कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

धातु-मुद्रा के भेद (Kinds of Mettalic Money)

धातु-मुद्रा के भेद (Kinds of Mettalic Money)
धातु-मुद्रा के भेद (Kinds of Mettalic Money)

धातु-मुद्रा के भेद (Kinds of Mettalic Money)

धातु मुद्रा दो प्रकार की होती है—(1) प्रामाणिक सिक्के, तथा (II) सांकेतिक सिक्के ।

(I) प्रामाणिक सिक्के (Standard Coins) – इन सिक्कों में मुख्यतः निम्न विशेषताएँ (Characteristics) पाई जाती हैं-

(1) प्रधान मुद्रा – ये सिक्के देश की प्रधान मुद्रा होते हैं तथा वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य इनमें व्यक्त किया जाता है।

(2) अंकित मूल्य तथा धात्विक मूल्य समान होना-इन सिक्कों का अंकित मूल्य (face value) तथा धात्विक मूल्य (intrinsic value) बराबर होता है। इन्हें ‘पूर्णकाय सिक्के’ भी कहते हैं।

(3) असीमित विभिग्राह्य मुद्रा- इन सिक्कों को असीमित कानूनी मान्यता प्राप्त होती है, अर्थात् ये सिक्के असीमित विधिग्राह्य मुद्रा होते हैं।

(4) स्वतन्त्र मुद्रा ढलाई–इन सिक्कों की ढलाई (coinage) स्वतन्त्र होती है, अर्थात् ढलाई के लिए टकसाल (mint) जनता के लिए खुली रहती है। कोई भी व्यक्ति अपने साथ धातु ले जाकर टकसाल में सिक्के ढलवा सकता है।

(5) उत्तम धातुओं का प्रयोग- प्रामाणिक सिक्के प्रायः सोना, चादी जैसी उत्तम धातु के बने होते हैं।

(6) जनता का विश्वास- ऐसी मुद्रा में जनता का पूरा-पूरा विश्वास होता है। में सन् 1883 तक भारत का रुपया प्रामाणिक सिक्का या किन्तु उसके बाद इसकी स्वतन्त्र ढलाई बन्द कर दी गई।

(II) सांकेतिक सिक्के (Token Coins)-इन सिक्कों के प्रमुख लक्षण (Features) निम्न प्रकार हैं-

(1) सस्ती धातुओं का प्रयोग- ये सिक्के प्रायः घटिया तथा हल्की धातुओं से बनाए जाते हैं।

(2) अंकित मूल्य का धात्विक मूल्य से अधिक होना- ऐसे सिक्कों का अंकित मूल्य इनके धाविक मूल्य से अधिक, होता है। अतः ऐसे सिक्कों को गलाने पर पूरा मूल्य वसूल नहीं हो पाता।

(3) सहायक सिक्के—ये प्रामाणिक सिक्कों के सहायक (subsidiary) होते हैं तथा इनका प्रयोग छोटे-छोटे भुगतानों में किया जाता है। इन्हें ‘प्रतीक मुद्रा’ अथवा ‘सहायक मुद्रा’ भी कहते हैं।

(4) सीमित ढलाई-इन सिक्कों की ढलाई स्वतन्त्र नहीं बल्कि प्रतिबन्धित होती है, अर्थात् जनता को यह अधिकार नहीं होता कि वह धातुओं को टकसाल में ले जाकर ऐसे सिक्कों को ढलवा सके।

(5) सीमित विधिग्राह्य मुद्रा- इन्हें सीमित कानूनी मान्यता प्राप्त होती है, अर्थात् ये सिक्के सीमित विधिग्राह्य मुद्रा होते हैं।

इस प्रकार भारतीय रुपया न तो पूर्णतया प्रामाणिक मुद्रा है और न ही पूर्णतया सांकेतिक मुद्रा, बल्कि इसमें दोनों प्रकार की मुद्राओं के गुणों का समावेश है। इसलिए कुछ अर्थशास्त्री इसे ‘सांकेतिक-प्रामाणिक-सिक्का (Token Standard Coin) के नाम से सम्बोधित करते हैं।

(3) पत्र- मुद्रा (Paper Money) कागज़ पर छपे नोट कागजी मुद्रा या पत्र- मुद्रा कहलाते हैं। पत्र मुद्रा सरकार द्वारा या सरकार के आदेशानुसार देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा छापी जाती है। पत्र मुद्रा असीमित विधिग्राहा होती है तथा सरकार की साख पर चलती है। संक्षेप में, ‘पत्र-मुद्रा’ से आशय कागजी नोटों से है जो सरकार अथवा केन्द्रीय द्वारा जारी किए जाते हैं तथा जो असीमित विधिग्राह्य होते हैं। कागजी नोटों का बाह्य-मूल्य तो होता है किन्तु इनका आन्तरिक मूल्य कुछ भी नहीं होता।

जे० एम० केन्ज (J. M. Keynes) के शब्दों में, “पत्र मुद्रा प्रादिष्ट मुद्रा प्रतिनिधि अथवा सांकेतिक मुद्रा होती है जो सामान्यतः कागज़ की बनी होती है तथा जिसका निर्गमन राज्य द्वारा किया जाता है, किन्तु जो स्वयं वैधानिक रूप से किसी अन्य वस्तु में परिवर्तनीय नहीं होती तथा जिसका वास्तव में कोई निश्चित मूल्य नहीं होता।

सर्वप्रथम प्रयोग- विश्व में पत्र- मुद्रा का प्रयोग सर्वप्रथम चीन में 11वीं शताब्दी में हुआ। कागज का आविष्कार भी सबसे पहले चीन में ही हुआ था। भारत में पत्र- मुद्रा सर्वप्रथम सन् 1806 में जारी की गई जबकि बैंक ऑफ बंगाल को पत्र मुद्रा के निर्गमन का अधिकार दिया गया।

आजकल भारत में 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 तथा 1000 रुपये के नोट प्रचलन में हैं। एक रुपये का नोट भारत सरकार द्वारा तथा शेष सभी नोट रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा जारी किए जाते हैं। जनवरी 1978 में भारत सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके 1000, 5000 तथा 10000 रुपये के नोटों का प्रचलन समाप्त कर दिया था किन्तु 1000 के नोटों का प्रचलन पुनः प्रारम्भ कर दिया गया है।

पत्र- मुद्रा की विशेषताएँ- इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है-

(1) विधान के अनुसार निर्गमन-पत्र- मुद्रा का निर्गमन सरकार या किसी अधिकृत संस्था (प्रायः केन्द्रीय बैंक) द्वारा विधान के अनुसार किया जाता है।

(2) प्रामाणिक मुद्रा- कागजी नोट प्रामाणिक मुद्रा होते हैं।

(3) असीमित विधिग्राह्य मुद्रा- नोट असीमित विधिग्राह्य मुद्रा होते हैं।

(4) अंकित मूल्य का अधिक होना- इनका अंकित मूल्य इनके वास्तविक मूल्य से अधिक होता है।.

(5) नोटों पर मुद्रित विवरण-जारी किए गए नोटों पर सामान्यतया ये बातें छपी रहती हैं–(1) नोट की राशि, (ii) सरकार द्वारा गारन्टी, (iii) सरकार या बैंक के अधिकारी के हस्ताक्षर आदि।

(6) उच्च कोटि के कागज का प्रयोग-कागजी नोटों को उच्च कोटि के कागज पर मुद्रित किया जाता है।

(7) धातुओं में परिवर्तनीयता-यह सरकार या अधिकृत मौद्रिक संस्था पर निर्भर करता है कि वह पत्र- मुद्रा को धातु में परिवर्तनीय घोषित करती है या नहीं।

(8) सरकारी साख पर निर्भरता-पत्र- मुद्रा सरकार या निर्गमन संस्था की साख पर चलती है।

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Anjali Yadav

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