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Vatsalya Ras (वात्सल्य रस)
जो भाव ‘शिशु संबंधी प्रेम’ या ‘संतान प्रेम’ अर्थात वात्सल्य नामक स्थायी भाव को जाग्रत करता है, उसे ‘वात्सल्य रस’ माना जाता है। इसमें शिशु के पालने से उत्पन्न प्रेम की अभिव्यक्ति होती है।
वात्सल्य रस के अवयव
- स्थाई भाव : वत्सलता or स्नेह।
- आलंबन (विभाव) : पुत्र, शिशु, एवं शिष्य।
- उद्दीपन (विभाव) : बालक की चेष्टाएँ, तुतलाना, हठ करना आदि तथा उसके रूप एवं उसकी वस्तुएँ ।
- अनुभाव : स्नेह से बालक को गोद मे लेना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना, थपथपाना आदि।
- संचारी भाव : हर्ष, गर्व, मोह, चिंता, आवेश, शंका आदि।
वात्सल्य रस के प्रकार (Types of Vatsalya Ras in Hindi)
वात्सल्य रस काफी हद तक श्रृंगार रस की भांति प्रतीत होता है और उसी प्रकार इसके दो भेद भी बताए गए हैं वात्सल्य रस (Vatsalya Ras) के दो प्रकार हैं:
- संयोग वात्सल्य
- वियोग वात्सल्य
संयोग वात्सल्य
जहाँ संयोग रूप में स्नेह उमड़ता है वहां संयोग वात्सल्य रस होता है
संयोग वात्सल्य का उदाहरण
वरदंत की पंगत कुंद कली अधराधर पल्लव खोलन की
चपला चमके घन बीच जगे , छवि मोतिन मॉल अमोलन की
घुघरारी लटे लटके मुख ऊपर कुंडल लाल कपोलन की
न्योछावर प्राण करे तुलसी बलि जाऊ लला इन बोलन की
वियोग वात्सल्य
जहाँ वियोग रूप में प्रेम, अनुराग उमड़ता है वहाँ वियोग वात्सल्य रस होता है
वियोग वात्सल्य का उदाहरण
सन्देश देवकी सों कहिए
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै
वात्सल्य रस के उदाहरण
1. जसोदा हरि पालने झुलावै।
हसरावै दुलराइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै ।।
कबहुँ पलक हरि मूंद लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है रहि रहि करि-करि सैन बतावै॥
X X X X X X X X
जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ, सो नँद भामिनी पावै॥ – सूरदास
स्थायी भाव – वात्सल्य
विभाव- आश्रय- यशोदा, आलंबन- श्री कृष्ण, उद्दीपन- श्री कृष्ण को झूला झुलाने संबंधी क्रियाएँ ।
अनुभाव- झूला झुलाना, दुलारना- पुचकारना, गीत गाना।
संचारी भाव- औत्सुक्य, हर्ष, चपलता, मोह आदि।
रस- वत्सल रस
2. बर दंत की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमके घन-बीच जगै छवि, मोतिन माल अमोलन की।
घुंघराली लटें लटके मुख- अपर, कुंडल लोल कपोलन की।
निबछावर प्रान करें ‘तुलसी’ बलि जाऊ लला इन बोलन की। – तुलसीदास
स्थायी भाव – वात्सल्य
विभाव- आश्रय- व्यक्ति, आलंबन- बालक राम, उद्दीपन- मुख सौंदर्य एवं मोतियों की माला।
अनुभाव- मधुर छवि का अवलोकन करना, प्रसन्न होना।
संचारी भाव- हर्ष, चपलता, मोह आदि।
रस – वत्सल रस
3. मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोटो छीको केहि विधि पायो। – सूरदास
स्थायी भाव – वात्सल्य
अनुभाव – माखन न खाने की बात करना, मुख लपटाना।
विभाव – आश्रय- श्री कृष्ण, आलंबन- यशोदा, उद्दीपन- माखन चुराने संबंधी बातें।
संचारी भाव मोह, चपलता, औत्सुक्य आदि।
रस – वत्सल रस
4. सदेसो देवकी सो कहियो।
हौं तो धाय तिहारे सुत की, कृपा करति ही रहियौ ।
जदपि देव तुम जानति है हौ, तऊ मोहि कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाल लड़ैते, माखन रोटी भावै॥ – सूरदास
स्थायी भाव – वात्सल्य
विभाव- आश्रय- यशोदा, आलंबन- देवकी, उद्दीपन- कृष्ण का मथुरा चले जाना।
अनुभाव- संदेशा भेजना
संचारी भाव – विषाद, चिंता, त्रास, मोह आदि।
रस- वत्सल रस
5. मैया मैं तो चन्द खिलौना लैहों।
जैहों लोटि अबै धरनी वै तेरी गोद न ऐहों।। – सूरदास
स्थायी भाव – वात्सल्य
विभाव- आश्रय- कृष्ण, आलंबन- यशोदा, उद्दीपन- चाँद रूपी खिलौने की चाहत।
अनुभाव- हठ करना, धरती पर लेटना, गोद में न बैठना।
संचारी भाव- चपलता, औत्सुक्य, मोह आदि।
रस- वत्सल रस
6. सुभग सेज सोभित कौसल्या, रुचिर ताप सिसु गोद लिए।
बार-बार विधुवदनि विलोकति, लोचन चारु चकोर किए।
कबहुँ पौढ़ि पय पान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये।
बाल केलि हलरावति, पुलकति प्रेम-पियूष पिये। – तुलसीदास
स्थायी भाव – वात्सल्य
विभाव- आश्रय- कौशल्य, आलंबन- श्री राम, उद्दीपन- बालक की चेष्टाएँ।
अनुभाव- बाल को निहारना, गोद लेना, दूध पिलाना, पलंग पर रखना, बच्चे की मुद्रा को देखकर प्रसन्न होना।
संचारी भाव- हर्ष, औत्सुक्य, मोह आदि।
रस- वत्सल रस
7. दादा ने चंदा दिखलाया
नेत्र नीरयुत दमक उठे
धुली हुई मुसकान देखकर
सबके चेहरे चमक उठे। – सुभद्रा कुमारी चौहान
स्थायी भाव- वात्सल्य
विभाव- आश्रय- परिवार के सदस्य आलंबन- शिशु, उद्दीपन- शिशु की चेष्टाएँ।
अनुभाव- चाँद दिखाना, सबके चेहरों का चमक जाना।
संचारी भाव- मोह, हर्ष, चपलता आदि।
रस- वात्सल्य रस
8. यह मेरी गोद की शोभा
सुख-सुहाग की है लाली
शाही शान भिखारिन की है
मनोकामना मतवाली है। – सुभद्रा कुमारी चौहान
स्थायी भाव – वात्सल्य
विभाव- आश्रय – कवयित्री, आलंबन- शिशु, उद्दीपन- शिशु प्रेम ।
अनुभाव- गोद में बिठाना, सौभाग्यशाली समझना, मतवाला होना ।
संचारी भाव- मोह, चपलता, हर्ष, औत्सुक्य आदि।
रस- वत्सल रस
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