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आवश्यकताओं का वर्गीकरण (Classification of Wants)
मनुष्य की आवश्यकताएँ समान रूप से तीव्र (intense) नहीं होतीं। कुछ आवश्यकताएँ तो ऐसी होती हैं जिनकी सन्तुष्टि के अभाव में मनुष्य का जीवित रहना ही असम्भव होता है। कुछ आवश्यकताओं की सन्तुष्टि से मनुष्य को आराम मिलता है जबकि कुछ वस्तुओं का उपभोग मनुष्य के जीवन को विलासितापूर्ण (luxurious) बनाता है। तीव्रता (intensity) तथा महत्त्व में अन्तर के आधार पर प्रो० पेन्सन ने मानवीय आवश्यकताओं को तीन वर्गों में बाँटा है- (1) अनिवार्य आवश्यकताएं (2) आरामदायक आवश्यकताएँ, (3) विलासितापूर्ण आवश्यकताएँ ।
(1) अनिवार्य आवश्यकताएँ (Necessaries) – बसु के शब्दों में, “अनिवार्य आवश्यकताएँ वे आवश्यकताएँ होती हैं। जिनकी सन्तुष्टि जीवित रहने के लिए आवश्यक होती हैं।” भोजन, कपड़ा, मकान आदि अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। इनकी सन्तुष्टि के बिना मनुष्य न तो जीवित रह सकता है तथा न ही अपनी कार्यक्षमता को बनाए रख सकता है। अनिवार्य आवश्यकताओं को निम्न तीन वर्गों में विभक्त किया गया है-
(i) जीवन-रक्षक अनिवार्यताएँ (Necessaries for Life)-(i) इनके अन्तर्गत वे आवश्यकताएँ आती है जिनकी सन्तुष्टि जीवित रहने के लिए जावश्यक है, जैसे भोजन, पानी, कपड़ा आदि की आवश्यकता।
(ii) कुशलता-रक्षक अनिवार्यताएँ (Necessaries for Efficiency)-इस वर्ग में ये आवश्यकताएँ आती है जिनकी सन्तुष्टि के बिना मनुष्य का जीवन तो समाप्त नहीं होता किन्तु उसकी कार्यक्षमता पट जाती है, जैसे पौष्टिक भोजन, फल, दूध, गर्मी में बिजली का पंखा, हवादार मकान आदि की आवश्यकताएँ। मनुष्य रूखा-सूखा खाकर जीवित तो रह सकता है किन्तु पौष्टिक भोजन के अभाव में उसकी कार्यक्षमता घट जाती है।
(iii) प्रतिष्ठा-रक्षक अनिवार्यताएँ (Conventional Necessaries) – इस वर्ग में ये वस्तुएँ तथा सेवाएँ आती हैं जो जीवन या कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए तो आवश्यक नहीं होतीं किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा तथा रीति-रिवाज की दृष्टि से उनकी पूर्ति अनिवार्य होती है, जैसे किसी अतिथि के आने पर चाय, कॉफी, सिगरेट आदि पिलाने की आवश्यकता, त्योहारों पर नए-नए वस्त्र पहनने की आवश्यकता, विवाह के समय भीजन, उपहार आदि देने की आवश्यकता इत्यादि।
(2) आरामदायक आवश्यकताएं (Comforts)-ऐसी सभी आवश्यकताएँ जिनकी सन्तुष्टि से मनुष्य को आराम व सुख मिलता है तथा उसकी कार्यक्षमता तथा निपुणता में वृद्धि होती है, आरामदायक आवश्यकताएँ कहलाती है, जैसे स्वादिष्ट भोजन, गद्देदार सोफा, पलंग, रसोई गैस की व्यवस्था आदि। वैसे निश्चित रूप से यह बताना कठिन है कि कौन-सी वस्तुएँ आरामदायक वस्तुओं’ की श्रेणी में जाती है क्योंकि इसका निर्धारण तो मनुष्य की आर्थिक स्थिति, आवश्यकता के स्वभाव, वस्तु की कीमत आदि बातों पर निर्भर करता है।
(3) विलासितापूर्ण आवश्यकताएँ (Luxuries)-इनके अन्तर्गत ये वस्तुएँ तथा सेवाएं आती हैं जिनके उपभोग से मनुष्य को सुख मिलता है किन्तु उसकी कार्यक्षमता में कोई वृद्धि नहीं होती। ऐसी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि न होने पर मनुष्य की कार्यक्षमता में कभी भी नहीं होती, जैसे बहुमूल्य आभूषण का प्रयोग, बड़े व आलीशान महल में रहना, कई महंगी कारें रखना, कीमती पोशाक पहनना आदि। चेपमेन के शब्दों में, “धिलासितापूर्ण वस्तुएँ ये वस्तुएँ हैं जिनका उपभोग कार्यक्षमता में कोई महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं करता वरन् कभी-कभी मनुष्य की कार्यक्षमता को कम कर देता है। प्रो० जीड ने इन्हें अनावश्यक आवश्यकताएँ कहा है। विलासिताओं को निम्न वर्गों में बाटा गया है-
(i) हानिकारक विलासिताएं (Harmful Luxuries) इनके अन्तर्गत वे वस्तुएं शामिल की जाती हैं जिनके उपभोग से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जैसे शराब, भाग आदि मादक पदार्थ।
(ii) हानिरहित विलासिताऐं (Harmless Luxuries)-इन वस्तुओं के उपयोग से मनुष्य की कार्यक्षमता तथा स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, जैसे मूल्यवान आभूषण, हीरे जवाहरात, महंगे वस्त्र, कीमती फर्नीचर, महँगो विदेशी कारें, आलीशान मकान इत्यादि।
आवश्यकताओं के वर्गीकरण का आधार
एक ही वस्तु एक व्यक्ति के लिए आवश्यक दूसरे के लिए आरामदायक तथा तीसरे के लिए विलासितापूर्ण हो सकती है। इससे स्पष्ट होता है कि आवश्यकताओं के वर्गीकरण का कोई निश्चित आधार नहीं हो सकता क्योंकि समय तथा स्थान के आधार पर आवश्यकताओं की तीव्रता में परिवर्तन हो जाता है। फिर भी सामान्यतया आवश्यकताओं के वर्गीकरण के तीन आधार (Basis) बताए जाते हैं–(1) कार्यक्षमता का आधार (2) सुख-दुख का आधार तथा (3) कीमत तथा माँग का आधार
(1) कार्यक्षमता का आधार (Basis of Efficiency) (1) जिस वस्तु के उपभोग से मनुष्य की कार्यक्षमता बनी रहती है या उसमें वृद्धि हो जाती है तथा उपभोग न करने से कार्यक्षमता कम या समाप्त हो जाती है ऐसी वस्तु अनिवार्य आवश्यकता की श्रेणी में आती है, जैसे भोजन सम्बन्धी सामग्रियाँ (II) जिस वस्तु के उपभोग से कार्यक्षमता में कुछ वृद्धि होती है तथा उपयोग न करने से कार्यक्षमता में कुछ कमी आ जाती है ऐसी वस्तु को आरामदायक आवश्यकता कहते हैं। (iii) जिस वस्तु के उपभोग से कार्यक्षमता में कोई वृद्धि नहीं होती या यह घट जाती है, तथा उपभोग न करने से कार्यक्षमता में कोई कमी नहीं होती, ऐसी वस्तु ‘विलासितापूर्ण आवश्यकता’ कहलाती है। यदि वस्तु के उपभोग से कार्यक्षमता में कमी आती है तथा उपभोग न करने से कार्यक्षमता थोड़ी बढ़ती है तो ऐसी वस्तु हानिकारक विलासिता’ की श्रेणी में आयेगी।
(2) सुख-दुःख का आधार (Basis of Pain and Pleasure)—(1) जिस वस्तु के उपभोग से मनुष्य को सुख मिलता है तथा उपभोग न करने पर कष्ट होता है, ऐसी वस्तु अनिवार्य आवश्यकता’ कहलाती है। (ii) जिस वस्तु के उपभोग से मनुष्य को पर्याप्त सुख मिलता है तथा उपभोग न करने से थोड़ा-सा कष्ट ही होता है, उसे आरामदायक आवश्यकता’ कहते हैं, जैसे बिजली का पंखा, रसोईघर में गैस आदि। (III) जिस वस्तु के उपभोग से अपार सुख की प्राप्ति होती है तथा उपभोग न करने पर कोई दुःख नहीं होता ऐसी वस्तु विलासिता आवश्यकता होती है।
आवश्यकताओं का वर्गीकरण सापेक्ष है (Classification of Wants is Relative)
आवश्यकताओं को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जाता है-
(i) अनिवार्य आवश्यकताएं (ii) आरामदायक आवश्यकताएँ तथा (iii) बिलासितापूर्ण आवश्यकताएँ। किन्तु आवश्यकताओं का यह वर्गीकरण सापेक्ष (relative) या तुलनात्मक है, निरपेक्ष (absolute) नहीं। ऐसा कोई निश्चित नियम या आधार नहीं जिसके द्वारा हम निश्चित रूप से यह बता सकें कि कोई वस्तु विशेष आवश्यकता के किस वर्ग में आती है। सम्भव है कोई वस्तु एक व्यक्ति के लिए अनिवार्य आवश्यकता हो, दूसरे के लिए आरामदायक वस्तु हो जबकि तीसरे व्यक्ति के लिए वह विलासिता की वस्तु हो। व्यक्ति, समय तथा स्थान के अनुसार वस्तुओं के गुण भी बदल जाते हैं। उदाहरणार्थ, एक बड़े उद्योगपत्ति के लिए कार अनिवार्य बस्तु है, एक अध्यापक के लिए आराम को वस्तु है, जबकि एक चपरासी के लिए यह विलासिता की वस्तु होती है।
इसी प्रकार स्थान के बदल जाने पर भी आवश्यकता के स्वभाव में परिवर्तन हो जाता है। जैसे फ्रांस में शराब को एक अनिवार्य वस्तु माना जाता है, जबकि भारत में यह विलासिता तथा हानिकारक वस्तु है। फिर एक ही वस्तु एक ही व्यक्ति के लिए एक समय में अनिवार्य, दूसरे समय में आरामदायक तथा तीसरे समय में विलासितापूर्ण हो सकती है। उदाहरणार्थ, जो बच्चा दूसरी कक्षा में पढ़ता है उसके लिए पैन एक विलासिता की वस्तु है, आठवीं कक्षा में पढ़ने पर पैन उसके लिए जाराम की वस्तु हो जाती है, और जब वह इण्टरमीडिएट में पढ़ता है तो उसके लिए पैन अनिवार्य आवश्यकता बन जाती है। अतः स्पष्ट है कि आवश्यकता का वर्गीकरण निरपेक्ष नहोकर सापेक्ष होता है। यह समय, स्थान, व्यक्ति के व्यवसाय, आय आदि विभिन्न बातों पर निर्भर करता है।
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