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सीमान्त तुष्टिगुण नियम की मान्यताएँ (Assumptions of the Law)
यह नियम तभी लागू होता जबकि अन्य बातें समान रहती हैं। इसका यह अर्थ हुआ कि इस नियम की कुछ मान्यताएँ हैं जो निम्न प्रकार है-
(1) वस्तु की इकाइयों का उपभोग लगातार होना चाहिए- किसी वस्तु का एक समय में निरन्तर उपभोग ही सीमान्त तुष्टिगुण में कमी ला सकता है। उदाहरणार्थ, यदि एक रोटी सुबह खाई जाए तथा दूसरी चार-पाँच घण्टे परिश्रम करने के बाद खाई जाए तो सम्भवतः पहली रोटी की अपेक्षा दूसरी रोटी से अधिक तुष्टिगुण प्राप्त होगा। अतः रोटियों का उपभोग लगातार (दिना समय-अन्तराल के) होना चाहिए।
(2) वस्तु की सभी इकाइयाँ गुण व मात्रा में समान तथा उपयुक्त होनी चाहिए- उदाहरणार्थ, यदि पहली रोटी सूखी है, तथा दूसरी रोटी घी से चुपड़ी गई है तो दूसरी रोटी के उपयोग से पहली रोटी की अपेक्षा अधिक तुष्टिगुण प्राप्त होगा। अतः ऐसी स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम लागू नहीं हो पाएगा।
(3) उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए- वस्तु के उपयोग की अवधि में उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए अन्यथा यह नियम लागू नहीं हो पाएगा। यदि कोई उपभोक्ता, दो रोटियाँ खाने के पश्चात् शराब पी लेता है तो उसकी मानसिक स्थिति में परिवर्तन हो जाएगा जिस कारण उसे तीव्रता से भूख लगेगी।
(4) वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं होना चाहिए- यदि पहली रोटी का मूल्य दो रुपए है तथा दूसरी रोटी उपभोक्ता को एक रुपए में मिल जाती है तो दूसरी रोटी का तुष्टिगुण घटने के बजाय बढ़ जाएगा।
(5) स्थानापत्र वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन नहीं होना चाहिए- किसी वस्तु के स्थान पर प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहनी चाहिए अन्यथा यह नियम लागू नहीं होगा। उदाहरणार्थ, चाय की स्थानापन्न वस्तु (substitute) कॉफी है। यदि कॉफी की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो इससे चाय कॉफी की अपेक्षा सस्ती हो जाएगी। इससे चाय की माँग तथा तुष्टिगुण दोनों बढ़ जाएंगे।
(6) उपभोक्ता की आदत, रुचि, फैशन, स्वभाव आदि में परिवर्तन नहीं होना चाहिए- इनमें से किसी भी एक तत्व में परिवर्तन हो जाने पर किसी वस्तु के सीमान्त तुष्टिगुण में परिवर्तन हो जाता है। उदाहरणार्थ, जिस व्यक्ति को शराब पीने की आदत नहीं है उसके लिए शराब में कोई तुष्टिगुण नहीं होगा। किन्तु यदि बाद में उसे शराब पीने की आदत पड़ जाती है तो इसके परिणामस्वरूप उसके लिए शराब में तुष्टिगुण उत्पन्न हो जाएगा।
(7) उपभोक्ता की आप में परिवर्तन नहीं- उपभोक्ता की आय में परिवर्तन (कमी या वृद्धि) नहीं होना चाहिए अन्यथा यह नियम लागू नहीं हो पाएगा।
(8) आवश्यकता एक ही होना- यह नियम केवल एक आवश्यकता पर लागू होता है। विभिन्न आवश्यकताओं को एक सामूहिक नाम देने पर यह नियम लागू नहीं हो पाता।
(9) दुःखमय अवस्था बीत चुकी हो- दुःखमय अवस्था (painful stage) से अभिप्राय ऐसी अवस्था से है जिसमें सम्बन्धित उपभोक्ता की आवश्यकता इतनी तीव्र (intense) होती है कि उसकी सन्तुष्टि न होने पर उसे अत्यधिक दुःख (कष्ट) होता है। जब सम्बन्धित वस्तु के उपभोग के बाद कर (tax) देने से दुःख नहीं होता तो सुखमय अवस्था प्रारम्भ हो जाती है। सुखमय अवस्था में वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग से ही सीमान्त तुष्टिगुण घटता जाता है।
(10) मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण स्थिर रहता है- यह नियम यह मानकर चलता है कि सम्बन्धित उपभोक्ता के लिए मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण स्थिर रहता है। वस्तु के तुष्टिगुण को मुद्रा द्वारा मापा जाता है, इसलिए मुद्रा का अपना मूल्य (value) स्थिर रहना चाहिए।
(11) तुष्टिगुण का गणनावाचक माप सम्भव है- किसी वस्तु से मिलने वाले सीमान्त तुष्टिगुण को संख्याओं में भाषा जा सकता है, जैसे 15, 25, 45 इत्यादि।
नियम के अपवाद या सीमाएँ (Exceptions to the Law)
कुछ विद्वानों का विचार है कि कुछ दशाओं में सीमान्त तुष्टिगुण इस नियम लागू नहीं होता। इन दशाओं को ही नियम के अपवाद कहा जाता है। वैसे नियम के अधिकांश अपवाद काल्पनिक हैं। प्रमुख अपवाद निम्न हैं-
(1) मादक वस्तुओं का उपभोग- कुछ लोगों का कहना है कि शराब, भांग आदि वस्तुओं के उपभोग में जैसे-जैसे वृद्धि की जाती है वैसे-वैसे उनसे मिलने वाला तुष्टिगुण बढ़ता जाता है। किन्तु यह अपवाद दो कारणों से अवास्तविक है- (1) अर्थशास्त्र में सामान्य व्यक्तियों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि शराबी एक असामान्य (abnormal) व्यक्ति होता है। (II) सीमान्त तुष्टिगुण ह्रास नियम के क्रियाशील होने की एक शर्त (मान्यता) यह है कि उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। किन्तु शराब पीने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति शराब पीने पर बदल जाती है। (iii) कुछ समय पश्चात् शराबी को प्रत्येक अगले प्याले से मिलने वाली उपयोगिता घटने लगती है।
(2) वस्तु की छोटी-छोटी इकाइयाँ- यदि कोई प्यासा व्यक्ति कुछ देर तक बूँद-बूँद पानी पीता है तो प्रत्येक बाद वाली बूंद से मिलने वाला तुष्टिगुण बढ़ता जाएगा। किन्तु यह भी वास्तविक अपवाद नहीं है, क्योंकि इसमें नियम की इस मान्यता को ध्यान में नहीं रखा गया कि वस्तु की इकाइयाँ उपयुक्त तथा पर्याप्त मात्रा या आकार की होनी चाहिए।
(3) विचित्र तथा दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह- यह कहा जाता है कि पुराने डाक टिकट, सिक्के आदि के संग्रह पर यह नियम लागू नहीं होता क्योंकि टिकटों या सिक्कों की मात्रा में जैसे-जैसे वृद्धि होती है वैसे-वैसे उनका तुष्टिगुण बढ़ता जाता है। किन्तु यह अपवाद भी काल्पनिक है क्योंकि विचित्र या दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह किसी एक ही वस्तु की आवश्यकता नहीं कहलाती बल्कि यह तो अनेक वस्तुओं की आवश्यकताओं का सामूहिक नाम है। सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम तो एक समय पर केवल एक ही वस्तु के उपभोग पर लागू होता है। यदि लगातार एक ही प्रकार के सिक्के या टिकट इकट्ठे किए जाते हैं तो फिर यह अपवाद लागू नहीं होगा।
(4) वैकल्पिक प्रयोग-वस्तुओं के कई प्रयोग होते हैं जिनमें से कुछ प्रयोग अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं जबकि कुछ कम महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अधिक महत्त्व वाले प्रयोग को प्रथम स्थान देता है तथा जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा बढ़ती जाती है उसका उपभोग कम महत्त्व वाले प्रयोगों में किया जाने लगता है।
(5) धन संचय की प्रवृत्ति- धन-संचय करने की प्रवृत्ति पर यह नियम लागू नहीं होता, क्योंकि किसी व्यक्ति के पास जैसे-जैसे धन की मात्रा बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उसकी धन-संचय की लालसा बढ़ती जाती है। किन्तु यह अपवाद भी अवास्तविक है, क्योंकि —(1) निर्धन व्यक्ति की अपेक्षा धनी व्यक्ति के लिए मुद्रा (रुपए) का सीमान्त तुष्टिगुण कम होता है। (ii) धन-संग्रह से किसी एक आवश्यकता की नहीं वरन अनेक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है।
(6) फैशन तथा दिखावट की इच्छा- कुछ व्यक्तियों को नई-नई प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करने का शौक होता है। उनकी इस आदत या शौक पर यह नियम लागू नहीं होता। किन्तु यह अपवाद भी अवास्तविक है, क्योंकि सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम एक ही वस्तु की विभिन्न इकाइयों पर लागू होता है न कि विभिन्न वस्तुओं पर।
(7) किसी वस्तु के उपभोक्ताओं या सेवा का प्रयोग करने वालों की संख्या में वृद्धि- टेलीफोन का प्रयोग करने वालों की संख्या में वृद्धि होने पर टेलीफोन का तुष्टिगुण बढ़ जाता है किन्तु यह अपवाद भी काल्पनिक है, क्योंकि सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम तो तब लागू होता है जबकि किसी एक ही उपभोक्ता द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयों में वृद्धि होती है। अतः यदि एक ही व्यक्ति के पास टेलीफोनों की संख्या में वृद्धि होती है तो उसके लिए प्रत्येक टेलीफोन का तुष्टिगुण घटता जाएगा।
(8) उपभोग की प्रारम्भिक अवस्था में अधिक सन्तुष्टि- कुछ आलोचकों का कहना है कि कभी-कभी किसी वस्तु का उपभोग करने पर उसकी प्रारम्भिक इकाइयों से मिलने वाला तुष्टिगुण बाद की इकाइयों से प्राप्त होने वाले तुष्टिगुण की अपेक्षा अधिक होता है। जैसे, जब एक अत्यधिक भूखा व्यक्ति रोटी खाना प्रारम्भ करता है तो रोटी की प्रारम्भिक इकाइयों का तुष्टिगुण बढ़ता जाता है। किन्तु यह अपवाद भी काल्पनिक है क्योंकि एक सीमा के पश्चात् (अन्ततः) रोटियों से मिलने वाला सीमान्त तुष्टिगुण निरन्तर घटता जाता है।
(9) अच्छी पुस्तक पढ़ने या कविता सुनने की इच्छा- टॉजिंग के विचार में किसी सुन्दर कविता को बार-बार सुनने या अच्छी पुस्तक को बार-बार पढ़ने से तुष्टिगुण घटने की बजाय बढ़ता है। किन्तु वास्तविकता तो यह है कि एक समय ऐसा आता है जबकि सुन्दर कविता को बार-बार सुनने से या अच्छी पुस्तक को बार-बार पढ़ने से तुष्टिगुण घटने लगता है।
(10) शक्ति प्राप्ति की लालसा- सिकन्दर, हिटलर जैसे महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों पर यह नियम लागू नहीं होता क्योंकि जैसे-जैसे ऐसे व्यक्तियों को अधिक शक्ति मिलती जाती है वैसे-वैसे शक्ति प्राप्ति के लिए उनकी लालसा और भी बढ़ती जाती है। किन्तु यह भी वास्तविक अपवाद नहीं है, क्योंकि-(i) शक्ति स्नेह कोई आर्थिक क्रिया नहीं है। (ii) ऐसे महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति साधारण व्यक्ति होते हैं जिनका अध्ययन अर्थशास्त्र में नहीं किया जाता।
निष्कर्ष (Conclusion) —नियम के अपवादों के सम्बन्ध में टॉजिंग ने ठीक ही कहा है, “सीमान्त तुष्टिगुण में कमी की प्रवृत्ति इतने व्यापक रूप में तथा कम अपवादों के साथ दिखाई देती है कि इसे सर्वव्यापी कहने में कोई महत्त्वपूर्ण गलती नहीं होगी। संक्षेप में, सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम एक सर्वव्यापी तथा सार्वभौमिक (universal) नियम है।
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