उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की सीमाएँ बताइये।
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के दोष (सीमाएँ, कमियाँ, आलोचनाएँ) (Demerits or Limitations of M.B.O.)
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने में असमर्थ – उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध की प्रणाली नवीन शब्दों का मायाजाल है, इससे व्यवहार में लोगों को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। इसमें व्यक्तियों पर दबाव रहता है तथा उनकी आन्तरिक भावनाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(2) समय लेने वाली तकनीक – इस पद्धति के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर उद्देश्यों का निर्धारण करना पड़ता है जिसमें बहुत समय बरबाद होता है। सभाएँ करने तथा मूल्यांकन कार्य में भी काफी समय लगता है। इससे उत्पादन में तो वृद्धि हो सकती हैं, किन्तु उत्पादकता में वृद्धि नहीं होती ।
(3) प्रभाव के वितरण में परिवर्तन की आवश्यकता- हेनरी एल० तोसी के शब्दों में, उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध में प्रभाव के वितरण में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। यदि संगठन का कलेवर एवं प्रबन्धकीय व्यक्तित्व इस प्रभाव के वितरण करने में असमर्थ रहता है, तो उद्देश्यों की प्रति असन्तोष में वृद्धि होती है ।
(4) प्रशिक्षण की आवश्यकता— यह प्रणाली उसी दशा में सफल हो सकती है यदि कर्मचारियों को इस तकनीक का पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त हो। यह योजना कर्मचारियों की भागीदारी पर आधारित है; किन्तु व्यवहार में यह देखा जाता है कि कर्मचारियों में सहयोग के स्थान पर टकराव अधिक होता है।
(5) सन्तुलन की समस्या – अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उद्देश्यों में समन्वय स्थापित करना भी एक जटिल समस्या है 1
(6) लोच का अभाव — इस प्रणाली के अन्तर्गत उद्देश्यों में परिवर्तन करना भी अत्यन्त कठिन होता है। अनेक बार नीतियों, प्राथमिकताओं एवं परिस्थितियों में तेजी से परिवर्तन हो जाते है, किन्तु उनके अनुरूप उद्देश्यों में परिवर्तन करना सम्भव नहीं हो पाता। परिणामतः प्रबन्धकगण निरर्थक व अवास्तविक उद्देश्यों के ही पीछे पड़े रहते हैं ।
(7) भारार्पण का विरोध- इस प्रणाली में अधिकारों का भारार्पण करना पड़ता है; किन्तु व्यवहार में इस कार्य में अनेक कठिनाइयाँ आती है। फलतः उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध एक स्वप्न मात्र बनकर रह जाता है, जो कभी साकार नहीं हो पाता ।
(8) गुणात्मक उद्देश्यों की बलि—इस प्रणाली में गुणात्मक उद्देश्यों को कम महत्वपूर्ण मानकर उनकी बलि चढ़ा दी जाती हैं।
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