प्रबन्ध एक विज्ञान के रूप में है, समझाइये।
प्रबन्ध एक विज्ञान के रूप में (Management is a Trinity of Science)
किसी भी विषय से सम्बन्धित ज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन करना ही विज्ञान कहलाता है। प्राकृतिक विज्ञानों के नियम तो अटल एवं हमेशा सत्य होते हैं, लेकिन मानवीय विज्ञानों के नियामें में यह बात नहीं होती। प्रबन्ध एक मानवीय विज्ञान है।
पिछले कुछ वर्षों से प्रबन्ध को भी विज्ञान माना जाने लगा है। विज्ञान के कुछ प्रमुख लक्षण हैं, कारण और परिणाम के सम्बन्धों की व्याख्या, वैज्ञानिक अनुसंधान की प्रणाली, सर्वप्रयुक्त नियम आदि। प्रबन्ध को निम्न विशेषताओं के आधार पर विज्ञान कहा जाता है-
(1) प्रबन्ध विज्ञान मे व्यावसायिक प्रबन्ध सम्बन्धी समस्याओं, प्रणालियों, रीति-नीतियों और व्यवहारों का अध्ययन कर कुछ सामान्य सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं। सभी व्यावसायिक संगठनों के सम्बन्ध में कुल मूलभूत सिद्धान्त सामान्य रूप से लागू होते हैं, जैसे आदेश की एकता, निर्देश की एकता आदि ।
(2) प्रबन्ध के जो सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं, वह लोगों के व्यावहारिक अनुभव से निकाले गए हैं। टेलर, फेयोल, गैन्ट आदि ने जो सिद्धान्त प्रतिपादित किए वह अनुभव के बाद ही। जब किसी उपक्रम में कोई समस्या आती है तो प्रबन्धकों से यह आशा की जाती है कि सबसे पहले समस्या को समझें, उसके वैकल्पिक समाधान का पता लगायें और उनमें से सर्वोत्तम का चुनाव करें। यही कार्य करने का वैज्ञानिक तरीका कहलाता है ।
(3) प्रबन्ध के सिद्धान्त भी कारण और परिणाम पर आधारित होते हैं। प्रबन्ध विज्ञान बतलाता है कि कर्मचारियों से कुशलतापूर्वक कार्य कराने के लिए उन्हें वित्तीय एवं अवित्तीय ढंग से अभिप्रेरित करना जरूरी है। इस प्रकार कुशलता और अभिप्रेरणा में कारण और परिणाम का सम्बन्ध है।
(4) विज्ञान की तरह प्रबन्ध के सिद्धान्तों को हम व्यवहार की कसौटी पर परख कर सिद्ध कर सकते हैं। उपरोक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध एक विज्ञान भी है। प्रबन्ध एक सामाजिक विज्ञान है और अर्थशास्त्र की तरह इसके सिद्धान्त सामान्य रूप से सही उतरते हैं, प्रत्येक स्थिति में सही नहीं उतरते ।
अन्त में निष्कर्ष के बतौर यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध कला भी है और विज्ञान भी ।
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