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अनुवाद क्या है? अनुवाद की प्रकृति बताइये।
अनुवाद क्या है?
किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना अनुवाद है। इस विशेष अर्थ में ही ‘अनुवाद’ शब्द का अभिप्राय सुनिश्चित हैं। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूलभाषा या स्रोतभाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह प्रस्तुत भाषा या लक्ष्य भाषा है। इस तरह, स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्यभाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है।
कैटफोर्ड के अनुसार, ‘एक भाषा की पाठ सामग्री का दूसरी भाषा में समान पाठ सामग्री में स्थानापन्न अनुवाद है।’
ए०एच० स्मिथ के अनुसार, ‘अनुवाद का तात्पर्य यह है कि यथासंभव अर्थ को बनाए रखते हुए अन्य भाषा में अन्तरण। लियनार्डफास्टर की मान्यता है कि अनुवाद स्रोत भाष के प्रतीकों और चिह्नों का लक्ष्य भाषा में अन्तरण है। डोस्टर्ट इसे भाषाविज्ञान की प्रायोगिक शाखा मानता है। वह भी फास्टर के समान ही अपना मत देता है, जिसका ( (अनुवाद् सम्बन्ध प्रतीकों के एक सुनिश्चित समुच्चय से दूसरे समुच्चय में अर्थ के अन्तरण से है।
डॉ. भोलानाथ तिवारी ने सभी परिभाषाओं को समेटकर अनुवाद की परिभाषा इस प्रकार दी है— ‘भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था है और अनुवाद हैं इन्हीं प्रतीकों का प्रतिस्थापन अर्थातु एक भाषा के प्रतीकों के स्थान पर दूसरी भाषा के निकटतम समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग। इस प्रकार अनुवाद निकटतम समतुल्य और सहज प्रतीकन या यथा साध्य समानक प्रतिप्रतीकन है।’ इस परिभाषा में एक कमी यह है कि भाषा केवल प्रतीक व्यवस्था मात्र नहीं है, बल्कि उनके प्रतीकों को संयोजित एवं नियोजित करने की भी एक व्यवस्था है। अतः अनुवाद की परिभाषा मेरी दृष्टि में इस प्रकार हो सकती है- अनुवाद किसी एक भाषा की प्रतीक एवं सरंचनात्मक व्यवस्था तंत्र में व्यक्त भावों या विचारों का दूसरी भाषा की प्रतीक व्यवस्था एवं संरचना तंत्र में यथासम्भव अक्षत रूप में प्रस्तुतीकरण है।
अनुवाद की प्रकृति
अनुवाद क्या है? कला या विज्ञान – अनुवाद को कला माना जाय या विज्ञान इस पर विचार वैविध्य मिलता है। अनुवाद को शिल्प, कला तथा विज्ञान तीनों ही माना जाता है। शिल्प और कला में सूक्ष्म भेद है। कला नैसर्गिक अधिक हैं और शिल्प अभ्यास द्वारा अर्जित। कला में भी कुछ न कुछ अभ्यास की आवश्यकता रहती है। कला में व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप में परिलक्षित होती है, जबकि शिल्प में व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति क्षीण रहती है। अनुवाद में कला और शिल्प दोनों की विशेषताएं दिखाई देती हैं। अनुवादक को किसी भाव या विचार को भिन्न भाषा में प्रस्तुत करना होता है। इस कार्य हेतु वह शब्द चयन एवं वाक्य चयन आदि जो कुछ करता है, उस पर उसके व्यक्तित्व की छाप रहती है। अनुवाद: में भी सृजनशीलता के कुछ न कुछ गुण अवश्य पाए जाते हैं। किसी भाषा की कविता का अनुवाद दूसरी भाषा में कोई कवि जितना अच्छा करता उतना वैज्ञानिक बुद्धि का व्यक्ति नहीं कर सकता है। मूल लेखक तथा अनुवादक की अभिरुचि, प्रकृति एवं प्रतिभा के स्वरूप का असर अनुवाद पर पड़ता है।
कुछ अनुवाद इतने अच्छे होते हैं कि उनका प्रभाव मूल से भी अधिक पड़ता है। इसका कारण स्पष्ट रूप से यही है कि अनुवादक की सृजनात्मक शक्ति तथा कल्पना शक्ति मूल लेखक से कुछ बढ़कर ही है। इसलिए यह माना जा सकता है कि कुछ लोगों में अनुवाद का गुण भी सहज होता है। इससे स्पष्ट है कि अनुवाद कला है। कुछ अनुवादक अभ्यास तथा दीक्षा से भी तैयार किए जाते हैं। इस तरह के अनुवादकों में भी कुछ प्रतिभा तो रहती ही है। डॉ. भोलानाथ तिवारी ऐसे अनुवादकों में सहज प्रतिभा की खास जरूरत नहीं मानते। लेकिन मैं ऐसा मानता हूँ कि अनुवाद के लिए भाषा ज्ञान के साथ संस्कृति विषय आदि का भी ज्ञान अपेक्षित होता है। कोई सहृदय अधिक होता है और कोई बौद्धिक अधिक होता है। चूँकि हर प्रकार के अनुवाद पर व्यक्तित्व का कुछ न कुछ असर अवश्य आता है, इसलिए छोटे-मोटे अनुवाद को छोड़कर अनुवाद को केवल शिल्प नहीं माना जा सकता है।
अनुवाद को विज्ञान मानने के पीछे एक सर्वप्रचलित तर्क यह है कि यदि किसी भी विषय के व्यवस्थित तथा विशिष्ट ज्ञान को विज्ञान कहते हैं तो अनुवाद भी विज्ञान है। अनुवाद में विषय के व्यवस्थित तथा विशिष्ट ज्ञान की अपेक्षा है। अनुवाद को प्रायोगिक भाषाविज्ञान के अन्तर्गत माना जाता है। अनुवादक को स्रोत भाषा तथा लक्ष्य भाषा दोनों का ही सम्यक वर्णनात्मक एवं व्यतिरेकी ज्ञान होना चाहिए। भाषा के वैज्ञानिक नियमों के अभाव में मशीनी अनुवाद संभव नहीं हो सकता। स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की ध्वनि प्रक्रिया, शब्द-संरचना, वाक्य-संरचना आदि का विवेचन विश्लेषण विज्ञान के ही अन्तर्गत आता है। जिस तरह भाषाविज्ञान की अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की अपेक्षा विज्ञान होने की स्थिति भिन्न है, उसी तरह अनुवाद की भी विज्ञान होने की स्थिति प्राकृतिक विज्ञानों से भिन्न है। यही कारण है कि अनुवाद को अनुपयुक्त भाषाविज्ञान से बाहर रखना चाहते हैं। जार्ज स्टीनर इसे साहित्य के सिद्धान्त एवं प्रयोग का एक नया क्षेत्र मानता है। यांत्रिक अनुवाद में कलात्मक एवं सौन्दर्यपरक तत्व प्रायः नहीं उभर पाते हैं। इससे जाहिर है कि अनुवाद विशुद्ध विज्ञान नहीं है। अतः सिद्ध होता है कि अनुवाद विज्ञान और कला दोनों है।
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