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किस प्रकार की पाठ्यचर्या लैंगिक समानता ला सकती है ?
शिक्षक चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और उनकी भूमिका के सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण है। शिक्षक शिक्षा के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण और प्रभावी है। यह बात शिक्षा की ‘द्विमुखी’ और ‘त्रिमुखी’ प्रक्रिया के द्वारा सिद्ध भी होती है। दृष्टव्य है-
उपर्युक्त द्विमुखी तथा त्रिमुखी प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षक का स्थान महत्वपूर्ण रूप में देखा जा सकता है । शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि यदि शिक्षक नहीं होगा तो पाठ्यक्रम चाहे जितना भी प्रभावी हो, वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करने में कदापि सफल नहीं हो सकता है। चुनौतीपूर्ण लिंग के प्रति असमानतापूर्ण व्यवहार वर्षों से चला आ रहा है। अतः शिक्षक का यह दायित्व है कि वह विद्यालयी वातावरण को असमानता से मुक्त करे, इस कार्य का सम्पादन शिक्षक निम्न प्रकार करा सकता है-
1. शिक्षक का दृष्टिकोण व्यापक तथा उदार होना चाहिए तभी वह चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा और समानता को सुनिश्चित कर सकेगा
2. शिक्षक स्वयं स्त्रियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखने वाला होना चाहिए तभी वह छात्रों के समक्ष आदर्श स्थापित कर पायेगा ।
3. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की असमानता से होने वाली हानियों से अवगत कराना चाहिए।
4. शिक्षक को पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन और समूहिक क्रियाकलापों पर अत्यधिक बल देना चाहिए, जिससे बालक-बालिकायें साथ-साथ कार्य करेंगे और एक-दूसरे के गुणों से परिचित होंगे।
5. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता में प्रभावी भूमिका के निर्वहन हेतु समाज से सहयोग प्राप्त करना चाहिए।
6. शिक्षक को शिक्षण कार्य का सम्पादन केवल नौकरी करने के भाव के कारण ही नहीं करना चाहिए, अपितु राष्ट्र-निर्माण और आदर्श नागरिकों के विकास के बोधयुक्त होना चाहिए।
7. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और सशक्त भूमिका की सुनिश्चितता की आवश्यकता और सरकारी, कानूनी प्रावधानों से भी कक्षा में परिचित कराना चाहिए।
8. शिक्षक का लोकतांत्रिक व्यवस्था में अटूट विश्वास होना चाहिए और शिक्षक का आधार भी लोकतांत्रिक होना चाहिए, जिससे किसी भी प्रकार का भेदभाव और असमानता नहीं होगी ।
9. शिक्षक को बालकों की भाँति बालिकाओं में भी नेतृत्व क्षमता का विकास करना चाहिए ।
10. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और सकारात्मक भूमिका के प्रस्तुतीकरण के लिए जागरूकता लानी चाहिए।
पाठ्यक्रम का स्थान शिक्षा में महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि पूर्व में ही कहा जा है कि शिक्षा एक सोद्देश्य प्रक्रिया है और यह अपने उद्देश्यों की पूर्ति पाठ्यक्रम के द्वारा चुका करती है। शिक्षण लक्ष्य जैसे होंगे, पाठ्यक्रम भी उसी प्रकार का होगा । पाठ्यक्रम की चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और भूमिका के प्रस्तुतीकरण में क्या है, इसके निरूपण से पूर्व पाठ्यक्रम की अवधारणा का स्पष्टीकरण निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा रहा है-
- शाब्दिक अर्थ,
- संकुचित अर्थ,
- परिभाषीय अर्थ,
- व्यापक अर्थ ।
(1) शाब्दिक अर्थ – पाठ्यक्रम के लिए अंग्रेजी में ‘करीकुलम’ शब्द प्रयुक्त किया जाता है जो लैटिन के ‘कुर्रेर’ से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है- दौड़ का मैदान ।
Curriculum (English) → Currere (Latin) = Ground of Race
इस प्रकार करीकुलम ऐसा मैदान है जिसके इर्द-गिर्द बालकों की क्रियायें सम्पादित होती हैं।
(2) संकुचित अर्थ – पाठ्यक्रम का संकुचित अर्थ कोर्स (Course) मात्र से है, जिसके आधार पर अध्ययन-अध्यापन कार्य का सम्पादन किया जाता है।
(3) परिभाषीय अर्थ – पाठ्यचर्या के अर्थ के स्पष्टीकरण हेतु अनेक विद्वानों की परिभाषायें अग्र प्रकार हैं-
कनिंघम की पाठ्यक्रम विषयी परिभाषा सर्वाधिक लोकप्रिय है। इनके शब्दों में- “पाठ्यक्रम शिक्षक के हाथ में एक साधन है, जिससे वह अपने विद्यालय में, अपने उद्देश्य के अनुसार अपने छात्रों को कोई भी रूप सकता है।”
“It is a tool in the hands of the artist (teacher) to mould his material (pupils) according to his ideal (objectives) in his studio (school).”
‘फ्रोबेल के अनुसार- ” पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं, जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है ।”
“Curriculum should be conceived as an epitome of the rounded whole of the knowledge and experience of the human race.”
मुनरो के अनुसार- ” पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं, जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है।”
“Curriculum embodies all the experiences which are utilized by school to attain the aims of education.”
कैसबेल के अनुसार- “बालकों एवं उनके माता-पिता तथा शिक्षकों के जीवन में आने वाली समस्त क्रियाओं को पाठ्यक्रम कहा जाता है। शिक्षार्थी के कार्य करने के समय जो कुछ भी कार्य होता है, उस सबसे पाठ्यक्रम का निर्माण होता है वस्तुतः पाठ्यक्रम को गतियुक्त वातावरण कहा गया है। “
ब्रूबेकर के अनुसार – ” पाठ्यक्रम एक ऐसा क्रम है, जो किसी व्यक्ति को गन्तव्य स्थान पर पहुँचाने के लिए तय करना पड़ता है।”
जॉन डीवी के अनुसार— “पाठ्यक्रम केवल अध्ययन की योजना या विषय-सूची ही नहीं, बल्कि कार्य और अनुभव की सम्पूर्ण श्रृंखला है । पाठ्यक्रम समाज में कलात्मक ढंग से परस्पर रहने के लिए बच्चों के प्रशिक्षण का शिक्षकों के पास एक साधन है।”
के. जी. सैयदेन के अनुसार- ” पाठ्यक्रम वह सहायक सामग्री है, जिसके द्वारा बच्चा अपने आपको उस वातावरण के अनुकूल ढालता है जिसमें वह अपना दैनिक कार्य-व्यवहार करता है तथा जिसमें उसके भविष्य की योजनायें और क्रियाशीलता निहित हैं। “
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार— “पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है, जो विद्यालय में परम्परागत रूप से पढ़ाये जाते हैं वरन् इसमें अनुभवों की यह समग्रता सम्मिलित होती है जिसको छात्र विद्यालय की उन बहुमुखी क्रियाओं से प्राप्त करता है जो कक्षा, पुस्तकालय, कार्यशाला, प्रयोगशाला और खेल के मैदान में तथा शिक्षकों एवं छात्रों के अगणित अनौपचारिक सम्पर्कों से प्राप्त होती है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है, जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित कर सकता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।”
“Curriculum does not mean only the academic subjects traditionally taught in the school, but in includes the totality for experiences, that a pupil recieves through the manifold activities that go in the school. In the classrooms, library, laboratory, workshop, playground and in the numerous, informal contacts between teachers and pupils in this sense the whole life of school becomes the curriculum which touch the life of the students at as points and help in the evolution of balanced personality.”
शिक्षा आयोग के अनुसार- “विद्यालय पाठ्यक्रम अधिगम अनुभव की वह समग्रता है जो विद्यालयों द्वारा छात्रों को विद्यालय में या उसके बाहर की बहुमुखी क्रियाओं द्वारा प्रदान की जाती है । ये समस्त क्रियायें विद्यालय के परिनिरीक्षण में संचालित की जाती है।”
“Curriculum is the totality of learning experience that the school provides for the pupils through all the manifold activities in the school or outside, that are carried on under its supervision.”
(4) व्यापक अर्थ – पाठ्यचर्या अपने संकुचित अर्थ में बौद्धिक विषयों हेतु बहुत पहले से प्रचलित था, परन्तु ये विषय पाठ्यक्रम के अंग मात्र हैं । पाठ्यक्रम के व्यापक अर्थ की और ये इंगित नहीं करते हैं। इन विषयों की सामग्री को अन्तर्वस्तु कहा जाता है, कक्षा में शिक्षण की दृष्टि से सुविधा के लिए जब इस विषय-सामग्री को व्यवस्थित कर लिया जाता है तो उसे ‘पाठ्य-विवरण’ (Syllabus) कहते हैं। भ्रमवश पाठ्यक्रम (Curriculum) तथा ‘पाठ्य-विवरण’ (Syllabus) को एक अर्थ में प्रयुक्त कर दिया जाता है, परन्तु पाठ्य-विवरण पाठ्यक्रम का अंशमात्र है, न कि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पाठ्यक्रम में बताया जाता है कि वर्ष भर के लिए निर्धारित विषय-वस्तु को साप्ताहिक तथा मासिक स्तर पर कैसे पूर्ण करना है। कोर्स, अन्तर्वस्तु, पाठ्यक्रम विवरण आदि शब्द पाठ्यक्रम की अवधारणा के स्पष्टीकरण में असमर्थ हैं पाठ्यक्रम हेतु शिक्षाक्रम तथा पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग किया जाता है।
पाठ्यक्रम की आधुनिक अवधारणा अत्यधिक व्यापक है। इसके अन्तर्गत कक्षीय वातावरण के साथ-साथ छात्र जो भी अनुभव प्राप्त करते हैं, वे सभी आते हैं । पाठ्यक्रम में बौद्धिक विषय, विविध कौशल, पढ़ना, लिखना, शिल्प, खेलकूद तथा अन्य क्रियाकलाप भी आते हैं । पाठ्यक्रम को क्रिया के रूप में समझना चाहिए, न कि अर्जित ज्ञान या संगृहीत तथ्यों के रूप में । पुस्तकालय, कक्षा, प्रयोगशाला, खेल के मैदान तथा विद्यालय परिसर में प्राप्त किये जाने वाले सभी अनुभव पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आते हैं तथा इस प्रकार पाठ्यक्रम की व्यापक अवधारणा के अन्तर्गत विद्यालय में संचालित समस्त गतिविधियाँ आ जाती हैं, परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि यह इतना भी व्यापक नहीं है कि इसके अन्तर्गत मनुष्य का समग्र जीवन आ जाये।
पाठ्यक्रम निर्माण हेतु सावधानियाँ (Cautions for Syllabus formation)
पाठ्यक्रम विद्यालय की समस्त गतिविधियों तथा समग्र विकास हेतु उत्तरदायी है। अतः पाठ्यक्रम निर्माण के समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना भी आवश्यक है-
1. पाठ्यक्रम बालकों की अवस्था, आवश्यकता के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिए।
2. पाठ्यक्रम निर्माण का आधार मनोवैज्ञानिक होना चाहिए।
3. पाठ्यक्रम निर्माण के लिए व्यापक दृष्टिकोण तथा लचीलेपन का अनुसरण करना चाहिए।
4. पाठ्यक्रम शिक्षण उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होना चाहिए।
5. पाठ्यक्रम में पाठ्य सहगामी क्रियाओं, शिक्षण पद्धति तथा पूरक पठन-सामग्री का संकेत होना चाहिए।
6. पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए कि वह जाति, धर्म, भाषा तथा लिंग आदि के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास कर सके।
चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और उनकी भूमिका के प्रस्तुतीकरण हेतु विद्यालय अत्यधिक महत्वपूर्ण है और विद्यालय की समस्त क्रियायें ही पाठ्यक्रम के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। जॉन डीवी जैसे प्रख्यात अमेरिकी प्रयोजनवादी ने इसी कारण शिक्षा को ‘त्रिमुखी प्रक्रिया’ माना, क्योंकि इसमें शिक्षक, शिक्षार्थी तथा पाठ्यक्रम होता है ।
दृष्टव्य है— शिक्षा की त्रिमुखी प्रक्रिया-
इस प्रकार पाठ्यक्रम का स्थान शिक्षा की प्रक्रिया हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है । पाठ्यक्रम का महत्व तथा आवश्यकता बालकों के सर्वांगीण विकास, आदर्श नागरिकता के विकास, सभ्य समाज और असमानताओं की समाप्ति में अत्यधिक है। पाठ्यक्रम का चुनौतीपूर्ण लिंग की असमानता और उनकी सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण हेतु भूमिका निम्न प्रकार है-
1. पाठ्यक्रम में ‘पाठ्य-विवरण’ निहित होता है जो सोद्देश्य होता है। सोद्देश्य पाठ्य-विवरण के द्वारा लिंगीय असमानता दूर करने का उद्देश्य भी रखा जाता है।
2. पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग पाठ्य सहगामी क्रियाओं (Co-curricular activities) को माना जाता है । इन क्रियाओं के द्वारा बालक-बालिकाओं में अन्तःक्रिया होती है, सहयोग तथा आपसी समझ का विकास होता है, जिससे चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता में सहयोग मिलता है।
3. पाठ्यक्रम बिना किसी लिंगीय भेदभाव के सबकी समानता के सिद्धान्त को आधार बनाकर तैयार किया जाता है। इससे भी चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता को बल प्राप्त होता है।
4. पाठ्यक्रम में चुनौतीपूर्ण लिंग की विशिष्ट रुचियों अथवा आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाता है, जिससे इनकी शिक्षा तथा समानता में वृद्धि हुई है।
5. पाठ्यक्रम में चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता हेतु सामग्री का समावेश किया जाता है।
6. पाठ्यक्रम में चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता हेतु आपस में मिलकर रहने तथा क्रिया करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाते हैं।
7. पाठ्यक्रम में चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और उनकी सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण के लिए बालिकाओं को भी समान अवसर प्रदान किये जाते हैं, जिससे वे अपनी योग्यता और प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें।
8. पाठ्यक्रम निर्माण का आधार मनोवैज्ञानिक होता है जिससे बालिकाओं के मनोविज्ञान को समझकर निर्मित किया जाता है। इस प्रकार चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और उनकी सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण में सहायक प्राप्त होती है।
9. पाठ्यक्रम को व्यावहारिक जीवन से सम्बद्ध करने पर अत्यधिक बल दिया जा रहा है, जिससे भी यह चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता तथा उनकी सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण में वृद्धि कर रहा है।
10. पाठ्यक्रम के द्वारा चुनोतीपूर्ण लिंग की समानता और उनकी सशक्त भूमिका का प्रस्तुतीकरण सर्वांगीण विकास के द्वारा सम्पन्न किया जा रहा है।
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