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वितरण : परिभाषा तथा निर्धारण के सिद्धान्त (Distribution : Definition and Theories of Determination)
वितरण का अर्थशास्त्र समाज द्वारा उत्पादित धन के उन विभिन्न उत्पत्ति के साधकों या उनके मालिकों के बीच बंटवारे से सम्बन्धित है जिन्होंने उत्पादन में सक्रिय रूप से कार्य किया है।”
-प्रो० चैपमैन
वितरण का अर्थ (Meaning of Distribution)
आजकल वस्तुओं का उत्पादन संयुक्त रूप से उत्पादन के विभिन्न उपादानों द्वारा किया जाता है। कोई भी उपादान अकेले ही किसी वस्तु को तैयार नहीं कर सकता। मामूली सी मामूली वस्तु के उत्पादन के लिए भी कम से कम भूमि तथा श्रम इन दो उपादानों की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार उत्पादन विभिन्न उपादानों के सहयोग के परिणामस्वरूप होता है। इस संयुक्त उत्पादन (Joint Production) में से प्रत्येक उपादान को अपना हिस्सा या पारिश्रमिक पाने का अधिकार है। यदि किसी उपादान को उसका हिस्सा नहीं मिलेगा तो वह उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान नहीं करेगा ‘वितरण’ में इसी बात का अध्ययन किया जाता है कि संयुक्त उत्पादन में से उत्पादन के विभिन्न उपादानों के हिस्से किस प्रकार निर्धारित किए जाते हैं। दूसरे शब्दों में, वितरण इस बात का अध्ययन करता है कि संयुक्त उत्पादन (राष्ट्रीय आय) में से लगान, मजदूरी, ब्याज तथा लाभ का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है। आधुनिक अर्थशास्त्री वितरण के लिए ‘साधन कीमत निर्धारण’ (Factor Pricing) अवधारणा का प्रयोग करते हैं।
सैलिग्मैन के शब्दों में, “वह सभी धन, जिसे उत्पन्न किया जाता है, अन्त में कुछ विधियों तथा स्रोतों के द्वारा व्यक्तियों के पास पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया को वितरण कहते हैं।”
वितरण किसका होता है ? (What is Distributed ?)
उत्पादन के उपादानों के मध्य अधिक से अधिक उस कुल उत्पादन का वितरण किया जा सकता है, जिसका कि वे संयुक्त रूप से उत्पादन करते हैं। किन्तु प्रश्न उठता है क्या किती कारखाने या खेत में किए गए समस्त उत्पादन का वितरण कर दिया जाता है या उसके एक भाग को ही विभिन्न उपादानों के बीच वितरित किया जाता है ? वास्तव में किसी कारखाने या खेत की कुल उत्पत्ति (gross product) वितरण के लिए उपलब्ध नहीं होती। यदि समस्त उत्पादन का वितरण कर दिया जाए तो उत्पादन कार्य शीघ्र ही ठप्प हो जाएगा। अतः उत्पादन को उपादानों में वितरित करने से पहले कुल उत्पादन के एक भाग को निम्नांकित कार्यों के लिए रख लिया जाता है-
(1) चल पूंजी का प्रतिस्थापन (Replacement of Circulating Capital)—किसी या कारखाने में उत्पादन कार्य को चालू रखने के लिए बीज, खाद, कच्ची सामग्री आदि चल पूंजी को समय-समय पर खरीदना पड़ता है। अतः कुल उत्पादन में से कुछ भाग इसलिए बचा लिया जाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर कच्ची सामग्री को खरीदा जा सके। इस प्रकार चल पूजी के प्रतिस्थापन के लिए कुल उत्पादन में से एक हिस्से को बचा लिया जाता है।
(2) अचल पूँजी का प्रतिस्थापन (Replacement of Fixed Capital) मशीन, जीजार, हल, बैल, ट्रैक्टर आदि अचल पूंजी का बार-बार प्रयोग किया जाता है जिस कारण अथल पूंजी घिसती जाती है। कुछ समय पश्चात् वह बेकार भी हो जाती है और उसके प्रतिस्थापन की आवश्यकता पड़ती है ताकि उत्पादन कार्य आगे भी किया जाता रहे। अतः अचल पूंजी के प्रतिस्थापन के लिए मूल्य-हास-निधि (Depreciation Fund) के रूप में उत्पादन के एक हिस्से को बचा लिया जाता है।
(3) कर (Taxes) — उत्पादकों तथा कृषकों को विभिन्न प्रकार के केन्द्रीय प्रान्तीय तथा स्थानीय कर भी चुकाने पड़ते हैं। इसलिए कुल उत्पादन में से करों के रूप में दी जाने वाली धनराशि को भी निकाल लिया जाता है।
(4) बीमा व्यय (Insurance Charges)—आग, चोरी, बाढ़ आदि जैसी घटनाओं से होने वाली हानि से बचने के लिए उत्पादक बीमा कराते हैं। प्रीमियम के रूप में बीमा कम्पनियों को कुछ धनराशि चुकानी पड़ती है। इस धनराशि को भी कुल उत्पादन में से निकाल लिया जाता है।
शुद्ध उत्पादन का वितरण- कुल उत्पादन में से चल व अचल पूंजी का प्रतिस्थापन कर राशि तथा चीमा सम्बन्धी धनराशि को निकालने के पश्चात् जो शेष रहता है उसे ही उत्पादन के विभिन्न सायकों (agents) के बीच वितरित किया जाता है। अतः कुल उत्पादन के बजाय शुद्ध उत्पादन (Net Product) का ही विभिन्न उपादानों के बीच वितरण किया जाता है।
उदाहरण (Example)– हम एक किसान का उदाहरण लेते हैं। कोई किसान 35 क्विंटल गेहूं का उत्पादन करता है. जिसे बेचने से उसे 40,000 रुपये प्राप्त होते हैं। अपने उत्पादन कार्य को चालू रखने के लिए उसे बीज, खाद आदि कच्ची सामग्री खरीदनी होगी। इस कार्य के लिए वह 2,000 रुपये रख लेता है। इसके अतिरिक्त, उसके औजार भी धीरे-धीरे घिसते जाते हैं जिस कारण कुछ समय बाद उन्हें बदलने की भी आवश्यकता पड़ेगी। इसी प्रकार उसके बैल भी कुछ वर्षों के बाद चूड़े हो जायेंगे, और उनके स्थान पर नए बैल लेने की आवश्यकता पड़ेगी। अतः औजार, बैल आदि पूँजी के प्रतिस्थापन के लिए वह 3,200 रुपये रख लेता । किसान को 1,400 रुपये कर के रूप में भी देने पड़ते हैं। उसने अपनी फसल का बीमा करा लिया था जिस कारण उसे प्रीमियम के रूप में 800 रुपये देने पड़े थे। यदि यह 20,000 रुपये में से 2,000+ 3,200 + 1,400 + | 800 = 7.400 रुपये निकाल दे तो उसके पास 32,600 रुपये (40,000 7.400 32,600 रु०) शुद्ध उत्पादन के रूप में बचे इन 32,600 रुपयों को ही उत्पादन के विभिन्न उपादानों में वितरित किया जाएगा।
जिस प्रकार किसी खेत या कारखाने के कुल उत्पादन में से शुद्ध या निवल उत्पादन का वितरण किया जाता है उसी प्रकार कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (Net National Product) का विभिन्न उपादानों के बीच वितरण किया जाता है।
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