कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

अर्थशास्त्र का स्वभाव | Nature of Economics in Hindi

अर्थशास्त्र का स्वभाव (Nature of Economics)
अर्थशास्त्र का स्वभाव (Nature of Economics)

अर्थशास्त्र का स्वभाव (Nature of Economics)

अर्थशास्त्र के स्वभाव के अन्तर्गत हमें इस बात का अध्ययन करना है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला या दोनों यह जानने से पूर्व कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला या दोनों ‘विज्ञान’ तथा ‘कला’ शब्दों का अर्थ समझ लिया जाए ।

विज्ञान का अर्थ (Meaning of Science) – Science’ (विज्ञान) शब्द लैटिन भाषा के ‘Scire’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जानना’ (to know) किसी विषय को जानने से हमारा अभिप्राय उसे समझना तथा उससे सम्बन्धित कारणों और उसके प्रभावों का वर्णन करने के योग्य होना है। ‘विज्ञान’ किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को कहते हैं जिसमें तथ्यों
(Facts) के कारण तथा परिणामों के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जे० एम० केन्ज के मतानुसार, “विज्ञान ज्ञान की यह क्रमबद्ध शाखा है जो वर्तमान दशाओं का अध्ययन करते हुए कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करती है। तथा आदर्श प्रस्तुत करती है।

विज्ञान की विशेषताएँ-किसी विज्ञान मुख्यतः पाँच विशेषताएँ पाई जाती हैं-(1) तथ्यों का अध्ययन क्रमबद्ध होना चाहिए। (2) इसके अपने नियम तथा सिद्धान्त होने चाहिए (3) इसके सिद्धान्त, कारण तथा परिणाम (cause and effect) के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाले होने चाहिए (4) इन नियमों व सिद्धान्तों द्वारा सार्वभौमिक सत्य (universal (truth) का प्रतिपादन होना चाहिए। (5) तथ्यों को सरलता से मापना सम्भव होना चाहिए।

विज्ञान के प्रकार- विज्ञान को दो भागों में विभक्त किया जाता है- (1) वास्तविक विज्ञान तथा (2) आदर्शात्मक विज्ञान।

(1) वास्तविक विज्ञान (Positive Science) यह विज्ञान वास्तविक स्थिति का अध्ययन करता है तथा तथ्यों के कारण व परिणाम के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। वह केवल ‘क्या है (What is) का अध्ययन करता है। यह केवल वास्तविक स्थिति, अर्थात् क्या, कैसे और क्यों (What, How and Why) का अध्ययन है। यह उचित-अनुचित पर विचार नहीं करता।

(2) आदर्शात्मक विज्ञान (Normative Science) -यह विज्ञान नीति अथवा आदर्श (Ideal) निर्धारित करता है। दूसरे शब्दों में, यह उचित-अनुचित पर विचार करके लक्ष्य निर्धारित करता है। इसका सम्बन्ध ‘क्या होना चाहिए’ (What ought to be) से है। यह वस्तुओं, क्रियाओं, घटनाओं की वांछनीयता तथा अवांछनीयता पर विचार करके लक्ष्यों एवं आदर्शों का निर्धारण करता है।

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Anjali Yadav

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