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क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है? (Is Economics a Science)
निःसन्देह अर्थशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विज्ञान की सभी विशेषताएँ पाई जाती है जैसा कि निम्न विवरण मे स्पष्ट है
(1) क्रमबद्ध अध्ययन (Systematic Study)-अन्य विज्ञानों की भाँति अर्थशास्त्र में भी मानव को आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन क्रमबद्ध ढंग से किया जाता है।
(2) आर्थिक नियम एवं सिद्धान्त (Economic Laws)- अर्थशास्त्र में नियमों तथा सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है, जैसे मांग का नियम, पूर्ति का नियम, उपभोग के नियम आदि ।
(3) कारण और परिणाम में सम्बन्ध (Relation between Cause and Effect)- अर्थशास्त्र के नियम आर्थिक घटनाओं तथा तव्यों के कारण और परिणाम के सम्बन्ध की व्याख्या करते है। उदाहरणार्थ, मांग का नियम बतलाता है कि किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर सामान्यतया उसकी माँग कम हो जाती है। इसमें कीमत में वृद्धि कारण है और माँग में कमी परिणाम है।
(4) सार्वभौमिक सत्यता (Universality)-कुछ आर्थिक नियम सार्वभौमिक होते हैं, अर्थात् ये प्रत्येक व्यक्ति तथा स्थान पर समान रूप से लागू होते हैं, जैसे घटते सीमान्त तुष्टिगुण का नियम, घटते प्रतिफत का नियम इत्यादि।
(5) तब्बों का माप (Measurement of Facts)-अर्थशास्त्रियों के पास आर्थिक नियमों की सत्यता की जाँच करने के लिए मुद्रा रूपी मापदण्ड होता है। फिर अन्य विज्ञानों की भांति अर्थशास्त्र में भी प्रयोग (experiments) सम्भव हैं। इतना अवश्य है कि अर्थशास्त्र में कोई निश्चित प्रयोगशाला नहीं होती बल्कि अर्थशास्त्री के लिए तो समस्त समाज ही प्रयोगशाला होता है। समाज में रहने वाले व्यक्तियों के अनुभवों, गतिविधियों आदि के आधार पर ही आर्थिक नियम बनाए जाते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विज्ञान की सभी विशेषताएं पाई जाती हैं।
अर्थशास्त्र किस प्रकार का विज्ञान है ?-
अब यह प्रश्न उठता है कि अर्थशास्त्र कौन-सा विज्ञान है, अर्थात् यह वास्तविक विज्ञान है या आदर्शात्मक विज्ञान।
(i) अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के रूप में (Economics as a Positive Science)-इस कसौटी पर अर्थशास्त्र खरा उतरता है, अर्थात् निःसन्देह अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है। अर्थशास्त्र आर्थिक घटनाओं की वस्तुस्थिति (क्या है) का अध्ययन करता है। इसके प्रत्येक विभाग में आर्थिक तथ्यों के कारण तथा परिणाम के मध्य सम्बन्ध स्थापित करके आर्थिक नियम (Economic Laws) प्रतिपादित किए जाते हैं। उदाहरणार्थ, उपभोग के क्षेत्र में सीमान्त सुष्टिगुण हास नियम’ बताता है कि कोई व्यक्ति जैसे-जैसे किसी वस्तु की इकाइयों का निरन्तर उपभोग करता जाता है, वैसे-वैसे उसको उस वस्तु से मिलने वाला सीमान्त तुष्टिगुण घटना जाता है। इस नियम में वस्तु का निरन्तर उपभोग कारण हुआ तथा सीमान्त तुष्टिगुण का कम होना परिणाम हुआ इसी प्रकार उत्पादन के क्षेत्र में उत्पत्ति के नियम, विनिमय के क्षेत्र में मूल्य निर्धारण के सिद्धान्त तथा वितरण के क्षेत्र में लगान, व्याज, मजदूरी तथा लाभ के सिद्धान्त आर्थिक तथ्यों के कारण तथा परिणाम के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस प्रकार अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है। इस विचारधारा के प्रमुख समर्थकों के मत नीचे प्रस्तुत हैं—
सीनियर (Senior) के मतानुसार, राजनीतिक अर्थशास्त्री का कार्य किसी काम को करने अथवा न करने का उपदेश देना नहीं है, वरन केवल सामान्य तथ्यों की विवेचना करना है।”
रॉबिन्स ने इस सम्बन्ध में अपने विचार विभिन्न कवनों के रूप में प्रस्तुत किए हैं- (1) “अर्थशास्त्र चाहे और किसी भी बात से सम्बन्धित हो, किन्तु यह भीतिक कल्याण के कारणों से सम्बन्धित नहीं हो सकता।” (2) “अर्थशास्त्र साधनों की व्याख्या करता है, उद्देश्यों का अध्ययन अर्थशास्त्र के क्षेत्र से बाहर है।” (3) “एक अर्थशास्त्री का कार्य खोज तथा व्याख्या करना है न कि अनुमोदन या निन्दा करना” (4) अर्थशास्त्र लक्ष्यों के प्रति तटस्थ है।”
(ii) अर्थशास्त्र आदर्शात्मक विज्ञान के रूप में (Economics as a Normative Science)- इस सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों में तीव्र मतभेद रहा है। रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान माना है किन्तु मार्शल, पीग, बोल्डिंग, डरविन, फ्रंजर, देवरिंज आदि विद्वानों ने अर्थशास्त्र को आदशांत्मक विज्ञान माना है। उनके विचार में अर्थशास्त्र हमारे सम्मुख आदर्श प्रस्तुत करता है। अर्थशास्त्र बतलाता है कि गरीबी, अति-जनसंख्या, बेरोजगारी आदि गम्भीर आर्थिक समस्याएँ हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। अर्थशास्त्र इन बातों पर भी दृष्टिपात करता है कि मजदूरी कितनी होनी चाहिए, धनी व्यक्तियों पर कितना कर लगाना चाहिए, मालगुजारी कितनी होनी चाहिए आदि ।
मार्शल, पीगू आदि ने अर्थशास्त्र को ‘कल्याण’ से सम्बन्धित किया है। पीगू (Pigou) के विचार में प्रत्येक विज्ञान के दो पक्ष है- (1) ज्ञानदायक, तथा (ii) फलदायक किसी विज्ञान में ज्ञानदायक पक्ष अधिक प्रवत होता है तो किसी में फलदायक पक्ष अर्थशास्त्र का फलदायक पक्ष ही अधिक प्रवत्त तथा उपयोगी है। एक अन्य स्थान पर पीगू ने लिखा है, “हम अर्थशास्त्र का अध्ययन एक दार्शनिक की दृष्टि से केवल ज्ञान-प्राप्ति के लिए ही नहीं करते वरन् एक चिकित्सक के दृष्टिकोण से लाभ पहुंचाने के ध्येय से भी करते हैं।”
हाट्रे (Hawtrey) के शब्दों में, अर्थशास्त्र की नीतिशास्त्र से पृथक् नहीं किया जा सकता।”
मैकफाई (Macfie) के विचार में, “अर्थशास्त्र मूल रूप से एक आदर्शात्मक विज्ञान है, यह रसायनशास्त्र की भाँति केवल एक वास्तविक विज्ञान नहीं है।”
केयर्नक्रास (Cairncross) लिखते हैं “अर्थशास्त्री नीतिशास्त्र को अपने विषय के विश्लेषण में लाने से चाहे कितना ही क्यों न सकुचाता हो परन्तु मार्गदर्शन करने के लिए, जो उससे अपेक्षित है, नीतिशास्त्र को अर्थशास्त्र में लाना ही पड़ेगा।”
इस प्रकार स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र वास्तविक तथा आदर्शात्मक दोनों प्रकार का विज्ञान है।
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