प्रबन्ध की निर्णयन सिद्धान्त विचारधारा को संक्षेप में समझाइये ।
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निर्णयन सिद्धान्त विचारधारा (Decision theory School/Approach)
प्रबन्ध की यह विचारधारा प्रबन्ध को एक निर्णयन प्रक्रिया के रूप में देखती है। इसके अनुसार निर्णय लेना प्रबन्ध का एक आधारभूत कार्य है। निर्णयन प्रबन्ध का केन्द्रीय भाग है।
दूसरे शब्दों में, प्रबन्ध निर्णयन, प्रक्रियाओं का एक जटिल जाल है।
इस विचारधारा के कुछ समर्थकों द्वारा केवल निर्णयों का अध्ययन किया जाता है। कुछ समर्थक निर्णयन प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं, किन्तु कुछ समर्थक निर्णय प्रक्रिया को विस्तृत रूप में देखते हैं तथा उन परिस्थतियों एवं व्यावहारिक पहलुओं का अध्ययन भी करते हैं जो निर्णयन प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
विशेषताएँ (Characteristics)
इस विचारधारा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
(1) निर्णयन प्रक्रिया — इसके अनुसार निर्णयन प्रक्रिया तथा इसको प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों का अध्ययन ही प्रबन्ध है ।
(2) आर्थिक सामाजिक पहलुओं पर बल— यह निर्णयन प्रक्रिया में आर्थिक सामाजिक राजनीतिक एवं व्यवहारिक पहलुओं पर भी विचार करने पर बल देती है।
(3) केन्द्र बिन्दु – यह विचारधारा निर्णयन को प्रबन्ध के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु मानती है।
(4) प्रबन्ध का मूल कार्य – इस विचारधारा के अनुसार निर्णय करना ही प्रबन्ध का मूल कार्य है। निर्णयन प्रबन्ध की आत्मा है।
(5) तर्क युक्त व्यवहार— यह विचारधारा विवेकपूर्ण दृष्टिकोण औचित्यता एवं तर्कयुक्त व्यवहार पर आधारित है।
(6) सफलता या विफलता का कारण— यह विचारधारा निर्णयों को ही प्रबन्ध की सफलता या विफलता का कारण मानती है।
(7) परिमाणात्मक विधियाँ – यह निर्णयन में परिणात्मक विधियों पर बल देती है।
(8) संचार-व्यवस्था — यह संचार-व्यवस्था को निर्णयन एवं प्रबन्ध का एक अपरिहार्य भाग मानती है।
(9) राजनीतिक एवं व्यावहारिक पहलु— यह निर्णयन प्रक्रिया में आर्थिक सामाजिक राजनीतिक एवं व्यावहारिक पहलुओं पर विचार करने पर बल देती है
(10) समस्या निवारक —यह प्रबन्धकों को समस्या निवारक के रूप में देखती है।
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