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Top 10 Story For Moral In Hindi [ 2023] | बच्चों की नई कहानियाँ
1. मित्रद्रोह
एक शहर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र थे। वे धन कमाने के लिए दूर देश चले गए। पांच वर्षों में खूब धन कमाकर उन्होंने वापस आने का मन बनाया। वापस आते समय अपने शहर के बाहर पहुँचकर पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र, हम लोगों को थोड़ा धन निकालकर शेष पेड़ के नीचे गाड़ देना चाहिए। जब आवश्यकता होगी यहां आकर ले लेंगे। अधिक धन देखकर बन्धुओं को ईर्ष्या होगी।” धर्मबुद्धि ने उसकी बात मान ली। कुछ दिनों बाद पापबुद्धि आधी रात को वहाँ जाकर सारा धन चुपचाप ले आया।
अगले दिन उसने धर्मबुद्धि से जाकर कहा, “मुझे कुछ पैसे चाहिए, चलो चलकर ले आते हैं।” वे गए, गड्ढा खोदा पर वहाँ कुछ न मिला। पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि पर आरोप लगाया कि उसी ने सारा धन ले लिया है। वह उसका धन दे दे अन्यथा न्यायाधीश के पास जाने को तैयार हो जाए।
धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि को समझाने की बहुत चेष्टा की पर वह कुछ सुनना नहीं चाहता था। दोनों ने धर्माधिकारी के पास पहुँचकर आत्मकथा सुनाई।
धर्माधिकारी ने पूछा, “कोई गवाह है?”
पापबुद्धि ने उत्तर दिया, “वनदेव गवाह हैं। “
धर्माधिकारी ने कहा, “ठीक है, कल वन में वनदेव के सामने ही निर्णय होगा । “
पापबुद्धि ने घर जाकर पिताजी से कहा, “पिता जी, कल प्रातः ही आप पेड़ के कोटर में जाकर छिप जाइएगा। मैं धर्माधिकारी के साथ आऊंगा। जब वे वनदेव से गवाही मांगेंगे तब आप कहिएगा कि धर्मबुद्धि ने धन चुराया है।” पिताजी ऐसा करने के लिए राजी हो गए।
अगली दिन पापबुद्धि ने वृक्ष के पास जाकर जोर से पूछा, “वनदेव! किसने धन चुराया है?”
पिताजी ने कोटर के भीतर से कहा कि धर्मबुद्धि ने धन चुराया है। धर्मबुद्धि पापबुद्धि की चाल समझ गया। उसने पेड़ की जड़ में आग लगा दी। धुएं से पिताजी खांसने लगे, कपड़े ने आग पकड़ी और वे बाहर भागे। शर्मसार पिताजी ने पापबुद्धि की चाल का चिट्ठा खोल दिया। सारी बातें सुनकर धर्माधिकारी ने धर्मबुद्धि को निर्दोष और पापबुद्धि को सजा सुनाई।
शिक्षा
धूर्तों का साथ सदा दुःखदायी होता है।
2. चार मूर्ख पंडित
चार ब्राह्मण मित्र थे। वे शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर वापस घर लौट रहे थे। चलते-चलते वे दोराहे पर पहुँचे। वे निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किस रास्ते जाएँ। एक मार्ग पर उन्होंने अर्थी जाते देखी। उन्हें कुछ याद आया । पुस्तक खोलकर देखा तो लिखा पाया कि जिस मार्ग से महान जन जाएँ वही मार्ग है। वे सब अर्थी के साथ हो लिए। श्मशान में उन्हें एक गधा मिला।
दूसरे ने शास्त्र में लिखा देखा, “राजद्वार और श्मशान में जो खड़ा हो, वह भाई होता है।” चारों ने गधे को भाई बना लिया। कोई गले लगाता तो किसी ने पैर धोया।
तभी उधर से एक ऊँट गुजरा। उसे भागते देखकर तीसरे ने शास्त्र में पढ़ा, “धर्म की गति में बड़ा वेग होता है।”
चौथे ने शास्त्र में पढ़ा कि धर्म और मित्र सदा साथ होते हैं। बस उन्होंने ऊँट और गधे को एक साथ बाँध दिया। यह देख गधे के मालिक ने उनकी खूब धुनाई की पर वे भाग गये।
रास्ते में नदी में एक पत्ता तैरता देखा। एक को एक पद्य याद आया जिसमें एक पत्ते ने एक व्यक्ति को नदी पार करने में सहायता करी थी। वह पत्ते पर लेट गया पर उसके साथ ही डूबने लगा।
डूबते मित्र को देखकर दूसरे को पद्य याद आया, संपूर्ण नाश होते देखकर आधे को ही बचा लें और उसने डूबते मित्र का सिर काटकर बचा लिया, धड़ बह गया।
अब तीन मित्र आगे चले। मार्ग में गाँव वालों ने अपने घर पर ठहराया।
भोजन में सेवैयाँ देखकर एक को याद आया, “दीर्घ तन्तु वाली वस्तु नष्ट हो जाती है”… अतः वह बिना खाए उठ गया।
दूसरे को मीठी-रोटी देखकर पद्य याद आया, बहुत फैली वस्तु आयु घटाती है” अतः उसने खाने से मना कर दिया। तीसरे को बड़ा देखकर याद आया।
“छिद्रवाली वस्तु में अनर्थ होते हैं” परिणामस्वरूप वे भूखे ही घर गए।
शिक्षा
शास्त्रज्ञान के साथ बुद्धिमान होना आवश्यक है।
3. कपटी सन्यासी
एक समय सुरथ नाम का राजा अयोध्या पर राज्य करता था। उसका धीरबल नाम का मंत्री बहुत ही चतुर था। एक बार वह राज्य में छिड़े विद्रोह को दबाने गया हुआ था तभी एक कपटी सन्यासी वहाँ आया और अपनी भविष्यवाणियों के द्वारा बहुत प्रसिद्ध हो गया। राजा ने उसकी ख्याति सुनी और उसे बुला भेजा।
सन्यासी के आने पर राजा ने उसका अभिवादन करके कहा, “कुछ दिन आप हमारे अतिथि बनकर रहें और मेरा मार्गदर्शन करें। “
सन्यासी प्रसन्नतापूर्वक वहीं रहने लगा। एक दिन उसने राजा से कहा, “राजन्! मैं इन्द्र देव से मिला था वे आपका शुभ समाचार पूछ रहे थे। ” आश्चर्यपूर्वक राजा ने पूछा, “आप इन्द्रदेव से कैसे मिले?” सन्यासी ने उत्तर दिया, “मैं जब चाहूँ इंद्रदेव से मिल सकता हूँ।”
राजा ने सन्यासी पर विश्वास कर लिया और वह सन्यासी के कहे अनुसार सारे काम करने लगा।
थोड़े दिनों बाद धीरबल वापस आया। उसने राजा को सन्यासी के चंगुल से छुड़ाने की उसने एक युक्ति सोची। उसने सन्यासी से कहा, “हमें भी अपनी दैवी शक्तियाँ दिखाओ।”
सन्यासी ने कहा, “यदि आप चमत्कार देखना चाहते हैं तो एक ऊंचे चबूतरे पर में मुझे बैठा दें। मैं स्वर्ग जाऊंगा और सही सलामत वापस आऊंगा।” धीरबल ने वैसा ही किया। फिर उसने राजा से पूछा, “महाराज यह कैसे संभव है कि वह स्वर्ग जाकर वापस आएगा?”
राजा ने उत्तर दिया, “धीरबल, तुम्हें पता नहीं है, वह अपने शरीर का परित्याग कर आध्यात्मिक शरीर में प्रवेश कर स्वर्ग जाएगा। “
धीरबल ने कहा, “मेरे पास एक युक्ति है। उसकी इस देह को जला देते हैं। फिर हम लोग उसके आध्यात्मिक शरीर को देखेंगे।” राजा मान गया।
चबूतरे के चारों ओर आग जला दी गई। अचानक चारों ओर लगी आग से सन्यासी घबराकर उठा और महल छोड़कर सीधा भाग खड़ा हुआ। राजा समझ गया कि उसे सन्यासी ने मूर्ख बनाया था।
शिक्षा
कपटी लोगों की बातों में नहीं आना चाहिए।
4. वाचाल गधा
एक गाँव में शुद्धपट नाम का धोबी रहता था। उसके पास एक गधा था। पेट भर खाना न मिलने से वह बहुत दुबला हो गया था। कुछ दिन पहले जंगल में घूमते-घूमते शुद्धपट को एक मरा हुआ शेर मिला था जिसकी खाल वह घर ले आया था।
शुद्धपट ने सोचा कि गधे को खाल पहनाकर खेत में भेज दूँगा।
शेर समझकर कोई पास नहीं आएगा और यह भरपेट खाना खा लेगा।
उसने गधे को खाल पहनाई और कहा, “जाओ, जी भरकर चरो पर रेंकना मत।” अगर तुमने रेंका तो गाँव वाले जाग जाएंगे और तुम्हें पहचान लेंगें।
धोबी की चाल चल गई। धोबी उसे शेर की खाल पहनाता और गधा रात भर चरता, सुबह धोबी उसे घर ले आता।
धीरे-धीरे पेट भर खाना खाकर गधा खूब हट्टा कट्टा हो गया।
एक रात जब वह खेत में घूम रहा था तो उसे ढेंचू ऽऽ ढेंचू ऽऽ किसी के रेंकने की आवाज सुनाई पड़ी। गधे ने इधर-उधर देखा तो उसे एक गधी दिखाई दी, गधे ने गधी की आवाज सुनकर जोर-जोर से रेंकना शुरू कर दिया। ढेंचू ऽऽ ढेंचू ऽऽ उसका रेंकना सुनकर रखवाले जागकर वहाँ आ गए और गधे को पहचान लिया। सभी लोग उस पर टूट पड़े और उसे इतना मारा कि उसका दम ही निकल गया।
अब सबको पता चल गया था कि यह गधा शुद्धपट का है, लोगों ने उसे भी गाँव से भगा दिया।
शिक्षा
वाचालाकता से मौन भली ।
5. सुनहरी विष्ठा
एक पर्वतीय प्रदेश में एक विशाल वृक्ष पर सिन्धुक नाम का एक पक्षी रहता था। उसकी विष्ठा में स्वर्ण कण होते थे।
एक दिन जंगल से गुजरते हुए एक शिकारी ने यह विशेष बात देखी। सुनहरी विष्ठा देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। शिकारी ने सोचा यह पक्षी मेरा भाग्य बदल देगा उसने एक युक्ति सोची और युक्ति के अनुसार उसने जाल बिछाया और उसने पक्षी को पकड़ लिया। शिकारी उसे अपने घर ले गया पर मन ही मन डरने लगा कि किसी को इस बात का पता न चल जाए। उसने सोचा की अगर इस पक्षी को वह राजा को उपहार स्वरूप देगा तो राजा उसे कोई न कोई पुरस्कार देंगे। ऐसा सोचकर वह राजा के महल में गया और उसने पक्षी राजा को दे दिया।
राजा इस अनुपम उपहार को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। अपने मंत्री को बुलाकर राजा ने कहा, “इस पक्षी को संभालकर रखो और शिकारी को पुरस्कृत करो। “
पर मंत्री ने राजा को सलाह दी, “महाराज, यह कोई धोखेबाज है। इसकी बात पर विश्वास न करें। यह बस साधारण पक्षी है। “
मंत्री की बात में आकर राजा को भी शिकारी पर विश्वास न रहा। पिंजरा लेकर राजा ने स्वयं खोल दिया। पक्षी ने स्वर्णिम विष्ठा करी और उड़ गया। राजा और सभी उपस्थित लोग आश्चर्यचकित रह गए।
शिक्षा
मूर्ख मंत्रियों से दूर रहना चाहिए।
6. ब्राह्मण और ठग
मित्रशर्मा नाम का एक ब्राह्मण था । वह भिक्षा पर जीवन निर्वाह करता था। एक दिन एक धनी व्यापारी ने मोटा-तगड़ा बकरा उसे दान में दिया। बकरे को कंधे पर रखकर मित्रशर्मा घर आ रहा था।
रास्ते में उसे तीन ठग मिले। बकरे को देखकर, उसे पाने के लिए उन लोगों ने एक चाल चली। तीनों ठग मित्रशर्मा के पीछे-पीछे चल दिए, एक ठग ने मित्रशर्मा के पास जाकर कहा, ” श्रीमान् ! आप यह कुत्ता कंधे पर उठाकर कहां जा रहे हैं? आप तो कुत्ते को छूते भी नहीं हैं।”
मित्रशर्मा ने चिढ़कर कहा, “क्या तुम अंधे हो? बकरे को कुत्ता कहते हो।”
‘ध्यान से जाइयेगा”, कहकर ठग चला गया। थोड़ी ही दूर जाने के बाद दूसरे ठग ने आकर कहा, “ओह, श्रीमान्! मरा हुए बछड़ा कंधे पर क्यों ले जा रहे हैं?”
मित्रशर्मा के नाराज होने पर ठग ने कहा, “कृपया, नाराज मत होइये। जो आपको अच्छा लगे वही कीजिए। “
मित्रशर्मा के थोड़े और आगे जाने पर तीसरे ठग ने सामने आकर कहा, “कितना बुरा कार्य आप कर रहे हैं। आपने एक गधे को कंधे पर उठाया हुआ है। कोई देखेगा तो क्या कहेगा।”
अब मित्रशर्मा को लगा कि हो न हो यह कोई दुरात्मा है जो सभी को अलग-अलग रूप में दिखाई दे रहा है। मित्रशर्मा डर गया और डर के मारे उसने बकरे को वहीं छोड़ा और सर पर पैर रखकर अपने घर की ओर जान बचाकर भागा।
तीनों ठगों ने तुरंत बकरे को पकड़ लिया। वह बकरे को उठाकर अपने घर ले गए और छककर उसका भोजन किया।
शिक्षा
बुद्धि से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
7. शिकारी और सियार
बहुत समय पहले की बात है। पुलिंदा जाति का एक शिकारी था। शिकार किए हुए जानवरों को बेचकर अपनी जीविका चलाता था। यदि किसी छोटे जानवर का शिकार करता तो उसे घर ले आता। उसकी पत्नी उसे घर के लिए पकाती ।
एक दिन शिकार करते समय उसने जंगली सूअर देखा। वह खूब मोटा तगड़ा था। प्रसन्न होते हुए शिकारी ने सोचा, “यदि यह हाथ लग जाए तो आज परिवार और मित्रों का भोज करूंगा।” उसने धनुष उठाया और निशाना साधकर तीर छोड़ दिया। सूअर बुरी तरह घायल होकर शिकारी पर टूट पड़ा और उसे मार गिराया। थोड़ी देर बाद वह भी वहीं ढेर हो गया।
एक भूखा सियार उधर से गुजर रहा था। सूअर और शिकारी को मृत देखकर हुआ और
मन ही मन बोला, “हा, हा! भाग्य भी मेरे साथ है। विधाता ने मेरे दावत का बहुत प्रसन्न प्रबन्ध कर दिया है। इतना ढेर सारा भोजन… मैं थोड़ा-थोड़ा खाऊंगा। मेरा तो लंबा प्रबंध हो गया है।”
ऐसा सोचता हुआ सियार शिकारी के निकट पहुँच गया। शिकारी का धनुष उसके सीने पर देखकर उसने उसे शरीर का हिस्सा समझा और डोरी चबानी चाही। तनी हुई डोरी हिली और तीर निकलकर मुंह से होता हुआ सियार की खोपड़ी फाड़ गया। सियार भी वहीं ढेर हो गया।
शिक्षा
भाग्य का जीवन में बहुत बड़ा स्थान है।
8. गीदड़ गीदड़ ही रहता है
एक जंगल में शेर-शेरनी का युगल रहता था। शेरनी के दो बच्चे हुए। शेर प्रतिदिन शेरनी और बच्चों के लिए भोजन लाता था। एक दिन जंगल में बहुत घूमने के बाद भी उसे कोई शिकार न मिला। खाली हाथ घर वापस लौटते समय उसे रास्ते में गीदड़ का बच्चा मिला। वह उसे घर ले आया और शेरनी से बोला, “प्रिये! आज कुछ भोजन नहीं मिला। रास्ते में यह गीदड़ का बच्चा मिला। उसे जीवित ही ले आया हूँ। तुम्हें भूख लगी है तो इसे मारकर खा लो। “
शेरनी यह सुनकर बोली, “प्रिये! तुमने इसे बालक जानकर नहीं मारा तो मैं इसे कैसे मार सकती हूँ? समझ लूंगी कि यह मेरा तीसरा बच्चा है।”
गीदड़ का बच्चा अब शेर के परिवार का सदस्य हो गया था। तीनों साथ खेलते, खाते-पीते और सोते थे।
एक दिन एक जंगली हाथी को इन लोगों ने उधर से जाते देखा। शेर के दोनों बच्चे गुर्राते हुए उस पर लपके। गीदड़ के बच्चे ने उन्हें रोककर कहा, “नहीं, नहीं। वह हाथी है उसके पास मत जाओ” और घर भाग गया।
निरुत्साहित होकर शेर के बच्चे रुक गए। घर पहुँचकर सारी बात शेर के बच्चों ने माता-पिता को उत्साहपूर्वक सुनाई और गीदड़ के बच्चे का उपहास करने लगे। क्रोधित गीदड़ का बच्चा भी उन्हें जली-कटी सुनाने लगा।
तब शेरनी ने उसे एकांत में बुलाया और कहा, “पुत्र ! उन पर नाराज मत हो । वे तुम्हारे भाई हैं।” गीदड़ के बच्चे को शेरनी का व्यवहार बहुत बुरा लगा। उसने पूछा, “क्या मैं उनसे कम हूँ। वे मेरी हंसी उड़ाते हैं, मैं इन्हें मार डालूँगा । “
शेरनी ने हंसते हुए कहा, “तुम बहादुर हो पर अभी भी बच्चे हो। तुम्हारे कुल में हाथी नहीं मारे जाते। तुम गीदड़ के बच्चे हो। मैंने तुम्हें अपना दूध पिलाकर पाला है। तेरे भाई इस सच को जानें उससे पहले ही तुम जाकर अपनी जाति में मिल जाओ अन्यथा वे तुम्हें मार डालेंगे।” और वह भयभीत होकर अपने लोगों की खोज में चल पड़ा।
शिक्षा
साहसी ही प्रेरित करते हैं।
9. मूर्ख गधा
एक घने जंगल में एक शेर रहता था। उसका सेवक गीदड़ भी उसके साथ रहता था। एक बार हाथी से लड़ते हुए शेर बुरी तरह घायल हो गया। अब वह शिकार भी न कर पा रहा था।
एक दिन शेर ने गीदड़ से कहा, “तुम किसी शिकार को यहाँ ले आओ। मौका देखकर मैं उसे मार डालूँगा फिर हम दोनों भरपेट खाएँगे।”
गीदड़ शिकार की खोज में निकला। जंगल में एक गधे को उसने चरते देखा । गीदड़ ने पास जाकर उससे कहा, “कैसे हो मित्र? बड़े दुबले-पतले लग रहे हो…?” गधे ने उत्तर दिया, “हां, मित्र! क्या कहूँ.. मेरा मालिक मेरी पीठ पर बहुत बोझ लादता है और खाना भी बहुत कम देता है।”
गीदड़ बोला, “तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें एक ऐसी सुंदर जगह दिखलाता हूँ जहां ताजी हरी घास है”
गधा गीदड़ के साथ चल पड़ा और शेर की गुफा में पहुँचा। भूखा शेर गधे को देखते ही उस पर झपटा पर निशाना चूक गया और गधा घबराकर सिर पर पैर रखकर भाग गया।
गीदड़ ने शेर से कहा, “महाराज! आपको इतनी भी क्या जल्दी थी?”
शेर ने कहा, “मैं अपनी भूख पर काबू नहीं रख सका। हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गई।”
गीदड़ ने कहा, ‘अच्छा! एक बार और प्रयत्न कर उसे आपके पास लाता हूँ।”
गीदड़ गधे की खोज में गया। वह नदी किनारे चर रहा था। गधे ने गीदड़ को देखकर पूछा, “तुम फिर क्यों आए हो? तुम्हारे मित्र ने तो मुझे मार ही दिया था।”
गीदड़ ने हंसते हुए कहा, “तुम कितने भोले हो । वह तो तुम्हें देखकर आलिंगन करने उठी और तुम वहाँ से भाग आए। उसे तुमसे प्रेम हो गया है। चलो, मेरे साथ चलो।”
मूर्ख गधा गीदड़ पर विश्वास कर उसके साथ फिर से चल पड़ा। वहाँ पहुँचते ही शेर उस पर टूट पड़ा और उसे मार डाला ।
शिक्षा
मूर्खता विनाश की ओर ले जाती है।
10. दो मुख वाला पक्षी
एक तालाब के किनारे एक पेड़ पर भारण्ड नामक एक विचित्र पक्षी रहता था। उसके दो मुख थे पर एक शरीर था। एक दिन तालाब किनारे घूमते हुए एक मुख को एक स्वादिष्ट फल मिला। एक मुख ने उसे खाया और गरदन हिलाकर बोला, “वाह! क्या फल है. कितना मीठा, मैं बड़ा ही भाग्यशाली हूँ। “
यह सुनकर दूसरा मुख ललचाया और बोला, “भाई, तुम इतनी तारीफ कर रहे हो, मैं भी चखूँगा।”
एक मुख ने हंसकर कहा, “हमारा पेट तो एक ही है। मैंने खाया या तुमने खाया क्या फर्क है। मैं इसे अपनी प्रियतमा को दूँगा। वह बहुत प्रसन्न होगी। “
एक मुख के इस व्यवहार से दूसरा मुख बहुत ही दुःखी हुआ। एक दिन टहलते समय दूसरे मुख को एक जहरीला फल मिला। उसने एक मुख से कहा, “तुमने मेरे साथ छल किया है। तुम विश्वासघाती हो । अब मैं इस जहरीले फल को खाकर तुमसे बदला लूँगा । “
एक मुख ने कहा, “अरे मूर्ख, अगर तुमने इसे खाया तो हम दोनों मर जाएंगे क्योंकि हमारा शरीर एक ही है। “
पर दूसरे मुख ने एक न सुनी। क्रोध में उसने फल खा लिया। परिणामतः उनकी मृत्यु हो गई।
शिक्षा
सदा मिलकर रहना चाहिए। क्रोध से अहित ही होता है।
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