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उत्तर प्रदेश में नवीन पंचायती राज प्रणाली
73वें संवैधानिक संशोधन को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश में अप्रैल 1994 में ‘उत्तर प्रदेश पंचायत कानून (संशोधन) अधिनियम 1994 पारित किया गया जिसकी कुछ प्रमुख व्यवस्थाएँ निम्नवत है-
(1) राज्य चुनाव आयोग के नियन्त्रण तथा देख-रेख में प्रत्येक ग्राम पंचायत के क्षेत्र के लिए मतदाता सूची तैयार की जायेगी। मतदाता सूची में उम्र प्रत्येक व्यक्ति को शामिल किया जायेगा जो 18 वर्ष की आयु का है तथा सम्बन्धित पंचायत क्षेत्र में रहता है।
(2) पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए 21 वर्ष की आयु का होना आवश्यक है।
(3) ग्राम पंचायत का एक प्रधान तथा एक उप-प्रधान होगा। राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़ी जातियों तथा महिलाओं के लिए प्रधान के पदों को आरक्षित किया जायेगा।
(4) ग्राम पंचायत की समाप्ति के साथ इसके सदस्यों तथा प्रधान का कार्यकाल भी समाप्त हो जायेगा।
(5) पंचायतों के सदस्यों की संख्या सम्बन्धित पंचायत क्षेत्र की जनसंख्या पर निर्भर करेगी।
(6) प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा जो पंचायत की पहली बैठक की तिथि से प्रारम्भ होगा।
(7) साधारणतया ग्राम पंचायत की प्रत्येक महीने कम से कम एक बैठक होगी।
(8) ग्राम पंचायत उन कार्यों को करेंगी जिनकी घोषणा समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा की जायेगी। वैसे अधिनियम में 33 कार्यों की सूची दी गयी है। पंचायतें सामान्यतः इन कार्यों को सम्पन्न करेंगी।
(9) ग्राम पंचायत प्रत्येक वर्ष अपने क्षेत्र के लिए एक विकास योजना तैयार करके उसे क्षेत्र पंचायत के सम्मुख प्रस्तुत करेंगी।
(10) प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने कार्यों को ठीक प्रकार से सम्पन्न करने के लिए समता समिति, विकास समिति, ग्राम शिक्षा समिति तथा लोकहित समिति का निर्माण करेगी।
(11) प्रत्येक पाँच वर्ष के बाद राज्यपाल द्वारा एक वित्त आयोग का गठन किया जायेगा जो ग्राम पंचायती, क्षेत्र पंचायतों तथा जिला पंचायतों की वित्तीय स्थिति पर विचार करेगा तथा अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।
(12) प्रत्येक ग्राम पंचायत अपनी आय तथा व्यय का वार्षिक बजट तैयार करेगी जिसे पंचायत के सदस्यों द्वारा साधारण बहुमत से पारित किया जायेगा।
ग्राम पंचायतों के कार्य
उत्तर प्रदेश के पंचायत कानून संशोधन अधिनियम, 1994 में ग्राम पंचायतों के कार्यों की एक विस्तृत सूची दी गयी है जिनमें से प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं-
(1) कृषि तथा बागवानी को प्रोत्साहन तथा विकास (2) बेकार पड़ी भूमि का विकास (3) लघु सिंचाई तथा जल प्रबन्ध, (4) पशुपालन, डेरी व्यवसाय तथा मुर्गी पालन का व्यवसाय, (5) मत्स्यपालन का विकास (6) वृक्षारोपण तथा वृक्षों को संरक्षण, (7) लघु उद्योगों के विकास में सहायता (8) कुटीर तथा ग्रामीण उद्योगों के विकास में सहायता (9) स्थानीय व्यवसायों को प्रोत्साहन, (10) ग्रामीण आवास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, (11) पेयजल की व्यवस्था, (12) ग्रामीण सड़कों, पुलों, पुलियाओं आदि का निर्माण, (13) सड़कों व मार्गों पर प्रकाश व्यवस्था (14) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को प्रोत्साहन (15) शिक्षा का प्रसार, (16) तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहन (17) ग्रामीण कलाओं तथा कारीगरों को प्रोत्साहन, (18) बीमारियों तथा महामारियों की रोकथाम, (19) ग्रामीण सफाई की व्यवस्था, (20) परिवार कल्याण कार्यक्रमों को प्रोत्साहन इत्यादि ।
उत्तर प्रदेश में पंचायतों के चुनाव- राज्य के पंचायत अधिनियम में संशोधन के बाद उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल-मई 1995 में कराए गए। इस बार ग्राम पंचायत व सरपंच के चुनाव प्रत्यक्ष हुए हैं। ग्रामीण मतदाताओं ने ब्लाक पंचायत व जिला पंचायत के सदस्यों को भी चुना।
ग्राम्य जीवन पर ग्राम पंचायतों का प्रभाव (सफलताएँ)
चूँकि ग्राम पंचायतों को ग्रामीण जनता की सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक दशाजों में सुधार करने हेतु व्यापक अधिकार दिए गए हैं इसलिए ग्रामीण जीवन पर इनका गहरा प्रभाव पड़ा है। उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों ने ग्रामीण जनता के जीवन को सुधारने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इनकी मुख्य सफलताएँ निम्न हैं-
(1) ग्राम पंचायतों ने राज्य सरकार को अधिक खायान्न उपजाओ आन्दोलन’ तथा ‘जमींदारी उन्मूलन कोष’ में पर्याप्त सहयोग दिया है।
(2) ग्राम पंचायतों द्वारा प्रति वर्ष ‘वन महोत्सव’ के अन्तर्गत लाखों वृक्ष लगाए जाते हैं।
(3) पंचायतों ने गाँवों में सड़के तथा मार्ग बनवाए हैं तथा उनकी सफाई व रोशनी का प्रबन्ध किया है। कीचड़ से भरी गलियों की सफाई पर ध्यान दिया गया है।
(4) गाँवों में शिक्षा प्रसार के लिए पाठशालाएँ खोली गई हैं।
(5) गाँवों में बीमारियों की रोकथाम के लिए चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं का प्रबन्ध किया गया है।
(6) पीने के पानी की व्यवस्था के लिए कुओं के निर्माण तथा उनकी सफाई पर ध्यान दिया है। इसके अतिरिक्त, नए तालाब खुदवाए गए हैं तथा पुराने तालाबों की मरम्मत कराई गई है।
(7) ग्रामीण जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा मनोरंजन हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में मेलों व तमाशों की व्यवस्था की गई है।
(8) ग्रामीण सार्वजनिक स्थानों में रेडियो लगवाए गए हैं तथा पुस्तकालय व वाचनालय खुलवाए गए हैं।
(9) गाँवों में रासायनिक खाद तथा उन्नत बीज का प्रचार किया गया है तथा खाद बनाने के लिए गड्ढे खुदवाए गए हैं।
(10) पंचायतों ने ग्रामीणों के आपसी झगड़ों को भी दूर करने का प्रयास किया है ताकि वे प्रेम-भाव तथा भाई-चारे से रह सकें पंचायती अदालतों की व्यवस्था द्वारा ग्रामीण जनता को सस्ता न्याय हुआ है तथा मुकदमेबाजी पर होने वाले पन की बरबादी रुकी है।
(11) आत्म-सहायता के उदाहरण के रूप में गाँव पंचायतों ने कई स्थानों पर सिंचाई के लिए नहरें खुदवाने में सहयोग दिया है तथा श्रमदान से स्कूल व सड़कें बनवाई हैं।
(12) गाँव पंचायतों ने ग्रामीण जनता के जीवन में एक नई प्रकार की चेतना, स्फूर्ति और उत्साह उत्पन्न करके उसे सभी प्रकार के कार्यों में भाग लेने की ओर प्रवृत्त किया है।
ग्राम पंचायतों के दोष (कठिनाइयाँ)
इनके प्रमुख दोष निम्नांकित हैं-
(1) अपर्याप्त वित्तीय साधन- पंचायतों के पास धन की कमी रहती है जिस कारण वे अपने आवश्यक कार्यों को भी सम्पन्न नहीं कर पाती। ग्राम पंचायतों को करारोपण करने या उसे समाप्त करने के लिए राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है।
(2) उचित नेतृत्व का अभाव- प्रायः ग्राम पंचायतों में जो व्यक्ति चुनकर आते हैं वे शिक्षित तथा दूरदर्शी नहीं होते तथा न ही निःस्वार्थ भाव से काम करने वाले आगे आ पाते हैं बल्कि चालाक तथा प्रभावशाली व्यक्ति इन पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लेते हैं। परिणामस्वरूप इन संस्थाओं के प्रति ग्रामीण जनता में अपनत्व की भावना उत्पन्न नहीं हो सकी है।
(3) ग्रामीण जनता में दलबन्दी- प्रायः देखने में यह आया है कि ग्राम पंचायतों के निर्वाचन ने ग्रामवासियों में भीषण कटुता तथा दलबन्दी को बढ़ावा दिया है।
(4) वर्ण-भेद तथा वर्ग संघर्ष- ग्रामीण जीवन में ऊँच-नीच की भावना आज भी भयानक रूप में पाई जाती है। ग्राम पंचायतों के ऊँची जाति के सदस्य नीची जाति वाले सदस्यों के साथ मिलकर काम करना पसन्द नहीं करते।
(5) ग्रामीण जनता की निरक्षरता तथा असहयोग की भावना- अशिक्षित होने के कारण ग्रामवासी पंचायतों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझते। सामान्य ग्रामीण लोग पंचायतों की गतिविधियों के प्रति उदासीन पाए जाते हैं।
(6) सरकारी हस्तक्षेप– सरकार पंचायतों के कार्यों में तो हस्तक्षेप करती रहती है, लेकिन उन्हें समुचित वित्तीय सहायता प्रदान नहीं करती। लेखपाल का ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अत्यधिक प्रभाव है। फिर पुलिस भी पंचों को परेशान करती रहती है।
सुधार के लिए सुझाव- गाँव पंचायतें अपने उत्तरदायित्व को भली-भाँति निभा सके, इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु कराधान जाँच आयोग (Taxation Enquiry Commission) ने निम्न सुझाव दिए है-
(1) ग्राम पंचायतों के कार्यों को जिला परिषद के कार्यों के साथ समन्वित कर दिया जाए।
(2) सहकारी संस्थाओं द्वारा भली-भाँति सम्पन्न किए जा सकने वाले कार्य गांव पंचायतों के अधिकार क्षेत्र से पृथक् कर दिए जाएँ।
(3) गाँव पंचायतों की स्थापना के बाद प्रारम्भ के कुछ वर्षों में उनका वित्तीय पोषण राज्य सरकार द्वारा सहायक अनुदानों के माध्यम से किया जाए। जब इनका आधार सुदृढ़ हो जाए तो इन्हें करारोपण का अधिकार दे दिया जाए।
कांग्रेस ग्राम पंचायत समिति (Congress Village Panchayat Committee) ने अपनी रिपोर्ट में गाँव पंचायतों के सफल कार्यान्वयन के लिए निम्न सुझाव दिए-
(1) राज्य सरकारों द्वारा इन निकायों को पर्याप्त अनुदान प्रदान किए जाएं ताकि ये अपने उत्तरदायित्व को भली-भाँति निभा सकें।
(2) पंचायतों को सामाजिक, आर्थिक, न्यायिक और म्यूनिसिपल अधिकार दिए जाए। अदालती पंचायतों के उत्तरदायित्व गाँव पंचायतों के दायित्व से अलग रखे जाएँ।
(3) एक गाँव पंचायत का कार्यक्षेत्र एक गाँव तक ही सीमित रखा जाए। यदि कहीं आस-पास के गाँवों को मिलाकर गाँव पंचायत का आयोजन किया जाता है तो ऐसे गांवों की जनसंख्या दो हजार से अधिक नहीं होनी चाहिए।
(4) ग्राम पंचायतों के कार्यों में सामुदायिक विकास एवं राष्ट्रीय प्रसार सेवा के कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाए। पंचायत के कर्मचारियों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाए।
(5) पंचायतें ग्रामीण जनता को जनतंत्र की शिक्षा प्रदान करें।
(6) ग्राम पंचायतों के कार्यों की समीक्षा करने हेतु निरीक्षण निकाय (Inspection Body) की स्थापना की जाए जिसके सदस्यों का चुनाव पंचायती अदालतों के सदस्यों द्वारा किया जाए।
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