योगदान तीन प्रकार से रहा है—प्रथम, ऐसे आलोचनात्मक अध्ययन किए गए हैं, जैसे लॉवी का अध्ययन, जो यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि अर्थशास्त्र पूर्णतः एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं हो सकता है। मैक्स वेबर का ‘विर्टशाफ्ट’ (Wirtschaft) तथा ‘गेसेलशाफ्ट’ (Gesellschaft) आर्थिक सिद्धान्तों की कुछ अवधारणाओं को सामान्य समाजशास्त्र के क्षेत्र में लाने का उच्च कोटि का प्रयत्न है। टालकट पारसंस और नील जे० स्मेलसर ने अर्थशास्त्र को सामान्य समाजशास्त्र का ही एक अंग बताने का प्रयत्न किया है। द्वितीय अनेक समाजशास्त्रीय अध्ययन स्वयं प्रत्यक्षतः आर्थिक सिद्धान्त की समस्याओं से सम्बन्धित हैं। बारबारा वूटन (Barbara Wootton), वेब्लन (Veblen) तथा जी० सी० मीन्स (G. C. Means) की रचनाएँ इसके उदाहरण हैं। तृतीय अनेक समाजशास्त्रीय अध्ययन आर्थिक व्यवस्थाओं की सामान्य विशेषताओं से बन्धित हैं। माजशास्त्रियों ने अनेक ऐसे आर्थिक व्यवहारों पर प्रकाश डाला है, जिनकी अर्थशास्त्रियों के द्वारा उपेक्षा अथवा अवहेलना की गई है। मार्क्स (Marx), डब्ल्यू सोम्बार्ट (W. Sombart), मैक्स वेबर (Max Weber), जे० ए० हाब्सन (J. A. Hobson), जे० शुम्पीटर (J. Schumpeter) आदि की रचनाएँ इस श्रेणी की उदाहरण हैं
अर्थशास्त्र का ध्येय सम्पत्ति प्राप्त करने वाली क्रियाओं से होता है। इसमें उत्पादन (Production), वितरण (Distribution), तथा उपभोग (Consumption) मुख्य हैं। सभी क्रियाएँ समाज में रहकर सम्पन्न होती हैं, इसलिए स्वाभाविक भी है कि इसका प्रभाव समाज पर भी पड़ेगा। प्रमुख रूप से अर्थशास्त्र का सम्बन्ध उपभोग करने वाली वस्तु से होता है और ज्यों-ज्यों किसी वस्तु की माँग बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों उसके उत्पादन में भी वृद्धि होती है तथा उसकी लागत कम होती जाती है। वस्तु की तीव्र गति से बढ़ती हुई माँग व अधिक उत्पादन का समाज तथा उसके सदस्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह देखना एक अर्थशास्त्री का नहीं समाजशास्त्री का काम है। इस सम्बन्ध में थॉमस (Thomas) ने लिखा है कि, “वास्तव में, अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के विस्तृत विज्ञान की शाखा है।” आर्थिक क्रियाएँ तथा सामाजिक परिस्थितियाँ दोनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।
किसी-किसी देश की आर्थिक व्यवस्था समझने के लिए उसकी सामाजिक व्यवस्था तथा पद्धति का ज्ञान होना आवश्यक है। इस तथ्य के महत्व पर बल देते हुए अर्थशास्त्री पी० एच० विकस्टीड (P. H. Wicksteed) ने कहा है कि, “अर्थशास्त्र समाजशास्त्र की गृहस्वामिनी होनी चाहिए।” इन दोनों का सम्बन्ध बताते हुए सिलवरमैन (Silverman) ने कहा है कि, “साधारण कार्यों के लिए इस अर्थशास्त्र को पितृ-विज्ञान समाजशास्त्र की, जोकि सामाजिक सम्बन्धों के सामान्य सिद्धान्तों का अध्ययन करता है, एक शाखा माना जा सकता है।” अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र अपनी उत्पत्ति के समय निकटतम रूप से सम्बन्धित थे, जैसा कि एडम स्मिथ के कार्यों से स्पष्ट है, किन्तु बाद में यह दोनों विषय एक-दूसरे से अलग हो गए। किन्तु आज फिर लगता है कि दोनों घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं तथा आर्थिक समाजशास्त्र (Economic Sociology) वह शाखा है, जो दोनों विषयों को एक-दूसरे से जोड़ती है। इस शाखा में दोनों विषयों द्वारा कुछ सामान्य बातों का अध्ययन अपने-अपने दृष्टिकोण से किया जाता है। उदाहरण के लिए, सम्पत्ति, श्रम-विभाजन और औद्योगिक संगठन का समाजशास्त्री तथा अर्थशास्त्री दोनों अपने-अपने दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं।
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में निकट का सम्बन्ध होते हुए भी दोनों विषयों में काफी अन्तर हैं। समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक एवं अधिक विस्तृत है, जबकि अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण आर्थिक तथा अपेक्षाकृत कम विस्तृत है। दोनों अपने आप में स्वतन्त्र विषय हैं, जिनमें कुछ मौलिक अन्तर पाए जाते हैं। समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में मुख्य अन्तर निम्नलिखित प्रकार से है-
समाजशास्त्र | अर्थशास्त्र |
1. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है, क्योंकि इसमें व्यक्ति को एक सामाजिक प्राणी के रूप में देखा जाता है। | 1. इसका दृष्टिकोण आर्थिक है, क्योंकि इसमें व्यक्ति को आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। |
2. समाजशास्त्र में अधिकांशतः ऐतिहासिक, संरचनात्मक, प्रकार्यात्मक, तुलनात्मक, संघर्षात्मक इत्यादि विधियों का प्रयोग किया जाता है। | 2. इसमें मुख्यतः आगमन तथा निगमन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। |
3. समाजशास्त्र में मुख्य रूप से सामाजिक घटनाओं तथा अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। | 3. इसमें केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। |
4. समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक व्यापक है। | 4. अर्थशास्त्र का विषय-क्षेत्र सीमित है। |
टी० बी० बॉटोमोर का कहना है कि, “अधिक समय तक समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र के मध्य निकट सम्बन्धों के बारे है में कोई सन्देह नहीं रह जाएगा, परन्तु आधुनिक प्रयत्नों में इस तथ्य को अधिकांशतः उन अर्थशास्त्रियों ने स्वीकारा है, जिन्होंने समाजशास्त्रीय अवधारणाओं व सामान्यीकरणों का अपनी आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में प्रयोग किया है। इन्होंने समाजशास्त्रियों द्वारा अधिक यथार्थवादी अध्ययन करने के लिए आर्थिक सिद्धान्तों में क्षमता प्राप्त करने एवं आर्थिक घटनाओं के अध्ययन में विशेषीकरण प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया है।