एक उत्कृष्ट पल्लवन के गुणों पर प्रकाश डालिए और पल्लवन के उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
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एक उत्कृष्ट पल्लवन के गुण
इसके प्रमुख गुण निम्न हैं-
(1) एक अच्छे पल्लवन का प्रथम गुण कथ्य का स्पष्ट प्रतिपादन है। किसी भी दिए गए विषय पर पर्याप्त चिन्तन-मनन के बाद उसकी रूपरेखा बनायी जाती है। विषयान्तर करने वाले विचार को हटा दिया जाता है। इसके उपरान्त दिए गए विषय का मूल भाव स्पष्ट करते हुए विचारों को उदाहरणों से पुष्ट किया जाता है।
(2) पल्लवन एक संक्षिप्त रचना है। इसमें अनावश्यक विस्तार या टीका-टिप्पणी की आवश्यकता नहीं होती। विषय के विभिन्न पक्षों को तर्क-वितर्क की शैली को प्रस्तुत करने का अवकाश यहाँ पर नहीं होता। इस प्रकार पल्लवन करते हुए विषय विरोधी विचारों, उदाहरणों व तर्कों का यहाँ पर कोई स्थान नहीं होता।
(3) पल्लवन आलंकारिक भाषा में नहीं लिखा जाता क्योंकि ऐसी शैली के प्रयोग से व्यर्थ का विस्तार होता है। इसमें विचारों की कसावट पर विशेष बल दिया जाता है। अतः सटीक शब्दों और छोटे छोटे वाक्यों का ही पल्लवन में प्रयोग करना चाहिए।
(4) पल्लवन में उत्तम या मध्यम पुरुष का प्रयोग नहीं किया जाता। यहाँ पर अन्य पुरुष का ही प्रयोग करना चाहिए। इसमें मैं और तुम वाली शैली नहीं अपनायी जाती बल्कि सैवाद शैली होती है।
(5) पल्लवन में सुगठन का गुण होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि कथ्य और शिल्प में इस गुण का प्रयोग किया जाए तो रचना प्रभावशाली बन जाती है। प्रत्येक शब्द और वाक्य का इस प्रकार सगुम्फन होना चाहिए कि कहीं से भी यह लड़खड़ाता हुआ अनुभव न हो । शब्द और वाक्य का यह जुड़ाव ही सुगठन कहलाता है। यदि कोई लेखक अपने पाठक से सुदृढ़ सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है तो यह गुण उस सम्बन्ध निर्माण में निश्चय ही सहायक होता है।
(6) पल्लवन के लिए विषय का चुनाव रुचि के अनुकूल होना चाहिए। विषय के बारे में आपके पास कितनी सामग्री है या आप उसके बारे में कितना सोच सकते हैं, इसका ध्यान रखना आवश्यक है। इतना होने पर ही पल्लवन के लिये विषय का चुनाव करना चाहिए।
उत्कृष्ट पल्लवन के नमूने
विषय-
(1) एक शब्द का पल्लवन-
समय
पल्लवन – समय अमूल्य है। समय से अधिक मूल्य किसी का नहीं हो सकता है। हमारे जीवन का समय निश्चित है। हमें अपने सभी महत्वपूर्ण कार्य समय पर ही करने चाहिए। बचपन में पढ़ाई, खेल, खाना और सोना समय से ही होना चाहिए। युवावस्था में समय का महत्व बढ़ जाता है। एक निश्चित समय में ही हमें पाठ्यक्रम को पूर्ण कर परीक्षा हेतु तैयार होना पड़ता है। पढ़ाई के समय ही हमें रोजगार के अवसर भी सीमित समय तक हीँ मिलते हैं। यदि हम उस समय को व्यर्थ में गँवा देते हैं तो फिर हम प्रतियोगी परीक्षाओं में नही सम्मिलित हो पायेंगे अतः हम रोजगार से वंचित हो सकते हैं। समय से सोने, उठने, टहलने, खाना खाने से ही हम स्वस्थ रह सकते हैं गया समय वापस नहीं आ सकता। यह हमे सदैव याद रखना चाहिए। क्योंकि समय ही सबसे शक्तिशाली है। हमारे बीच एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है— अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत।
विषय
( 2 ) दो या अधिक शब्दों का पल्लवन-
समय ही धन है
पल्लवन– समय का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है, इसलिए उसे बर्बाद करने के बजाय उसका सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि समय निकल जाने पर सिवा पश्चाताप के कुछ हाथ नहीं आता। शायद इसीलिए कहा भी गया है कि ‘का वर्षा जब कृषि सुखानी’ यांनी समय बीत जाने पर यदि बारिश हुई तो क्या फायदा? कबीर दास ने इसीलिए समय के महत्त्व को बताते हुए कहा है कि जो काम कल करना चाहते हो, उसे आज ही कर लो और जो आज करना चाहते हो, उसे अभी कर लो क्योंकि कब क्या हो जाये, तुम नहीं जानते। अंग्रेज़ी की एक मशहूर उक्ति है ‘टुमारो नेवर कम्स’ यानी कल कभी नहीं आता। तात्पर्य यह कि जब अगले पल का भरोसा नहीं तो जो पल तुम्हारा है, उसका सदुपयोग करो। लेकिन समय का सदुपयोग कैसे किया जाय, अहम् सवाल है। पहले समय जीवन रहा होगा और उसका सदुपयोग लोग विद्या और कला सीखने में या दीन-दुखियों की सहायता करने में करते रहे होंगे, लेकिन आज समय का सदुपयोग लोग पैसा कमाने में करते हैं। समय पैसा कैसे है, यदि यह देखना चाहते हैं तो किसी डाक्टर के पास चले जाइए। आप पायेंगे कि डाक्टर का हाथ रहता तो है नब्ज पर, लेकिन निगाह घड़ी पर रहती है कि कहीं एक ही मरीज़ पर ज्यादा समय तो नहीं निकल जा रहा, क्योंकि यदि एक मरीज़ से बतौर परामर्श शुल्क के दौ सौ रुपए लेता है, तो वह चाहेगा कि संख्या में अधिक से अधिक मरीज़ कम-से-कम समय में देखे। उसे इस बात की परवाह नहीं रहती कि मरीज़ क्या कह रहा है, उसे डॉक्टर को दिखाकर संतोष हुआ या नहीं, उसके लिए वह मरीज़ कम पैसा ज्यादा । आज यही हाल मास्टर का है, वकील का है, अधिकारी का है, मंत्री का है। इन्हीं का रोना क्यों रोयें आज तो पति के पास पत्नी और बच्चों के लिए समय नहीं, रिश्तेदार-नातेदार किस खेत की मूली हैं। जितनी देर वह बात करेगा, उतनी देर में तो कुछ कुमा लेगा। यानी कुछ कमा लेना ही सार्थकता है, समय का सदुपयोग है, शेष बातें निरर्थक हैं।
विषय
( 3 ) जिसकी लाठी उसकी भैंस-
पल्लवन — यह कथन बहुत समसामयिक है। इसका अर्थ यह है कि जिसके हाथ में लाठी अर्थात् ताकत है, भैंस अर्थात् वस्तुओं, धन, जमीन आदि पर अधिकार उसी का होगा। इस बात का तो पूरा इतिहास गवाह है कि ताकतवर ने ही हमेशा समाज पर शासन किया है। शक्ति के समक्ष सभी झुके हैं, चाहे राजा हो चाहे प्रजा। परन्तु यह तो उस जमाने की बात है, जब राजतंत्र था, अब तो लोकतंत्र है। कागज पर सारी नकेल जनता के हाथ में है। सरकार जनता की जनता द्वारा चुनी हुई जनता के हित के लिए है, परन्तु है इसके ठीक विपरीत आज सरकार लाठी की है, लाठी वोट दिलाती है, लाठी मैत्री बनाती है, लाठी जनता में पूजा करवाती है। गिरिधर कविराय ने कितना पहले ही कहा था लाठी में गुन बहुत हैं सदी राखिए संग’ गिरधर का मन्तव्य इन पंक्तियों में लाठी को रक्षक बताना है, पर आज तो लाठी भक्षक हो गयी है। सच ही कहा गया है, जिसकी लाठी में ताकत होगी, दूसरे की भैंस को नहीं हांक ले जायेगा।
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