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अर्थशास्त्र के विभाग (Departments of Economics)
अध्ययन की सुविधा के लिए अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री को पाँच भागों में विभक्त किया गया है–(1) उपभोग, (2) उत्पादन (3) विनिमय, (4) वितरण तथा (5) राजस्व या लोक वित्त|
(1) उपभोग (Consumption)–’उपभोग’ वह आर्थिक क्रिया है जिससे मनुष्य की आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि होती है। एली (Ely) के शब्दों में, “उपभोग मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए आर्थिक वस्तुओं तथा व्यक्तिगत सेवाओं का प्रयोग है। उपयोग में मानवीय आवश्यकताओं के स्वभाव तथा वर्गीकरण, तुष्टिगुण (utility) तथा उससे सम्बन्धित नियमों, जैसे—सीमान्त तुष्टिगुण ह्रास नियम, सम-सीमान्त तुष्टिगुण नियम, मांग का नियम, मांग की मूल्य सापेक्षता, उपभोक्ता की वचत (आधिक्य) आदि का अध्ययन किया जाता है। इस विभाग के अन्य महत्त्वपूर्ण विषय है-व्यय तथा बचत, पारिवारिक बजट, रहन-सहन का स्तर आदि।
(2) उत्पादन (Production)- ‘उत्पादन’ से तात्पर्य वस्तुओं में तुष्टिगुण के सृजन से है। ए० एच० स्मिथ (A. H. Smith) के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है जो वस्तुओं में तुष्टिगुण का सृजन करती है। उत्पादन के अन्तर्गत उत्पादन के उपादानों (भूमि, श्रम, पूंजी, संगठन व उद्यम) तथा उनसे सम्बन्धित समस्याओं, उत्पत्ति के नियमों, उत्पत्ति के पैमानों, उद्योगों के स्थानीयकरण, श्रम-विभाजन, जनसंख्या के सिद्धान्त आदि का अध्ययन किया जाता है।
(3) विनिमय (Exchange)-दो पक्षों के बीच होने वाले वस्तुओं तथा सेवाओं के ऐच्छिक, वैधानिक तथा पारस्परिक हस्तान्तरण को ‘विनिमय’ कहते हैं जेवन्स (Jevons) के शब्दों में, “कम आवश्यक वस्तु के बदले में अधिक आवश्यक वस्तुओं के आदान-प्रदान को विनिमय कहते हैं।” अर्थशास्त्र के इस विभाग में बाजार, वस्तु का कीमत-निर्धारण, व्यापार, मुद्रा, बैंकिंग आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।
(4) वितरण (Distribution ) – प्रो० सैलिगमैन (Seligman) के शब्दों में संयुक्त उत्पत्ति को उत्पादन के विभिन्न उपादानों में बांटने की क्रिया को ही वितरण कहते हैं। आजकल वस्तुओं का उत्पादन संयुक्त रूप से विभिन्न उपादानों (factors) के सहयोग से होता है जिस कारण संयुक्त उत्पादन के वितरण की समस्या उत्पन्न होती है। ‘वितरण’ में इसी बात का अध्ययन किया जाता है कि संयुक्त उत्पादन में प्रत्येक साधन के पारिश्रमिक (हिस्सा) को किस प्रकार तय किया जाए वितरण के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय, लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।
(5) लोक वित्त (Public Finance) – डॉ० डाल्टन (Dalton) के अनुसार, “लोक वित्त सरकार की आय तथा व्यय और उनके पारस्परिक समन्वय का अध्ययन करता है।” इस विभाग में सरकार की आय के स्रोतों (कर आदि), सार्वजनिक व्यय की मदों, सार्वजनिक ऋण नीति, घाटे की वित्त व्यवस्था, राजकोषीय नीति आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री के उक्त विभाजन का यह अर्थ नहीं है कि विभिन्न विभागों में परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि उक्त सभी पाँची विभाग परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।
अर्थशास्त्र के विभागों में पारस्परिक सम्बन्ध
अर्थशास्त्र के विभिन्न विभाग एक दूसरे से पृथक् नहीं किए जा सकते क्योंकि इनमें परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है जैसा कि निम्न विवरण से स्पष्ट है-
(1) उपभोग और उत्पादन में सम्बन्ध-(अ) उत्पादन उपभोग पर आश्रित है। क्योंकि- (i) उपभोग के कारण ही उत्पादन सम्भव होता है, (ii) उपभोग ही विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की मात्रा, किस्म आदि को निर्धारित करता है।
(ब) उपभोग उत्पादन पर आश्रित है क्योंकि (1) वस्तुओं का उपभोग उनके उत्पादन के कारण ही सम्भव होता है, (ii) उपभोग की सीमा उत्पादन द्वारा निश्चित होती है, (iii) उपभोग का स्वभाव भी उत्पादन की किस्म तथा मात्रा द्वारा निश्चित
होता है।
(2) उपभोग तथा विनिमय में सम्बन्ध-(अ) विनिमय उपभोग पर निर्भर करता है क्योंकि (1) वस्तुओं के उपभोग के कारण ही विनिमय होता है, (ii) उपभोग की मात्रा पर ही बाजार का विस्तार तथा संकुचन निर्भर करता है।
(ब) उपभोग विनिमय पर निर्भर करता है क्योंकि (1) आधुनिक जटिल अर्थव्यवस्थाओं में विनिमय (क्रय-विक्रय) द्वारा ही उपभोग सम्भव है, (ii) विनिमय द्वारा उपभोग का स्वभाव निर्धारित होता है, (iii) वस्तुओं के विनिमय के कारण उपभोग का क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
(3) उपभोग तथा वितरण में सम्बन्ध (अ) वितरण उपभोग पर आश्रित है क्योंकि-[i] उपभोग के कारण ही वितरण का अस्तित्व सम्भव है, (II) किसी देश में वितरण की मात्रा उपभोग की मात्रा पर निर्भर करती है।
(च) उपभोग भी वितरण पर निर्भर करता है क्योंकि- (1) वितरण के फलस्वरूप ही हमें उपभोग के लिए वस्तुएँ मिलती हैं, (II) उपभोग की मात्रा व स्वभाव वितरण की मात्रा व स्वभाव पर निर्भर होती है।
(4) उपभोग तथा लोक वित्त में सम्बन्ध- (अ) लोक वित्त उपभोग पर आधारित है क्योंकि (1) उपभोग की मात्रा व किस्म राज्य की जाय तथा व्यय को प्रभावित करती है, (ii) लोक वित्त के नियमों को समझने में उपभोग के नियम सहायक होते हैं।
(य) उपभोग लोक वित्त पर आश्रित है क्योंकि लोक वित्त उपभोग की मात्रा व गुण को प्रभावित करता है। सरकार की कराधान-नीति (taxation policy) में परिवर्तन होने पर उपभोग की मात्रा व किस्म में भी परिवर्तन हो जाता है।
(5) उत्पादन तथा विनिमय में सम्बन्ध- (अ) विनिमय उत्पादन पर आश्रित है क्योंकि-(i) उत्पादन के कारण ही वस्तुओं का विनिमय सम्भव हो पाता है, (ii) उत्पादन की मात्रा व स्वभाव पर ही विनिमय की मात्रा व स्वभाव निर्भर करता है।
(ब) उत्पादन भी विनिमय पर निर्भर है क्योंकि-(1) उत्पादन के विभिन्न उपादान विनिमय की सहायता से ही जुटाए जाते हैं, (ii) आधुनिक उत्पादन प्रणाली विनिमय पर निर्भर है।
(6) उत्पादन तथा वितरण में सम्बन्ध-(अ) वितरण उत्पादन पर आश्रित है क्योंकि-(i) उत्पादन ने ही वितरण को सम्भव बनाया है, (II) वितरण की मात्रा उत्पादन की मात्रा द्वारा निर्धारित होती है।
(ब) उत्पादन वितरण पर निर्भर करता है क्योंकि–(i) उत्पादन की मात्रा भी वितरण पर निर्भर करती है, (II) वितरण का स्वभाव उत्पादन के स्वभाव को प्रभावित करता है।
(7) उत्पादन तथा लोक वित्त में सम्बन्ध- (अ) लोक वित्त उत्पादन पर आश्रित है क्योंकि—–(i) राज्य की आप उत्पादन पर भी निर्भर करती है, (II) उत्पादन प्रणाली पर देश की वित्त नीति निर्भर करती है।
(ब) उत्पादन भी लोक वित्त द्वारा प्रभावित होता है क्योंकि—(1) उत्पादन की मात्रा सरकार की कराधान-नीति, व्यय नीति तथा संरक्षण-नीति पर निर्भर करती है, (ii) उत्पादन का स्वभाव लोक वित्त के स्वभाव निर्भर करता है।
(8) विनिमय तथा वितरण में सम्बन्ध-(अ) वितरण विनिमय पर निर्भर करता है क्योंकि संयुक्त उत्पादन का तभी सम्भव होता है जबकि वस्तुओं का मुद्रा की सहायता से विनिमय कर लिया जाता है।
(य) विनिमय भी वितरण पर आश्रित है क्योंकि आय का समान वितरण होने पर विनिमय कार्यों में वृद्धि होती है।
(9) विनिमय तथा लोक वित्त में सम्बन्ध-(अ) लोक वित्त विनिमय से प्रभावित होता है क्योंकि राज्य की आय विनिमय-क्रियाओं की प्रगति तथा विस्तार पर निर्भर करती है।
(य) विनिमय भी लोक वित्त से प्रभावित होता है क्योंकि विनिमय व्यवस्था (बाजार, बैंक, मुद्रा, बोकंग आदि) के संचालन के लिए सरकार को पर्याप्त मात्रा में धन की आवश्यकता पड़ती है।
(10) वितरण तथा लोक वित्त का सम्बन्ध-(अ) लोक वित्त वितरण पर आश्रित है क्योंकि-(i) वितरण राज्य की कराधान नीति को प्रभावित करता है, (ii) वितरण सरकार की व्यय-नीति को भी प्रभावित करता है।
(ब) वितरण लोक वित्त पर आश्रित है क्योंकि-धन का वितरण सरकार की कराधान-नीति तथा व्यय-नीति द्वारा प्रभावित होता है।
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