कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

सामुदायिक प्रायोजनाओं में जनता का योगदान

सामुदायिक प्रायोजनाओं में जनता का योगदान
सामुदायिक प्रायोजनाओं में जनता का योगदान

सामुदायिक प्रायोजनाओं में जनता का योगदान

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं से गाँधों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में क्रान्तिकारी सुधार होंगे। बाहरी सुधारों के साथ-साथ गांव वालों की सामुदायिकता, आत्मनिर्भरता तथा स्वावलम्बन की भावना भी दृढ़ होगी और उनके व्यक्तित्व तथा चरित्र का विकास होगा क्योंकि इन प्रायोजनाओं में जनता को अनिवार्य रूप से सहयोग देना होगा। सामुदायिक विकास प्रायोजनाएं वहीं पर प्रारम्भ की जाती है, जहाँ के लोगों से उनमें सहायता मिलने की आशा होती है। यह सहायता चन, वस्तु अथवा श्रम किसी भी रूप में हो सकती है। सरकार का काम केवल निर्देश और आर्थिक सहायता देना है। सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं को कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व जनता पर ही होता है। ग्राम विकास पंचायतें, खण्ड-पंचायते तथा सहकारी समतियाँ ही इन कार्यक्रमों के आधार है। युवा संघ, किसान संघ, शिल्पकार समितियों आदि अन्य संगठन भी सहायता करते हैं। इस प्रकार सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं की सफलता में जनता की जिम्मेदारी सरकार से अधिक नहीं तो बराबर की अवश्य है।

सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं की आलोचना

सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं के अन्तर्गत गांवों की अनेक सामाजिक व आर्थिक समस्याओं की और बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया गया है, जैसे भूमिहीन श्रमिकों की समस्या, कुटीर उद्योगों और ग्रामोद्योग के पिछड़ेपन की समस्या इत्यादि। दूसरे, जिन सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को सुलझाने की ओर ध्यान दिया गया है उनके समाधान के लिए भी पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए हैं। उदाहरणार्थ, अनिवार्य और निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का प्रबन्ध गाँवों में अभी भी बहुत दूर की बात है। जायोजना आयोग द्वारा स्थापित कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन (Programme Evaluation Organisation) ने अपनी रिपोर्टी में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की अनेक आलोचनाएं की है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित है-

(1) स्थानीय समस्याओं के हल का अभाव- सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं में स्थानीय समस्याओं के हल की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इससे जहाँ विकास कार्यक्रमों में बाधा पड़ती है वहाँ जनता का विश्वास भी कम होता है।

(2) विभिन्न विभागों में समन्वय की कमी- सामुदायिक विकास संगठन तथा अन्य सहकारी विकास विभागों में परस्पर समुचित समन्वय नहीं है।

(3) आवश्यक उपकरणों की कमी- इन विकास योजनाओं में अपेक्षित आवश्यक उपकरणों की बड़ी कमी है जिससे कार्यक्रमों को प्रारम्भ करने के बाद उन्हें पूरा करने में कठिनाइयों आती हैं।

(4) प्रशिक्षित व्यक्तियों का अभाव- इन प्रायोजनाओं में कर्मचारियों के प्रशिक्षण का काफी प्रयास किया गया, परन्तु फिर भी अभी प्रशिक्षित कर्मचारी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं है।

(5) जनता द्वारा पर्याप्त सहयोग का अभाव- सामुदायिक विकास कार्यक्रम जन-आन्दोलन नहीं बन पाया है। अभी इन प्रायोजनाओं को जनता का पर्याप्त सक्रिय सहयोग नहीं मिल रहा है।

(6) ग्राम-सेविकाओं की कमी- ग्रामीण स्त्रियों में सुधार के लिए प्रशिक्षित ग्राम-सेविकाओं की बड़ी आवश्यकता है, परन्तु अभी उनकी संख्या बहुत कम है।

(7) सरकारी सहायता पर निर्भरता- आज भी ग्रामीण जनता सहकारी सहायता तथा सरकारी पहल पर अधिक आश्रित रहती है जोकि इस आन्दोलन की सबसे बड़ी दुर्बलता है।

(8) आर्थिक विकास की अपेक्षा कल्याण कार्यों का अधिक महत्त्व- इस कारण कृषि क्षेत्र में उत्पादकता तथा रोजगार अवसरों में वांछनीय वृद्धि नहीं हो पाई है।

(9) ग्राम सेवक का विस्तृत क्षेत्र- एक ग्राम सेवक का कार्यक्षेत्र 10 गाँव होता है जो कि अत्यधिक विस्तृत होता है जिस कारण वह अपने उत्तरदायित्व को ठीक प्रकार से नहीं निभा पाता।

प्रायोजनाओं की सफलता के लिए सुझाव

(1) स्थानीय समस्याओं पर अधिक जोर- सामुदायिक विकास प्रायोजनाओं का ढाँचा सभी जगह एक सा नहीं होना चाहिए, बल्कि उसमें स्थानीय समस्याओं के समाधान पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

(2) ग्रामीण परिस्थितियों से परिचित अधिकारियों की नियुक्ति- इन प्रायोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए ऐसे कर्मचारी नियुक्त किए जाएँ जो स्थानीय ग्रामीण संस्कृति तथा ग्रामीण तौर-तरीके से परिचित हों और उनका सम्मान भी करते हों, जिससे वे गाँववालों में घुल-मिल सकें और इन योजनाओं को गाँव की योजनाएँ बना सकें।

(3) अधिक ग्राम-सेवकों और ग्राम-सेविकाओं की नियुक्ति- प्रायोजनाओं के प्रति गाँव वालों में अपनत्व उत्पन्न करने का एक अच्छा उपाय यह हो सकता है कि उन्हीं में से ग्राम सेवकों और सेविकाओं की नियुक्ति की जाए।

(4) ग्राम सेवकों के कार्य को सीमित करना- एक ग्राम सेवक के कार्यक्षेत्र में उतना ही कार्य होना चाहिए जिसका सम्पादन वह सरलतापूर्वक तथा कुशलतापूर्वक कर सके।

(5) विकास कार्यों पर अधिक बल- इन प्रायोजनाओं के अन्तर्गत कल्याण कार्यों के स्थान पर विकास कार्यों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए जिससे ग्रामीण समाज के निर्बल वर्ग को अधिकाधिक लाभ पहुँच सके।

(6) परिवार नियोजन पर बल- देश की सर्वाधिक विकट समस्या तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या है। इसलिए इन प्रायोजनाओं के अन्तर्गत परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रमुख महत्त्व दिया जाना चाहिए।

(7) अधिक से अधिक प्रशिक्षण कैम्पों की व्यवस्था— गाँवों में अधिक से अधिक प्रशिक्षण कैम्प लगाने से निश्चय ही गाँव वालों में इन प्रायोजनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।

(8) प्रचार कम और काम अधिक- विकास प्रायोजनाओं को कार्यान्वित करने वाले कर्मचारियों को प्रचार कम और काम अधिक का सिद्धान्त अपनाना चाहिए। इससे जनता में इन प्रायोजनाओं के प्रति विश्वास उत्पन्न होगा।

(9) युवा संगठनों की स्थापना और उनका सहयोग— गाँवों में विकास के कार्यक्रम प्रारम्भ करने से पूर्व युवा संगठन स्थापित किए जाने चाहिए। जब वे भली प्रकार चल निकलें, तब विकास कार्यक्रमों को उनके सहयोग से प्रारम्भ करना चाहिए। इससे ग्रामवासी अति शीघ्र इन कार्यक्रमों में रुचि लेने लगेंगे।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की वर्तमान स्थिति

सामुदायिक विकास कार्यक्रम, जिसे सन् 1952 में प्रारम्भ किया गया था, सन् 1969 तक देश के समस्त ग्रामीण क्षेत्र में फैल गया था। चूंकि इस कार्यक्रम ने अपना ध्यान ग्रामीण सामुदायिक गतिविधियों के सामाजिक पहलुओं पर ही केन्द्रित रखा, इसलिए यह आर्थिक दृष्टि से गरीब ग्रामीण जनता की भलाई के लिए कुछ विशेष नहीं कर पाया। अतः ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों का जीवन स्तर ऊँचा करने और उन्हें निर्धनता की रेखा से ऊपर उठाने के उद्देश्य से 1978-79 में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme) नामक एक नया कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया इस नए कार्यक्रम से पहले ग्रामीण विकास के लिए प्रारम्भ की गई अन्य योजनाओं, जैसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम, लघु कृषक विकास एजेन्सी आदि का समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम में विलय कर दिया गया। इस प्रकार 1978-79 से सामुदायिक विकास कार्यक्रम ‘समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम का एक अंग बन चुका है।

“समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम में छोटे और सीमान्त किसानों, खेतिहर और गैर-खेतिहर मजदूरों, ग्रामीण कारीगर और शिल्पकारों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा सभी ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो निर्धनता-रेखा से नीचे रह रहे हैं। नया कार्यक्रम 2.300 विकास खण्डों में प्रारम्भ किया गया तथा 2 अक्टूबर, 1980 को यह कार्यक्रम देश के सभी खण्डों में लागू कर दिया गया था।

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Anjali Yadav

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