सूक्ष्म शिक्षण की उपयोगिता बताइये तथा इसके सोपानों का वर्णन कीजिए।
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सूक्ष्म शिक्षण की उपयोगिता (Utility of Micro Teaching)
- सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षा के सिद्धान्त और व्यवहार पक्ष का समन्वय किया जाता है।
- इसमें अधिगम नियमों और कक्षीय मनोगतिकी के सिद्धान्त को मिला-जुलाकर प्रयोग किया जाता है।
- इस शिक्षण में ज्ञान को स्थायी बनाने के लिये पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे चक्रों में प्रस्तुत किया जाता है।
- इस शिक्षण प्रणाली में समय, धन और शक्ति की बचत होती है और प्रभावशाली शिक्षण-प्रशिक्षण किया जा सकता है।
- इस विधि द्वारा एक अनुभवी शिक्षक भी अपने कौशलों में दक्षता प्राप्त कर सकता है।
- इस विधि द्वारा शिक्षक अपने शिक्षण का मूल्यांकन स्वयं कर सकता है।
- इस विधि से सेवारत शिक्षक अपने शिक्षण में लचीलापन और सुधार सकता है।
- सूक्ष्म शिक्षण के माध्यम से शिक्षक अपने शिक्षण में सतत सुधार कर सकता है।
- सूक्ष्म शिक्षण में पर्यवेक्षण के नवीन स्वरूप को अपनाया जाता है। इसमें सुधारात्मक रवैया अपनाया जाता है। इसमें वस्तुनिष्ठ पर्यवेक्षण होता है।
- आदर्श पाठ का ऑडियो टेप या वीडियो टेप बना लिया जाता है, जिसे आवश्यकता होने पर प्रशिक्षणार्थियों को सुनाया या दिखाया जा सकता है।
- सूक्ष्म शिक्षण में अनुसन्धान क्रिया बराबर चलती रहती है जिससे सुधार रहता है।
- सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है, जो सामान्य शिक्षण-कला की जटिलताओं से दूर रहता है।
- इस विधि में प्रशिक्षणार्थी को विभिन्न कौशलों का पूर्व अभ्यास करने का अवसर मिलता है।
- इस विधि का प्रयोग करने से प्रशिक्षणार्थियों में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है।
- इस विधि का प्रयोग उपचारात्मक विधि के रूप में किया जा सकता है, जिससे प्रशिक्षणार्थी अपने शिक्षण में सुधार कर सकता है।
- सूक्ष्म शिक्षण द्वारा सरलीकृत प्रशिक्षण पृष्ठभूमि प्रदान की जाती है।
- इसमें शिक्षण-कौशल, पाठ्य-वस्तु आदि को सरल करने की सुविधा है।
- इस विधि में प्रतिपुष्टि के आधार पर प्रशिक्षणार्थी अपने को पुनर्नियोजित कर सकता है।
सूक्ष्म शिक्षण के सोपान (Step in Micro Teaching)
सूक्ष्म शिक्षण को प्रयोग करने में निम्न सोपान का पालन किया जाता है-
(1) सोपान- अभिविन्यास (Orientation) – सूक्ष्म शिक्षण प्रारम्भ करने के पहले प्रशिक्षणार्थियों के बीच सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, अवयव, विशेषताओं आदि पर परिचर्चा की जाती है।
(2) सोपान- शिक्षण कौशलों की सैद्धान्तिक विवेचना (Theoritical discussion of Teaching skill) – प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण कौशलों का अर्थ, परिभाषा, महत्त्व आदि के बारे में जानकारी देनी चाहिये। उनके मनोवैज्ञानिक आधार पर घटकों के विषय में पूर्ण जानकारी देनी चाहिये।
(3) सोपान – विशिष्ट शिक्षण कौशल की विवेचना (Discussion of – particular teaching skill) – किसी एक विशिष्ट शिक्षण कौशल को चुन लिया जाता है। उसे शिक्षण व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जाता है। इन व्यवहारों द्वारा जिन उद्देश्यों को प्राप्त करता है उन्हें भी स्पष्ट किया जाता है।
(4) सोपान-आदर्श पाठ का प्रस्तुतीकरण (Presentation of model lesson) — इस सोपान में आदर्श पाठ प्रस्तुत किया जाता है। आदर्श पाठ कई तरह से प्रस्तुत किया जा सकता है। पाठ प्रस्तुत करने में प्रशिक्षणार्थी स्वयं पाठ पढ़कर प्रस्तुत करे या आदर्श पाठ लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाये या वीडियो टेप प्रदर्शित किया जाये या टेपरिकार्ड द्वारा आदर्श पाठ सुनाया जाये, प्रशिक्षणार्थी जिस तरह सीख सके उसी तरह पाठ प्रस्तुत करना चाहिये।
(5) सोपान-पाठ का नियोजन (Planning of lesson ) – इसमें प्रशिक्षणार्थी एक छोटे पाठ की योजना बनाता है, जिसमें उस विशिष्ट कौशल का प्रयोग कर सके।
(6) सोपान-शिक्षण सत्र ( Teaching session) – इस सोपान में प्रशिक्षणार्थी अपनी पाठ योजना के आधार पर छात्रों के छोटे समूह को पढ़ाता है। पढ़ाते समय उसके शिक्षण को वीडियो टेप या ऑडियो टेप पर टेप कर लिया जाता है।
(7) सोपान-प्रतिपुष्टि (Feedback) – इस सोपान में छात्रों को उनकी शिक्षण सम्बन्धी त्रुटियाँ बताई जाती हैं। इसके लिये उनके शिक्षण के समय तैयार किया हुआ वीडियो टेप या ऑडियो टेप चलाया जाता है और पर्यवेक्षक की टीकाओं को भी प्रस्तुत किया जाता है।
(8) सोपान-पाठ की पुनर्योजना (Re-planning of lesson) – प्रशिक्षणार्थी पर्यवेक्षक की टीका के आधार पर पाठ की पुनर्योजना करता है, जिससे कौशल को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्राप्त किया जा सके।
(9) सोपान पुर्न अध्यापन (Re-teaching)- इस सोपान में पुनर्योजित पाठ को दूसरे छात्रों को प्रशिक्षणार्थी द्वारा पढ़ाया जाता है। इस शिक्षण को 6 मिनट का समय दिया जाता है।
(10) सोपान- पुर्न प्रतिपुष्टि (Re-feedback) – इस सोपान में दुबारा पढ़ाये गये पाठ की समीक्षा की जाती है। प्रशिक्षणार्थी को यह बताया जाता है कि अब उसने विशिष्ट कौशल को कहाँ तक प्राप्त कर लिया है और वह अपने शिक्षण में कहाँ तक सफल हुआ है।
इसमें निम्न उपकरण होने चाहिये-
(1) विडिकान कैमरा – यह कैमरा दो कैमरे से अधिक का काम करता है। इसमें जूम लैंस लगा होता है। इसे किसी भी दिशा में घुमाया जा सकता है और केन्द्रित (फोकस) किया जा सकता है।
(2) वीडियो टेप रिकार्डर- प्रयोगशाला में दो वीडियो टेप रिकार्डर होने चाहिये एक अध्यापक के कक्ष में और दूसरा प्रशिक्षणार्थी के पाठ को रिकार्ड करने के लिये होना चाहिये।
(3) मॉनीटर-मॉनीटर दो होने चाहिये- एक तकनीकी कमरे में दूसरा पाठ को देखने के लिये होना चाहिये।
(4) रिकार्डिंग टेप- पूरे सत्र के लिये लगभग 20 टेप होने चाहिये।
(5) अन्य सामग्री- प्रयोगशाला में दो घड़ियाँ, एक दर्जन लैंप, 100 गज तार, स्विच गियर आदि रखने चाहिये।
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