अनुवाद क्या है? अनुवाद के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
अनुवाद का क्षेत्र – अनुवाद का सबसे बड़ा क्षेत्र बातचीत का है। अंग्रेजी के शिष्टाचार के विषय में कहा जाता है कि जब तक कोई किसी नये आदमी का परिचय हमसे नहीं कराता तब तक उससे बोलना अशिष्टता है। कहते हैं कि दो अपरिचित अंग्रेज आसपास घंटों तक खड़े रहने पर भी एक-दूसरे से बात नहीं करते। यह हालत तब भी आ सकती है जब दो भिन्न भाषा-भाषी आपस में मिलते हैं। उनको मिलाने का काम कोई द्विभाषिया ही कर सकता है। बातचीत के प्रसंग अनेक हो सकते हैं। जब आंध्र प्रदेश का कोई डाक्टर केरल के अस्पताल में काम करता है तब उसे केरल के मरीजों की भाषा समझनी पड़ती है। उसे उनकी भाषा मलयालम का अर्थ समझना पड़ता है। अगर वह मलयालम नहीं जानता तो और किसी को मलयालम का अनुवाद तेलुगु में करना पड़ता है। इसी प्रकार जब केरल का व्यापारी कुछ चीजें खरीदने या बेचने के लिए दिल्ली के बाजार में पहुँचता है तब उसे हिन्दी के अनुवाद के माध्यम से ही अपना काम करना पड़ता है। आजकल रोटी कमाने के लिए लोगों को दूर दूर अन्य भाषा-भाषी प्रदेशों में काम करना पड़ता है। उन्हें अनुवाद का आश्रय प्रतिदिन लेना पड़ता है।
अनुवाद के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
(1) बोल बाल का क्षेत्र – वैसे भी बातचीत में जब हम अपनी मातृभाषा से भिन्न भाषा में बोलते हैं, तब हम खुद अनजाने अनुवाद करते रहते हैं। हम पहले मातृभाषा में सोचते हैं, फिर उसके मन में ही अन्य भाषा में अनुदित करते हैं। यहीं अनुदित रूप हमारे मुँह से निकलता है। यही कारण है कि हम कोई भी अन्य भाषा बोलें, उस पर हमारी मातृभाषा का कुछ-न-कुछ प्रभाव नजर आता है। औसत भारतीय की अंग्रेजी भी इसका अपवाद नहीं है।
( 2 ) पत्राचार का क्षेत्र – बातचीत के क्षेत्र के बाद पत्राचार का क्षेत्र अनुवाद् माँगता है। पत्राचार व्यापार में, कार्यालय में न्यायालय में सर्वत्र होता है। जहाँ पत्राचार अपने प्रदेश की भाषा में करने से काम चलता है वहाँ अनुवाद की जरूरत नहीं पड़ती। किन्तु एक ही प्रदेश में कई भाषाएँ बोलने वाले पीढ़ियों से रहते हैं। उनके लिए प्रादेशिक भाषा भी परायी रहती है। जैसे—केरल में तमिल भाषी और कन्नड़-भाषी काफी संख्या में हैं। उनके लिए केरल की प्रादेशिक भाषा मलयालम का पत्राचार अनुवाद को आवश्यक बना देता है। जो व्यापारी बड़ी कंपनियों से माल मँगाते या उन्हें माल बेचते हैं उन्हें उन कंपनियों से पत्राचार कम्पनी की भाषा से करना पड़ता है। विदेशी कम्पनियाँ अपने देश की भाषा में पत्राचार करती हैं। ऐसी हालत में व्यापारियों को अंग्रेजी के अलावा जर्मन, जापानी आदि भाषाओं में भी लिखा-पढ़ी करनी पड़ती है। इसके लिए अनुवाद के सिवा कोई उपाय नहीं है।
(3) कार्यालयों में – हमारे देश के अधिकांश कार्यालयों की भाषा अंग्रेजी है। मुश्किल से पंचायत व गाँवों के स्तर पर प्रादेशिक भाषा का व्यवहार किया जाता है। आम लोगों को अपनी अर्जियाँ तक अंग्रेजी में लिखनी पड़ती हैं। यहाँ से अनुवाद की प्रक्रिया शुरू होती है। पुलिस, मजिस्ट्रेट जैसे अधिकारियों के कार्यालयों में अनुवाद का जोर रहता है। देवस्वम, रजिस्ट्रेशन जैसे विभागों के निचले स्तर पर प्रादेशिक भाषा काम देती है और ऊपरी स्तर पर अंग्रेजी । चर्चित विषय प्रांत का रहता है। इसलिए अनुवाद का प्रसंग बराबर उठता है।
(4) शिक्षा के क्षेत्र – में शिक्षा का क्षेत्र अनुवाद के बिना आगे नहीं बढ़ पाता। आधुनिक युग में विज्ञान, समाज-विज्ञान, अर्थशास्त्र, गणित आदि बीसियों विषय सीखे और सिखाये जाते हैं। इनके उत्तम ग्रंथ अंग्रेजी ही नहीं, अन्य विदेशी भाषाओं में भी लिखे हुए हैं। इनका अनुवाद किये बिना ज्ञान की वृद्धि नहीं हो पाती। भारतीय भाषाओं को अध्ययन का माध्यम बनाने के बाद इसकी अनिवार्यता बढ़ी है।
यह अनुवाद भारत में ही हो, सो बात नहीं। जिन अंग्रेजों या रूसियों को भारतीय साहित्य का ज्ञान पाना हैं उन्हें भारतीय साहित्य का अनुवाद अंग्रेजी या रूसी में प्राप्त करना पड़ता है।
(5) सांस्कृतिक सम्बन्ध – इस दृष्टि से सांस्कृतिक संबंधों के लिए अनुवाद परम आवश्यक है। किसी भी देश की संस्कृति और कला का परिचय अन्य देश के निवासियों को उन्हीं की भाषा में देना पड़ता है। यह संभव नहीं कि प्रत्येक देशवासी पड़ोसी व दूर के देशों की भाषायें समझे। ऐसी समस्या को सुलझाने का उपाय अनुवाद ही है। सांस्कृतिक संघ अपने साथ अनुवादकों को लेकर चलते हैं। वे अनुवादकों द्वारा ग्रन्थों का अनुवाद कराके प्रकाशित करते हैं।
(6) धर्म के क्षेत्र में – धर्म के क्षेत्र में प्रायः सभी देश किसी विशिष्ट भाषा का व्यवहार करते हैं। जैसे – भारत में संस्कृत हिन्दू धर्म की भाषा रही है। बौद्धों के धर्म ग्रन्थ पालि भाषा में है। ईसाई लैटिन या सिरियक का उपयोग करते हैं, मुसलमान अरबी का। आम लोग इन धर्म-भाषाओं में कुशल नहीं हो सकते। बहुत कम लोग इनके जानकार होते हैं। अतएव, ऐसी धर्म-भाषाओं के पण्डित सामान्य लोगों में प्रचार के लिए ग्रन्थों का अनुवाद करते हैं। इसी प्रकार पुजारी आम लोगों की प्रार्थना आदि का अनुवाद धर्म की भाषा में करते हैं। दोनों तरफ की यह अनुवाद प्रक्रिया प्रत्येक धर्म के पूजास्थलों पर देखी जा सकती है।
(7) न्यायालयों में – न्यायालयों में अनुवाद अनिवार्य हो जाता है। इसके कई कारण हैं – न्यायालय के कर्मचारी वकील और प्रार्थी लोग अदालत के अंग होते हैं। अदालतों की भाषा प्रायः अंग्रेजी होती है। इनमें मुकदमों के लिए आवश्यक कागजात अक्सर प्रादेशिक भाषा में होते हैं, मगर पैरवी अंग्रेजी में होती है। इस माहौल में अंग्रेजी और प्रादेशिक भाषा का बारी-बारी से परस्पर अनुवाद किया जाता है। जब मुकदमा उच्चतम न्यायालय में पहुँचता है तब प्रादेशिक भाषा के सारे कागजात का अनुवाद अंग्रेजी में करना पड़ता है। अनुवाद में ही कई महीने और कई लोगों की मेहनत लगती है।
( 8 ) अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को बढ़ाने में – अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अनुवाद का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है। विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों का संवाद आशु अनुवादक की सहायता से ही होता है। सारे प्रमुख देशों में प्रमुख राष्ट्रों के राजदूत रहते हैं और उनके कार्यालय भी होते हैं। राजदूतों को कई भाषाएँ बोलने का अभ्यास कराया जाता है। फिर भी देशों के प्रमुख प्रतिनिधि अपने विचार अपनी ही भाषा में प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुवाद की व्यवस्था होती है। जब कई भाषाओं के वक्ता एक सम्मेलन में अपनी-अपनी भाषा में विचार व्यक्त करते हैं तब उनके अनुवाद की व्यवस्था कठिन होती है तथापि अनुवाद की व्यवस्था यथासम्भव की जाती है। इसमें काफी प्रगति भी हुई है। इसके द्वारा देशों में मित्रता बढ़ रही है।
(9) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के गहन अनुसंधान के क्षेत्र में तो सारा लेखन कार्य उन्हीं भाषाओं में किया जाता है। इसीलिए इनके छात्र विदेशी भाषा सीखने को मजबूर होते हैं। वे विदेशी भाषा की सामग्री अपनी परिचित भाषा में अनुदित कर लेते हैं।
(10) संचार माध्यम में संचार के माध्यमों में अनुवाद का प्रयोग अनिवार्य होता है। इनमें मुख्य हैं समाचार-पत्र, रेडियो एवं दूरदर्शन। ये अत्यन्त लोकप्रिय हैं और हर भाषा में इनका प्रचार बढ़ रहा है। प्रादेशिक भाषाओं में समाचार पत्र समाचारों के लिए सरकारी सूचना, न्यूज एजेंसियों की दी हुई सामग्री, प्रादेशिक संवाददाताओं की डाक आदि पर निर्भर करते हैं। इनमें प्रादेशिक भाषाओं में सीमित सामग्री ही प्राप्त होती है।
(11) साहित्य के क्षेत्र में साहित्य अनुवाद के लिए सबसे उर्वर क्षेत्र प्रमाणित हो चुका है। प्रतिभा देश व भाषा की दीवार नहीं मानती, किन्तु अनुवाद के जरिए ही हम अन्य भाषा की प्रतिभाओं को पहचान सकते हैं। प्राचीन भाषाओं के बाङ्मय को आधुनिक युग के पाठक अनुवाद के सहारे ही समझ पाते हैं। हमारे ही देश में कुछ शताब्दियों पहले तक संस्कृत साहित्य खूब पढ़ा जाता था और बहुत लोग संस्कृत जानते थे। अब आधुनिक युग की भाषाओं का जोर है और संस्कृत जानने वाले कम। इसलिए अनुवाद से ही हम संस्कृत की सरसता ग्रहण करते हैं। एक सीमित क्षेत्र की भाषा में लिखे हुए उत्तम साहित्य ग्रन्थ संसार के व्यापक क्षेत्रों की भाषाओं में जब अनुदित होते हैं तब उनका प्रचार व उनके लेखकों का सम्मान बढ़ता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के बंगला छन्द अगर अंग्रेजी में अनुदित करके प्रकाशित न किए जाते तो उन्हें नोबेल पुरस्कार शायद ही मिलता। नोबेल पुरस्कार अव ऐसी भाषाओं की रचनाओं को भी सम्भव हो सका है जो अत्यन्त सीमित प्रदेश में व्यवहृत होती है।
अनुवाद शिक्षा में अत्यन्त उपयोगी उपाय का भी काम देता है। मातृभाषा में अनूदित बात छात्र के दिमाग में जितनी जल्दी बैठ जाती हैं, उतनी जल्दी विदेशी भाषा में बताई बात नहीं बैठती। अतएव अन्य भाषा शिक्षण में अनुवाद से काम लिया जाता है। आजकल प्रत्यक्ष विधि में अनुवाद प्रक्रिया अनुचित मानी गयी है। तथापि प्रौढ़ एवं कुछ भाषाओं में कुशल लोगों को नई भाषा सिखाते समय अनुवाद अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। अनुवाद से हम व्यतिरेकी प्रणाली पर परिचिति भाषा एवं नई भाषा का अंतर समझ सकते हैं। यह अंतर समझने पर गलतियाँ कम होती हैं।
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