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Bhakti Ras (भक्ति रस)
जो भाव ईश्वर विषयक प्रेम नामक स्थायी भाव को उद्बुद्ध करता है, उसे ‘भक्ति रस’ माना जाता है।
भक्ति रस में ईश्वर विषयक प्रेम अनेक भावों में व्यक्त हो सकता है। इनमें नौ प्रकार की भक्ति स्वीकार की गई है जो नवधा भक्ति के रूप में प्रचलित है-नाम स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, आत्मनिवेदन, श्रवण, कीर्तन एवं संख्य भाव।
भक्ति रस के अवयव भाव
- भक्ति रस का स्थाई भाव : देवविषयक रस ।
- भक्ति रस का आलंबन (विभाव) : परमेश्वर, राम, श्रीकृष्ण आदि।
- भक्ति रस का उद्दीपन (विभाव) : परमात्मा के अद्भुत कार्यकलाप, सत्संग, भक्तो का समागम आदि ।
- भक्ति रस का अनुभाव : भगवान के नाम तथा लीला का कीर्तन, आंखो से आँसुओ का गिरना, गदगद हो जाना, कभी रोना, कभी नाचना।
- भक्ति रस का संचारी भाव : निर्वेद, मति, हर्ष, वितर्क आदि।
Bhakti Ras Ka Sthayi Bhav
भक्ति रस का स्थाई भाव ‘देवविषयक रस’ है ।
भक्ति रस है या भाव?
भक्ति रस है या भाव यह प्रश्न बहुत से हिंदी वैयाकरणों और काव्य मर्मज्ञों को परेशान करता रहा है.
- कुछ विशेषज्ञ भक्ति को बलपूर्वक रस घोषित करते हैं
- कुछ परम्परानुमोदित रसों की तुलना में इसे श्रेष्ठ बताते हैं.
- कुछ शांत रस और भक्ति रस को अलग नहीं मानते.
- कुछ भक्ति रस को सभी रसों से भिन्न और अलौकिक रस मानते हैं. उनकी नजर में भक्ति एक ऐसा रस है जिसके अंतर्गत शेष सभी रसों का समावेश हो जाता है.
- कुछ की दृष्टि में भक्ति रस ही वास्तविक रस है और शेष सभी रस उसके अंग या उपांग हैं.
इस प्रकार भक्ति रस का एक स्वतंत्र इतिहास है, जो रस तत्व विवेचन की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है.
भक्ति रस के उदाहरण (Bhakti Ras ke Udaharan)
1. जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।
कौने देव बराइ बिरद हित हटि-हठि अधम उधारे।
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया विवस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे। – तुलसीदास
स्थायी भाव- ईश्वर विषयक प्रेम
विभाव- आश्रय कवि, आलंबन- श्री राम उद्दीपन- संसार की मोह माया का जाल
अनुभाव- ईश्वर से प्रार्थना करना
संचारी भाव – घृति, दैन्य, मति, चिंता आदि।
रस- भक्ति रस
2. जब-जब होइ धरम की हानी।
बाहिं असुर अधम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि मनुज सरीरा।
हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।। – तुलसीदास
स्थायी भाव – ईश्वर विषयक प्रेम।
विभाव- आश्रय – कवि, आलंबन- श्री राम, उद्दीपन- संसार में बढ़ती आसुरी प्रवृत्तियाँ।
अनुभाव – प्रभु द्वारा मनुष्य रूप धारण करना, सज्जानों का उद्धार करना। संचारी भाव मति, धृति, हर्ष, आवेग आदि।
रस- भक्ति रस
3. दुलहिनि गावहु मंगलचार
मोरे घर आए हो राजा राम भरतार ।।
तन रत करि मैं मन रत करिहौं पंच तत्व बाराती।
रामदेव मोरे पाहुन आए मैं जोवन मैमाती। – कबीर
स्थायी भाव- ईश्वर विषयक प्रेम
विभाव- आश्रय – कवि/जीवत्मा, आलंबन- राजा राम / परमात्मा, उद्दीपन- जीवात्मा का परमात्मा से मिलना
अनुभाव – गाना, घर आना, तन-मन समर्पित करने की भावना।
संचारी भाव – हर्ष, आवेग, उन्माद, औत्सुक्य, चपलता आदि।
रस- भक्ति रस
4. राम सौं बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो?
राम सौं खरो है कौन मोसो कौन खोटो? – तुलसीदास
स्थायी भाव – ईश्वर विषयक प्रेम
विभाव- आश्रय – कवि, आलंबन – श्री राम, उद्दीपन- ईश्वर के उदात्त गुणों से प्रभावित होकर अपने भीतर अवगुणों को पहचानना।
अनुभाव- ईश्वर से आत्मनिवेदन करना
संचारी भाव- घृति, मति, दैन्य, चिंता आदि।
रस – भक्ति रस
5. उधारी दीन बन्धु महाराज।
जैसे हैं तैसे तुमरे ही नहीं और सौं काज॥ – भारतेंदु हरिश्चंद्र
स्थायी भाव- ईश्वर विषयक प्रेम
विभाव- आश्रय – कवि, आलंबन- प्रभु श्री कृष्ण, उद्दीपन- संसार के मोह जाल में फँसना ।
अनुभाव- ईश्वर से प्रार्थना
संचारी भाव – दैन्य, घृति, मति, चिंता आदि।
रस- भक्ति रस
6. जमकरि मुँह तरहरि पर्यो, इहि धरहरि चित लाउ।
विषय तृषा परिहरि अजौं, नरहरि के गुन गाउ।। – बिहारी
स्थायी भाव- ईश्वर भक्ति
विभाव- आश्रय- कवि आलंबन- प्रभु उद्दीपन- संसार का विषय-वासना में लिप्त रहना।
अनुभाव- ईश्वर से प्रार्थना
संचारी भाव – दैन्य, चिंता, मति, धृति आदि ।
रस- भक्ति रस
7. ना किछु किया न करि सक्या, ना करण जोग सरीर।
जो किछु किया सो हरि किया, ताथै भया कबीर कबीर। – कबीर
स्थायी भाव – ईश्वर भक्ति
विभाव आश्रय – कवि आलंबन- प्रभु उद्दीपन- स्वयं की असमर्थता ।
अनुभाव- कुछ न कर पाना
संचारी भाव- दैन्य, चिंता, घृति, मति आदि।
रस- भक्ति रस
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