आन्तरिक व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर
पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता- आन्तरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मुख्यतः निम्न अन्तर पाए जाते हैं जिस कारण में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता पड़ती है-
(1) श्रम तथा पूँजी की गतिशीलता-दो देशों के मध्य श्रम तथा पूंजी की गतिशीलता (mobility) इतनी अधिक नहीं होती जितनी कि यह किसी एक देश के विभिन्न क्षेत्रों में होती है। दो देशों के बीच श्रम की अगतिशीलता (immobility) के कई कारण होते हैं, जैसे भाषा, रीति-रिवाज, खान-पान, देश-प्रेम, सामाजिक तथा राजनीतिक दशाओं में अन्तर, विदेशियों के साथ भेदभाव आदि। यद्यपि भ्रम की भाँति पूंजी भी दो देशों के बीच कम गतिशील होती है तथापि श्रम की अपेक्षा पूँजी में अधिक गतिशीलता होती है। फिर भी पूंजीपति सामान्यतया अपनी पूंजी को अपने ही देश में लगाना पसन्द करते हैं, क्योंकि विदेशों में पूंजी के लगाए जाने को सुरक्षित नहीं समझा जाता|
दो देशों के बीच श्रम तथा पूंजी की अपेक्षाकृत कम गतिशीलता के कारण एक जैसी वस्तुओं तथा सेवाओं की उत्पादन लागते तथा कीमतें भी भिन्न-भिन्न होती है जिस कारण राष्ट्रों के मध्य विदेशी व्यापार प्रारम्भ हो जाता है।
(2) प्राकृतिक संसाधनों तथा भौगोलिक दशाओं में अन्तर- विभिन्न देशों में जलवायु, भूमि, वर्षा, खनिज पदार्थ, जन आदि प्राकृतिक संसाधन एक-समान नहीं होते। इसी प्रकार विभिन्न देशों की भौगोलिक स्थितियों में अन्तर होता है। इन भिन्नताओं के कारण भौगोलिक श्रम-विभाजन होता है जिससे विभिन्न देश भिन्न-भिन्न वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण प्राप्त कर लेते हैं। जिस देश में प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ पाए जाते हैं वहाँ उद्योगों की स्थापना को बल मिलता है। इसके विपरीत, जहाँ अच्छी भूमि तथा पर्याप्त जल उपलब्ध होता है वहाँ विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं।
(3) उत्पादन सम्बन्धी दशाओं में अन्तर-भिन्न-भिन्न देशों की उत्पादन सम्बन्धी दशाओं तथा सुविधाओं में समानता नहीं पाई जाती। कुछ राष्ट्रों को उच्च तकनीक तथा पर्याप्त पूँजी की सुविधाएं उपलब्ध है जबकि विश्व के अनेक राष्ट्रों में इन दोनों की कमी है। इससे विभिन्न राष्ट्रों में एक ही वस्तु की लागत भिन्न-भिन्न होती है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों की आर्थिक नीतियाँ भी उत्पादन लागत को प्रभावित करती हैं। जब किसी देश की सरकार किसी वस्तु के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करती है, तब दूसरे देश को सरकार उस वस्तु के उत्पादन पर भारी कर लगा देती है। परिणामतः दोनों देशों में एक ही वस्तु की उत्पादन लागते तथा कीमतें भिन्न-भिन्न होती है।
(4) आयात-निर्यात पर प्रतिबन्ध-प्रायः एक देश के विभिन्न भागों के बीच होने वाले व्यापार पर प्रतिबन्ध नहीं लगाए जाते। किन्तु इसके विपरीत, दो देशों के बीच होने वाले व्यापार पर आयात कर (import duty), लाइसेंस आदि अनेक प्रकार के सरकारी प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं। इस प्रकार व्यापार की स्वतन्त्रता की दृष्टि से आन्तरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर होता है। हैबरलर (Haberler) ने ठीक ही कहा है, “तटकर की दीवार विदेशी तथा देशी व्यापार में अन्तर उत्पन्न कर देती है।”
(5) वस्तुओं की गतिशीलता में अन्तर-आन्तरिक व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं को एक ही देश के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना अपेक्षाकृत सरल होता है किन्तु, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं की गतिशीलता में परिवर्तन सम्बन्धी समस्या भी सामने आती है।
(6) मुद्रा प्रणाली में अन्तर-किसी एक देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक ही प्रकार की गुढा प्रचलन में होती है जिस कारण यहाँ आन्तरिक व्यापार में कोई कठिनाई नहीं होती। किन्तु भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न मुद्राएं (currencies) प्रचलन में होती है जिस कारण विदेशी व्यापार में भुगतान सम्बन्धी अनेक कठिनाइयाँ आती है। अनेक बार विदेशी विनिमय (foreign exchange) की कमी के कारण विदेशी व्यापार में रुकावटें आ जाती हैं। फिर विभिन्न देशों की मौद्रिक नीतियों में परिवर्तन होने पर कीमतों में परिवर्तन हो जाते हैं।
(7) विशिष्ट समस्याएँ- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर कुछ विशिष्ट समस्याएं, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय तरलता, अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग आदि भी अपना प्रभाव डालती है।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन— विश्व के अनेक देश कुछ गुटों में बेटे हुए हैं, जैसे यूरोपियन इकोनोमिक कम्यूनिटी इत्यादि। ये गुट अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर पर्याप्त प्रभाव डालते हैं।
(9) क्रेताओं तथा विक्रेताओं के मध्य दूरी- आन्तरिक व्यापार में केता तथा विक्रेता एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में फिले हुए होते हैं तथा वे परस्पर निजी सम्पर्क सरलता से स्थापित कर सकते हैं। इसके विपरीत, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में क्रेता-विक्रेता विभिन्न देशों में फैले हुए होते हैं तथा वे परस्पर निजी सम्पर्क स्थापित करने में स्वतन्त्र नहीं होते।
(10) आर्थिक राष्ट्रवाद-वर्तमान युग में राष्ट्रवाद (Nationalism) की भावना ने आन्तरिक व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर को और भी स्पष्ट कर दिया है। अब प्रत्येक देश की सरकार ऐसी आर्थिक नीति अपनाती है जिससे उस देश के उद्योग अधिक विकसित हो तथा देश के नागरिकों का अधिकतम कल्याण हो ।
उक्त भिन्नताओं के कारण आन्तरिक व्यापार सम्बन्धी नियम अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर लागू नहीं हो पाते जिस कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए पृथक सिद्धान्त की आवश्यकता पड़ती है।
IMPORTANT LINK
- मार्शल की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Marshall’s Definition)
- अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ एवं उनके वर्ग
- रॉबिन्स की परिभाषा की विशेषताएँ (Characteristics of Robbins’ Definition)
- रॉबिन्स की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Robbins’ Definition)
- धन सम्बन्धी परिभाषाएँ की आलोचना Criticism
- अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ Definitions of Economics
- आर्थिक तथा अनार्थिक क्रियाओं में भेद
- अर्थशास्त्र क्या है What is Economics
Disclaimer