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पत्रकारिता की प्रकृति तथा उद्देश्य | Nature and Purpose of Journalism in Hindi

पत्रकारिता की प्रकृति तथा उद्देश्य | Nature and Purpose of Journalism in Hindi
पत्रकारिता की प्रकृति तथा उद्देश्य | Nature and Purpose of Journalism in Hindi

पत्रकारिता की प्रकृति तथा उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। 

पत्रकारिता की प्रकृति

पत्रकारिता की प्रकृति निम्न तत्वों के बिना विकृत हो जाती है-

(1) जिज्ञासा अर्थात् प्रत्येक क्षेत्र में ज्ञानार्जन की पिपासा- वर्तमान काल में D.A.S पत्रकारिता का क्षेत्र, विषय तथा शाखाएँ इतनी हो गई हैं, जितने मानव जीवन के कार्य व्यवहार, सोच-विचार और रुचि के रूप। अतः इन सभी के ज्ञान के प्रति पिपासा हो. जिज्ञासा हो, यह तो होनी ही चाहिये, लेकिन जिस क्षेत्र में विशेष रूप से कार्य समाधान में पत्रकार संलग्न रहता है, उसका उसे अभीष्ट ज्ञान तो होना चाहिए और उसके हर पहलू का ज्ञान अर्जित करते रहने की उसे सतत् चेष्टा करनी चाहिए।

(2) वस्तुनिष्ठ दृष्टि से विश्लेषण करने की प्रवृत्ति- इस प्रवृत्ति का धारक तत्व है विवेक या तर्कशीलता। यदि पत्रकारिता कार्य में विवेकशून्यता होगी तो कोई भी पत्रकार इस मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता। विवेकशीलता अर्थात् तौर्किक बुद्धि, शास्त्रीय चिन्तन को दिशा देती है और लोकहित का विश्लेषण करने की शक्ति भी। उसे किसी भी अन्धनिष्ठा के प्रति वह तटस्थ भी रखती है, इतना ही नहीं पूर्वाग्रहों से भी मुक्त रहने का मार्ग दिखाती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में यदि कोई सबसे भयानक असुर है तो अन्धनिष्ठा और पूर्वाग्रह ही हैं। वस्तुनिष्ठ दृष्टि का उदय तभी होता है जब कोई इन दोनों महादानयों की छाया से अपनी प्रकृति की रक्षा कर सके।

( 3 ) संवेदनशील, सहज सार्थक अभिव्यक्ति- किसी बात का सहज सार्थक रूप में संप्रेषण बहुत अर्थपूर्ण होता है। इस कला से प्रभावशाली जनानुभूतिक लहरों का जन्म होता है। संप्रेषक जो अनुभूतिक संवेदनशीलता विषय के ग्रहण प्रवाह में पैदा करना चाहता वह उसमें उत्पन्न होती है। इसके लिये आवश्यक यही है कि उसकी अभिव्यक्ति साफ और सपाट होनी चाहिये। वस्तुतः पत्रकारिता साधारण जन-समाज की उत्कण्ठाओं और उत्सुकताओं का ज्ञानात्मक शमन करती है, वह कब, कैसे, कहाँ और क्यों का उत्तर देती है।

पत्रकारिता के उद्देश्य

प्रायः इस सांसारिक जीवन के लौकिक और अलौकिक या भौतिक और माध्यामिक, स्थूल रूप में इन दो ही उद्देश्यों प्रवाह में संचरित करता है। संसार में जब सांसारिकता प्रकट हुई तो उसकी प्रारम्भिक स्थिति में मानवीय संचेतना में पारस्परिक व्यवहारों का चलन कैसे तथा किस आधार पर रहा होगा, इसका तो मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता है। सहज ही विवेक बुद्धि हमें यह ग्रहण करने को बाध्य करती हैं कि प्राकृतिक सम्पदा के बाहुल्य ने मनुष्य को पूर्णरूप से आत्मकेन्द्रित या स्वार्थ लिप्सित नहीं बनाया होगा। इसी कारण उदारता, दूसरों के प्रति संवेदनात्मक व्यवहार तथा नैतिकता ने सामाजिक आचार को जन्म दिया और क्या श्रेष्ठ है, या क्या उचित है, इसके साथ उपयोगिता सन्तुलन का विश्लेषण भी भौतिक आवश्यकता की तुला पर तोले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई। आध्यात्मिक या अलौकिक शक्तियों की कल्पना या मान्यता किस प्रकार मनुष्य के मन में आई, इसका कोई भौतिक विश्लेषण नहीं दिया जा सकता, परन्तु इतना सत्य है कि मनुष्य ने भौतिकता और आध्यात्मिकता दोनों को ही गहराई से धारण किया। मानव स्वभाव के तत्व इन दोनों क्षेत्रों को अपनी-अपनी तरह से प्रभावित करते हुए सांसारिक जीवन के निर्माण में लगे, जिसका प्रतिफल मनुष्य के स्वार्थी विवेक के रूप में विशेष रूप से प्रतिफलित हुआ। इसी कारण हर कार्य के उद्देश्य में व्यावसायिक प्रकृति का उदय हुआ। पत्रकारिता में अपने उदयकाल के कुछ अनन्तर व्यावसायिकता पैदा हो गई। अतः पत्रकारिता भी उद्देश्य स्वाभाविक रूप से दो भागों में बंट गये – (1) जनहित; तथा (2) व्यावसायिक

विद्वानों तथा अन्य आदर्श चरित्र के पत्रकारों ने पत्रकारिता के प्रथम उद्देश्य को ही वरीयता दी और उसके आदर्श मानदण्ड स्थापित किये और उन्हीं को उसके ‘जनहिताय’ उद्देश्य के अनुकूल बताया, उसकी मूल प्रकृति की भी कल्पना इसी उद्देश्य के अनुसार की, परन्तु जैसा कि विद्वान स्वयं स्वीकार करते हैं कि ‘पत्रकारिता’ के उद्देश्य युगानुरूप बदलते रहते हैं। अपने युग में गांधी जी ने कहा था, “पत्रकारिता एक सेवा है।” भारत में गाँधी युग से पूर्व की पत्रकारिता का यदि विश्लेषण और सिंहावलोकन किया जाय, तो हम देखेंगे कि ब्रिटिश पराधीनता से मुक्त होने के लिये हिन्दी पत्रकारों ने भारी संघर्ष किया और वह उन अत्याचारों से जरा भी नहीं डरे जो अंग्रेजों ने उनके ऊपर ढाये। लोकमान्य तिलक को छः वर्ष का कारावास निर्भीक पत्रकारिता के ही कारण हुआ था। उस काल की अधिकांश पत्र पत्रिकाएँ किसी व्यावसायिक लाभ के लिये नहीं निकाली गई थीं। ‘कवि वचन सुधा’, ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’, ‘हिन्दी प्रदीप’, ‘ब्राह्मण’, ‘भारतमित्र’,’सार सुधानिधि’, ‘समय विनोद’,  ‘उचित वक्ता’, ‘भारतेन्दु’ आदि सभी पत्र-पत्रिकाएँ विशुद्ध जन-सेवा और जन-जागृति के लिये समर्पित थी।

स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद पत्रकारों की मानसिकता में भारी परिवर्तन आया। उसने जनहित की मूल धुरी को छोड़कर पत्रकारिता को स्वार्थों और धन लाभ से प्रेरित होकर ‘स्वदेश निष्ठा’ को राजनीतिक दलों की निष्ठा के प्रति स्वयं को सौंप दिया। साहित्यिक पत्रकारिता में भी यह विशेष ध्यान रखा जाने लगा कि जनता के सामने ऐसी चीज परोसी जाय जो उसके चरित्र को भले ही पतित करे, लेकिन भौतिक सुखों के प्रति लालायित करने वाली हो । सैक्स प्रधान सामग्री ने धीरे-धीरे पत्रकारिता में प्रवेश प्राप्त कर लिया। उन्होंने किसी-न-किसी बहाने से सैंक्स प्रधान और अपराध प्रधान सामग्री परोसने का मार्ग खोज लिया।

वर्तमान में पत्रकारिता व्यवसायिक लाभ कमाने का साधन बन चुकी है और अधिकांश पत्रकार किसी न किसी राजनीतिक व्यवसायिक संगठन से सम्बद्ध हैं।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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