कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

मजदूरी का अर्थ (Meaning of Wages)

मजदूरी का अर्थ (Meaning of Wages)
मजदूरी का अर्थ (Meaning of Wages)

मजदूरी का अर्थ (Meaning of Wages)

“श्रम की सेवा के लिए दिया गया मूल्य ही मजदूरी है।”

– मार्शल

अर्थशास्त्र में ‘मजदूरी’ शब्द का प्रयोग संकुचित तथा विस्तृत दोनों अर्थों में किया जाता है।

मजदूरी का संकुचित अर्थ- (1) बेनहम के शब्दों में, “मजदूरी वह मुद्रा-राशि है जिसका भुगतान किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत कोई सेवायोजक अपने श्रमिक को उसकी सेवाओं के बदले करता है। (2) प्रो० जीड के विचार में, “गजदूरी शब्द का प्रयोग हर प्रकार के श्रम की कीमत के लिए नहीं करना चाहिए वरन इसका प्रयोग उद्यमी द्वारा भाड़े पर प्राप्त किए गए श्रम की कीमत के लिए किया जाना चाहिए।”

इस प्रकार संकुचित दृष्टि से—(1) मजदूरी का भुगतान केवल मुद्रा के रूप में ही किया जाता है, तथा (ii) मजदूरी केवल माई के मजदूर को ही दी जाती है। किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से ये विचार गलत है क्योंकि-(1) मजदूरी केवल मुद्रा के रूप में ही नहीं दी जाती वरन् यह वस्तुओं के रूप में भी दी जाती है। (2) मजदूरी केवल भाड़े के मजदूरों को ही नहीं दी जाती बल्कि जो व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से अपना कार्य करते हैं उन्हें जो पारिश्रमिक (remuneration) मिलता है वह भी मजदूरी कहलाता है, जैसे डॉक्टर, वकील आदि को मिलने वाला पारिश्रमिक उक्त दोषों के कारण आधुनिक अर्थशास्त्री ‘मजदूरी’ शब्द का प्रयोग विस्तृत अर्थ में करते हैं।

मजदूरी का विस्तृत अर्थ- (1) मार्शल के विचार में, “श्रम की सेवा के लिए दिया गया मूल्य ही मजदूरी है।” (2) सेलिगमेन के शब्दों में, “मजदूरी श्रम का वेतन है।” (3) प्रो० वाद्य के अनुसार, “मजदूरी में श्रम को प्राप्त होने वाली सभी प्रकार की आय एवं भुगतान आते हैं। इन परिभाषाओं में मजदूरी का विस्तृत अर्थ लिया गया है। इस प्रकार ‘मजदूरी’ वह भुगतान है जो सभी प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम के लिए दिया जाता है।

उपयुक्त परिभाषा – मजदूरी सेवायोजक के द्वारा श्रमिक को उसके शारीरिक व मानसिक श्रम के बदले दिया गया पारिश्रमिक है जिसका भुगतान समयानुसार या कार्यानुसार मुद्रा में अथवा वस्तुओं में या दोनों में किया जाता है।

व्यवहार में मजदूरी के लिए विभिन्न शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जैसे वेतन, फीस, तनख्वाह कमीशन आदि।

नकद मजदूरी तवा असल मजदूरी (Money Wages and Real Wages)

नकद या मौद्रिक मजदूरी का अर्थ-किसी श्रमिक को उसकी सेवा या परिश्रम के बदले मुद्रा के रूप में जो पुरस्कार मिलता है वह मौद्रिक या नकद मजदूरी कहलाता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी श्रमिक को 9,000 रु० प्रतिमाह मिलते हैं तो 9,000 रु० उसकी मजदूरी हुई। अतः ‘नकद मजदूरी’ मुद्रा की वह मात्रा है जो किसी श्रमिक को प्रतिदिन प्रति सप्ताह, प्रति माह अथवा कार्य की मात्रा के आधार पर समझीते के अनुसार दी जाती है।

असल (वास्तविक) मजदूरी का अर्थ- मैक्कोनल के अनुसार, “एक श्रमिक अपनी नकद मजदूरी के बदले में वस्तुओं तथा सेवाओं की जो मात्रा प्राप्त कर सकता है उसे वास्तविक मजदूरी कहा जाता है। नकद मजदूरी की क्रय-शक्ति वास्तविक मजदूरी है। इस प्रकार असल या वास्तविक मजदूरी वस्तुओं तथा सेवाओं की उस मात्रा को बताती है जिसे कोई व्यक्ति (श्रमिक) अपनी नकद मजदूरी से प्राप्त कर सकता है। असल मजदूरी में उन वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा को भी शामिल कर लिया। जाता है जो नकद मजदूरी के अतिरिक्त प्राप्त होती है, जैसे बिना किराए का मकान, यात्रा-सुविधाएं, मुफ्त चिकित्सा, बच्चों को निःशुल्क शिक्षा आदि।

थॉमस के अनुसार, “वास्तविक मजदूरी किसी श्रमिक को उसके कार्य के बदले प्राप्त होने वाले शुद्ध लाभों की और संकेत करती है, अर्थात् वह उन अनिवार्य, आरामदायक तथा विलासिता की वस्तुओं को बताती है जिन्हें अमिक अपनी सेवाओं के बदले प्राप्त करता है।

इस प्रकार असल मजदूरी में दो बातें शामिल होती है (i) वे वस्तुएँ तथा सेवाएं जिन्हें नकद मजदूरी से खरीदा जा सकता है, तथा (ii) नकद मजदूरी के अतिरिक्त मिलने वाले साभ तथा सुविधाएँ।

एडम स्मिथ के शब्दों में, “श्रमिक की वास्तविक मजदूरी में आवश्यकताओं तथा जीवनोपयोगी सुविधाओं की वह मात्रा शामिल होती है जाकि उसके श्रम के बदले में दी जाती है जबकि उसकी नकद मजदूरी में श्रम द्वारा प्राप्त मुद्रा की मात्रा को ही शामिल किया जाता है। श्रमिक धनी है या निर्धन, उसे अधिक पुरस्कार मिलता है या कम, यह उसके श्रम के वास्तविक मूल्य के अनुपात पर निर्भर करता है न कि नकद मजदूरी पर।

असल मजदूरी को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Real Wages)

असल या वास्तविक मजदूरी को मुख्यतः निम्नलिखित घटक प्रभावित करते हैं-

(1) नकद मजदूरी (Money Wages)- यदि अन्य बातें समान रहें तो नकद मजदूरी के अधिक होने पर वास्तविक मजदूरी भी अधिक होगी।

(2) मुद्रा की क्रय-शक्ति (Purchasing Power of Money)-किसी श्रमिक की असल मजदूरी पर मुद्रा की कप-शक्ति का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। मुद्रा की क्रय-शक्ति के कम होने पर असल मजदूरी कम होती है तथा मुद्रा की क्रय-शक्ति के अधिक होने पर मजदूरी अधिक होती है। दूसरे शब्दों में, कीमतों के बढ़ने से वास्तविक मजदूरी कम हो जाती है जबकि कीमतों के घटने से वास्तविक मजदूरी बढ़ जाती है।

(3) अतिरिक्त सुविधाएँ (Extra Facilities) – यदि किसी श्रमिक को अपनी नकद मजदूरी के अतिरिक्त अन्य प्रकार की सुविधाएँ भी प्राप्त होती हैं, जैसे निःशुल्क या कम किराए के मकान की सुविधा, बच्चों की निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क चिकित्सा आदि तो ऐसे श्रमिक की असल मजदूरी अपेक्षाकृत अधिक होगी।

(4) अतिरिक्त आय (Extra Earnings)-कुछ व्यवसाय तथा कार्य ऐसे होते हैं जिनमें लगे श्रमिक नियमित मजदूरी कमाने के अलावा कुछ अन्य स्रोतों से भी सहायक आय प्राप्त कर लेते हैं। उदाहरणार्थ, प्राध्यापकों को प्राइवेट ट्यूशन करने की सुविधा होती है। इसी प्रकार, कुछ सरकारी डॉक्टरों को अपना प्राइवेट कार्य करने की छूट प्राप्त होती है।

(5) कार्य का स्वभाव (Nature of Work) कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनके करने से मनुष्य की कार्यक्षमता घटती जाती है, जैसे एसिड बनाने के कारखाने में कार्य करना कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें करने से श्रमिक की आयु घट जाती है, जैसे शीशे के कारखानों में कार्य करना, लोहा गलाने या पीटने का काम आदि। इसी प्रकार कुछ कार्य कठिन तथा जोखिमपूर्ण होने हैं, जैसे कोयले की खानों में काम करना ऐसे कार्यों की नकद मजदूरी के अधिक या समान होने पर भी असल मजदूरी कम होती है। इसके विपरीत, शिक्षक, डॉक्टर तथा वकील के कार्य जोखिमरहित तथा रुचिकर होते हैं जिस कारण उनकी वास्तविक मजदूरी अधिक होती है।

(6) कार्य करने की दशाएँ (Working Conditions)—जिन व्यवसायों में कार्य करने की दशाएँ अच्छी होती हैं उनमें कार्य करने वाले श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी उन श्रमिकों से अधिक होती है जो समान नकद मजदूरी पर ऐसे व्यवसायों में काम करते हैं जिनमें कार्य करने की दशाएँ अच्छी नहीं होतीं।

(7) कार्य की अवधि (Duration of Work)-जिन श्रमिकों को कम काम करना पड़ता है तथा छुट्टियाँ अधिक मिलती हैं उनकी वास्तविक मजदूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। उदाहरणार्थ, एक प्राध्यापक की वास्तविक मजदूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि उसे अपेक्षाकृत कम कार्य करना पड़ता है तथा उसे छुट्टियाँ भी अधिक मिलती है।

(8) कार्य की नियमितता (Regularity of Work)- कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनमें श्रमिकों को वर्ष में कुछ महीने ही कार्य मिल पाता है, जैसे चीनी तथा बर्फ के कारखाने। ऐसे व्यवसायों में कार्य करने वाले श्रमिकों की असल मजदूरी उन ग्रमिकों की असल मजदूरी से कम होती है जिन्हें पूरे वर्ष के लिए कार्य मिल जाता है।

(9) बिना भुगतान के अतिरिक्त कार्य (Overtime Without Payment)–यदि किसी श्रमिक को नियमित कार्य घण्टों के अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है जिसके लिए उसे कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं मिलता तो उसकी वास्तविक मजदूरी अपेक्षाकृत कम होगी।

(10) भविष्य में उन्नति की आशा (Good Future Prospects)– यदि किसी व्यवसाय में श्रमिकों को भविष्य में पदोन्नति के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं तो ऐसे व्यवसाय में प्रारम्भ में नकद मजदूरी कम होने पर भी वास्तविक मजदूरी अधिक ही होगी।

(11) प्रशिक्षण की अवधि तथा व्यय (Trmining Period and Expenses) कुछ व्यवसायों में प्रवेश करने के लिए व्यक्तियों को प्रशिक्षण लेना पड़ता है और पर्याप्त धन भी खर्च करना पड़ता है, जैसे डॉक्टरी, इन्जीनियरिंग आदि। अतः ऐसे कार्यों की वास्तविक मजदूरी को ज्ञात करते समय प्रशिक्षण की अवधि तथा उस पर किए गए व्यय को भी ध्यान में रखना चाहिए।

(12) व्यावसायिक व्यय (Trade Expenses) कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनमें व्यक्तियों को अपनी कुशलता तथा योग्यता बनाए रखने के लिए कुछ व्यय करना पड़ता है, जैसे प्राध्यापक तथा वकील को पुस्तकों पर खर्चा करना पड़ता है, डॉक्टरों को पुस्तकों तथा यन्त्रों पर खर्च करना पड़ता है आदि। ऐसे व्यक्तियों की वास्तविक मजदूरी ज्ञात करने के लिए उनके द्वारा अपने व्यवसाय पर किए गए व्यय घटा देना चाहिए।

(13) सामाजिक प्रतिष्ठा (Social Prestige)-कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, जैसे डॉक्टर तथा अध्यापक का कार्य अतः ऐसे कार्यों की वास्तविक मजदूरी भी अधिक होती है।

(14) आश्रितों को रोजगार (Employment to Dependents)-कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनमें श्रमिक अपने परिवार के सदस्यों को रोजगार दिलाने में सफल हो जाते है; जैसे कपड़ा, चीनी आदि के कारखानों में मजदूरों की स्त्रियों तथा बच्चों को भी कार्य मिल जाता है। ऐसी स्थिति में श्रमिक की वास्तविक मजदूरी बढ़ जाती है।

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Anjali Yadav

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