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अधिकार शुल्क का अर्थ, लक्षण, किराये में अन्तर कीजिए।
अधिकार-शुल्क: अर्थ एवं परिभाषाएँ अधिकार-शुल्क या रायल्टी (Royalty) शब्द का अर्थ ‘राज्य को चुकाये गये भुगतान’ से है। पुराने समय में खनिज पदार्थों वाली सब भूमि पर राज्य का स्वामित्व था जिसका हस्तान्तरण प्रतिफल के आधार पर किया जाता था, यह प्रतिफल अधिकार शुल्क कहलाता था।
वर्तमान में अधिकार-शुल्क का सम्बन्ध खनिज पदार्थों वाली भूमि से ही नहीं है। बल्कि पेटेण्ट (एकस्व), कॉपीराइट, गुप्त प्रक्रम आदि के सम्बन्ध में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
सामान्य शब्दों में, “अधिकार-शुल्क से आशय एक विशेष प्रकार के किराये से है जो सामान्यतः खदान से खनिज निकालने के अधिकार, पुस्तक छापने व बेचने के अधिकार या किसी पेटेण्ट वस्तु बनाने या बेचने के अधिकार के हस्तान्तरण के बदले खान के स्वामी, लेखक या पेटेण्ट के स्वामी को प्राप्त होता है। इसकी गणना उत्पादन की मात्रा, बिक्री की संख्या अथवा प्रयोग की गई इकाई के आधार पर की जाती है।”
विलियम पिकिल्स के अनुसार, “अधिकार-शुल्क एक व्यक्ति को उसकी किसी सम्पत्ति के प्रयोग के बदले में दिया जाने वाला प्रतिफल है चाहे इसे उस व्यक्ति से क्रय किया गया हो या किराये पर लिया गया हो। इसकी गणना सम्पत्ति के प्रयोग से सम्बन्धित उत्पादन की मात्रा या विक्रय पर की जाती है।”
कॉपर के अनुसार, “अधिकार-शुल्क का आशय किराये के रूप में एक ऐसी राशि से है जो कि निश्चित प्रकार की सम्पत्तियों के प्रयोग करने अथवा उत्पन्न करने के अधिकार के लिए दी जाती है, जैम, पेटेण्ट, कॉपीराइट या खान का अधिकार आदि। इन सम्पत्तियों का स्वामित्व सदैव स्वामी के नाम ही रहता है। राशि भुगतान करने वाले व्यक्ति केवल उस सम्पत्ति के प्रयोग करने का विशेषाधिकार होता है।”
जे.आर. बाटलीबॉय के अनुसार, “अधिका शुल्क से आशय उस राशि में है जो एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को उसके द्वारा प्रदान किय गय कुछ विशेष अधिकारों के बदले देता है, जैसे, एक पुस्तक प्रकाशित करने का अधिकार, पेटेण्ट के अन्तर्गत किमी वस्तु का निर्मित कर बेचने का अधिकार अथवा कोई खदान खोदने का अधिकार।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “एक निश्चित उद्देश्य के लिए या एक निश्चित अवधि में किसी विशेषाधिकार को प्रयोग करने में निर्धारित शर्तों के आधार पर आपसी समझौते के अनुसार देय राशि अधिकार-शुल्क कहलाती है।”
अधिकार-शुल्क की विशेषताएँ या लक्षण
(1) अधिकार-शुल्क एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रतिफलस्वरूप दिया जाता है।
(2) यह प्रतिफल एक निश्चित अवधि के बाद देय होता है।
(3) इसकी गणना उत्पादन, प्रयोग या बिक्री की मात्रा आदि के आधार पर की जाती है।
(4) इसका भुगतान आपसी समझौते द्वारा निर्धारित शर्तों के आधार पर किया जाता है।
(5) अधिकार-शुल्क किसी विशेषाधिकार के प्रयोग का प्रतिफल है।
(6) इसमें सम्पत्ति के स्वामी एवं उसके प्रयोगकर्ता के मध्य एक ठहराव का होना आवश्यक है जिसमें सम्पत्ति के प्रयोग की अवधि अधिकार शुल्क की दर, भुगतान का समय, न्यूनतम किराया तथा लघुकार्य राशि के अपलेखन सम्बन्धी तथ्यों का उल्लेख होता है।
अधिकार-शुल्क एवं किराये में अन्तर
अन्तर | अधिकार-शुल्क | किराया |
सम्पत्ति | अधिकार शुल्क मूर्त एवं अमूर्त दोनों सम्पत्तियों का प्रतिफल है। | किराया किसी मूर्त या वास्तविक सम्पत्ति के ही उपयोग में लाने का प्रतिफल है। |
भुगतान | अधिकार शुल्क का भुगतान प्रायः उत्पादन, विक्रय या प्रयोग की इकाई के आधार पर एक निश्चित दर से किया जाता है। | किराये का भुगतान समय के आधार पर किया जाता है, जैसे-दैनिक, मासिक, अर्द्ध-वार्षिक, वार्षिक आदि। |
उपयोग- कर्ता | अधिकार शुल्क का उपयोगकर्ता पट्टेदार कहलाता है। | इसमें सम्पत्ति का उपयोगकर्ता किरायेदार कहलाता है। |
न्यूनतम किराया | इसमें अधिकार शुल्क कम होने पर न्यूनतम किराये के भुगतान की शर्त रखी जा सकती है। | इसमें किराये की दर पूर्व निर्धारित होती है। तथा न्यूनतम किराये की शर्त लागू नहीं होती। |
लघु कार्य की वसूली | इसमें अधिकार शुल्क से न्यूनतम किराया अधिक होने पर उत्पन्न लघु कार्य की वसूली अनुबंध में की गयी व्यवस्था के अनुसार आगामी वर्षों में की जा सकती है। | इसमें लघु कार्य की वसूली नहीं की जाती। |
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