निगम नियोजन से आप क्या समझते हैं?
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निगम नियोजन (Corporate Planning)
निगम नियोजन, नियोजन का ही एक अंग है। यह स्वयं उद्योगपतियों अथवा उच्च प्रबन्ध द्वारा दीर्घकालीन रणनीति के अन्तर्गत तैयार किया जाता है। इसका मूलभूत उद्देश्य कम्पनी का विकास एवं विस्तार करता है। विभिन्न प्रबन्धशास्त्रियों ने निगम नियोजन को इस प्रकार परिभाषित किया है-
इ० एफ० एल० ब्रेच के अनुसार, “निगम नियोजन एक व्यापक योजना है जिसमें उस पर्यावरण की नियमित समीक्षा सम्मिलित है, जिसके अन्तर्गत संगठन कार्यरत है तथा इसमें यह निश्चित किया जाता है कि कम्पनी का मुख्य उद्देश्य क्या है तथा इसे प्राप्त करने की उसमें कितनी क्षमता है। “
स्टेनियर के अनुसार, “निगम नियोजन संगठन के मुख्य उद्देश्य निर्धारित करने तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नीतियाँ एवं रणनीतियाँ बनाने की प्रक्रिया है ताकि संसाधनों की प्राप्ति, प्रयोग तथा बँटवारे को नियन्त्रित किया जा सके।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि निगम नियोजन कम्पनी के विस्तार एवं विकास के लिए स्वयं उद्योगपतियों तथा उच्च प्रबन्ध द्वारा दीर्घकालीन नियोजन है, जिसका निर्धारण दीर्घकालीन रणनीति के अन्तर्गत किया जाता है।
निगम नियोजन की विशेषताएँ (Characteristics of Corporate Planning)
निगम नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ अथवा लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) भारी विनियोजन – निगम नियोजन क्योंकि दीर्घकालीन होता है अतः इसमें भारी विनियोजन की आवश्यकता होती है प्रत्याय भी लम्बी अवधि के पश्चात् मिलने की सम्भावना रहती है। जितनी अधिक लम्बी अवधि होगी, विनियोजन की जोखिम उतनी ही अधिक होगी।
(2) योजना निर्माण के लाभ- निगम नियोजन भावी लोगों का ध्यान में रखकर किया जाता है। सम्भावित लाभ जितने अधिक होंगे, निगम नियोजन उतना ही अधिक क्रियाशील एवं प्रभावी होगा।
(3) दीर्घकालीन नियोजन- निगम नियोजन दीर्घकालीन नियोजन होता है। वारेन के शब्दों में, “दीर्घकालीन नियोजन वह प्रक्रिया है जो भविष्य को ध्यान में रखते हुए वर्तमान निर्णयों का मार्गदर्शन करती है तथा यह भावी निर्णयों को शीघ्रता, मितव्ययिता तथा न्यूनतम अवरोधों से लेने का साधन है।”
(4) नीतियों, उद्देश्य एवं लक्ष्यों पर आधारित- निगम नियोजन उपक्रम के उद्देश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपक्रम की मूल नीतियों के अन्तर्गत एक विस्तृत कार्य योजना बनायी जाती है।
(5) जोखिमयुक्त – निगम नियोजन दीर्घकालीन होता है अतः इसमें जोखिम की मात्रा भी अधिक होती है। कम्पनी में जिस वस्तु के उत्पादन की योजना बनाती है कुछ समय बाद वह वस्तु ग्राहकों में अरूचिपूर्ण हो जाती है जैसे कुछ साल पहले V.C.R. व V.C.P. की बहुत मांग थी आज उसका स्थान C.D. ने ले लिया है V.C.R. व V.C.P. को कोई पूछने वाला नहीं अतः निगम नियोजन में जोखिम बहुत है।
(6) अलग संगठन- निगम नियोजन लम्बी अवधि का होने के कारण इसके लिए अलग से संगठन की आवश्यकता पड़ती है। यह संगठन किसी बड़े अधिकारी के अधीन होता है जो निगम नियोजन के विभाग की प्रगति एवं प्रसार के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है।
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