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Shant Ras in Hindi: शांत रस
जो भाव ‘शम’ नामक स्थायी भाव को उद्बुद्ध करते हैं, उसे ‘शांत रस’ कहा जाता है। ‘आम’ भाव में निवेद जन्य आनंद की अनुभूति होती है। इसमें सांसारिक विषयों के प्रति उदासीनता या विरक्ति का भाव उत्पन्न होता है और परम सत्ता के साथ जुड़ने पर शांति रस की निष्पत्ति होती है।
शांत रस के अवयव (उपकरण )
- स्थाई भाव : निर्वेद।
- आलंबन (विभाव) : परमात्मा चिंतन एवं संसार की क्षणभंगुरता।
- उद्दीपन (विभाव) : सत्संग, तीर्थस्थलों की यात्रा, शास्त्रों का अनुशीलन आदि।
- अनुभाव : पूरे शरीर मे रोमांच, पुलक, अश्रु आदि।
- संचारी भाव : धृति, हर्ष, स्मृति, मति, विबोध, निर्वेद आदि।
शान्त रस (Shant ras) को हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है।
“शान्तोऽपि नवमो रस:।”
इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि भरतमुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में, जो रस विवेचन का आदि स्रोत माना जाता है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन किया है। शान्त रस के उस रूप में भरतमुनि ने मान्यता प्रदान नहीं की, जिस रूप में श्रृंगार, वीर आदि रसों की, और न उसके विभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही वैसा स्पष्ट निरूपण किया है लेकिन आधुनिक हिंदी में इसे एक सम्पूर्ण रस माना जाता है
शांत रस के उदाहरण
1. दुर्लभ देह पाइ हरि-पद भजु, करम वचन अरु ही ते।
सहसबाहु दस बदन आदि नृप बचे न काल बली ते।
हम-हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते।
सुत-बनतादि जान स्वार्थ रत न करु नेह सबही ते। – तुलसीदास
स्थायी भाव – शम
विभाव- आश्रय कवि, आलंबन सहस्तार्जुन, रावण, स्त्री-पुत्र का स्वार्थ आदि, उद्दीपन- मनुष्य होकर भगवान की भक्ति न करना उद्दीपन है।
अनुभाव- स्वयं मन को समझाना।
संचारी भाव – मति, बिबोध आदि।
रस – शांत रस
2. मन फूला फूला फिरै जगत में कैसा नाता रे।
चार बाँस चरगजी मँगाया चढ़े काठ की घोरी।
चारों कोने आग लगाया फूँकि दिया जस होरी।
हाड़ जरै जस लाकड़ी केस जरै जस घास।
सोना जैसी काया जरि गई, कोई न आए पास।। – कबीर
स्थायी भाव- शम (निवेद)
विभाव- आश्रय कवि, आलंबन नश्वर शरीर उद्दीपन- संसार के प्रति उदासीनता
अनुभाव – मन का फूलना, काठ की घोड़ी चढ़ना, आग लगाना।
संचारी भाव- निर्वेद, चिंता, धृति, मति आदि।
रस- शांत रस
3. ओ क्षणभंगुर भव राम राम!
भाग रहा हूँ भार देखा, तू मेरी ओर निहार देख
मैं त्याग चला निस्सार देख अटकेगा मेरा कौन काम।
ओ क्षणभंगुर भव राम राम! – मैथिलीशरण गुप्त
स्थायी भाव – शम
विभाव आश्रय- सिद्धार्थ, आलंबन नश्वर संसार, उद्दीपन- संसार की नश्वरता, क्षणभंगुरता, रोग-बुढ़ापा
अनुभाव- सिद्धार्थ का विरक्त होना ।
संचारी भाव – निर्वेद, ग्लानि, चिंता, घृति, मति आदि।
रस- शांत रस
4. ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है,
इच्छा क्यों पूरी हो मन की।
एक-दूसरे से न मिल सकें,
यह विडंबना है जीवन की। – प्रसाद
स्थायी भाव – शम
विभाव – आश्रय – कवि, आलंबन- आधुनिक मानव, उद्दीपन- आधुनिक मानव के दुख का कारणा
अनुभाव- मन में दुख उत्पन्न होना।
संचारी भाव – निर्वेद, मति आदि।
रस- शांत रस
5. समरस थे जड़ या चेतन सुंदर साकार बना था।
चेतनता एक विलसती आनंद अखंड घना था। – प्रसाद
स्थायी भाव- शम
विभाव- आश्रय- मानव, आलंबन- विश्व, उद्दीपन- विश्व में व्याप्त विषमताएँ
अनुभाव- जड़-चेतन में सर्वत्र चेतना को देखना, अखंड आनंद में लीन होना।
संचारी भाव- निर्वेद, मति आदि।
रस- शांत रस
6. बैठे मारुति देखते राम चरणाबिंद।
युग अस्ति-नास्ति के एक रूप गुण गुण अनिंद्य ।। – निराला
स्थायी भाव- शम
विभाव- आश्रय – हनुमान, आलंबन – श्री राम, उद्दीपन- श्री राम के चरण, जो अनेक गुणों से विभूषित थे।
अनुभाव- हनुमान का श्री राम के चरणों को देखना, मन-ही-मन सगुण एवं निर्गुण ब्रह्म की प्रतीति होना।
संचारी भाव- निर्वेद, मति, धृति आदि।
रस- शांत रस
7. मोरी चुनरी में परि गयो दाग पिया।
पाँच तत्त की बनी चुनरिया सोरहसै बंद लागे जिया।
यह चुनरी मोरे मैके ते आई ससुरे में मनुवाँ खोय दिया।
मलि मलि धोई दाग न छूटै ज्ञान को साबुन लाय पिया।
कहें कबीर दाग तब छुटि हैं जब साहब अपनाय लिया। – कबीर
स्थायी भाव- शम
विभाव- आश्रय- कबीर, आलंबन परमात्मा, उद्दीपन- सांसारिक मलिनता
अनुभाव- जीवात्मा का कहना, परमात्मा के अस्तित्व को महसूस करना।
संचारी भाव- निर्वेद, मति आदि।
रस- शांत रस
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