Contents
महाभारत की कहानियाँ हिन्दी में Mahabharat Stories in Hindi
इस लेख में पढेंगे महाभारत की कहानियाँ या मुख्य कथाएं हिन्दी में (Mahabharat Stories in Hindi) उदाहरण के लिए ‘महाभारत’ की रचना, कुरुक्षेत्र’ की कथा, देवव्रत का जन्म,देवव्रत से ‘भीष्म’, विचित्रवीर्य का विवाह,अम्बा का पुनर्जन्म,धृतराष्ट्र पाण्डु और विदुर,विदुर की कथा इत्यादि.
‘महाभारत’ की रचना
महर्षि वेद व्यास के मानस पटल पर ‘महाभारत’ की कथा अकित हो चुकी थी। वे इसे संसार को प्रदान करना चाहते थे। उन्होंने ब्रह्मा जी का ध्यान कर उनसे हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि इसे लिपिबद्ध करने का उपाय बताए। ब्रह्मा जी ने गणेश जी को प्रसन्न करने की सलाह दी। गणेश जी ने व्यास जी की प्रार्थना स्वीकार कर ली पर एक शर्त रखी, “यदि मैं लिखना शुरु करूंगा तो बीच में जरा भी नहीं रुकूंगा।
यदि मेरी लेखनी रुक गयी तो फिर आगे नहीं चलेगी।” व्यास जी ने उनकी शर्त मान ली पर अपनी भी शर्त रखी, “आप जब भी लिखें, श्लोक का अर्थ ठीक-ठाक समझ कर ही लिखें।” गणेश जी ने मुस्कराकर ‘तथास्तु’ कहा। व्यास जी बोलते जाते थे, गणेश जी लिखते जाते थे। गणेश जी की गति जरा तेज थी इसलिए बीच-बीच में व्यास जी श्लोक को जरा जटिल बना देते थे। उससे गणेश जी को समझने में कुछ देर लग जाती थी और लेखनी धीमी हो जाती थी। तब तक व्यास जी श्लोकों की मन ही मन रचना कर लेते थे। इस प्रकार ‘महाभारत’ की रचना हुई।
‘कुरुक्षेत्र’ की कथा
राजा कुरु पाण्डवों तथा कौरवों के पूर्वज थे। वह अत्यंत प्रतापी राजा थे। ईमानदार होने के साथ-साथ वे आत्मसंयमी, सहृदयता जैसे गुणों से भरपूर महान दानी थे। उन्होंने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कठोर परिश्रम किया था। वे चाहते थे कि उनकी प्रजा में उनके सभी गुण आ जाएं। उनके कठोर परिश्रम से अभिभूत होकर एक बार स्वयं विष्णु भगवान ने उनके समक्ष प्रकट होकर पूछा, “तुम्हें क्या चाहिए?” बड़ी विनम्रता पूर्वक कुरु ने कहा, “हे प्रभु! मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए… मैं चाहता हूँ कि यह धरती सदा पवित्र रहे। इस धरती पर शरीर त्यागने वाला स्वर्ग को प्राप्त हो ।” विष्णु भगवान ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “कुरु, आज से तुम्हारी यह धरती ‘पवित्र भूमि’ कहलाएगी और संन्यासी तथा युद्ध में मारा जाने वाला स्वर्ग का अधिकारी होगा। राजा कुरु के सम्मान में ही हस्तिनापुर के आस-पास का क्षेत्र ‘कुरुक्षेत्र’ कहलाया।
देवव्रत का जन्म
कुरु वंश के राजा शांतनु एक दिन गंगा के तट पर खड़े उसका सौंदर्य निहार रहे थे। तभी एक नवयौवना, गंगा को देखकर राजा मुग्ध हो गए। राजा के प्रणय निवेदन पर गंगा ने कहा, “मैं तुमसे एक शर्त पर विवाह करूंगी… मेरे किसी भी कार्य पर तुम कभी भी कोई प्रश्न नहीं करोगे। यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊँगी।” गंगा के विषय में कुछ भी जाने बिना शांतनु ने उसे वचन दे दिया और दोनों का विवाह हो गया।
हर बार गंगा अपने पुत्र को जन्म देने के पश्चात् उसे ले जाकर गंगा में बहा दिया करती थी। शांतनु आश्चर्यचकित रह जाते थे। जब वह अपने आठवें पुत्र को गंगा में बहाने गई तब शांतनु ने उसे रोका। गंगा ने कहा, “प्रिय, आपने अपना वचन तोड़ा है। मैं गंगा हूँ। हमारे पहले सात पुत्र पिछले जन्म के श्रापित सात वसु थे। मेरे कारण उन्हें श्राप से मुक्ति मिली… यह सब पूर्व निर्धारित था। मैं अपने आठवें पुत्र को अपने साथ ले जा रही हूँ। वह ऋषियों के संरक्षण में बड़ा होगा। बड़ा होने पर आपके वारिस के रूप में वह वापस आ जाएगा। यह कहकर गंगा चली गई। शांतनु को अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ पर अब तो बहुत देर हो चुकी थी। यही आठवां पुत्र देवव्रत था। देवव्रत के बड़े होने पर गंगा ने उसे शांतनु को सौंप दिया था।
देवव्रत से ‘भीष्म’
एक बार हस्तिनापुर के राजा शांतनु की मुलाकात सत्यवती नामक एक सुंदर मछुआरिन से हुई। शांतनु उसे भूल ही नहीं पा रहे थे इसलिए उन्होंने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। विवाह के लिए उसकी शर्त थी कि उसी का पुत्र राज्य का वारिस होगा। गंगा से उत्पन्न पुत्र देवव्रत के वारिस होने के कारण शांतनु परेशान हो उठे। देवव्रत को सत्यवती की शर्त का पता चला। उसने सत्यवती को जाकर वचन दे दिया कि वह राजा नहीं बनेगा। सत्यवती ने पूछा, “पर तुम्हारे बच्चों का क्या होगा?” देवव्रत ने कहा, “मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं विवाह नहीं करूंगा।” अपनी इस कठिन प्रतिज्ञा के कारण देवव्रत ‘भीष्म’ कहलाए। उसकी इस भीषण प्रतिज्ञा से प्रभावित होकर देवताओं ने उसे ‘इच्छा मृत्यु’ का वरदान दिया। सत्यवती और शान्तनु का विवाह हो गया और उनके पुत्र को राजगद्दी मिली।
विचित्रवीर्य का विवाह
सत्यवती का पुत्र चित्रांगद अत्यंत वीर था पर एक युद्ध में मारे जाने के कारण विचित्रवीर्य ने राजगद्दी संभाली। उसके बालिग होने तक भीष्म ही संरक्षक थे तथा सभी कार्य संभालते थे। उसके विवाह योग्य होने पर भीष्म को उसके विवाह की चिंता हुई। उन्हें पता लगा कि काशीराज की पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला है दृढव्रती भीष्म अपने लिए नहीं वरन् अपने भाई के लिए स्वयंवर में सम्मिलित हुए। सबने उनकी हंसी उड़ायी, कन्याओं ने भी दृष्टि फेर ली भीष्म अवहेलना न सह सके और अकेले ही राजकुमारों को हराकर तीनों राजकुमारियों को बलपूर्वक रथ में बिठाकर ले आए। अम्बिका और अम्बालिका विचित्रवीर्य से विवाह के लिए सहमत हो गई पर सबसे बड़ी अम्बा ने एकान्त में भीष्म से कहा, “मैंने मन से सौमदेश के राजा शाल्व को पति मान लिया है। कृपया मुझे जाने दें।” भीष्म सहमत हो गए। अम्बा को जाने दिया और दोनों बहनों का विवाह विचित्रवीर्य से हो गया।
अम्बा का पुनर्जन्म
भीष्म ने अम्बा को रथ में बैठाकर शाल्व के पास भेज तो दिया पर शाल्व ने उसे अस्वीकार करते हुए कहा कि दूसरे राजा के लिए हरण की गई स्त्री के साथ वह विवाह नहीं कर सकता था। निराश अम्बा हस्तिनापुर वापस लौट आई। वह पिता के पास जा नहीं सकती थी। इधर विचित्रवीर्य ने भी उसे यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि पराए राजा के लिए दी हुई स्त्री से वह विवाह नहीं करेगा। हताश अम्बा ने भीष्म से जाकर कहा, “हे आर्य! आप मुझसे विवाह कर लें क्योंकि इन सभी के मूल में आप ही हैं। आप ही मुझे हर लाए थे।” भीष्म प्रतिज्ञाबद्ध थे। अम्बा के लिए दुःख भी था पर उन्होंने कहा, “मैं अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकता।” अम्बा भीष्म से प्रतिशोध लेने की इच्छा से शिव की तपस्या करने लगी। शिव ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि अगले जन्म में वह भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। वर पाकर अम्बा ने चिता में जलकर अपने जीवन का अंत कर लिया और फिर शिखण्डि के रूप में उसका पुनर्जन्म हुआ। वहीं भीष्म के पतन का कारण बनी।
धृतराष्ट्र पाण्डु और विदुर
विचित्रवीर्य की रानियां अम्बिका और अम्बालिका ने दो राजकुमारों को जन्म दिया। वे धृतराष्ट्र और पाण्डु कहलाए। महल में रहने वाली अत्यंत सुंदर दासी से विचित्रवीर्य का तीसरा पुत्र हुआ जिसका नाम विदुर पड़ा। दासी पुत्र होने के कारण वह राजगद्दी का अधिकारी तो नहीं था पर वह सक्षम और ज्ञानी था। उसने बहुत सारे शास्त्रों का अध्ययन किया था। फलतः उसे राज्य के प्रधानमंत्री का पद मिला। धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः विचित्रवीर्य के पश्चात् पाण्डु ने हस्तिनापुर को राजगद्दी संभाली और फिर उसका विवाह कुंती से हो गया। कुंती राजा कुंतीभोज की गोद ली हुई पुत्री थी। पाण्डु ने फिर माद्र राज्य की राजकुमारी माद्री से भी विवाह कर लिया था। धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से हुआ। गांधारी पतिव्रता स्त्री थी। अपने पति को अंधा देखकर उसने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध लिया था और कहा कि जब उसका पति नहीं देख सकता है तो उसकी भी संसार को देखने की इच्छा नहीं है।
विदुर की कथा
एक बार डाकुओं ने राजा का खजाना लूटा। जब वे भागने लगे तो सिपाही उनके पीछे लग गए। ध्यानमग्न बैठे ऋषि माण्डव्य की कुटिया में डाकुओं ने जाकर धन छिपा दिया। राजा के सिपाही डाकुओं को ढूंढते हुए ऋषि की कुटिया में पहुँचे तो वहां उन्हें लूट का माल मिला। वे माण्डव्य ऋषि को पकड़कर राजा के पास ले गए। ऋषि निर्दोष थे और सब कुछ से अनजान थे पर उन्हें सजा स्वरूप फांसी दे दी गई। मृत्यु के पश्चात् ऋषि ने धर्मदेव से पूछा, “मैंने तो किसी को भी कोई क्षति नहीं पहुँचाई थी फिर मुझे क्यों सजा मिली?” धर्मदेव ने कहा, “महर्षि, बचपन में आपने टिड्डियों और चिड़ियों को सताया था… उसी के परिणामस्वरूप यह सजा मिली।” माण्डव्य यह सुनकर दंग रह गए और अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने कहा, “बचपन की नासमझी में किए गए कृत्य की इतनी बड़ी सजा… यह कहाँ का न्याय है … इस अन्याय के लिए मैं श्राप देता हूँ कि मृत्युलोक में तुम मनुष्य योनि में जन्म लो।” कहा जाता है कि ऋषि के इस श्राप के कारण ही धरती पर धर्मदेव ने विदुर के रूप में जन्म लिया था।
IMPORTANT LINK
- 10+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023
- 100+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023
- 8 Best Moral Stories In Hindi for kids | नैतिक कहानियाँ
- Top 10 Story For Moral In Hindi [2023] | हिंदी में नैतिक 10 कहानी
- Top 5 Best short stories in Hindi for Class 1 to 5th
- Best Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023
Disclaimer