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Best Short Stories in Hindi with Moral for Kids- प्रेरणादायक हिंदी कहानियां
Best Short Stories in Hindi with Moral for Kids 2023 प्रेरणादायक लघुकथाओं का संग्रह है। ये Hindi short stories with moral for Kids केवल मनोरंजन मात्र नहीं है, अपितु हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाली कई उपयोगी शिक्षाओं का संग्रह है। Short Stories in Hindi से हमें जो सीख मिलती हैं। हर कहानी को पढ़ने से आपको कुछ न कुछ जरूर सीखने को मिलेगा। तो प्रस्तुत हैं-
शेर और बैल की कहानी: Short Hindi Story with Moral
एक बार वर्धमानक नाम का एक व्यापारी अपने गांव से, बैलगाड़ी पर मथुरा शहर जा रहा था। उसके दो बैलों का नाम संजीवक और नंदक था। नदी के किनारे चलते -चलते संजीवक का पैर अचानक दलदल में पड़ गया। उसने अपना पैर बाहर निकालना चाहा पर निकाल नहीं पाया। व्यापारी ने भी संजीवक का पैर निकालने की बहुत कोशिश की पर वह भी सफल नहीं हो पाया। आखिरकार उसने उसकी रक्षा के लिये दो आदमियों को नियुक्त करके अपनी यात्रा फिर से शुरू कर दी।
नियुक्त रक्षक भी जंगल के कष्ट को देखकर संजीवक को वहीं छोड़कर चल दिये और व्यापारी के पास जाकर कह दिया कि संजीवक मर गया और हमने उसका अग्नि-संस्कार कर दिया है।
अकेले संजीवक के सामने अब दो रास्ते थे, या तो वह भाग्य के भरोसे पर रहकर उसी दल-दल में धंस कर मर जाये या बाहर निकलने के लिये पूरी कोशिश करे। उसने अपनी सारी शक्ति लगा दी, आखिर में वह दल-दल से बाहर निकल ही आया।
अब वह अपने मालिक के पास जाना नहीं चाहता था, पर उसके पास कहीं और जाने की जगह भी नहीं थी इसलिये वह नदी के किनारे-किनारे जंगल में घास चरता तथा नदी का पानी पीता हुआ आगे बढ़ता रहा। जल्दी ही वह स्वस्थ एवं मोटा-ताजा हो गया और उसने बादलों के गर्जन के समान रंभाना शुरू कर दिया।
एक दिन जंगल का राजा पिंगलक नामक सिंह पानी पीने के लिये नदी के किनारे आया। अचानक उसने संजीवक की गरजने की आवाज सुनी। जिसे सुनकर वह डर कर अपनी गुफा की ओर भाग गया।
दमनक और करकट नाम के दो गीदड़ पिंगलक के सहायक थे। जब दमनक को यह पता चला कि पिंगलक किसी आवाज को सुनकर डर गया है तब वह उसके पास गया और बोला “महाराज! आप कुछ परेशान से दिख रहे हैं। कृपया मुझे बतायें कि आपको किसने डरा दिया? मैं उसे आप के पास लेकर आऊंगा।” –
पिंगलक इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहता था, फिर भी वह बहुत हिचकिचाते हुए दमनक से बोला “मैं नहीं जानता कौन है ? पर मैंने बहुत ही भयानक आवाज सुनी है।” दमनक ने उसे आश्वासन दिया, “चिन्ता न करें, महाराज! मैं गरजने की इस आवाज का रहस्य अवश्य मालूम करूंगा।”
जल्दी ही दमनक, संजीवक को शेर के पास ले आया और बोला-महाराज ! यही है वह जो गर्जना करता है। भगवान शिव ने इसे हमारे जंगल में घूमने के लिये भेजा है।
इस बात को सुनकर पिंगलक शेर बहुत खुश हुआ और संजीवक का स्वागत किया। जल्दी ही वह दोनों अच्छे मित्र बन गये।
धीरे-धीरे पिंगलक ने दूसरे जानवरों को भी मारना बन्द कर दिया और तो और उसने अपने राज्य की देखभाल करनी भी छोड़ दी। इस बात से दमनक को चिन्ता होने लगी, क्योंकि वह तो हमेशा ही पिंगलक के बचे हुए भोजन को खाकर पेट भरता था। अब तो उसे भी भूखा रहना पड़ रहा था।
इस समस्या को हल करने के लिए उसने एक योजना बनाई। वह पिंगलक के पास गया और बोला – “संजीवक आपके राज्य से ईर्ष्या करता है और आपको मारकर, खुद यहां का राजा बनना चाहता है।”
उसके बाद वह संजीवक के पास गया और उससे बोला-
‘हमारा राजा पिंगलक बहुत ही बुरा है। उस 44 पर विश्वास मत करो। वह तो तुम्हें मारकर, तुम्हारा मांस जंगल के सभी जानवरों को खिलाना चाहता है। इस से पहले कि वह तुम्हें मारे तुम ही उसे मार दो।”
संजीवक को दमनक की यह बात सुनकर बहुत क्रोध आया। पिंगलक तो पहले से ही संजीवक से नाराज था।
संजीवक ने पिंगलक की गुफा के पास जाकर गर्जन के साथ रंभाना शुरू कर दिया। पिंगलक ने यह देखकर गुस्से में दहाड़ते हुए संजीवक पर एक झपट्टा मारा।
दोनों ही इतने शक्तिशाली थे कि दोनों में बहुत देर तक युद्ध हुआ । संजीवक अपनी नुकीली सींगों से पिंगलक को मार डालना चाहता था, परन्तु पिंगलक जीत गया और उसने अपने पैने जबड़ों से संजीवक को मार दिया।
उसी समय करकट वहां पहुंचा और पिंगलक से बोला ‘महाराज ! – आप दमनक की सलाह नहीं मानें। इसकी बात मान कर आपने अपने जीवन को ही खतरे में डाल दिया था। आपने तो अपने प्रिय मित्र को ही मार डाला। “
जब पिंगलक ने यह सुना तब उसे बहुत पछतावा हुआ और वह रोने लगा कि एक लालची और छली मंत्री की सलाह मान कर उसने अपने प्रिय मित्र को मार दिया।
शिक्षाः राजा को अपने परामर्शदाता से परामर्श लेना चाहिए, परंतु निर्णय स्वयं लेना चाहिए।
बंदर और लकड़ी का खूंटा की कहानी: Short Stories in Hindi for Kids
बहुत समय पहले एक गांव में एक बड़ा सा आम का पेड़ था। उस पेड़ पर बंदरों का एक झुंड रहता था। उन सब में से एक छोटा बंदर बहुत शैतान था। वह आते-जाते लोगों को परेशान किया करता था, जबकि बाकी के बंदर ऐसा नहीं करते थे। वे आराम से आम खाते थे और खुश रहते थे। लेकिन छोटा बंदर हर समय लोगों को परेशान करने के मौके ढूंढा करता था। जब भी कोई पेड़ के नीचे आकर बैठता था वह उनका सामान लेकर भाग जाता और उन्हें अपने पीछे दौड़ाता था। वह लोगों के घरों में घुस जाता और उनके सामान लेकर भाग जाता था।
गांव वालों को वह बंदर बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि वह उन्हें बहुत परेशान करता था। परंतु गांव के बच्चों को बंदर की शैतानियां अच्छी लगती थी।
एक बार एक बूढ़े बंदर ने उसे समझाया, “बेटा! हम अगर गांव वालों को परेशान करेंगे तो वे हमें यहां से भगाने के लिए यह पेड़ काट सकते हैं। फिर हमें जंगल में जाना पड़ेगा । जंगल में तो हमें बड़े जानवर बहुत परेशान करेंगे। हमारी भलाई इसी में है कि हम किसी को परेशान ना करें और अपने काम से मतलब रखें। ऐसा कर के हम यहां आराम से रह सकते हैं।” लेकिन शैतान बंदर पर इस सलाह का कोई प्रभाव नहीं हुआ।
एक बार गांव में बहुत कम बारिश हुई, जिसकी वजह से वहां सूखा और अकाल पड़ गया। गांव में सभी लोग परेशान हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी गांव वालों ने साधू के पास जाने का निर्णय लिया। साधू ने गांव वालों को अकाल से बचने के लिए एक मंदिर बनाने को कहा। गांव का एक अमीर आदमी मंदिर बनाने के लिए पैसे देने को राजी हो गया। गांव वालों ने अपना-अपना काम बांट लिया। सुबह से शाम तक बिना रुके काम चलने लगा। पेड़ पर बैठे बंदर यह सब देखते रहते थे।
दोपहर के समय थोड़ी देर सभी आराम करते थे, इसलिए काम की जगह कोई नहीं रहता था। किसी को वहां न देखकर कुछ बंदर वहां आ जाया करते थे और जो सामान पड़ा होता था उससे खेलते थे। जब गांव के लोग आराम करने के बाद काम करने वहां आते, बंदर चुपचाप शांति से वहां से चले जाते थे।
एक दिन दोपहर में जब सभी लोग आराम करने गए थे तब कुछ बंदर वहां आकर खेलने लगे। शैतान बंदर भी वहां खेलने आया था। कुछ समय खेलने के बाद सभी बंदर वहां से चले गए परंतु शैतान बंदर नहीं गया। वह वहां पड़ी हुई चीजों से खेलता रहा। अचानक उसे एक आधी कटी हुई लकड़ी दिखी । उसमें एक गुल्ली फंसी हुई थी। उसने सोचा, “अरे! यह क्या है?” मैं, गुल्ली को निकालकर देखता हूं कि क्या होता है?”
दूसरों के काम में टांग अड़ाने की तो उसकी आदत थी ही। वह आधी कटी हुई लकड़ी पर बैठ गया और जोर-जोर से गुल्ली को खींचने लगा। अचानक वह गुल्ली झटके से निकल गई लेकिन इस बीच बंदर की टांग उस आधी कटी लकड़ी में फंस गई। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “मेरी मदद करो… मेरा पैर फंस गया… कृपया मेरी मदद करो…” उसका चिल्लाना सुनकर बाकी बंदर उसकी मदद करने के लिए वहां आ गए। उन्होंने शैतान बंदर का पैर निकालने की बहुत कोशिश की परंतु वे ऐसा नहीं कर पाये। अंत में ज्यादा दर्द होने की वजह से वह बंदर मर गया।
शिक्षाः जिस काम से हमें कोई मतलब नहीं उसमें हमें अपनी टांग नहीं अड़ानी चाहिये।
सियार और ढोल की कहानी: Hindi Short Stories with Moral
किसी जंगल में गोमायु नाम का एक सियार रहता था। एक बार वह कई दिनों से भूखा होने के कारण खाने की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था। घूमते-घूमते वह एक सुनसान लड़ाई के मैदान में पहुंच गया। क्योंकि वह बहुत भूखा और डरा हुआ था, इसलिए थककर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया और बैठते ही उसे नींद आ गई। अचानक उसे एक बहुत ही तेज और अजीब सी आवाज सुनाई पड़ी, “ढम-ढम।” उस आवाज को सुनकर वह डर गया और सोचने लगा,
‘हे भगवान! कितनी भयानक आवाज है यह? यह क्या हो सकती है? ओह! मुझे यहां से भाग जाना चाहिये। ‘
जैसे ही सियार वहां से भागने लगा तभी उसने सोचा, ” हो सकता है, मैं बिना किसी कारण ही डर रहा हूं। मुझे एक बार फिर वहां जाना चाहिये और पता लगाना चाहिये कि यह आवाज कहां से आ रही है?”
वह बहादुरी से उस ओर बढ़ा जहां से वह आवाज आ रही थी। एक पत्थर के पीछे छिपकर वह देखने लगा कि आखिर आवाज कहां से आ रही है। वह एक लड़ाई का मैदान था और वहां घास, पत्तियां और पेड़ की शाखाएं भरी हुई थीं। उनके पास में ही एक ढोल पड़ा हुआ था। उसे देखकर सियार ने सोचा, “आहा !
अब मैं समझा कि तेज हवा चलने के कारण घास और पत्तियां ढोल को थपथपा रही हैं जिसके कारण यह आवाज आ रही है। “
यह जानकर कि आवाज ढोल से आ रही थी सियार कि सांस में सांस आई। उसे अपनी बेवकूफी पर हंसी भी आई क्योंकि वह डर गया था। ढोल को देखकर सियार उसके पास गया। उसने सोचा, ” इतना बड़ा ढोल ! जरूर ही इसमें खाने के लिये कुछ होगा- चलो मैं देखता हूं।” यही सोचकर वह ढोल को फाड़कर उसमें कूद गया। लेकिन ओह! उसको ढोल खाली मिला।
निराश होकर सियार ढोल से बाहर आ गया। उसने फिर अपने खाने की तलाश शुरू कर दी। अचानक उसे खाना दिखाई दिया जो कुछ दिनों तक उसकी भूख मिटाने के लिए पर्याप्त था।
खाना देखकर सियार बहुत खुश हो गया। उसने बहुत दिनों बाद पेट भरकर खाना खाया और सोचने लगा, “मैं उस ढोल की आवाज से डर कर नहीं भागा इसलिए मुझे खाना मिल गया। “
शिक्षा: छोटी-छोटी चीजों से डरना नहीं चाहिये।
मूर्ख साधू की कहानी: Moral Stories in Hindi in Short
किसी समय देव शर्मा नाम का साधू था। उसने अपने शिष्यों और महात्मा पुरुषों के दिये गये कपड़ों को बेचकर बहुत सारा धन इकट्ठा कर लिया। जैसे-जैसे वर्ष बीतते गये उसे अपने बढ़ते हुये धन को सुरक्षित रखने की चिन्ता सताने लगी। क्योंकि उसे किसी पर भी विश्वास नहीं था, इसलिये वह अपने सारे धन को एक थैले में भरता जाता और जहां भी जाता उसे अपने साथ ले जाता।
आषाढ़भूति नाम का एक चोर यह देख रहा था कि देव शर्मा हमेशा ही अपने थैले को अपने साथ रखता है। इसलिये उसे लगा कि इस थैले में जरूर कोई मूल्यवान चीज है। उसने किसी भी तरह उस थैले को चुराने की योजना बनाई। उसने सोचा, मैं अवश्य ही इस आदमी का विश्वास जीत लूंगा और इसे धोखा देकर इसका सारा धन ले लूंगा।
यह सोचकर वह देव शर्मा के पास गया और उससे विनती करते हुए बोला “हे पवित्र साधु! मैं एक अनाथ हूं। कृपया मुझे अपना शिष्य स्वीकार कीजिये। मैं आपको वचन देता हूं कि मरते दम तक मैं आपकी सेवा करूंगा। “
देवशर्मा बोला – “मैं तुम्हारी शिष्टता से प्रसन्न हुआ। तुम मेरे शिष्य बन सकते हो। लेकिन तुम कभी भी मेरे कमरे में नहीं आना।”
आषाढ़ भूति ने उनकी शर्त मान ली और थोड़े दिनों में ही वह देव शर्मा का विश्वसनीय शिष्य बन गया।
एक दिन देव शर्मा और आषाढ़ भूति जंगल से जा रहे थे। रास्ते में देवशर्मा के कपड़े गन्दे हो गये और सूखी घास उसमें फंस गई। आषाढ़ भूति ने इस मौके का लाभ उठाया और बोला “मुझे माफ करें गुरूजी, यह घास जो आपके कपड़ों पर है, यह आपकी नहीं है। यह तो उस व्यक्ति की है, जिसके साथ हम रुके थे। हमें यह उसको लौटा , देनी चाहिये।” देव शर्मा उसकी सच्चाई पर चकित होकर बोला ” वत्स! जो तुम कह रहे हो वह सच है। यह इसके मालिक को लौटाना ही चाहिये।
आषाढ़ भूति घास उसके मालिक को लौटाने के बहाने वहां से चला गया और कुछ ही देर में लौट कर बोला – “गुरूजी मैं उसे घास लौटा आया। “
देव शर्मा बोला – ” वत्स, यह तुमने बहुत अच्छा किया।” उसने सोचा, यह आदमी बहुत ईमानदार है। मुझे बहुत संतोष है कि यह मेरा धन नहीं चुरायेगा।
एक दिन देव शर्मा को उसके एक पुराने शिष्य ने आमंत्रित किया। देवशर्मा उसके घर जाने के लिए आषाढ़ भूति के साथ चल पड़ा।
रास्ते में एक नदी मिली। देव शर्मा ने आषाढ़ भूति से कहा ” वत्स, मैं नदी में नहाना चाहता हूं। मेरे कपड़ों और थैले की देखभाल करना।” यह कहकर वह नदी में नहाने चला गया।
जैसे ही देव शर्मा वहां से गया, आषाढ़ भूति ने कहा “हूं, अब मेरी बारी है।” उसने तुरन्त देव शर्मा के धन का थैला उठाया और वहां से चला गया।
जब देव शर्मा नहाकर नदी के किनारे लौटा, वहां उसे अपने थैले के साथ आषाढ़ भूति भी नहीं दिखाई दिया। उसने अपने शिष्य आषाढ़ भूति को पुकारा, ” आषाढ़ भूति… ओ आषाढ़ भूति…. तुम कहां हो?” जब उसे कोई उत्तर नहीं मिला तब उसे यह पता चला कि वह लुट गया है। वह चिल्लाने लगा, “ ओ नहीं…. मैं ” लुट गया! ओह ओह ! मेरा सारा धन लुट गया। “
शिक्षाः लालची अन्त में लुट ही जाता है।
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