प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
प्रबन्ध का क्षेत्र (Scope of Management )
एक सामाजिक तथा सार्वभौमिक प्रक्रिया होने के कारण प्रबन्ध का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। प्रबन्ध की विषय-सामग्री में नियोजन, संगठन, निर्देशन समन्वय तथा नियन्त्रण का समावेश किया जाता है और उनकी उपयोगिता किसी व्यवसाय विशेष तक ही सीमित नहीं है, वरन् इसके सिद्धान्त आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी प्रकार के संगठनों पर लागू होते हैं। प्रबन्ध का विस्तार संगठन के प्रत्येक स्तर तक होता है। इतना ही नहीं, यहाँ भी संगठित रूप से सामूहिक प्रयास होंगे, वहाँ प्रबन्ध की व्यापकता सदैव विद्यमान होगी। प्रबन्ध के जनक टेलर (Taylor) के मतानुसार, “वैज्ञानिक प्रबन्ध के आधारभूत सिद्धान्त हमारे साधारण से साधारण व्यक्तिगत कार्यों से लेकर हमारे विशाल निगमों के कार्यों तक लागू होते हैं।” हेनरी फेयोल (Henry Fayol) ने भी एक स्थान पर लिखा है कि ‘प्रबन्ध एक सार्वभौमिक विज्ञान है जो वाणिज्य, उद्योग, राजनीति, धर्म युद्ध या जनकल्याण सभी पर समान रूप से लागू होता है।’ इसी प्रकार एक राष्ट्र की प्रबन्ध व्यवस्थाएँ दूसरे राष्ट्रों में भी कुछ परिवर्तनों के साथ लागू होती हैं। इन बिन्दुओं के आधार पर प्रबन्ध के क्षेत्र का अध्ययन निम्न तीन शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(I) सार्वभौमिक प्रयुक्ति की दृष्टि से प्रबन्ध का क्षेत्र-
सामान्य रूप से ‘प्रबन्ध’ शब्द के अन्तर्गत संगठन तथा प्रशासन के कार्यों का भी समावेश किया जाता है । इस दृष्टि से जहाँ भी एक से अधिक व्यक्ति सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य करते हैं वहाँ प्रबन्ध की प्रक्रिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रयुक्त होती है। यही कारण है कि प्रबन्ध का कार्य क्षेत्र व्यक्तियों का परिवार है तो क्लब भी, गुरुद्वारा है तो स्कूल या कालिज भी, खेल का मैदान है तो सांस्कृतिक रंगमंच भी, शान्ति स्थल है तो युद्ध स्थल भी, व्यवसाय है तो उद्योग भी, निजी संस्थाएँ तो सरकारी संस्थाएँ भी। प्रबन्ध की सार्वभौमिक प्रयुक्ति ने उसके क्षेत्र को अन्तर्राष्ट्रीय बना दिया है और ‘बहु-राष्ट्रीय प्रबन्ध’ की चर्चाएँ पराकाष्ठा पर हैं।
(II) प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र-
प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र के अन्तर्गत प्रबन्ध की निम्नलिखित शाखाओं का समावेश किया जा सकता हैं-
(1) मानव संसाधन विकास (Human Resource Development) – यह प्रबन्ध का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसे कर्मचारी या सेविवर्गीय प्रबन्ध (Personnel Management) भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत सेविवर्गीय-शक्ति (श्रमिकों तथा प्रबन्ध अधिकारियों) का पूर्वानुमान, चयन, नियुक्ति, कार्य भार का सौंपा जाना, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पद-अवनयन, सेवा निवृत्ति, स्थानान्तरण, छँटनी, सेवा समाप्ति, श्रम-कल्याण व औद्योगिक सुरक्षा, औद्योगिक सम्बन्धों में सुधार आदि बातों का समावेश किया जाता है।
(2) विकास प्रबन्ध (Development Management) – इसके अन्तर्गत संस्था के विकास से सम्बन्धित समस्त बातों (जैसे प्रयोग व शोध, वस्तु-विकास, प्रौद्योगिक विकास, उपभोक्ता अनुसन्धान, आदि का समावेश जाता है।
(3) वित्तीय प्रबन्ध (Financial Management) – इसके अन्तर्गत व्यावसायिक पूर्वानुमान (Business Forecasting), लागत नियन्त्रण (Cost Control), बजट नियन्त्रण (Budgetary Control), प्रबन्धकीय लेखांकन (Management Accounting), सांख्यिकीय नियन्त्रण (Statistical Control), वित्तीय आयोजन (Financial planning), अर्जित आय का प्रबन्ध (Management of Earnings), बीमा आदि वित्तीय समस्याओं का समावेश किया जाता है।
(4) क्रय प्रबन्ध (Purchasing Management ) – इसके अन्तर्गत कच्चे माल व मशीनों को प्राप्त करने के लिए टेण्डर माँगना, आदेश देना, अनुबन्ध करना, क्रय करना, सामग्री को रखना तथा सामग्री- नियन्त्रण आदि बातों का समावेश किया जाता है।
(5) उत्पादन प्रबन्ध (Production Management ) – इसके अन्तर्गत उत्पादन-नियोजन व नियन्त्रण, कार्य-विश्लेषण, गुण नियन्त्रण व निरीक्षण, समय एवं गति अध्ययन, सामग्री का प्रबन्ध आदि बातों को शामिल किया जाता है।
(6) संस्थापन प्रबन्ध (Maintenance Management) – इसके अन्तर्गत भवन, संयंत्र, मशीनों, इक्यूपमेण्ट आदि के रख-रखाव तथा उनकी देखभाल का समावेश किया जाता है।
(7) परिवहन प्रबन्ध (Transport Management) – इसके अन्तर्गत माल की पैकिंग करना, गोदाम की व्यवस्था करना, परिवहन के साधनों (जैसे ट्रक, रेल, जलयान, वायुयान आदि) की व्यवस्था करना, आदि बातों को शामिल किया जाता है।
(8) वितरण एवं विपणन प्रबन्ध (Distribution and Marketing Management)- इसके अन्तर्गत वस्तु विपणन, विपणि, अनुसन्धान, मूल्य-निर्धारण, विपणन की जोखिमें तथा उनकी रोकथाम, विज्ञापन एवं विक्रयकला, आन्तरिक बाजार एवं निर्यात सम्बर्द्धन, आदि बातों का समावेश किया जाता है।
(9) प्रबन्ध (Office Management) – इसके अन्तर्गत कार्यालय की व्यवस्था तथा उसकी सजावट, श्रम-बचत के साधन, सन्देशवाहन के साधन, अभिलेख व्यवस्था तथा कार्यालयीन नियोजन व नियन्त्रण आदि का समावेश किया जाता है।
(10) आयात-निर्यात प्रबन्ध (Import Export Management ) – प्रबन्ध की यह शाखा वस्तुओं के आयात-निर्यात करने सम्बन्धी कार्यों को अपने क्षेत्र में सम्मिलित करती है।
(III) गैर-व्यावसायिक प्रबन्ध की शाखाएँ-
इस शीर्षक के अन्तर्गत निम्नलिखित शाखाओं का समावेश किया जा सकता है-
(1) समय प्रबन्ध (Time Management ) – कम से कम समय में अधिक से अधिक लक्ष्यों को प्राप्त करना समय प्रबन्ध का सार है।
(2) पर्यावरण प्रबन्ध (Environment Management ) – ‘पर्यावरण नियोजन’ से हमारा आशय उस वातावरण के विकास से है जो मानव के उन्नत जीवन में सहायक हो। उदाहरण के लिए, स्वच्छ वायु, स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण, सन्तुलित आहार, मौसम के अनुकूल वस्तु या उपयुक्त आवास मानव के लिए नितान्त आवश्यक होते हैं। इन सुख-सुविधाओं में कमी होने से उसका पर्यावरण प्रतिकूल हो सकता है, जिसका प्रभाव यह होगा कि उसके विकास की गति धीमी हो जाएगी। अत्यन्त विषम पर्यावरणीय परिस्थितियों के परिणामस्वरूप यह भी सम्भव है कि उनका जीवित रहना ही कठिन हो जाय। पृथ्वी पर उपलब्ध वायु (Air), जल (Water) व शोरगुल (Noise) में ऐसे अनेक विषैले पदार्थ मिश्रित होते हैं, जिसके अत्यधिक सेवन से मानव का प्राणान्त भी हो सकता है। यही कारण है कि पर्यावरणीय नियोजन भी प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण दायित्व हो गया है।
(3) जनोपयोगी सेवाओं का प्रबन्ध (Management of Public Utilities) – प्रबन्ध की इस शाखा के अन्तर्गत पानी, बिजली, गैस, परिवहन, संचार चिकित्सा आदि जन उपयोगी सेवाओं को शामिल किया जाता है।
(4) शिक्षा का प्रबन्ध (Educational Management ) – प्रबन्ध की यह शाखा शिक्षण-प्रशिक्षण सुविधाओं के विकास विस्तार व संचालन से सम्बन्ध रखती है।
(5) प्रतिरक्षा प्रबन्ध (Defence Management) – यह सैन्य संगठनों की स्थापना, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, आदि से सम्बन्ध रखती है।
(6) न्याय प्रबन्ध (Justice Management) – प्रबन्ध की यह शाखा कानूनों की विवेचना, अपराधों की सुनवायी तथा न्याय प्रदान करने से सम्बन्ध रखती है।
(7) तकनीकी प्रबन्ध (Management of Technology) – प्रबन्ध की यह शाखा ज्ञान विज्ञान को प्रेरित करने वाली तकनीकी सेवाओं व क्रियाओं के विकास विस्तार को अपने क्षेत्र में सम्मिलित करती है।
(IV) प्रबन्धकीय कार्यों की दृष्टि से प्रबन्ध-
इस दृष्टि से प्रबन्ध के क्षेत्र में अन्तर्गत निम्नलिखित कार्यों का समावेश किया जाता है— (i) व्यवसाय का प्रबन्ध, (ii) प्रबन्धकों का प्रबन्ध तथा (iii) कर्मचारियों का प्रबन्ध ।
निष्कर्ष – अन्त में यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध एक अन्तरविषय अनुशासन (Inter-disciplinary Discipline) है। इसका क्षेत्र सर्वव्यापी है। यह सम्बद्ध पक्षों को आर्थिक सन्तुष्टि प्रदान कराने तक ही सीमित नहीं है वरन् सामाजिक-आर्थिक न्याय एवं श्रेष्ठ राजनीतिक व्यवस्था उपलब्ध कराने तक विस्तृत हो चुका है। नवाचारों एवं परिवर्तनों की व्यवस्थाएँ भी ‘प्रबन्ध’ के अंग हैं।
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