कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

ग्रामीण समाजशास्त्र : अर्थ, क्षेत्र तथा महत्त्व (Rural Sociology : Meaning, Scope and Importance)

ग्रामीण समाजशास्त्र : अर्थ, क्षेत्र तथा महत्त्व (Rural Sociology : Meaning, Scope and Importance)
ग्रामीण समाजशास्त्र : अर्थ, क्षेत्र तथा महत्त्व (Rural Sociology : Meaning, Scope and Importance)

ग्रामीण समाजशास्त्र : अर्थ, क्षेत्र तथा महत्त्व (Rural Sociology : Meaning, Scope and Importance)

ग्रामीण जनता, ग्रामीण सामाजिक संगठन तथा ग्रामीण समाज में कार्यरत सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन ही ग्रामीण जीवन का समाजशास्त्र है |

-स्टुअर्ट चेपिन

ग्रामीण समाजशास्त्र का अर्थ (Meaning of Rural Sociology)

‘ग्रामीण समाजशास्त्र‘ गाँव या ग्रामीण समाज का अध्ययन है। दूसरे शब्दों में, यह समाजशास्त्र की एक शाखा है जो ग्रामीण समाज का अध्ययन करती है। ग्रामीण समाज तथा नगरीय समाज में अनेक मूलभूत अन्तर पाए जाते हैं जिस कारण ग्रामीण समाज का पृथक् से अध्ययन करना आवश्यक है। इस प्रकार ‘ग्रामीण समाजशास्त्र’ एक विशेष प्रकार का समाजशास्त्र है जो ग्रामीण समाज की सामाजिक संरचना, सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक नियन्त्रण का अध्ययन करता है। ग्रामीण समाजशास्त्र के नाम से ही इसका विषय स्पष्ट हो जाता है। इसका सम्बन्ध ‘समाजशास्त्र के उस अंग से है जो ग्राम्य-जगत, ग्राम्य-जीवन तथा ग्रामीण सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों में, ग्रामीण समाजशास्त्र’ ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलुओं का क्रमिक एवं व्यवस्थित ज्ञान है। इसका अर्थ यह हुआ कि ग्रामीण पर्यावरण में जीवनयापन करने वाले व्यक्ति तथा ग्रामीण घटकों से प्रभावित होने वाले समूह तथा उनकी सामाजिक गतिविधियाँ-ग्रामीण समाजशास्त्र की विषय-सामग्री हैं। इस प्रकार ग्रामीणता (ruralism) को ग्रामीण समाजशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है तथा यह ग्रामीणता के समस्त पहलुओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।

ग्रामीण समाजशास्त्र की परिभाषाएँ- ग्रामीण समाजशास्त्र के अर्थ तथा विषय सामग्री को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं।

(1) स्मिथ के अनुसार, “ग्रामीण समाजशास्त्र की संज्ञा उन समाजशास्त्रीय तथ्यों तथा सिद्धान्तों को दिए जाने योग्य है जो ग्रामीण सामाजिक सम्बन्धों के गहन अध्ययन से प्राप्त होते हैं।

(2) सेंडरसन (Sanderson) के शब्दों में, “ग्रामीण समाजशास्त्र, ग्रामीण पर्यावरण में निहित जीवन का समाजशास्त्र है।

(3) ए० आर० देसाई के विचार में, “ग्रामीण समाजशास्त्र, ग्रामीण समाज का विज्ञान है। साधारण रूप से ग्रामीण समाज के ढाँचे तथा विकास के सिद्धान्त किसी समाज विशेष का नियन्त्रण एवं संचालन करने वाले असाधारण नियमों का पता लगाने में हमारी सहायता कर सकते हैं, वस्तुतः ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण समाज के विकास के नियमों का विज्ञान है।

संक्षेप में, “ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण जीवन सम्बन्धी सामाजिक घटनाओं तथा सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है। इसका मूलभूत कार्य ग्रामीण समाज के विकास का पता लगाना है। इस दृष्टि से ग्रामीण समाजशास्त्र विकासशील विषय है।

ग्रामीण समाजशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Rural Sociology)

ग्रामीण समाजशास्त्र एक नवीन तथा प्रगतिशील सामाजिक विज्ञान है जिस कारण इसके विषय-क्षेत्र को निर्धारित करना अत्यन्त कठिन है। इसके विषय-क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए सिम्सन (Simson) ने लिखा है, “ग्रामीण समाजशास्त्र का क्षेत्र कृषि पर निर्भर रहने वाले या उससे जीविका कमाने वाले व्यक्तियों के सहयोग का अध्ययन है। ग्रामीण समूह तथा समूह-व्यवहार इससे सम्बन्धित हैं।

लोरी नेलसन (Lawery Nelson) के अनुसार, “ग्रामीण समाजशास्त्र की विषय सामग्री ग्रामीण पर्यावरण में पाए जाने वाले विभिन्न समूहों की प्रगति का वर्णन तथा विश्लेषण है। ग्रामीण समाजशास्त्र में ग्रामीण समाज सम्बन्धी निम्न बातों का अध्ययन किया जाता है-

(1) ग्रामीण जीवन की समस्याओं का अध्ययन (Study of Problems of Rural Life)-ग्रामीण समाजशास्त्र में ग्रामीण जीवन की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। निर्धनता, निरक्षरता, रोग, शोचनीय जीवन-स्तर, आवास, मनोरंजन के साधनों का अभाव, रूढ़िवादिता, धार्मिक अन्य-विश्वास आदि कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जो भारतीय ग्रामीण जीवन में व्याप्त है।

(2) ग्रामीण सामाजिक जीवन (Rural Social Life)-ग्रामीण समाजशास्त्र का उद्देश्य ही ग्रामीण सामाजिक जीवन का अध्ययन करना है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण लोग, ग्रामीण जनसंख्या, पर्यावरण, जीवनयापन का स्तर, व्यवसाय आदि बातें आती हैं।

(3) ग्रामीण सामाजिक संगठन (Rural Social Organisation) – ग्रामीण समाजशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण कार्य ग्रामीण सामाजिक संगठन का ज्ञान प्रदान करना है। इस दृष्टि से इस शास्त्र का उद्देश्य ग्रामीण परिवार, ग्रामीण विवाह, ग्रामीण शिक्षा, ग्रामीण धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थाएँ तथा वर्ग विभाजन आदि का अध्ययन करना है।

(4) ग्रामीण संस्थाएँ (Rural Institutions) – ग्रामीण समाजशास्त्र’ गाँवों की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं का भी अध्ययन करता है।

(5) ग्रामीण समुदाय (Rural Community)– ‘ग्रामीण समाजशास्त्र’ ग्रामीण समुदायों के लक्षण, स्वरूपों, कार्यों आदि का अध्ययन करता है। ग्रामीण समुदाय व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में स्थायी रूप से रहता हो और जिसके सदस्यों में सामुदायिक भावना तथा सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक सम्बन्ध विकसित हो चुके हो जोकि उन्हें अन्य समुदायों से अलग करते हों।

(6) ग्रामीण सामाजिक संरचना (Rural Social Structure)- ‘ग्रामीण समाजशास्त्र’ यस्तुतः ग्रामीण सामाजिक संरचना का समुचित अध्ययन करता है।

(7) ग्रामीण तथा नगरीय विभेद (Rural and Urban Difference) ग्रामीण जीवन का समुचित अध्ययन करने के लिए यह जानना जरूरी है कि ग्राम तथा नगर में क्या अन्तर है। ग्रामीण समाजशास्त्र इस अन्तर को भली-भाँति स्पष्ट करता है।

(8) ग्रामीण नियोजन तथा पुनर्निर्माण (Rural Planning and Reconstruction)- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से देश निर्माण कार्य में लगा हुआ है। देश के नवनिर्माण के लिए गाँवों का पुनर्निर्माण परमावश्यक है क्योंकि देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है। इसलिए ग्रामीण समाजशास्त्र में ग्रामीण नियोजन तथा पुनर्निर्माण प्रक्रिया का समुचित अध्ययन किया जाता है।

ग्रामीण समाजशास्त्र का महत्त्व (Importance of Rural Sociology)

भारत गाँवों का देश है। देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या अब भी गाँवों में रहती है। नगरों में भी सभी लोग गाँवों से पहुँचते हैं, अर्थात् गाँव ही बढ़कर नगर बन जाते हैं। ग्राम ही भारतीय संस्कृति के मूल स्रोत हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था मूलतः औद्योगिक न होकर कृषि प्रधान है। अतः देश का आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान भारतीय गाँवों के सर्वांगीण विकास के बिना सम्भव नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक सभी दृष्टिकोणों से भारत का भविष्य गाँवों पर निर्भर है।

गाँवों के सर्वांगीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि ग्रामीण समाज के नियमों को समझकर उनके अनुसार ही विकास नीतियाँ बनाई जाएँ, तभी सुधार और विकास स्थायी हो सकेगा। तभी गांव के लोग विकास योजनाओं को अपनी योजनाएँ समझकर उनमें सहयोग दे सकेंगे। इसके लिए ग्रामीण समाज के विशेष अध्ययन की आवश्यकता है। ग्रामीण धर्म तथा संस्कृति की विशेषताओं तथा गुण-दोषों को समझे बिना ग्रामीण कार्यकर्त्ता ग्रामीण पुनर्निर्माण के कार्य में सफल नहीं हो सकेंगे।

इस प्रकार भारत में ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन का अत्यधिक महत्त्व है। ग्रामीण समाजशास्त्र का ज्ञान विकास योजनाओं की पृष्ठभूमि के रूप में काम करता है। वस्तुतः ग्रामीण समाजशास्त्र का अध्ययन ग्रामीण समाज के विकास परिवर्तन, नियन्त्रण आदि के नियम स्पष्ट करता है, जिन्हें दृष्टि में रखने पर ही ग्रामीण विकास की योजनाओं में सफलता मिल सकती है। आजकल भारत सरकार गाँवों का सर्वांगीण विकास करने के लिए प्रयत्नशील है। इस प्रयास में लगे सरकारी कर्मचारियों को ग्रामीण समाजशास्त्र का ज्ञान होना जरूरी है, तभी वे अपने उद्देश्य में सफल हो सकेंगे।

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Anjali Yadav

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