कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

अर्थशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध (Relation of Economics with Other Sciences)

अर्थशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध (Relation of Economics with Other Sciences)
अर्थशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध (Relation of Economics with Other Sciences)

अर्थशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध (Relation of Economics with Other Sciences)

अर्थशास्त्र एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक विज्ञान है। इसलिए इसका अन्य सामाजिक तथा भौतिक विज्ञानों से सम्बन्ध होना अनिवार्य है।”

-कामटे

आजकल विज्ञानों को चार भागों में बाँटा जाता है- (1) भाव प्रधान विज्ञान इसमें दर्शनशास्त्र को शामिल किया जाता है। (2) भौतिक विज्ञान–इस वर्ग में भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, भूगोल, अंकगणित आदि को सम्मिलित किया जाता है। (3) जीव विज्ञान-इसमें मुख्यतः जीवशास्त्र को शामिल किया जाता है। (4) मानव विज्ञान-इस वर्ग के विज्ञानों को दो भागों में बाँटा जाता है–(i) व्यक्तिगत विज्ञान, जैसे मनोविज्ञान, शरीर-विज्ञान आदि, तथा (ii) सामाजिक विज्ञान, जैसे राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र इत्यादि। इस प्रकार अर्थशास्त्र मानव विज्ञान की सामाजिक शाखा के अन्तर्गत आता है, इसलिए इसका अन्य सामाजिक शास्त्रों (विज्ञानों) से घनिष्ठ सम्बन्ध है।

अर्थशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

इस शीर्षक के अन्तर्गत हम अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, इतिहास तथा नीतिशास्त्र के साथ सम्बन्ध का अध्ययन करेंगे।

(1) अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र (Economics and Sociology)-अर्थशास्त्र वस्तुतः समाजशास्त्र की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। ‘समाजशास्त्र में समाज की उत्पत्ति, मनुष्य के सामाजिक सम्बन्धों तथा सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का अध्ययन किया जाता है जबकि ‘अर्थशास्त्र’ में मानवीय व्यवहार के आर्थिक पहलू का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र एक व्यापक शास्त्र है और इसे अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, नीतिशास्त्र, विधिशास्त्र आदि सभी सामाजिक विज्ञानों का जनक कहा जाता है। समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का पारस्परिक सम्बन्ध निम्न बातों से भली-भाँति स्पष्ट हो जायेगा

(i) अर्थशास्त्र समाजशास्त्र की एक शाखा-जबकि अर्थशास्त्र में मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, तब समाजशास्त्र में मनुष्य की सभी प्रकार की सामाजिक क्रियाओं का सामूहिक अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र में तो मानव-व्यवहार के केवल एक ही पहलू (आर्थिक) का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र मानव-व्यवहार के सभी पहतुओं का अध्ययन करता है। इसलिए समाजशास्त्र को पिता तथा अर्थशास्त्र को पुत्र कहा जाता है।

(ii) आर्थिक क्रियाओं पर सामाजिक संस्थाओं का प्रभाव मनुष्यों की आर्थिक क्रियाओं पर सामाजिक ढाँचे का गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे देश में जाति-प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा जैसी सामाजिक संस्थाओं का आर्थिक जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इस दृष्टि से अर्थशास्त्र के समुचित अध्ययन के लिए समाजशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है।

(iii) समाज पर आर्थिक क्रियाओं का प्रभाव-धन के उत्पादन, वितरण तथा उपयोग का मनुष्य के सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, चोरी, डकैती, वेश्यावृत्ति आदि सामाजिक बुराइयाँ मुख्यतः आर्थिक कारणों से उत्पन्न होती है। अतः मनुष्य की सामाजिक क्रियाओं के स्वभाव, कारणों तथा परिणामों का समुचित अध्ययन करने के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है। इस प्रकार अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(2) अर्थशास्त्र तथा इतिहास (Economics and History)- ‘इतिहास’ मानव को किसी जाति, समुदाय या समाज के समग्र जीवन के बीते हुए समय का लिखित विवरण है जो तथ्यों के आधार पर तैयार किया जाता है, जबकि ‘अर्थशास्त्र’ मनुष्य की धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय तथा वितरण सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन है। अर्थशास्त्र के समुचित ज्ञान के लिए इतिहास का अध्ययन कई प्रकार से उपयोगी होता है—(1) आर्थिक संस्थाओं के विकास का अध्ययन तथा इतिहास- इतिहास के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि आर्थिक संस्थाओं, जैसे व्याज, बैंक, मुद्रा आदि का विकास किस प्रकार हुआ। (ii) कुछ आर्थिक नियम ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित- कुछ आर्थिक नियम ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर प्रतिपादित किए गए हैं, जैसे माल्थस का जनसंख्या का सिद्धान्त। (iii) कुछ आर्थिक नीतियों के निर्माण में इतिहास से सहायता-भविष्य के लिए आर्थिक नीतियाँ बनाते समय भूतकाल के अनुभव हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होते हैं। इतिहास से हमें इस बात की के जानकारी होती है कि विश्व में औद्योगिक क्रान्ति कब और कैसे आई तथा इसका विभिन्न देशों पर क्या प्रभाव पड़ा। आर्थिक इतिहास हमें बताता है कि ‘स्वतन्त्र व्यापार’ की नीति के अपनाने से विभिन्न देशों को क्या लाभ-हानि हुए तथा इस नीति को किन कारणों से छोड़ना पड़ा इत्यादि। (iv) इतिहास के लिए अर्थशास्त्र का अध्ययन आवश्यक- इतिहास के समुचित अध्ययन के लिए भी अर्थशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है। प्रायः ऐतिहासिक घटनाओं के मूल कारण आर्थिक होते हैं। दोनों विश्व युद्धों के मुख्य कारण आर्थिक ही थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र तथा इतिहास दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसीलिए कहा जाता है इतिहास के बिना अर्थशास्त्र जड़रहित है, अर्थशास्त्र के बिना इतिहास फलरहित है। देखा जाए तो दोनों समाजशास्त्र के पुत्र हैं।

(3) अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र (Economics and Political Science)– ‘राजनीतिशास्त्र’ में मनुष्य की राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जबकि ‘अर्थशास्त्र’ में मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र दोनों में मनुष्यों के दो सामाजिक पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। इस दृष्टि से अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र दोनों ही समाजशास्त्र के अंग हैं। दोनों शास्त्रों के सामाजिक विज्ञान होने के कारण दोनों विषयों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है बल्कि प्रारम्भ में तो अर्थशास्त्र को ‘राजनीतिक अर्थव्यवस्था के नाम से सम्बोधित किया जाता था। निम्न बातों से दोनों शास्त्रों का घनिष्ठ सम्बन्ध स्पष्ट हो जायेगा

(i) राजनीतिशास्त्र का अर्थशास्त्र पर गहरा प्रभाव-किसी देश की आर्थिक समृद्धि के लिए यह आवश्यक होता है कि वहाँ शान्ति तथा सुरक्षा हो तथा सरकार शक्तिशाली व न्यायपूर्ण हो। यदि देश में अशान्ति होगी तथा राज्य दुर्बल होगा तो वहाँ आर्थिक क्रियाएं ठीक प्रकार से सम्पन्न नहीं की जा सकेंगी तथा समुचित मात्रा में धन का उत्पादन नहीं किया जा सकेगा। परिणामतः वह देश आर्थिक दृष्टि से समृद्ध नहीं हो पायेगा इसके अतिरिक्त, राज्य की नीति का जनता की आर्थिक क्रियाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सरकार अपनी नीति द्वारा कृषि, उद्योग वाणिज्य, व्यापार आदि को प्रोत्साहित भी कर सकती है और हतोत्साहित भी इसी प्रकार सरकार अपनी राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) द्वारा आर्थिक असमानताओं को कम भी कर सकती है और उन्हें बढ़ा भी सकती है। (ii) अर्थशास्त्र का राजनीतिशास्त्र पर प्रभाव- (अ) आर्थिक क्रियाओं ने राजनीतिक क्रियाओं को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है। देखा जाए तो समय-समय पर आर्थिक क्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों ने राज्य के ढांचे को ही बदल दिया है। उदाहरणार्थ, कृषि-काल की राज्य व्यवस्था वर्तमान औद्योगिक युग की राज्य व्यवस्था से एकदम मित्र थी। औद्योगिक क्रान्ति ने इंग्लैण्ड की शासन व्यवस्था में भारी परिवर्तन कर दिए थे। (ब) राज्य की नीतियाँ मुख्यतः आर्थिक दशाओं से प्रभावित होती हैं। जब प्राचीन काल में ‘स्वतन्त्र व्यापार’ (Free Trade) का बोलबाला था तब सरकारें आर्थिक क्रियाओं में कम से कम हस्तक्षेप करती थीं। किन्तु आधुनिक युग ‘कल्याण’ का युग है। आजकल सरकारें जनता के कल्याण में अधिकाधिक वृद्धि करने के लिए विभिन्न उपाय करती हैं, जैसे आर्थिक विषमताओं को दूर करना, सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना, संरक्षण की नीति अपनाना आदि। (स) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक संघर्षों के कारण मुख्यतः आर्थिक ही होते हैं। उदाहरणार्थ, द्वितीय विश्व युद्ध का मुख्य कारण आर्थिक ही था। आजकल प्रत्येक राष्ट्र अपने निर्यात व्यापार को बढ़ाने के लिए प्रवलशील है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विकसित राष्ट्र कमजोर राष्ट्रों पर राजनीतिक आधिपत्य स्थापित करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ राष्ट्रों में कान्तियों तथा राजनीतिक उथल-पुथल के कारण आर्थिक रहे हैं। (द) कुछ विषय, जैसे पूजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, कल्याणकारी राज्य आदि अर्थशास्त्र के भी उतने ही महत्त्वपूर्ण विषय हैं जितने कि राजनीति विज्ञान के इस प्रकार उक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(4) अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र (Economics and Ethics)— ‘नीतिशास्त्र’ वह शास्त्र है जो हमें नैतिक नियमों का ज्ञान कराता है, अर्थात् यह नैतिक आचरणों (सदाचार) का विज्ञान है यह मनुष्य को उसके कर्तव्यों तथा आदशों का बोध कराता है। अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र दोनों समाजशास्त्र के अंग हैं। इस दृष्टि से दोनों भाई-भाई हुए अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र के परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाली कुछ वातें इस प्रकार है-(i) दोनों में मानव-व्यवहार का अध्ययन–जबकि अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के आर्थिक पहलू (economic aspect) का अध्ययन किया जाता है, तब नीतिशास्त्र मानव-व्यवहार के नैतिक पहलू (ethical aspect) का अध्ययन करता है। मानव-व्यवहार के आर्थिक तथा नैतिक पहलू परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। इस नाते अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। (ii) नीतिशास्त्र का अर्थशास्त्र पर प्रभाव नीतिशास्त्र हमें उचित-अनुचित में भेद करना सिखाता है। देखा जाये तो नीतिशास्त्र के प्रभाव से अर्थशास्त्र का क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है। अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्शात्मक विज्ञान तथा कला भी है। अब अर्थशास्त्र को केवल धन का अध्ययन’ नहीं वरन् ‘मानव के भौतिक कल्याण का अध्ययन माना जाता है। नीतिशास्त्र मानव कल्याण का अध्ययन है जबकि ‘भौतिक कल्याण’ मानव कल्याण का वह भाग है जिसे मुद्रारूपी मापदण्ड द्वारा मापा जाता है। मानव के भौतिक कल्याण पर विचार करते समय अर्थशास्त्री को मानव-कल्याण के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना होता है। इस सम्बन्ध में अर्थशास्त्री को नीतिशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। आर्थिक नियोजन कराधान नीति, सामाजिक सुरक्षा, मद्य निषेध, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन आदि सम्बन्धी आर्थिक नीतियों पर नैतिक पहलू का गहरा प्रभाव पड़ता है। सेलिगमैन (Seligman) के विचार में, “सच्चा आर्थिक कार्य अन्त में नैतिक कार्य होता है।” (iii) अर्थशास्त्र का नीतिशास्त्र पर प्रभाव- अर्थशास्त्र का भी नीतिशास्त्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है। किसी मनुष्य की आय, उसका व्यवसाय, आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आय को खर्च करने की मदें य तरीके आदि बातों का मनुष्य के चरित्र व आचरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। एक कहावत भी है, “भूखे भजन न होई गोपाला”, अर्थात् भूखा व्यक्ति ईश्वर की पूजा भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाता। दूसरे शब्दों में मनुष्य का आचरण तथा चरित्र अनेक आर्थिक घटकों से प्रभावित होता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। नीतिशास्त्र की सहायता के बिना अर्थशास्त्र एक फलदायक विज्ञान (Fruit-bearing Science) नहीं हो सकता उचित मूल्य, उचित मजदूरी, उचित व्याज, उचित लाभ आदि का निर्धारण अर्थशास्त्री नीतिशास्त्र का सहारा लेकर ही कर सकता है। इस कारण अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र की दासी (Handmaiden of Ethics) भी कहा जाता है।

(5) अर्थशास्त्र तथा भूगोल (Economics and Geography)– ‘अर्थशास्त्र में मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा आर्थिक वातावरण का अध्ययन किया जाता है, जबकि ‘भूगोल’ मनुष्य तथा उसके प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन करता है। भूगोल में किसी भी देश या प्रदेश की प्राकृतिक दशाओं, जलवायु, घरातल, मिट्टी, वनस्पति, खनिज पदार्थ आदि का अध्ययन किया जाता है। मानव का अध्ययन करने के नाते अर्थशास्त्र तथा भूगोल दोनों विषय घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। दोनों के सम्बन्ध को निम्न बातों से भली-भाँति समझा जा सकता है —

(1) भूगोल का अर्थशास्त्र पर प्रभाव –(i) आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव- देश की भौगोलिक तथा प्राकृतिक दशाओं का मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि देश की भूमि उपजाऊ है तथा सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं तो देश का आर्थिक ढाँचा कृषि प्रधान होगा। अच्छे चरागाह होने पर पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा मिलता है। जिस देश में खनिज पदार्थों का भण्डार है तथा जंगलों से कच्चा माल उपलब्ध होता है वहाँ औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। इसी प्रकार पृथ्वी का धरातल, जंगल, जल संसाधन, पशु-सम्पदा आदि देश के आर्थिक विकास की दिशा को निर्धारित करते हैं। फिर ठण्डे देश के निवासी गर्म देश के निवासियों की अपेक्षा अधिक कार्यकुशल तथा परिश्रमी होते हैं। (ii) आर्थिक विकास पर प्रभाव- किसी देश के आर्थिक विकास पर वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों तथा उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, डेनमार्क, फ्रांस आदि राष्ट्रों के आर्थिक विकास को वहाँ के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। फिर कुछ अरब राष्ट्र तो तेल बेचकर ही धनी देश हो गए हैं।

(2) अर्थशास्त्र का भूगोल पर प्रभाव-आर्थिक नीतियाँ भी देश के भौगोलिक वातावरण को प्रभावित करती हैं। वैज्ञानिक प्रगति की सहायता से मानव पृथ्वी की भौगोलिक रचना में परिवर्तन करने में समर्थ हो गया है। उदाहरणार्थ, कई राष्ट्रों में जंगली तथा दलदली भागों को ठीक करके कृषि योग्य बना लिया गया है।

(3) अर्थशास्त्र तथा भूगोल के कुछ विषयों में समानता-कुछ विषय ऐसे हैं जिनका अध्ययन अर्थशास्त्र तथा भूगोल दोनों में किया जाता है, जैसे प्राकृतिक संसाधन, जनसंख्या, कृषि, पशुपालन, उद्योग, व्यापार, परिवहन, शक्ति के साधन, संचार इत्यादि। उल्लेखनीय है कि भूगोल की एक शाखा को ‘आर्थिक भूगोल (Economic Geography) के नाम से जाना जाता है।

(6) अर्थशास्त्र तथा वाणिज्य (Economics and Commerce) – अर्थशास्त्र में मानव की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। ‘वाणिज्य’ में वस्तुओं के क्रय-विक्रय के साथ-साथ उन समस्त सेवाओं को शामिल किया जाता है जिनके द्वारा माल की उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जाता है (वाणिज्य व्यापार वितरण सेवाएं) व्यापार में वस्तुओं के क्रय-विक्रय को तथा वितरण क्रियाओं में परिवहन व संचार, बीमा, बैंकिंग आदि सेवाओं को शामिल किया जाता है। अर्थशास्त्र तथा वाणिज्य दोनों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। अर्थशास्त्र तथा वाणिज्य के सम्बन्ध की घनिष्ठता को निम्न बातों से भली-भांति समझा जा सकता है

(1) अनेक विषयों का समान होना- ऐसे अनेक विषय है जिनका अर्थशास्त्र तथा वाणिज्य दोनों में अध्ययन किया जाता है, जैसे- मुद्रा तथा बैंकिंग, राजस्व, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय, औद्योगिक अर्थशास्त्र, प्रवन्धकीय अर्थशास्त्र, जनसंख्या आर्थिक विकास, सांख्यिकी इत्यादि ।

( 2 ) वाणिज्य की अर्थशास्त्र पर निर्भरता- अनेक वाणिज्यिक विषयों का आधार आर्थिक है, जैसे उद्योगों का स्थानीयकरण तथा विकेन्द्रीकरण, औद्योगिक अर्थशास्त्र, बैंकिंग, व्यापार, वित्तीय व्यवस्था, व्यावसायिक अर्थशास्त्र आदि।

(3) व्यवसायियों तथा उद्यमियों के लिए अर्थशास्त्र की उपयोगिता- व्यावहारिक दृष्टि से सफल व्यवसायियों, उद्यमियों, विक्रेताओं आदि के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान न केवल उपयोगी वरन आवश्यक भी है। उदाहरणार्थ, मुद्रा, बैंकिंग, घाटे की वित्त व्यवस्था, मुद्रा का अवमूल्यन, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, कीमत सिद्धान्त कराधान आदि के समुक्ति ज्ञान द्वारा ही व्यवसाय तथा उद्योग का सफलतापूर्वक संचालन किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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