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शिक्षण प्रतिमान से क्या तात्पर्य है? शिक्षण प्रतिमान के मौलिक तत्त्व एवं महत्त्व

शिक्षण प्रतिमान से क्या तात्पर्य है? शिक्षण प्रतिमान के मौलिक तत्त्व एवं महत्त्व
शिक्षण प्रतिमान से क्या तात्पर्य है? शिक्षण प्रतिमान के मौलिक तत्त्व एवं महत्त्व

शिक्षण प्रतिमान से क्या तात्पर्य है? शिक्षण प्रतिमान के मौलिक तत्त्वों एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए। 

शिक्षण प्रतिमान का अर्थ (Meaning of Teaching Model)

कक्षा में शिक्षक का यही प्रयास होता है कि वह ऐसा शिक्षण अधिगम वातावरण तैयार करे जिससे छात्रों को अधिकतम अधिगम की सम्भावना एवं सुअवसर प्राप्त हो सकें तथा अपने व्यवहार में वांछनीय उद्देश्यों के अनुरूप परिवर्तन भी कर सकें। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अध्यापक कक्षा एवं कक्षीय परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार की शिक्षण व्यूह रचना करता है। इस शिक्षण व्यूह रच`1qwerना (Teaching Strategy) का तात्पर्य ही यह है कि कक्षीय परिस्थितियों में एक शिक्षण प्रतिमान या शिक्षण मॉडल की उचित रूप में व्यवस्था की जाय। इससे सबसे बड़ा लाभ शिक्षक को अपनी शैक्षिक क्रियाओं एवं पाठ्यवस्तु के सम्प्रेषण के लिए मापदण्डों के निर्धारण में सहायता प्राप्त होती है। एक समय ऐसा था कि मनोवैज्ञानिक कक्षीय क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु (Pivot) अधिगम (Learning) और उसे अधिकाधिक बढ़ाने के साधनों को जुटाने में विश्वास करते थे, किन्तु आज के समय में ऐसा नहीं है। अब कक्षीय क्रियाओं का केन्द्र अधिगम को न मानकर शिक्षण (Teaching) को माना जाने लगा है। इसका प्रमुख कारण यह रहा है कि मनोविज्ञान के अधिगम के नियम एवं सिद्धान्त कक्षीय शिक्षण की। समस्याओं तथा शैक्षिक वातावरण की समस्याओं के उचित हल प्रस्तुत करने में पूर्ण असमर्थ रहे हैं। इसीलिए आज के समय में इस प्राथमिकता को बदल दिया गया है और अब कुशल शिक्षण को कक्षीय एवं शैक्षिक परिस्थितियों के समन्वयीकरण हेतु शिक्षक शिक्षण को केन्द्र बिन्दु में रखा गया है।

शिक्षण प्रतिमान की परिभाषाएँ (Definitions of Teaching Model)

शिक्षण प्रतिमान को विद्वानों ने निम्नवत् परिभाषित किया है-

1. ब्रूस आर० जॉयस के शब्दों में, “शिक्षण प्रतिमान, अनुदेशन अभिकल्प होते हैं जिनके अन्तर्गत विशेष उद्देश्य प्राप्ति के लिए विशिष्ट परिस्थिति का उल्लेख किया जाता है जिसमें छात्र एवं शिक्षक दोनों के मध्य अन्तः क्रिया प्रक्रिया इस प्रकार की होती है। कि उनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सके।”

2. हायमन के अनुसार- “शिक्षण प्रतिमान शिक्षण के बारे में सोचने-विचारने की एक रीति है जो वस्तु के अन्तर्निहित गुणों को परखने के लिए आधार प्रदान करती है। “

3. एच. सी. वील्ड (H. C. Wyld) के अनुसार, “प्रतिमान किसी आदर्श के अनुरूप व्यवहार को ढालने की प्रक्रिया को कहा जाता है। “

4. आर. पी. भटनागर और सुरेश भटनागर के अनुसार, “शिक्षण या अधिगम या शिक्षण अधिगम के सिद्धान्तों का किसी व्यवहार की प्राप्ति के लिये, किसी के लिए किसी प्रारूप के अनुसार दी जाने वाली क्रिया प्रतिमान कहलाती है। “

शिक्षण प्रतिमान तथा शिक्षण व्यूह रचना दोनों एक ही कार्य करता है। दोनों शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशिष्ट शैक्षिक वातावरण उत्पन्न करते हैं, परन्तु कोई भी शिक्षण व्यूहरचना मूल्यांकन प्रणाली (Support System) को विकसित नहीं करती है। शिक्षण के लिये परीक्षण आवश्यक क्रिया मानी जाती है, बिना परीक्षण के शिक्षण प्रक्रिया अधूरी रहती है। शिक्षण प्रतिमान की मूल्यांकन प्रणाली महत्त्वपूर्ण होती है। इस प्रकार शिक्षण प्रतिमान परीक्षण को भी समान महत्त्व देता है और मूल्यांकन प्रणाली (Support system) को विकसित भी करते हैं। शिक्षण प्रतिमान, शिक्षण व्यूह रचना की अपेक्षा अधिक व्यापक होते हैं।

इस प्रकार शिक्षण प्रतिमान, शिक्षण की विशेष रूपरेखा को प्रस्तुत करते हैं। इसके सिद्धान्तों की पुष्टि प्रयोगों के निष्कर्षों पर आधारित होती है। प्रतिमान का प्रारूप मुख्यतः पाँच प्रकार की क्रियाओं को सम्मिलित करता ये क्रियाएँ प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं-

  1. अधिगम निष्पत्तियों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करना ।
  2. उचित उद्दीपन परिस्थितियों का चयन करना जिससे छात्र अपेक्षित अनुक्रिया कर सकें।
  3. उद्दीपन परिस्थितियों का विशिष्टीकरण करना ताकि छात्रों की अनुक्रियाओं का अनुमान लगाया जा सके।
  4. छात्रों की अधिगम निष्पत्ति ज्ञात करने हेतु मानदण्डों, व्यवहारों को निर्धारित करना ।
  5. छात्र एवं वातावरण के मध्य अन्तःप्रक्रिया परिस्थितियों के लिए युक्तियों का विशिष्टीकरण करना।

शिक्षण प्रतिमानों की अवधारणाएँ (Assumptions of Teaching Models)

शिक्षण प्रतिमानों की अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षण एक वाताचरण उत्पन्न करने का साधन है जो स्वतन्त्र अवयवों को सम्मिलित करता है।
  2. पाठ्यवस्तु तथा कौशल अनुदेशन का कार्य करती है, जिसके द्वारा छात्रों तथा शिक्षक के मध्य अन्तःप्रक्रिया होती है। शारीरिक एवं सामाजिक क्षमताओं के विकास का अवसर प्रदान करते हैं।
  3. शिक्षण के तत्त्वों की व्यवस्था विभिन्न प्रकार से की जा सकती है, जिससे विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
  4. शिक्षण प्रतिमान वास्तव में वातावरण उत्पन्न करने के प्रतिमान हैं जो सीखने के अनुभवों के लिये वास्तविक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

शिक्षण प्रतिमान के तत्त्व (Elements of Teaching Model)

शिक्षण प्रतिमान के मूलभूत तत्त्व निम्नलिखित हैं-

1. उद्देश्य (Focus) – उद्देश्य उस बिन्दु की ओर इशारा करता है जिसके लिए – प्रतिमान विकसित किया जाता है। शिक्षण लक्ष्य एवं उद्देश्य ही शिक्षण प्रतिमान के उद्देश्य को निर्धारित करते हैं। शिक्षण प्रतिमान का उद्देश्य (Focus) ही केन्द्र बिन्दु माना जाता है।

2. संरचना (Syntex) – शिक्षण प्रतिमान की संरचना में शिक्षण सोपान की व्याख्या की जाती है। इसके अन्तर्गत शिक्षण क्रियाओं एवं युक्तियों की व्यवस्था का क्रम निर्धारित किया जाता है। शिक्षण क्रियाओं की व्यवस्था इस प्रकार की जाती है कि सीखने की ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकें जिनसे उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है। छात्रों एवं शिक्षक की अन्तःक्रिया के प्रारूप को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित किया जाता है।

3. सामाजिक प्रणाली (Social System) – शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। इसलिए छात्र एवं शिक्षक की क्रियाओं और उनके पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण इस सोपान में किया जाता है। छात्रों की अभिप्रेरणा प्रविधियों को छाँटा जाता है। शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में सामाजिक प्रणाली का सबसे अधिक योगदान रहता है। छात्रों के व्यवहार का नियन्त्रण तथा उसमें अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाना सामाजिक प्रणाली पर ही आधारित होता है। शिक्षक के प्रत्येक प्रतिमान की अपनी विशिष्ट सामाजिक प्रणाली होती है।

4. सहायक प्रणाली (Support System) – शिक्षण के प्रतिमान का यह अन्तिम सोपान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसमें शिक्षण की सफलता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है तथा ज्ञात किया जाता है कि उद्देश्य की प्राप्ति हुई है अथवा नहीं। इसके आधार पर प्रयुक्त की गई शिक्षण व्यूह रचना एवं शिक्षण युक्तियों की प्रभावशीलता का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक प्रतिमान का उद्देश्य भिन्न होता है। इसलिए मूल्यांकन विधि भी भिन्न होगी।

शिक्षण प्रतिमान की उपयोगिता या महत्त्व (Importance of Teaching Models)

शिक्षण प्रतिमान की उपयोगिता अथवा महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. शिक्षण प्रतिमान विद्यालयों की शिक्षण व्यवस्था में विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सहायता प्रदान करता है।
  2. इसके द्वारा शिक्षण को अधिक सार्थक तथा प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
  3. शिक्षण में विशिष्ट प्रतिमानों को प्रयुक्त किया जा सकता है।
  4. शिक्षण प्रतिमानों को सामाजिक, व्यक्तिगत, ज्ञानात्मक तथा व्यावहारिक पक्षों के विकास के लिये विकसित किया जाता है।
  5. शिक्षण प्रतिमान शिक्षण प्रक्रिया में शोधकार्य के लिये विशाल क्षेत्र प्रस्तुत करते हैं।
  6. शिक्षण प्रतिमान के अन्तर्गत ऐसी उपयुक्त नीतियों व उद्दीपनों का प्रयोग किया जाता है जिसके द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन हो जाएँ।
  7. शिक्षण तथा अधिगम क्रियाओं के सम्बन्ध में विभिन्न परिस्थितियों का भली प्रकार अध्ययन किया जा सकता है।
  8. भारतीय परिस्थितियों में कक्षा शिक्षण की समस्या के समाधान के लिये शिक्षण प्रतिमानों को विकसित किया जा सकता है।
  9. मनोवैज्ञानिक शक्तियों का शिक्षण में प्रभावशाली रूप में प्रयोग करके नवीन प्रतिमानों का विकास किया जा सकता है।
  10. शिक्षण प्रतिमान का एक महत्त्वपूर्ण कार्य विद्यार्थियों के व्यवहार का मूल्यांकन करना है जिसके लिये वह विशेष मानदण्ड प्रस्तुत करता है।

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Anjali Yadav

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