B.Ed Notes

स्वतंत्रता के बाद भारत में जेंडर शिक्षा की स्थिति | status of Gender Education in India after Independence in Hindi

स्वतंत्रता के बाद भारत में जेंडर शिक्षा की स्थिति | status of Gender Education in India after Independence in Hindi
स्वतंत्रता के बाद भारत में जेंडर शिक्षा की स्थिति | status of Gender Education in India after Independence in Hindi

स्वतंत्रता के बाद भारत में जेंडर शिक्षा की स्थिति पर प्रकाश डालें । (Throw light on the status of Gender Education in India after Independence.)

स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं की स्थिति

15 अगस्त, 1947 को भारत ने लम्बे संघर्ष के पश्चात् स्वतंत्रता प्राप्त की तथा लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली को अंगीकृत किया जो स्वतंत्रता, समता के आधार स्तम्भों पर खड़ा था। स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय लोकतंत्र के समक्ष अन्य चुनौतियों, जैस— गरीबी, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि, साम्प्रदायिकता, सामाजिक कुरीतियाँ एवं भेदभाव, खाद्यान्न समस्या, निरऔद्योगीकरण आदि थीं, जिनमें सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक भेदभाव के अन्तर्गत स्त्री तथा पुरुष के मध्य व्याप्त असमानता और विभेद भी था ।

भारतीय शिक्षा में सुधार हेतु सर्वप्रथम स्वतंत्र भारत में 1948-49 में राधाकृष्णन् आयोग, जो उच्च शिक्षा पर सुझावों के लिए केन्द्रित था, इसलिए इसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के नाम से भी जाना जाता है, का गठन किया गया। आयोग ने स्त्री शिक्षा को गम्भीरता से लेते हुए इस विषय में सुझाव निम्न प्रकार दिये-

  1. स्त्रियों की शिक्षा में वृद्धि करने हेतु उनको शिक्षा के अधिक-से-अधिक अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।
  2. स्त्रियों और पुरुषों की शिक्षा एक समान न हो, अपितु स्त्रियों की अभिरुचि के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए।
  3. बालिकाओं हेतु शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. महिला तथा पुरुष अध्यापकों को समान वेतन ।
  5. कॉलेज स्तर पर सह-शिक्षा को प्रोत्साहन ।

इस समय तक देश में 100 से अधिक महिला महाविद्यालय थे। पंचवर्षीय योजनाओं के संचालन द्वारा स्त्री शिक्षा में प्रगति तथा उनकी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक इत्यादि उन्नति का कार्य योजनाबद्ध रूप से सम्पन्न किया जाने लगा। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में स्त्री शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान किये गये तथा इसी समय 1952 में माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन के लिए ए. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में मुदालियर आयोग का गठन किया गया। आयोग का मानना था कि माध्यमिक स्तर पर स्त्रियों तथा पुरुष दोनों की शिक्षा समान होनी चाहिए। स्त्री शिक्षा विषयी आयोग के मुख्य सुझाव निम्न प्रकार थे-

1. स्त्री तथा पुरुषों की समान शिक्षा की व्यवस्था ।

2. बालिकाओं के पाठ्यक्रम में गृहविज्ञान, शिल्प, गृहउद्योगों, संगीत एवं चित्रकारी को स्थान ।

3. सह शिक्षण संस्थाओं में महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति का सुझाव ।

4. बालिकाओं को विद्यालयों में पर्याप्त सुविधायें प्रदान की जायें।

इस प्रकार आयोग ने शिक्षा के द्वारा महिलाओं के सामाजिक तथा आर्थिक स्वावलम्बन में भूमिका निभायी ।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में स्त्री शिक्षा के प्रसार के साथ शिक्षिकाओं के प्रशिक्षण का प्रावधान किया गया, जिससे महिलाओं की आर्थिक सुदृढ़ता में वृद्धि हो सके । इस योजना के ही समय सन् 1958 में श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति’ (National Women Education Committee) का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट सन् 1959 में प्रस्तुत की जिसमें स्त्री शिक्षा के विषय में सुझाव ‘निम्न प्रकार दिये गये-

1. स्त्री तथा पुरुषों की शिक्षा में वर्तमान विषमताओं को दूर कर दोनों के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था करना ।

2. स्त्री शिक्षा को राष्ट्र की प्रमुख समस्या माना जाये तथा कुछ समय के लिए इसके प्रचार एवं प्रसार का उत्तरदायित्व केन्द्र सरकार स्वयं ले ।

3. केन्द्रीय सरकार स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में एक निश्चित नीति बनाये तथा इसके प्रसार के लिए एक निश्चित योजना बनाये तथा इस नीति एवं योजनानुसार स्त्री शिक्षा के प्रसार का कार्य प्रान्तीय सरकारों को सौंपे।

4. प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को अधिक सुविधायें प्रदान की जायें ।

5. ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु विशेष कार्य किये जायें।

6. केन्द्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्’ (National Council for Women Education) तथा प्रान्तीय स्तर पर ‘राज्य महिला शिक्षा परिषद्’ (State Council for Women Education) का गठन किया जाये और ये परिषदें स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु उत्तरदायी हों।

7. स्त्री शिक्षा सम्बन्धी योजनाओं के लिए केन्द्रीय सरकार अतिरिक्त धनराशि की व्यवस्था करे तथा द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में इस हेतु 10 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि का आबंटन करे ।

दुर्गाबाई देशमुख समिति के सुझाव पर 1959 में केन्द्र में ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्’ (National Council for Women Education) का गठन किया गया तथा इसे देश में स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में नीति एवं योजना बनाने का कार्य सौंपा गया। इसके निर्देशन में स्त्री शिक्षा के विकास को गति प्राप्त हुई। प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान छात्राओं की संख्या में जो 60 लाख थी, बढ़कर 1961 में लगभग 140 लाख हो गयी 1961 में तृतीय पंचवर्षीय योजना प्रारम्भ हुई और इसके दौरान 1962 में ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्’ (NCWE) ने श्रीमती हंसा मेहता की अध्यक्षता में स्त्री शिक्षा के पुनर्गठन हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया । इसे ‘हंसा मेहता समिति’ के नाम से भी जाना जाता है । इस समिति ने महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु उनकी शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव निम्न शब्दों में दिये-

  1. प्राथमिक स्तर पर बालकों और बालिकाओं हेतु समान पाठ्यक्रम की व्यवस्था ।
  2. माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं हेतु गृहविज्ञान के अध्ययन की सुविधा ।
  3. बालिकाओं हेतु पृथक् व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था ।
  4. किसी भी स्थिति में बालकों और बालिकाओं की शिक्षा में बहुत अंतर नहीं होना चाहिए ।

1963 में ‘राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्’ ने श्री भक्तवत्सलम् की अध्यक्षता में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा के पुनर्गठन हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया और इस समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा के प्रसार हेतु जनसहयोग प्राप्त करने का सुझाव दिया उसी समय 1964 में भारतीय शिक्षा पर समग्र रूप से सुझाव देने हेतु ‘कोठारी आयोग’ की नियुक्ति की गयी तथा इस आयोग ने स्त्रियों की स्थिति में सुधार हेतु शैक्षिक सुझाव इन शब्दों में दिये-

  1. 6 से 14 आयु वर्ग के सही लड़के-लड़कियों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
  2. 11 से 14 आयु वर्ग की लड़कियों के लिए अल्पकालीन शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
  3. बालिकाओं हेतु अलग से माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की जाये ।
  4. माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाये।
  5. बालिकाओं हेतु अलग से व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये ।
  6. बालिकाओं के लिए अलग से महिला महाविद्यालयों की स्थापना की जाये ।
  7. बालिकाओं हेतु विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाये।
  8. लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय भेजने के लिए जनमानस को तैयार करना ।
  9. अशिक्षित प्रौढ़ महिलाओं की शिक्षा की व्यवस्था की जाये तथा उनके लिए अलग से प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की जाये।

आयोग के इन सुझावों के पश्चात् राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 की घोषणा की गयी जिसमें • स्त्री शिक्षा पर विशेष रूप से बल दिया गया । चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74) के अन्तर्गत 1970 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् (NCWE) द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट में स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए निम्न बिन्दुओं पर बल दिया गया—

  1. केन्द्रीय सरकार स्त्री शिक्षा हेतु अलग से पर्याप्त धनराशि सुनिश्चित करे ।
  2. स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु योजनाबद्ध कार्यक्रम बनाया जाये ।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाली शिक्षिकाओं को प्रोत्साहित किया जाये और उन्हें अतिरिक्त भत्ता तथा सुविधायें प्रदान की जायें ।

1971 में छात्राओं की संख्या 1961 की लगभग 140 लाख से बढ़कर लगभग दो गुनी अर्थात् 280 लाख हो गयी। 1974 में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) का शुभारम्भ किया गया। 1975 के वर्ष को यूनेस्को (UNESCO) में ‘महिला वर्ष’ के रूप में मनाया गया तथा भारत में भी महिला कल्याण की योजनाओं का शुभारम्भ किया गया । इनमें सबसे महत्वपूर्ण योजना उनके लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था करने की थी। इस योजना के दौरान स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु विशेष प्रयास तथा महिला शिक्षिकाओं की पूर्ति हेतु प्रयास किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979 में प्राथमिक शिक्षा को प्रथम वरीयता दी गयी तथा प्रौढ़ शिक्षा को द्वितीय। इसमें लड़के-लड़कियों और प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों सबको साक्षर बनाने और उन्हें सामान्य शिक्षा देने पर बल दिया गया। अभी इस शिक्षा नीति के अनुसार कार्य शुरू ही हुआ था कि केन्द्र में जनता दल के स्थान पर पुनः कांग्रेस की सरकार सत्तारूढ़ हो गयी । उसने पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 के अनुपालन पर बल दिया और परिणामस्वरूप छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) में स्त्री शिक्षा का प्रसार कार्य जारी रखा। आँकड़े बताते हैं कि 1971 में जहाँ हमारे देश में लगभग 280 लाख छात्रायें अध्ययनरत थीं वहीं 1981 में इनकी संख्या बढ़कर लगभग 400 लाख हो गयी। इसके बाद श्री राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने उन्होंने 1984 में शिक्षा पर राष्ट्रव्यापी बहस शुरू की, तभी 1985 में सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) प्रारम्भ की गयी। 1986 में सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की घोषणा की। इस नीति में स्पष्ट शब्दों में घोषणा की गयी कि अब स्त्री-पुरुषों की शिक्षा में कोई अंतर नहीं होगा और दोनों को ही समान सुविधायें प्रदान करनी चाहिए । इस शिक्षा नीति के साथ इसकी एक कार्य योजना (POA) तैयार की गयी, जिसके अनुसार प्रत्येक क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किये गये, स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी। स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु जो कदम उठाये गये उनमें उल्लेखनीय कदम हैं- जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (District Primary Education Programme : DEEP) । यह कार्यक्रम मुख्य रूप से उन जिलों में प्रारम्भ किया गया जिनमें स्त्री साक्षरता प्रतिशत न्यूनतम था । बालिका निरौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को 90% अनुदान देना शुरू किया गया। बालिका माध्यमिक विद्यालय वहाँ खोले गये जहाँ इनका एकदम अभाव था। केन्द्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों में बालिकाओं के लिए 30% आरक्षण प्रदान किया गया और उनकी शिक्षा निःशुल्क की गयी। महिलाओं के लिए +2 स्तर पर नये-नये व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये गये, अलग से पॉलिटेक्निक कॉलेज खोले गये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में महिला अध्ययन केन्द्र खोलने हेतु सहायता देना प्रारम्भ कर दिया। 1989 में ‘महिला समाख्या कार्यक्रम’ प्रारम्भ किया गया जिसके अन्तर्गत ग्रामीण एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं की शिक्षा तथा उनको अधिकार-सम्पन्न बनाने हेतु कार्यक्रम तैयार किया गया। 1991 में लगभग 6.2 करोड़ बालिकायें अध्ययनरत थीं ।

1992 में आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) प्रारम्भ की गयी, जिसमें माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर छात्राओं के लिए छात्रावास सुविधायें तथा इन छात्रावासों को 1,500 रुपये प्रति छात्रा के हिसाब से फर्नीचर, बर्तन, मनोरंजन, खेलकूद सामग्री तथा वाचनालय व्यवस्था हेतु अनुदान दिया गया और 5,000 रुपये प्रति छात्रा भोजन सामग्री एवं भोजन व्यवस्था करने वाले कुक एवं कर्मचारियों के वेतन हेतु अनुदान दिया गया।

नवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के अन्तर्गत मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में राज्यों के शिक्षा मंत्रियों और शिक्षा सचिवों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें महिलाओं हेतु स्नातक स्तर की निःशुल्क शिक्षा, बालिकाओं की शिक्षा की प्रतिबद्धता को दोहराया गया।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) के अन्तर्गत प्राथमिक स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान (SSA), कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना (KGB VP) का संचालन किया गया, जिससे स्त्री शिक्षा में तीव्रता से विस्तार हुआ तथा आँकड़ों के अनुसार 2005-06 में देश में अध्ययनरत छात्राओं की कुल संख्या 10.9 करोड़ हो गयी ।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 2007-12 में वंचित वर्गों की बालिकाओं की सभी स्तर पर शिक्षा के लिए प्रयास किये गये।

इस प्रकार स्वतंत्र भारत में अर्थात् 20वीं और 21 वीं सदी में स्त्री शिक्षा की प्रगति के क्रमिक विकास को निम्न प्रकार देखा जा सकता है—

स्त्री शिक्षा का क्रमिक विकास-विविध स्तरों पर

वर्ष पूर्व प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा (1 से VIII तक) माध्यमिक शिक्षा (IX से XII तक) उच्च स्नातक एवं परास्नातक कुल संख्या
1946-47 37,96,673 3,36,862 23,207 41,56,732
1950-51 0,59,00,000 0,02,00,000 62,00,000
1960-61 1,30,00,000 0,07,00,000 1,30,34,000
1970-71 0,01,90,000 2,52,00,000 0,19,00,000 0,04,56,000 2,77,46,000
1980-81  0,05,23.000 3,53,00,000 0,34,00,000 0,09,00,000 4,01,23,000
1990-91 0,07,45,000 5,29,00,000 0,63,00,000 0,14,37,000 6,13,82,000
2000-01 0,21,43,000 6,73,00,000 1,07,00,000 0,33,78,000 8,35,21,000
2004-05 0,22,67.000 8,38,00,000 1,54,00,000 0,49,66,000 10,64,33,000
2005-06 0,25,00,000 8,42,00,000 1,61,00,000 0,54,92,000 10,89,78,000

महिलाओं की स्थिति में उन्नयन के लाभ (Advantages of Women Status In Progress)

21वीं सदी में महिलायें प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का कर रही हैं, क्योंकि 19वीं और 20वीं शताब्दी में महिलाओं को नरकीय स्थिति से निकालने के लिए अंग्रेजी, मिशनरियों, भारतीय समाज-सुधारकों तथा राजनेताओं द्वारा अथक प्रयास किये गये, जिनमें मिस कूक, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, राजा राममोहन राय, श्रीमती एनी बेसेण्ट, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी, लार्ड रिपन, विलियम बैंटिक, गोपालकृष्ण गोखले, बड़ोदरा नरेश इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं, जिनके प्रयासों के द्वारा ही बालिकाओं की विवाह की उम्र निर्धारित की गयी, दहेज को अपराध घोषित किया गया, सती प्रथा का निर्मूलन किया गया, विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया गया और स्त्रियों की शिक्षा को भी प्रोत्साहन प्रदान किया गया। अंग्रेजी मेमों और पढ़ी-लिखी स्त्रियों को देखकर भारतीय जनमानस में परिवर्तन आया और आजादी की लड़ाई में लक्ष्मी सहगल, श्रीमती इंदिरा गाँधी, कस्तूरबा गाँधी इत्यादि महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निर्वहन कर महिलाओं की सामाजिक, राजनैतिक इत्यादि स्थिति को सुदृढ़ किया जिसके दूरगामी परिणाम हम 21वीं सदी में भी उठा रहे हैं। महिलाओं की सामाजिक आदि स्थिति में उन्नयन के लाभ निम्न प्रकार हैं-

  1. समतामूलक समाज की स्थापना ।
  2. लैंगिक भेदभावों की समाप्ति ।
  3. लोकतंत्र की स्थापना हेतु आवश्यक ।
  4. स्त्रियों के ज्ञान तथा क्षमताओं का सदुपयोग ।
  5. सभ्य राष्ट्रों की स्थापना ।
  6. योग्य संततियों का जन्म एवं विकास ।
  7. आर्थिक स्वावलम्बन हेतु ।
  8. औद्योगीकरण में सहायता हेतु ।
  9. पारिवारिक शान्ति तथा समझ का विकास ।
  10. सांस्कृतिक संरक्षण हेतु ।
  11. राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक इत्यादि क्षेत्रों में सक्रियता हेतु।
  12. सामाजिक कुरीतियों, जैसे- दहेज, बाल-विवाह, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि की समाप्ति ।
  13. अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय शान्ति तथा सहयोग की स्थापना में सहायक ।

निष्कर्ष (Conclusion ) — इस प्रकार महिलाओं की सामाजिक स्थिति पहले से अब बेहतर हुई है, फिर भी इस दिशा में अभी भी सुधार किये जाने अपेक्षित हैं। स्वतंत्रता के 68 वर्षों के पश्चात् भी महिलायें कई क्षेत्रों और उपेक्षा के मनोविज्ञान का शिकार हैं। आज भी उन्हें पुरुषों से हेय समझा जाता है वहीं तस्वीर के दूसरे पहलू में वे देश की सुरक्षा, विज्ञान, खेल इत्यादि सभी क्षेत्रों तक अपनी पहुँच दर्ज करा रही हैं, फिर भी महिलाओं को महिला होने के कारण उपेक्षा, शाब्दिक, हिंसा, दुर्व्यवहार और सामाजिक अवमानना का शिकार होना पड़ता है । अतः आवश्यकता है कि जैसे सती प्रथा जैसे दानव को संघर्ष करके समाप्त कर दिया गया और सती न होने वाली स्त्री को जो समाज हेय दृष्टि से देखता था आज वही समाज इस प्रथा को हेय मानता है, अतः पुनः शिक्षा के द्वारा और समाज-सुधार आंदोलनों के द्वारा स्त्रियों को उनका अधिकार तथा समाज में आदर और सम्मान का स्थान दिलाने का प्रयास करना चाहिए तभी उनकी सुदृढ़ता, शिक्षा और स्थिति में उन्नयन के प्रयास फलीभूत होंगे।

IMPORTANT LINK…

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment