‘उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध’ से क्या आशय है?
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उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का आशय (Meaning of Management by Objectives)
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध को ‘लक्ष्य प्रबन्ध’ अथवा ‘परिणामों द्वारा प्रबन्ध’ के नाम से सम्बोधित किया है। जबकि कून्ट्ज एवं ओ’ डोनैल ने इसे प्रबन्ध कार्यक्रम का अन्तिम बिन्दु कहा है। उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एवं आधुनिक प्रबन्ध की विधि अथवा सिद्धान्त है। इस विधि का मूलभूत आधार यह है कि इसके अन्तर्गत कार्यो को प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों पर निर्धारित किया जाता है और फिर व्यवसाय के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इन कार्यों का निर्देशित किया जाता है। उसे इन उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अपने अधीनस्थों के योगदान के विषय में भी जानना आवश्यक है। यही नहीं, उसे स्वयं तथा स्वयं की इकाई द्वारा कितना योगदान दिया जा सकात है तथा दूसरी इकाइयों से कितना योगदान दिया जा सकता है, सभी को ज्ञान होना चाहिए। यदि देखा जाय तो उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का व्यावहारिक पहलू है। इसके अन्तर्गत व्यवसाय के उद्देश्यों के आधार पर आयोजित व्यूह की रचना की जाती है। व्यूह रचना के आधार पर पूर्व योजना को विभिन्न विभागों में विभाजित कर दिया जाता है। इसके उपरान्त समय-समय पर मूल्यांकन एवं पुनरावलोकन किया जाता है।
प्रबन्ध की इस आधुनिक तकनीक की प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
हिक्स एवं गुलेट— उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध अभिप्रेरणा की एक पद्धति है जो कर्मचारी एवं उनके अधिकारियों को कर्मचारी के भावी निष्पादन के लक्ष्य निर्धारण की स्वीकृति देती है।
पीटर एफ० ड्रकर- उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध एक प्रणाली है जिसके अन्तर्गत संस्था के आधारभूत उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विभागों के प्रभारी अधिकारियों के बीच उनके कर्त्तव्यों व अधिकारों का विभाजन किया जाता है।
हैण्डरसन एवं सुओजानिन — उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध वह प्रबन्धकीय व्यवहार है जो विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्त पर बल देता है।”
डेल डी० मैकोनी— इस पद्धति के अन्तर्गत प्रत्येक प्रबन्ध के लिए सम्पूर्ण वर्ष या कुछ नियत अवधि के लिए लक्ष्य निर्धारित कर दिये जाते हैं जिनको प्राप्त करना अनिवार्य होता है। निर्धारित अवधि के बाद उपलब्धियों का मापदण्डों के अनुसार मूल्यांकन किया जाता है।
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की विशेषताएँ अथवा लक्षण (Characteristics of M. B. O)
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) वांछित उद्देश्य अथवा परिणाम- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के अन्तर्गत संस्था तथा कर्मचारियों दोनों के उद्देश्य निश्चित किये जाते हैं तथा उनकी विस्तृत परिभाषा दी जाती हैं।
(2) निष्पादन स्तर — इसमें प्रत्येक प्रबन्धक का निष्पादन स्तर इस प्रकार से निश्चित किया जाता है कि वह संस्था के मूल उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो।
(3) निष्पादन मूल्य- इसमें प्रत्येक प्रबन्धक के निष्पादन का मूल्यांकन उसके लिए निर्धारित लक्ष्यों के संदर्भ में किया जाता है।
(4) संगठन का ढाँचा— इसके अन्तर्गत संगठन का ढाँचा इस प्रकार तैयार किया जाता है सिमें प्रत्येक प्रबन्धक अपने निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र होता है। यही नहीं, वह समय तथा परिस्थतियों के अनुसार अपने निर्णयों में परिवर्तन करने के लिए भी पूर्णतः स्वतन्त्र होता है।
(5) नियन्त्रण सूचना – नियन्त्रण सूचना प्रत्येक प्रबन्धक के पास ठीक समय एवं एवं सही समय पर पहुँचती रहनी चाहिए ताकि वह अपने निर्णयों के सुधार करने का निरन्तर प्रयत्न करता रहे। इसके लिए स्वस्थ सन्देशवाहन की प्रणाली को होना आवश्यक है।
(6) क्रियात्मक – उद्देश्य इसमें क्रियात्मक उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों से जुड़े रहते हैं। इसमें यह देखा जाता है कि जहाँ कहीं भी संस्था के उद्देश्य कमजोर पड़ते हो उन्होंने क्रियात्मक रूप देना सम्भव नहीं हो वहाँ उद्देश्यों में आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिए।
(7) अभिप्रेरणा— इसमें कर्मचारियों को मौद्रिक तथा अमौद्रिक दोनों प्रकार का अभिप्रेरणा देने का प्रावधान रहता है ताकि प्रबन्धक सही ढंग से निर्णय लेने एवं उसे सही ढंग से सही समय पर क्रियान्वित करने के लिए प्रेरित हों।
(8) प्रयोगकर्ता को महत्त्व- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध में इसके प्रयोगकर्त्ता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त सम्बन्ध में यह कहा गया है कि “नवीन विधियाँ किसी भी प्रकार प्रयोगकर्त्ता से अधिक अच्छी नहीं हैं।” अतः सभी स्तरों पर प्रबन्धकीय प्रशिक्षण एवं विकास का प्रावधान रहता है।
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