आधुनिक अर्थव्यवस्था में प्रबन्ध के महत्व की विवेचना कीजिए।
प्रबन्ध का महत्व ( Importance of Management )
यद्यपि सम्पूर्ण विश्व अनेक खनिज सम्पदाओं, प्राकृतिक प्रसाधनों आदि से परिपूर्ण है। यह सम्पदा कहीं पर धरती के गर्भ में छुपी हुई है तो कहीं समुद्रों की गोद में, पहाड़ों की छातियों में छुपी पड़ी है। सम्पूर्ण विश्व के पास इतनी अधिक सम्पदा होने के बाद भी विश्व के कुछ ही राष्ट्र समृद्ध तथा खुशहाल नजर आते हैं, विश्व के अधिकांश राष्ट्र निर्धनता के कुचक्र के शिकार हैं। इन राष्ट्रों के नागरिक रोटी-रोजी के अनसुलझे प्रश्नों के घेरों में अपनी जीवन की आकांक्षाओं तथा शक्तियों को बेकार कर रहे हैं। इन राष्ट्रों के शिशु पौष्टिक आहार एवं दूध के लिये तरसते हैं, इसका कारण क्या है ? इन परिस्थितियों के कारण तो अनेक हैं, किन्तु उन कारणों में से एक प्रमुख कारण यह है कि इन राष्ट्रों ने प्रबन्ध महत्व को भली-भाँति नहीं समझा है। विकसित राष्ट्रों की खुशहाली एवं समृद्धि इस बात का प्रत्यक्ष एवं अकाट्य प्रमाण है कि वहाँ की प्रबन्ध व्यवस्था काफी समुन्नत है समुन्नत एवं प्रगतिशीत प्रबन्ध के अभाव में ही अविकसित राष्ट्र अधिक विकास नहीं कर पाये हैं, क्योंकि प्रबन्ध जैसी गत्यात्मक एवं जीवनदायिनी शक्ति का अभाव है।
(1) तीव्र प्रतियोगिता का सामना करने के लिये- वर्तमान समय में व्यवसाय काफी जटिल एवं प्रतिस्पर्धात्मक हो गया है। व्यापार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाने लगा है। एक ही वस्तु के अनेक उत्पादक होते हैं। कुशल प्रबन्ध के बिना तीव्र एवं गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं किया जा सकता।
(2) उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का समन्वय— वर्तमान समय में उत्पादन अनेक साधनों के सहयोग के द्वारा ही सम्भव है और उत्पत्ति के सभी साधनों के समन्वय बिना कुशल प्रबन्ध के सम्भव नहीं है। अतः साधनों में समन्वय स्थापित करने के दृष्टिकोण से प्रबन्ध का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
(3) बडे व्यवसायों के सहज विकास के लिये – आजकल बड़े पैमाने पर एवं कम्पनी संलग्न रूप में व्यापार करने का एक फैशन हो गया है। एकाकी स्वामित्व साझेदारी संगठनों की तुलना में कम्पनी संगठन का सुचारु संचालन बहुत ही कठिन होता है और अनेक विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके निवारण का एकमात्र उपाय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का अनुकरण करना ही है।
(4) नवीन आविष्कार एवं प्राचीन रीतियों में समन्वय- स्वचालित यंत्रों के आविष्कार से वस्तुओं का उत्पादन अधिकाधिक मात्रा में किया जाने लगा है। पहले प्रत्येक मशीन के संचालन के लिये अनेक श्रमिको की आवश्यकता पड़ती थी, किन्त अब बटन दबाते ही सारा कारखाना एवं संयंत्र कार्य करने लगता है। नवीन पद्धतियों को अपनाना ही सफलता की आवश्यक शर्त नहीं हैं। वास्तव में सफलता की आवश्यक शर्त तो यह है कि नवीन आविष्कारों एवं पद्धतियों का प्राचीन एवं परम्परागत रीतियों के साथ समन्वय स्थापित किया जाये और यह कार्य एक प्रशिक्षित प्रबन्धक ही सुचारु रूप से कर सकता है।
(5) भविष्य के लिये सक्षम प्रशासक और प्रबन्धक उपलब्ध करने के लिये— प्रबन्धकीय शिक्षा का लक्ष्य कार्य-संचालकों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाना, वर्तमान या भावी पदों पर उत्तम ढंग से कार्य करने हेतु उनकी क्षता का विकास करना है।
(6) सर्वोच्च प्रशासन एवं श्रमिकों में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता – वर्तमान समय में व्यवसाय एवं उद्योग के विस्तार, विशालस्तरीय उत्पादन प्रणाली आदि ने सर्वोच्च प्रशासन एवं श्रमिकों के मध्य काफी दूरियाँ पैदा कर दी है। इस दूरी से औद्योगिक संघर्ष अधिक मात्रा में होने लगे हैं। औद्योकि संघर्षों को कम करने के लिए यह जरूरी है कि सर्वोच्च प्रशासन एवं श्रमिकों के मध्य समन्वय स्थापित किया जाये और समन्वय स्थापित करने का कार्य ‘प्रबन्ध’ से अच्छा और कोई नहीं हो सकता है। इस कारण से भी वर्तमान समय में प्रबन्ध का महत्व काफी बढ़ या है ।
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