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माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों में कामुकता के बारे में सकारात्मक धारणा विकसित करने में एक शिक्षक की भूमिका

माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों में कामुकता के बारे में सकारात्मक धारणा विकसित करने में एक शिक्षक की भूमिका
माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों में कामुकता के बारे में सकारात्मक धारणा विकसित करने में एक शिक्षक की भूमिका

माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों में कामुकता के बारे में सकारात्मक धारणा विकसित करने में एक शिक्षक की भूमिका का वर्णन करें । (Describe the role of a Teacher in developing Positive notion about Sexuality among students of secondary school.) 

विद्यालय का स्थान बालक के जीवन में अमूल्य होता है और एकाकी परिवारों के चलन के पश्चात् तो विद्यालयों का महत्व बालकों को सामाजिक व्यवस्था और ताने-बाने से अनुशासन करने की शिक्षा प्रदान करने के कारण और भी बढ़ गया है। जैसा कि पूर्व में ही कहा जा चुका है कि यौन निर्देशन का स्वरूप एक जैसा न होकर विभिन्न आयु-वर्गों में अलग-अलग होना चाहिए। अतः निम्नांकित स्तरों के अन्तर्गत शैशवावस्था से लेकर युवावस्था तक यौन निर्देशन की शिक्षा में शिक्षक की भूमिका का निरूपण प्रस्तुत किया जा रहा है-

  1. शैशवावस्था में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका
  2. प्राथमिक स्तर में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका
  3. किशोरावस्था में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका
  4. यौवनावस्था में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका

1. शैशवावस्था में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका- शैशवावस्था में शिशुओं की यौन निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए, क्योंकि इस स्तर पर बालकों की प्रवृत्ति अत्यधिक जिज्ञासु होती है। अतः उनकी इन जिज्ञासाओं को सहज रूप से शान्त किया जाना चाहिए अन्यथा प्रारम्भ से ही वे भ्रामक विचारों के शिकार हो जाते हैं। इस अवस्था में परिवारी सदस्यों विशेषतया माता तथा पिता की भूमिका यौन निर्देशन हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है। शिक्षक इस स्तर पर यौन निर्देशन हेतु अपनी भूमिका का निर्वहन निम्न प्रकार कर सकता हैं-

  1. बच्चों को उनके शारीरिक अंगों से परिचित कराना ।
  2. बच्चों को शारीरिक अंगों की साफ-सफाई से परिचित कराना ।
  3. बालक तथा बालिकाओं के साथ समान व्यवहार करना और समानतापूर्ण व्यवहार की सीख देना ।
  4. परस्पर सहयोग की भावना विकसित करना ।
  5. लिंगीय हीनता बोधक व्यवहार तथा शब्दावली का प्रयोग न करना ।

2. प्राथमिक स्तर में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका — इस स्तर अर्थात् छः वर्ष के पश्चात् बच्चे लिंग के विषय में समझने लगते हैं। लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे में अन्तर समझने लगते हैं। इस स्तर पर माता-पिता तथा परिवारीजनों को चाहिए कि वे बालक-बालिकाओं की सह-शिक्षा, खेलकूद तथा स्वस्थ सम्बन्धों की नींव डालने का प्रयास करें विद्यालयी स्तर पर शिक्षक को इस स्तर पर यौन निर्देशन प्रदान करने हेतु अपनी भूमिका का निर्वहन निम्न प्रकार करना चाहिए-

  1. इस स्तर पर शिक्षक को शारीरिक विकास के विषय में जानकारी प्रदान करनी चाहिए ।
  2. बालकों तथा बालिकाओं को सहयोगात्मक व्यवहार बनाने पर बल देना चाहिए।
  3. इस स्तर पर बालकों तथा बालिकाओं को साथ-साथ कार्य करने तथा खेलने-कूदने के अवसर शिक्षक को प्रदान करने चाहिए जिससे आपसी समझ का विकास हो सके।
  4. शिक्षक को कक्षा वातावरण तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन करते समय बालक तथा बालिकाओं दोनों को ही प्रेरित करना चाहिए।
  5. परस्पर आदर की भावना का विकास करना चाहिए।
  6. लिंगीय आधार पर शिक्षक को टीका-टिप्पणी और भेदभाव नहीं करना चाहिए तथा यही सीख बालकों को भी देनी चाहिए।
  7. यौन जीवन की मूल प्रक्रियाओं विषयी जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
  8. पाठ्यक्रम में प्रजनन तथा शरीर विज्ञानादि के ज्ञान को सम्मिलित किया जाता है, अतः शिक्षक को प्रभावपूर्ण ज्ञान प्रदान करना चाहिए।

3. किशोरावस्था में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका- किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं में शारीरिक परिवर्तन अत्यधिक तीव्रता से होते हैं और मानसिक स्तर पर भी द्वन्द्व की स्थिति चलती रहती है। इस स्तर पर परिवार और विद्यालय द्वारा बालक-बालिकाओं को यदि यौन व्यवहारों को नियन्त्रित और मार्गान्तरीकृत करने की समुचित शिक्षा प्रदान नहीं की गयी तो समस्या खड़ी हो सकती है। बालक-बालिकाओं का इस आयु में व्यवहार असामान्य सा हो जाता है क्योंकि वे तमाम आन्तरिक और बाह्य परिवर्तनों से जूझ रहे होते हैं। ऐसे में यौन निर्देशन का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है । किशोरावस्था में शिक्षक की भूमिका का निरूपण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

  1. शारीरिक विकास की प्रक्रिया से अवगत कराना ।
  2. शारीरिक परिवर्तनों की स्वाभाविकता और महत्व से अवगत कराना ।
  3. यौन जनित अवधारणाओं में व्याप्त भ्रम और त्रुटिपूर्णता को दूर कर सही ज्ञान प्रदान करना ।
  4. खेदकूद की समुचित व्यवस्था
  5. स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोण का विकास ।
  6. बालक-बालिकाओं में अन्तःक्रिया तथा सहयोग को प्रोत्साहन ।
  7. शरीर विज्ञान की शिक्षा ।
  8. यौन विषयी प्रश्नों के उत्तर तथा समस्याओं के समाधानों का प्रस्तुतीकरण ।
  9. पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का समुचित निर्देशन ।
  10. कार्यशालाओं, प्रश्नोत्तर तथा अन्य मनोरंजनात्मक क्रियाओं द्वारा ज्ञान प्रदान करना ।

4. यौवनावस्था में यौन निर्देशन तथा शिक्षक की भूमिका- इस स्तर पर विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण तथा सजने-सँवरने की प्रवृत्ति चरम पर होती है और बालिकायें तथा बालक गर्भ धारण, प्रसव तथा शारीरिक सम्बन्धों के विषय में जान चुके होते हैं। पाठ्यक्रम प्रजनन के द्वारा तथा बालिकायें मासिक चक्र के द्वारा इस विषय में और भी परिचय प्राप्त कर चुके होते हैं। इस स्तर पर बालक-बालिकायें यौन सम्बन्धी प्रश्नों को अपने माता-पिता तथा घरवालों से तो पूछने में हिचकते हैं, परन्तु मित्रों, इण्टरनेट तथा टेलीविजन इत्यादि से इसके विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहते हैं। इस स्तर पर यौन व्यवहारों के सकारात्मक झुकाव और नियन्त्रण हेतु शिक्षक की भूमिका निम्न प्रकार हैं-

  1. यौन इच्छाओं को नियन्त्रित और मार्गान्तरीकरण करना सिखाना ।
  2. आत्म-संयम की प्रवृत्ति का विकास करना ।
  3. यौन सम्बन्धों में स्वेच्छा नहीं अपितु उत्तरदायित्व का बोध हो, यह सिखाना ।
  4. यौन सम्बन्ध, विचार और भारतीय समाज की मान्यताओं से अवगत कराना ।
  5. बालिकाओं के प्रति अभद्र आचरण, व्यवहार तथा भाषायी प्रयोग न करने की सीख ।
  6. विवाह तथा परिवार के महत्व से अवगत कराना ।
  7. यौन जनित रोगों तथा बचाव से अवगत कराना ।
  8. यौन इच्छा को जीवन की एक रचनात्मक शक्ति (Creative force) के रूप में बनाना ।

लिंग तथा यौन परामर्श में शिक्षक की भूमिका (Role of the Teacher in Gender and Sex Counselling)

लिंग तथा यौन परामर्श में शिक्षक की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। परामर्शदाता के स्थान पर उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे चौथे दशक से पूर्व ‘निर्देशन विशेषज्ञ’ (Guidance Specialist) शब्द प्रयुक्त किया गया था। लीफिवर इत्यादि विद्वानों ने निर्देशन विशेषज्ञों हेतु ‘उपबोधक’ शब्द प्रयुक्त किया है। परामर्शदाता तथा शिक्षक उपबोधक के अन्तर के सम्बन्ध में इन्होंने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये हैं- “विशेषज्ञों हेतु आदान-प्रदान के आधार पर उपबोधक और शिक्षक-उपबोधक शब्द को प्रयुक्त किया जायेगा, लेकिन कुछ अन्तर के साथ एक उपबोधक वह व्यक्ति है जो अपने आधे या उससे अधिक समय का उपयोग निर्देशन कार्य हेतु करता है। एक शिक्षक परामर्शदाता वह है जिसे ‘ निर्देशन कार्य के लिए कम-से-कम एक कक्षा में कार्य से मुक्त किया जाये, लेकिन जो अपने पूरे समय के आधे समय का उपयोग सेवार्थी के लिए न करे।”

“The term counsellor or teacher counsellor will be used interchangeably with specialists, but with this distinction a counsellor will be who devotes half or more of his time to guidance a teacher counsellor, one who had been relieved a atleast one class for guidance work, but who will not denote as much as half time to counsellee.”

जोन्स महोदय ने अपनी सुविख्यात पुस्तक ‘निर्देशन के नियम’ (Principles of Guidance) में उपबोधक के कार्यों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार परामर्श में निरन्तर उपबोधक निम्नलिखित आवश्यकताओं की पूर्ति करता है-

  1. निश्चित गहन असमंजनों में सहायता की आवश्यकता ।
  2. एक व्यक्ति की समस्या से सम्बन्धित सूचना कर उद्देश्ययुक्त अर्थापन करने की आवश्यकता ।
  3. ध्यानपूर्ण श्रवण करने, जाँच करने तथा सलाह प्रक्रिया की आवश्यकता ।
  4. स्वीकार की गयी लेकिन समझी न जा सकने वाली समस्याओं की परिमापन की आवश्यकता ।
  5. उन समस्याओं की जानकारी उत्पन्न करने की आवश्यकता जो वर्तमान में तो हैं, लेकिन जिन्हें अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है ।
  6. जिन समस्याओं के निराकरण तक विद्यार्थी अथवा व्यक्ति सहजता से न पहुँच सकें, उसमें सहायक उपकरणों को गतिशील बनाना है ।

“उपबोधक की प्रकृति पर विचार करते हुए जे. केलर ने उसे शिक्षक के समान माना है। वे लिखते हैं कि “शिक्षक वह सिखाता है जो वह (अध्यापक) स्वयं है। शिक्षक को कार्य के महत्व में विश्वास करना चाहिए। ऐसा विश्वास उसके व्यक्तित्व का अंग बन जाता है, वह स्वयं के विश्वास के अनुरूप ढल जाता है तथा दूसरों को वैसा ही बनाने में सक्षम हो सकता है जैसा वह स्वयं ।”

“The teacher teachers what he is the teacher must himself believe in the importance of work. Such belif, becomes part of his personality, he becomes what the believes and he can get other to be only what he is.”

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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