कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

सीमान्त तुष्टिगुण या उपयोगिता (Marginal Utility)

सीमान्त तुष्टिगुण या उपयोगिता (Marginal Utility)
सीमान्त तुष्टिगुण या उपयोगिता (Marginal Utility)

सीमान्त तुष्टिगुण या उपयोगिता (Marginal Utility)

सीमान्त तुष्टिगुण या उपयोगिता का अर्थ (Meaning of Marginal Uility)-जब कोई उपगोता किसी वस्तु की एक से अधिक इकाइयों का उपभोग करता है तो उपभोग की गई अन्तिम इकाई को सीमान्त इकाई’ (marginal unit) कहते है। किसी वस्तु की अन्तिम या सीमान्त इकाई के उपभोग से जो तुष्टिगुण प्राप्त होता है उसे सीमान्त तुष्टिगुण या उपयोगिता कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल तुष्टिकोण में होने वाली वृद्धि ‘सीमान्त तुष्टिगुण’ कहलाती है।

परिभाषाएँ (Definitions)-सीमान्त तुष्टिगुण की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत हैं-

(1) प्रो० बोल्डिंग के शब्दों में, “किसी वस्तु की दी गई मात्रा का सीमान्त तुष्टिगुण कुल तुष्टिगुण में होने वाली वह वृद्धि है जो उसके उपभोग में एक इकाई के बढ़ने के परिणामस्वरूप होती है।

(2) चैपमैन के अनुसार, “किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल तुष्टिगुण में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त तुष्टिगुण कहते हैं।

(3) प्रो० ऐली के अनुसार, “किसी व्यक्ति के लिए किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम या सीमान्त इकाई के तुष्टिगुण को उस वस्तु-विशेष का सीमान्त तुष्टिगुण कहा जाता है।”

सीमान्त तुष्टिगुण के रूप- सीमान्त तुष्टिगुण निम्न तीन प्रकार का होता है-

(1) धनात्मक (Positive)-जब तक किसी वस्तु के उपभोग से कुछ न कुछ सन्तुष्टि मिलती है तब तक वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण बनात्मक होता है। उक्त तालिका में संतरे की चार इकाइयों से उपभोक्ता को धनात्मक तुष्टिगुण प्राप्त होता है।

(2) शून्य (Zero) – जब वस्तु के उपभोग से न तो सन्तुष्टि मिलती है और न ही असन्तुष्टि तब सीमान्त तुष्टिगुण शून्य होता है। उक्त उदाहरण में संतरे को पाँचवीं इकाई का सीमान्त तुष्टिगुण शून्य है। ऐसी अवस्था को पूर्ण तृप्ति की अवस्था‘ कहते हैं।

(3) ऋणात्मक (Negative)-जब किसी वस्तु के उपभोग से असन्तुष्टि प्राप्त होती है तो उसका सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है। उक्त उदाहरण में छठी इकाई का सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक है।

कुल तुष्टिगुण (Total Utility)

कुल तुष्टिगुण (उपयोगिता) का अर्थ- किसी समय अवधि में किसी वस्तु की उपभोग की गई सभी इकाइयों से प्राप्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल तुष्टिगुण’ कहा जाता है। दूसरे शब्दों में किसी वस्तु की विभिन्न इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुणों का जोड़ कुल तुष्टिगुण’ कहलाता है।

परिभाषाएँ (Definitions)—(1) मेयर्स के शब्दों में, “किसी वस्तु के उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुणों का योग कुल तुष्टिगुण होता है।

(2) लेफ्टविच के अनुसार, “किसी वस्तु की विभिन्न इकाइयों का उपभोग करने से जो कुल सन्तुष्टि प्राप्त होती है वह कुल तुष्टिगुण कहलाती है।

सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में सम्बन्ध

(1) प्रारम्भ में घटता MU, बढ़ता TU— किसी वस्तु के उपभोग से प्राप्त होने वाला सीमान्त तुष्टिगुण (MU) तो प्रारम्भ से ही घटने लगता है, किन्तु कुल तुष्टिगुण (TU) एक सीमा तक घटती हुई दर से बढ़ता है।

(2) धनात्मक MU तो TU में वृद्धि – जब तक सीमान्त तुष्टिगुण धनात्मक रहता है, तब तक कुल तुष्टिगुण भी बढ़ता रहता है।

(3) MU शून्य तो TU अधिकतम- जिस बिन्दु पर सीमान्त रेखाचित्र 1-कुल तुष्टिगुण तथा सीमान्त तुष्टिगुण तुष्टिगुण शन्य होता है, वहाँ पर कुल तुष्टिगुण अधिकतम होता है। इसे ‘पूर्ण तृप्ति का बिन्दु’ (point of satiety) कहते हैं।

(4) MU ऋणात्मक तो TU में कमी– यदि पूर्ण तृप्ति (सन्तुष्टि) के बाद भी वस्तु का उपभोग किया जाता है तो सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है जिस कारण कुल तुष्टिगुण घटने लगता है।

सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में अन्तर

क्रमवाचक तुष्टिगुण विश्लेषण (Ordinal utility Analysis)

हिक्स, एलन, पैरेटो, फर्गुसन आदि अर्थशास्त्रियों का विचार है कि किसी वस्तु के तुष्टिगुण को संख्याओं में व्यक्त नहीं किया जा सकता, अर्थात् व्यावहारिक दृष्टि से तुष्टिगुण का गणनावाचक माप संभव नहीं है। किन्तु कोई उपभोक्ता विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि की तुलना कर सकता है। कोई उपभोक्ता विभिन्न वस्तुओं के संयोग (combination) बनाकर यह बता सकता है कि उसे किस संयोग से अधिक तथा किस संयोग से कम तुष्टिगुण प्राप्त होगा। प्राथमिकता के आधार पर दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों को क्रमानुसार रखकर (जैसे प्रथम, द्वितीय, तृतीय) यह ज्ञात किया जा सकता है कि उपभोक्ता विभिन्न संयोगों में से किस संयोग को प्राथमिकता प्रदान करेगा। तुष्टिगुण का क्रमवाचक माप उपभोक्ता के व्यवहार का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है। इस विधि को ‘तटस्थता वक्र विश्लेषण’ (Indifference Curve Analysis) के नाम से जाना जाता है।

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Anjali Yadav

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