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नियोजन से क्या आशय है ? What is meant by planning? in Hindi

नियोजन से क्या आशय है ? What is meant by planning? in Hindi
नियोजन से क्या आशय है ? What is meant by planning? in Hindi

नियोजन से क्या आशय है ? 

नियोजन प्रक्रिया अथवा नियोजन में उठाये जाने वाले कदम (Planning Process or Steps to be taken in Planning)

योजना चाहे छोटी हो अथवा बड़ी उसे तर्कसंगत एवं व्यावहारिक बनाने के लिए कुछ आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं। इसे नियोजन प्रक्रिया भी कहते हैं। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रबन्धकीय विद्वानों ने नियोजन के विभिन्न चरणों अथवा कदमों का वर्णन किया है। इस सम्बन्ध में कुण्ट्ज एवं ओ’डोनेल तथा रिचार्ड टी० केस आदि ने नियोजन के अन्तर्गत उठाये जाने वाले 6 कदम बतायें हैं, जबकि जार्ज आर० टैरी ने 8 कदम बताये हैं। इन कदमों का क्रमानुसार संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार हैं-

(1) लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों को निर्धारित करना- किसी भी योजना का प्रारम्भ लक्ष्यों के निर्धारण से होता है। अतः सबसे पहले किसी व्यावसायिक उपक्रम की योजना के लक्ष्य निर्धारित किए जाने चाहिए। शुरू में समस्त उपक्रम के सामान्य लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं तथा फिर विभागीय एवं उप-विभागीय लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। लक्ष्य निर्धारण के उपरान्त उपक्रम के समस्त अधिकारियों को योजना के लक्ष्यों से परिचित कराना भी आवश्यक होता है कि ताकि वे उनकी प्राप्ति के लिए निरन्तर योजनानुसार कार्य करते रहें। ये लक्ष्य पूर्णतया स्पष्ट होने चाहिए ताकि अधिकारीगण उन्हें सरलता से समझ सकें एवं क्रियान्वित कर सकें।

(2) सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण- नियोजन के उद्देश्यों का निर्धारण होने के पश्चात उठाया जाने वाला दूसरा क्रमानुसार कदम नियोजन से सम्बन्धित कियाओं के सम्बन्ध में आवश्यक तथ्यों एवं सूचनाओं का संकलन किया जाना है। ये सूचनाएँ आन्तरिक एवं बाहरी स्रोतों से प्राप्त की जा सकती हैं। इस सम्बन्ध में पुराने अभिलेख, फाइलें, अनुभव, प्रतिस्पर्धी संस्थाओं की क्रियाओं का अवलोकन, आदि सहायक सिद्ध हो सकते हैं। सूचनाओं का संकलन करने के पश्चात् उनका विश्लेषण करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि ये तथ्य एवं सूचनाएँ नियोजन को किस प्रकार प्रभावित कर सकती हैं एवं उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। विश्लेषण का मूलभूत उद्देश्य सूचनाओं की उपयोगी, सरल एवं उद्देश्यों के अनुरूप बनाना होना चाहिए।

(3) नियोजन के आधारों का निर्धारण- नियोजन का तीसरा क्रमानुसार कदम उसके आधारों की स्थापना, उपयोग पर सहमति तथा जटिल नियोजन आधारों का विच्छेदन करना है। नियोजन के आधार भविष्य के अनुसार होते हैं तथा भावी परिस्थितियों के सम्बन्ध में तथ्यपूर्ण सूचनाएँ देते हैं। अतः नियोजन की सफलता में आधारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। भविष्य में किस प्रकार का बाजार होगा, विक्रय की मात्रा कितनी होगी, क्या मूल्य होंगे, क्या उत्पादन होगा, क्या लागत होगी, क्या मजदूरी होगी, करों की दरें एवं नीतियाँ क्या होगी, किन नये संयंन्त्रों की स्थापना होगी, विस्तार कार्यक्रमों का वित्तीय प्रबन्ध किस प्रकार से होगा, लाभांश के सम्बन्ध में नीति क्या होगी, इत्यादि का पूर्वानुमान करना आवश्यक होता है। साथ ही जनसंख्या, मूल्यों लागतों, उत्पादन, बाजारों तथा अन्य समान मामलों के सम्बन्ध में भी पूर्वानुमानों का ध्यान रखना होता है। इ पूर्वानुमानों के आधार पर ही नियोजन के आधारों का निर्धारण होता है। इन आधारों की जानकारी सम्बन्धित प्रबन्धकों को पहले से ही करा देनी चाहिए।

(4) वैकल्पिक तरीकों का निर्धारण करना— नियोजन का चतुर्थ क्रमानुसार कदम किसी कार्य को करने के लिए वैकल्पिक तरीकों की तलाश करना एवं उनका परीक्षण करना है। कुण्ट्ज तथा ओ’डोनेल के अनुसार, “शायद ही ऐसी कोई योजना हो जिसके लिए विभिन्न युक्तिपूर्ण विकल्प न हों।” अतः इन विकल्पों की तलाश करने तथा उपयोगिता के आधार पर उनकी संख्या सीमित करने के उपरान्त उनका परीक्षण करना चाहिए। एक बड़ी योजना के लिए परीक्षण करने का कार्य बहुत जटिल हो सकता है। इसके लिए लागत एवं आय के पूर्वानुमानों, रोकड़ की स्थिति तथा अनेक अन्य पहलुओं पर विस्तृत रूप में विचार-विनिमय करने तथा आँकड़ों का संकलन किए जाने की आवश्यकता पड़ सकती है। उदाहरण के लिए कुछ समय पूर्व अमेरिका में ऐल्यूमिनियम का एक नया संयन्त्र स्थापित करने के सम्बन्ध में अमेरिकन ऐल्यूमिनियम कम्पनी ने देश के विभिन्न स्थानों पर न केवल विद्युत की लागत, उपयुक्त स्थान की उपलब्धता, कच्चे तथा निर्मित माल के यातायात की लागत, शक्ति के संचार की लागत तथा अन्य समान तत्वों का जोकि आँकड़ों में कमी करने में सहायक हो सकते हैं—अध्ययन किया अपितु अन्य तत्वों; जैसे—संयंत्र के सम्बन्ध में स्थानीय लोगों की सम्पत्ति तथा पूँजी जोखिम का भी अध्ययन किया।

(5) वैकल्पिक तरीकों का मूल्यांकन करना- किसी कार्य करने के वैकल्पिक तरीकों की तलाश एवं उनका परीक्षण करने के उपरान्त नियोजन का पंचम क्रमानुसार महत्वपूर्ण कदम विकल्पों का तुलनात्मक मूल्यांकन करना है। यह कार्य आधार एवं लक्ष्यों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी होता है। कि किसी कार्य को करने का तरीका किसी एक दृष्टि से सर्वोत्तम प्रतीत होता है तथा दूसरा कार्य करने का तरीका किसी अन्य दृष्टि से सर्वोत्तम प्रतीत हाता है। ऐसी दशा में उसका तुलनात्मक मूल्यांकन करना कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, कार्य करने का एक तरीका बहुत लाभदायक प्रतीत हो सकता है किन्तु उसके लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता प्रतीत हो सकती है। इसके विपरीत, दूसरा तरीका अपेक्षाकृत लाभदायक प्रतीत हो सकता है किन्तु उसके लिए कम पूँजी तथा कम जोखिम की आवश्यकता हो सकती है। इसी प्रकार तीसरा तरीका कम्पनी के दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिक उपयुक्त हो सकती है। इसी प्रकार तीसरा तरीका कम्पनी के दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिक उपयुक्त हो सकता है। इतना होते हुए भी वैकल्पिक कार्य के तरीकों का तुलनात्मक मूल्यांकन तो करना ही होगा, तभी सफल नियोजन का निर्माण करना सम्भव हो सकेगा।

(6) कार्य करने के सर्वश्रेष्ठ तरीके का चयन करना- किसी कार्य को करने के विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन करने के पश्चात् उनमें से सर्वोत्तम तरीके का चयन किया जाता है। यही एक ऐसा बिन्दु है जिस पर निर्णय लिया जाता है तथा यही से योजना का निर्माण होता है। कभी-कभी विकल्पों के मूल्यांकन से यह निर्णय भी निकल सकता है कि योजना के लक्ष्य की पूर्ति के लिए कोई एक तरीका उपयुक्त न होकर अनेक तरीकों का संयोग अधिक उपयुक्त सिद्ध हो। ऐसी दशा में किसी एक सर्वोत्तम तरीके के स्थान पर अनेक तरीकों के संयोग का चयन किया जाना अधिक हितकर होता है।

(7) योजना तैयार करना— कार्य करने के सर्वोत्तम तरीके अथवा विकल्प का चयन करने के पश्चात् नियोजन का अगला कदम योजना को तैयार करना एवं उसे अन्तिम रूप प्रदान करना है। इस कदम के अन्तर्गत योजना के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से विचार किया जाता है, क्रमानुसार आगे के कदम निर्धारित किए हैं तथा योजना का विस्तार करके उसे अन्तिम रूप दिया जाता है।

(8) आवश्यक उप-योजनाओं का निर्माण करना- किसी व्यावसायिक उपक्रम की अन्तिम योजना बन जाने के पश्चात् उसे कार्यान्वित करने के लिए अन्य आवश्यक उप-योजनाओं का निर्माण करना पड़ता है। कुण्ट्ज एवं ओ ‘डोनेल के अनुसार, “किसी योजना के प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन हेतु सहायक योजनाएँ अति आवश्यक है। ” अतः आवश्यक उप-योजनाओं का निर्माण किया जाना नियोजन का आठवाँ महत्वपूर्ण कदम है। ध्यान रहे कि ये उप-योजनाएँ पूर्ण रूप में स्वतन्त्र योजनाएँ न होकर उक्त मूल योजना का ही एक अंग होती हैं तथा एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं। उदाहरण के लिए, उपक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उसकी क्रियाओं को कई विभागों (जैसे क्रय विभाग, विक्रय विभाग, उत्पादन विभाग, कर्मचारी विभाग, बजट विभाग आदि) में विभक्त किया जाता है तथा प्रत्येक विभाग की एक पृथक योजना होती है, जो कि मूल योजना का एक अंग होती है।

(9) क्रियाओं का समय एवं क्रम निर्धारित करना— योजना एवं सम्बन्धित उप-योजनाओं के तैयार हो जाने के उपरान्त उसको व्यावहारिक रूप देने के लिए उसके अन्तर्गत की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का समय एवं क्रम निर्धारित किया जाना चाहिये ताकि उसको क्रियान्वित करने एवं निर्धारित लक्ष्यों की यथा-समय प्राप्ति करने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव न हो। क्रियाओं का यह क्रम अलग-अलग विभागों, शाखाओं, उत्पादकों, कार्य करने की अवधियों (दैनिक साप्ताहिक, मासिक, छमाही अथवा वार्षिक) के आधार पर ही निर्धारित किया जाना चाहिए।

(10) कर्मचारियों की भागिता प्राप्त करना- अच्छा नियोजन करने मात्र से ही वांछित परिणाम प्राप्त हो जाते हैं। यह तभी सम्भव है, जबकि उसके क्रियान्वयन में उक्त संस्था के प्रत्येक कर्मचारी का सक्रिय सहयोग प्राप्त हो एवं उसमें उसकी भागिता हो। इस हेतु संस्था में कार्यरत प्रत्येक कर्मचारी को नियोजन से अवगत करना चाहिए, उसे समझाया जाना चाहिए तथा उससे परामर्श भी किया जाना चाहिए। ऐसा करने से जहाँ एक ओर नियोजन की किस्म में सुधार होगा,वहाँ दूसरी ओर कर्मचारियों में नियोजन के प्रति रुचि एवं भागिता जाग्रत होगी ।

(11) रणनीति पर विचार करना- नियोजन के क्रियान्वयन में रणनीति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस दृष्टि से विभिन्न रणनीतियों पर विचार किया जाना नियोजन प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। अतएव नियोजन प्रक्रिया के अन्तर्गत उठाया जाने वाला अगला कदम नियोजन के लिए उपयुक्त रणनीति तैयार किया जाना एवं उस पर अमल करना है।

(12) अनुवर्तन- केवल योजना बना देने मात्र से ही लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो जाती है। नियोजन की सफलता इससे प्राप्त होने वाले लाभों के मापने पर निर्भर करती है। अतएव अनुवर्तन को नियोजन में समुचित स्थान मिलना चाहिए क्योंकि इसके माध्यम से ही यह जानकारी प्राप्त होती है कि योजना सफल रही है या नहीं। इसी के आधार पर आवश्यकता पड़ने पर मूल योजना में आवश्यक संशोधन भी किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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