Contents
लाभ का अर्थ तथा अंग (Meaning of Profit and Its Constituents)
“लाभ एक अवशेष भुगतान है जो उद्यमी को, अन्य सभी भुगतान करने के बाद, आय के रूप में प्राप्त होता है।”
-जे० एल० हैन्सन
लाभ का अर्थ (Meaning of Profit)
‘लाभ‘ राष्ट्रीय आय का वह भाग है जो उद्यमी को उत्पादन कार्य सम्बन्धी जोखिम उठाने के लिए दिया जाता है। अर्थशास्त्रियों ने ‘लाभ’ के अर्थ को निम्न दो प्रकार से स्पष्ट किया है-
(i) लाभ की मात्रा के अनुसार- प्रो० उल्मर (Ulmer) के शब्दों में, “एक फर्म की कुल आय तथा कुल लागत के अन्तर को लाभ कहते हैं। यदि यह अन्तर धनात्मक (positive) है तो लाभ कहलायेगा जैकब औसर (Jacob Oser) के अनुसार, “एक व्यवसाय की बाह्य तथा आन्तरिक मजदूरी, ब्याज तथा लगान देने के पश्चात् जो शेष है वह लाभ है। दूसरे शब्दों में, उत्पादन के समस्त खचों को निकालकर जो शेष बचता है वह लाभ है।
(ii) लाभ के स्रोत के अनुसार-हेनरी ग्रेसन (Henery Grayson) के अनुसार, “लाभ नए आविष्कार लागू करने, जोखिम तथा अनिश्चितता उठाने तथा बाजार की अपूर्णताओं का परिणाम हो सकता है।” एच० एम० क्रूम (H.M. Croome) के शब्दों में, “लाभ उन खतरों का पुरस्कार है जिनका बीमा नहीं हुआ है।”
कुल लाभ तथा निवल लाभ (Gross Profit and Net Profit)
कुल लाभ का अर्थ- साधारण बोलचाल की भाषा में ‘लाभ’ शब्द का प्रयोग कुल लाभ के लिए ही किया जाता है। किसी उत्पादक या फर्म की कुल आगम (revenue) में से उत्पादन के साधनों के पुरस्कारों को निकाल देने के पश्चात् जो शेष बचता है वह कुल लाभ होता है। दूसरे शब्दों में, किसी फर्म के कुल आगम में से कच्ची सामग्री की कीमत, अचल पूंजी का मूल्य-हास, कर-राशि, बीमा व्यय, लगान, मजदूरी, ब्याज, वेतन आदि को निकालकर जो शेष रहता है वह कुल लाभ होता है। संक्षेप में, किसी फर्म के कुल आगम तथा कुल उत्पादन-व्यय का अन्तर कुल लाभ होता है।
सूत्र (Formula) के रूप में- कुल लाभ = कुल आगम – कुल स्पष्ट लागतें
(Gross Profit) = Total Revenue – Total Explicit Costs)
निवल या शुद्ध लाभ का अर्थ- कुल लाभ के अन्तर्गत कई प्रकार के पुरस्कार शामिल होते हैं जिनमें निवल या शुद्ध लाभ (net profit) भी एक है। किसी उद्यमी को केवल जोखिम उठाने तथा सौदा करने की योग्यता के बदले जो पुरस्कार मिलता है वह निवल लाभ होता है। वस्तुतः निवल लाभ में कई तस्व शामिल होते हैं, जैसे जोखिम का पुरस्कार, योग्यता का पुरस्कार आदि शुद्ध लाभ ज्ञात करने के लिए कुल लाभ में से आन्तरिक लागतें (implicit costs) तथा घिसावट, बीमा आदि का व्यय घटा दिया जाता है। आन्तरिक लागतों से अभिप्राय है- (i) उद्यमी की निजी भूमि पर लगान, (ii) निजी पूँजी पर ब्याज, तथा (iii) उद्यमी द्वारा किए गए प्रबन्ध के लिए मजदूरी इनका भुगतान तो नहीं किया जाता किन्तु ये उद्यमी को प्राप्त होने चाहिए।
सूत्र के रूप में – शुद्ध लाभ = कुल लाभ – आन्तरिक लागतें
Net Profit = Gross Profit – Implicit Costs)
अथवा
शुद्ध लाभ = कुल आगम – कुल लागत
(Net Profit = Total Revenue – Total Cost)
कुल लाभ के अंग (Constituents of Gross Profit)
कुल लाभ के अन्तर्गत निम्न तत्त्व सम्मिलित होते हैं-
(1) उद्यमी के निजी उपादानों का प्रतिफल- अपना व्यवसाय प्रारम्भ करते समय उद्यमी उत्पादन के उन उपादानों को भी लगा देता है जो उसके पास होते हैं। अतः उसे जो कुछ लाभ प्राप्त होता है उसमें उसके स्वयं के उपादानों का प्रतिफल भी शामिल रहता है, जैसे—(1) उद्यमी की भूमि का लगान, (ii) उद्यमी की पूंजी पर ब्याज, (iii) उद्यमी या उसके परिवार के श्रम की मजदूरी, तथा (iv) उद्यमी द्वारा किए गए प्रबन्ध का वेतन शुद्ध लाभ का अनुमान लगाते समय कुल लाभ में से उद्यमी के उपादानों के प्रतिफल को निकाल देना चाहिए।
(2) अनुरक्षण व्यय (Maintenance Charges)—किसी व्यवसाय में लगी अचल पूँजी एक निश्चित समय तक ही काम कर पाती है। उसके बाद वह घिस जाती है या टूट-फूट जाती है जिस कारण उसे बदलना पड़ता है। इसके लिए धनराशि की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए उद्यमी प्रत्येक वर्ष कुल लाभ में से कुछ रकम घिसावट व हास निधि के रूप में रखते रहते हैं। इसे अनुरक्षण निधि (maintenance fund) भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त, योग्य उद्यमी अपनी चल तथा अचल सम्पत्ति का बीमा करा लेते हैं ताकि भूकम्प, आग, चोरी, बाढ़ आदि से सम्पत्ति की क्षति होने पर उनके व्यवसाय को कोई हानि न हो। बीमा कराने पर प्रति वर्ष प्रीमियम के रूप में कुछ धनराशि बीमा कम्पनियों को चुकानी पड़ती।
इस प्रकार अनुरक्षण-व्यय में दो प्रकार के खर्चे शामिल किए जाते हैं-(i) मूल्य हास निधि, तथा (ii) बीमा व्यय शुद्ध लाभ ज्ञात करते समय इन खर्चों को भी कुल लाभ में से निकालना पड़ता है।
(3) अव्यक्तिगत लाभ (Extra- personal Gains)- कभी-कभी उत्पादक को ऐसे लाभ भी प्राप्त होते हैं जिनका उसकी योग्यता व कुशलता से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ऐसे लाभ मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं—(i) एकाधिकारी लाभ (monopoly gains) कभी-कभी किसी उत्पादक को किसी वस्तु के उत्पादन या वितरण में एकाधिकार प्राप्त हो जाता है जिससे वह अधिक कीमत वसूल करके असामान्य लाभ कमाता है। इस प्रकार का लाभ उत्पादक की निजी योग्यता का परिणाम नहीं होता बल्कि यह लाभ उसे इसलिए मिलता है क्योंकि बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता का अभाव होता है। (ii) आकस्मिक लाभ (windfall gains)–कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनके कारण उत्पादकों को आशा से भी अधिक लाभ प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ, अचानक लड़ाई छिड़ जाने पर या बाढ़ आ जाने पर वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है जिस कारण उत्पादकों को असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।
(4) शुद्ध लाभ (Net Profit)-कुल लाभ में से उद्यमी के निजी उपादानों के प्रतिफल, अनुरक्षण-व्यय तथा अव्यक्तिगत लाभ को निकालकर जो शेष रहता है वह शुद्ध या निवल लाभ होता है। कार्वर (Carver) के विचार में, “किसी उद्यमी को जोखिम झेलने या सौदा करने की कुशलता के कारण जो पुरस्कार मिलता है वह शुद्ध लाभ होता है।
‘शुद्ध लाभ’ बनात्मक (positive) भी हो सकता है और ऋणात्मक (negative) भी। जब कुल आगम स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागतों से अधिक होता है तो शुद्ध लाभ चनात्मक होता है। इसके विपरीत, कुल आगम के स्पष्ट तथा अस्पष्ट लागतों से कम होने पर शुद्ध लाभ ऋणात्मक होता है, अर्थात् यह हानि की स्थिति होती है।
कुल या सकल लाभ की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है-
कुल लाभ = शुद्ध लाभ + उद्यमी के निजी साधनों का प्रतिफल + अनुरक्षण व्यय + अव्यक्तिगत लाभ
शुद्ध लाभ की गणना का सूत्र निम्नवत् है-
शुद्ध लाभ = कुल आगम – (स्पष्ट लागतें + अस्पष्ट लागते)
IMPORTANT LINK
- मार्शल की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Marshall’s Definition)
- अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ एवं उनके वर्ग
- रॉबिन्स की परिभाषा की विशेषताएँ (Characteristics of Robbins’ Definition)
- रॉबिन्स की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Robbins’ Definition)
- धन सम्बन्धी परिभाषाएँ की आलोचना Criticism
- अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ Definitions of Economics
- आर्थिक तथा अनार्थिक क्रियाओं में भेद
- अर्थशास्त्र क्या है What is Economics
Disclaimer