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जीवन-स्तर (Standard of Living).
वे आवश्यकताएँ जिन्हें कोई व्यक्ति अपने सामान्य जीवन में समुष्ट करता है तथा ये आवश्यक आरामदायक तथा विनासिता को वस्तुएँ जिनके उपभोग का यह आदी हो गया है, उसके रहन-सहन के स्तर की द्योतक है-
-एली
जीवन स्तर का अर्थ (Meaning of Standard of Living)
समाज के किसी वर्ग का जीवन स्तर उस वर्ग के औसत परिवारों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं के गुण व परिमाण द्वारा जाना जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ के एक प्रकाशन के अनुसार, “जीवन-स्तर उन समस्त वस्तुओं तथा सेवाओं के समूह द्वारा निश्चित होता है जिनके उपभोग का समाज का कोई वर्ग अभ्यस्त हो गया है। इस प्रकार जीवन स्तर में आवश्यक, आरामदायक तथा विलासितापूर्ण तीनों ही प्रकार की वस्तुएँ तथा सेवाएं सम्मिलित की जाती हैं। जब कोई व्यक्ति, पर्याप्त समय तक कुछ वस्तुओं व सेवाओं का उपभोग करता रहता है तो वह उनके उपभोग का आदी या अभ्यस्त हो जाता है। ऐसी ही वस्तुओं तथा सेवाओं उस व्यक्ति का जीवन स्तर अथवा रहन-सहन का स्तर निर्धारित होता है।
सापेक्ष ( तुलनात्मक) अवधारणा (Relative Concept)-जीवन-स्तर एक तुलनात्मक अवधारणा है। इसकी सहायता से हम किसी वर्ग के विभिन्न कालों के जीवन स्तर तथा एक ही समय के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन स्तर की तुलना करते हैं।
जीवन स्तर के प्रकार (Kinds of Standard of Living)
जीवन स्तर के तीन भेद हैं-(i) उच्च जीवन-स्तर (High Standard of Living)-इस स्तर के लोग अपनी आवश्यकताओं को आसानी से सन्तुष्ट कर लेते हैं, अर्थात् ऐसे व्यक्ति अनिवार्य, आरामदायक तथा विलासिता सभी प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग करने में समर्थ होते हैं। (ii) मध्य जीवन-स्तर (Medium Standard of Living)-इस स्तर के लोग सीमित आय के कारण अपनी सभी प्रकार की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं कर पाते (iii) निम्न जीवन स्तर (Low Standard of Living)—इस स्तर के लोग आय के निम्न होने के कारण अपनी सभी अनिवार्य आवश्यकताओं की भी सन्तुष्टि नहीं कर पाते।
जीवन स्तर को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting Standard of Living)
किसी व्यक्ति, परिवार अथवा वर्ग के जीवन स्तर को मुख्यतः दो प्रकार के तत्व प्रभावित करते हैं–(I) व्यक्तिगत तत्त्व, तथा (II) बाह्य परिस्थितियाँ
(I) व्यक्तिगत तत्त्व (Individual Factors)- किसी व्यक्ति अथवा वर्ग का जीवन स्तर बहुत कुछ उसके निम्न वार्णित व्यक्तिगत घटकों पर निर्भर करता है-
(1) मनुष्य की आय- सामान्यतः किसी व्यक्ति वा परिवार की आय जितनी अधिक होती है उसका जीवन स्तर उतना ही ऊँचा होता है क्योंकि वह व्यक्ति या परिवार उतनी ही अधिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि कर सकता है। इसके विपरीत, आय कम होने पर जीवन स्तर भी निम्न होता है।
(2) व्यय करने का ढंग- जीवन स्तर पर इस बात का भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है कि कोई व्यक्ति अपनी आय को किस प्रकार तथा किन मदों पर खर्च करता है। अधिक आय प्राप्त करने पर भी यदि कोई व्यक्ति अपनी अधिकांश आय को शराब, सिगरेट आदि मादक वस्तुओं पर खर्च कर देता है तो उसका जीवन स्तर ऊँचा नहीं होगा। इसके विपरीत, जो व्यक्ति आपनी आप को बहुत सोच समझकर तथा सम-सीमान्त तुष्टिगुण नियम के अनुसार व्यय करता है उसका जीवन स्तर अपेक्षाकृत ऊंचा होगा।
(3) उपभोग पर व्यय- कोई व्यक्ति अपनी आय का दो प्रकार से उपयोग कर सकता है-उपभोग पर खर्च करके अथवा बचत करके कोई व्यक्ति उपभोग पर जितना अधिक खर्च करता है उसका जीवन स्तर उतना ऊँचा होता है।
(4) व्यक्तिगत दृष्टिकोण- किसी व्यक्ति का जीवन स्तर उसके जीवन सम्बन्धी दृष्टिकोण पर भी निर्भर करता है। सादा जीवन उच्च विचार का आदर्श रखने वाले व्यक्ति का जीवन स्तर निम्न होगा। इसके विपरीत, अपनी आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति का जीवन स्तर ऊंचा होगा।
(5) शिक्षा तथा बौद्धिक विकास- शिक्षित व्यक्ति अपनी बुद्धिमत्ता से अपनी आय को इस प्रकार खर्च करता है कि उसे अधिकाधिक सन्तुष्टि प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त, शिक्षित व्यक्ति की आवश्यकताओं में वृद्धि होती रहती है जिनकी सन्तुष्टि किए जाने पर उसका जीवन स्तर उन्नत हो जाता है।
(6) देश-विदेश भ्रमण- जो व्यक्ति देश-विदेश में भ्रमण के लिए जाते हैं उन्हें नाना प्रकार की वस्तुओं के उपभोग का अवसर प्राप्त होता है जिस कारण उनका जीवन स्तर हो जाता है।
(II) बाह्य परिस्थितियाँ (External Circumstances) किसी व्यक्ति के रहन-सहन पर उसके चारों ओर के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। मुख्य बाह्य घटक निम्नांकित हैं-
(1) प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता- जिस देश में भूमि, खनिज पदार्थ, जल आदि प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य होता है वहाँ धनोत्पादन भी उतना ही अधिक किया जा सकता है। पन का उत्पादन अधिक होने पर यहाँ के लोगों का जीवनस्तर उन्नत होगा।
(2) प्राकृतिक संसाधनों का विकास- किसी देश के निवासियों के जीवन स्तर के उन्नत होने के लिए यहाँ प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का उपलब्ध होना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि जीवन स्तर के उन्नत होने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अनुकूलतम तथा अधिकतम उपयोग भी आवश्यक है ताकि पर्याप्त मात्रा में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके।
(3) राष्ट्रीय आय का वितरण- राष्ट्रीय आय के असमान वितरण का देश के जीवन स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, यदि राष्ट्रीय आय का वितरण न्यायोचित है तो इससे साधारण लोगों का जीवन स्तर उन्नत हो जाता है।
(4) मुद्रा की क्रय-शक्ति- यदि किसी देश में कीमत-स्तर ऊंचा है तो वहाँ मुद्रा की क्रय-शक्ति कम होगी। इसका जीवन स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, मुद्रा की कय-शक्ति के अधिक होने पर मुद्रा से अपेक्षाकृत अधिक वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदी जा सकती है जिससे लोगों का जीवन स्तर ऊँचा हो जाता है।
(5) कार्यशील पूंजी— जिन देशों में कार्यशील पूँजी (working capital) की अधिकता होती है वहाँ उत्पादन में समुचित वृद्धि की जा सकती है। इसके विपरीत, पूंजी की कमी होने पर देश के प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन नहीं किया जा सकता जिस कारण लोगों का जीवन स्तर ऊँचा नहीं होता।
(6) देश में शान्ति व सुरक्षा- देश में जशान्ति या युद्ध की सम्भावना होने पर समुचित मात्रा में धनोत्पादन नहीं किया जा सकता जिस कारण लोगों को पर्याप्त मात्रा में उपभोग-वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हो पायेंगी। इसके विपरीत, देश में शान्ति तथा सामाजिक सुरक्षा जीवन स्तर को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ाती हैं।
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