प्रारूपण का अर्थ और परिभाषा लिखिए और प्रारूपण की प्रमुख विशेषताएं लिखिए। अथवा प्रारूप और प्रारूपण में अन्तर बताइये।
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प्रारूपण (Drafting )
प्रारूपण का अर्थ- कार्यालयीय आदेश अनुदेश और पत्राचार में जो लिखा-पढ़ी की जाती है, उसे प्रारूपण के अन्तर्गत समाविष्ट किया जाता है। ‘प्रारूपण’ के लिए अँगरेज़ी में ड्राफ्टिंग (Drafting) शब्द का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी में इसे ‘आलेखन’, ‘प्रालेखन’, ‘प्रारूप-लेखन’ और ‘मसौदा-लेखन’ भी कहते हैं। प्रारूपण’ से तात्पर्य उस पत्र लेखन से है। जिसमें आदेश, निर्देश, विज्ञापन अथवा अन्य किसी प्रकार की हुई सामग्री के आधार पर पत्र लेखन की सभी बातों को पूरा करते हुए लिखा जाता है अर्थात् टिप्पणी लेखन के पश्चात् और पत्र प्रेषण के पूर्व होने वाली कार्यालयीय कार्यवाही को ‘प्रारूपण’ कहा जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाय तो सभी सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों में जो ड्राफ्टिंग की जाती है, उसे ‘प्रारूपण’ ही कहा जाता है। ‘प्रारूप’, ‘प्रालेख’ या ‘प्राख्य’ (Draft) जारी करने से पूर्व सम्बद्ध अधिकारी की स्वीकृति (अनुमोदन) आवश्यक होती है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के पारिभाषिक शब्दावली-आयोग ने ‘Draft’ के लिए ‘प्रारूप’ और ‘Drafting’ के लिए ‘प्रारूपण’ समानक शब्द निर्धारित किये हैं और ये शब्द नये होने के बावजूद अर्थव्यंजना में पूर्ण समर्थ हैं। अब हिन्दी में इनका व्यापक प्रयोग हो रहा है।
परिभाषायें – प्रारूप, प्रालेख या प्रालेखन को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ प्रस्तुत हैं –
1. “प्रारूप” ‘वस्तुतः ‘प्राक्रूप’ होता है अर्थात् पत्र का कच्चा अन्तिम रूप और इसे तैयार करने का कार्य प्रारूपण कहलाता है।”
2. “आवती पर टिप्पणी कार्य समाप्त होने के बाद टिप्पणी के आधार पर आवती का उत्तर देने के लिए जो प्रारूप तैयार किया जाता है उसी को आलेखन या मसौदा या प्रारूप तैयार करना कहते हैं। “
3. “सरकार या निजी संस्थाओं में आये हुए पत्रों के उत्तर देने के लिए और सरकार की नीति निर्धारण सम्बन्धी सूचनाओं, स्मारकों, ज्ञापनों और परिपत्रों आदि के प्रेषण के लिए टिप्पण की यथोचित कार्यवाही के बाद अधिकारियों के आदेश पर अन्य सहायक कर्मचारियों द्वारा प्रालेख (प्राख्य, Draft) तैयार किया जाना प्रालेखन कहलाता है।”
4. “आसादित पत्र पर टिप्पणी लेखन के पश्चात् पत्र-प्रेषण के पूर्व उसके प्रकृष्ट लेखन को प्रालेखन (प्रारूपण) कहा जाता है।”
5. “प्रारूपण किसी भी सरकारी या व्यापारिक प्रतिष्ठान से सम्बन्धित विषयों के लिए कार्यरत कर्मचारी या अधिकारी द्वारा तैयार वह कच्चा प्रालेख है जो किसी निश्चित नियम एवं कार्यविधि के दायरे में रहकर तैयार किए गए हों।”
सारतः किसी पत्र के निस्तारण हेतु प्रेषित पत्रोत्तर के प्रारूप को प्रारूपण कहते हैं।
प्रारूप और प्रारूपण में अन्तर
वस्तुतः हिन्दी शब्द आलेख, प्रालेख, प्राख्य और प्रारूप को अंगरेजी में ‘Draft’ और आलेखन, प्रालेखन एवं प्रारूपण को ‘ड्राफ्टिंग’ (Drafting) कहा जाता है। टिप्पणी एवं टिप्पण की भाँति प्रारूप और प्रारूपण भी पृथक्-पृथक हैं। प्रारूपण (प्रारूप-लेखन) विधि है और प्रारूप (प्राख्य) विषय। अतः प्रारूप (प्रांख्य) के लेखन की प्रक्रिया को ही प्रारूपण कहा जाता है।
अच्छे प्रारूप के गुण
परिपूर्ण प्रारूप में निम्नलिखित विशेषताओं का समावेश होना आवश्यक है-
1. शुद्धता – प्रारूप में जो भी निर्देश, संख्या, दिनाङ्क और उद्धरण, कथन या हवाले आदि दिये जायें, वे शुद्ध एवं सही होने चाहिए। थोड़ी-सी भूल या लापरवाही से परिस्थिति विकट बन सकती है।
2. उचित रूपरेखा – प्रारूप सदैव उसकी अपनी निर्धारित रूपरेखा के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए। ऐसा करने से उसमें कुछ छूट जाने की आशंका नहीं रहती।
3. पूर्णता – प्रारूप में सभी अपेक्षित सूचनाओं तथा निर्देशों को स्पष्ट रूप से बयान करना चाहिए। कोई बात या तथ्य छूटने न पावे। अपूर्णता के कारण प्रारूपण अस्पष्ट और अधूरा रहता है।
4. स्पष्टता – प्रारूप में प्रत्येक विचार और कथन स्पष्ट रूप से अंकित किया जाना चाहिए। आवश्यकता के अनुसार प्रारूप में पूर्व पत्र-व्यवहार के सन्दर्भ भी दिये जाने चाहिए। ऐसा न करने से प्रारूप दोषपूर्ण हो जाता है।
5. संक्षिप्तता – संक्षिप्तता में प्रतिभा का प्रतिफलन होता है। प्रारूप यथासंभव संक्षिप्त होना चाहिए।
6. भाषा – अपनी बात पूर्णता और स्पष्टता के साथ कहने के लिए भाषा पर पूर्ण अधिकार होना अपेक्षित है।
7. शैली प्रारूप लिखने की एक निश्चित और मान्य शैली है। उसमें अकारण किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। सरकारी पत्राचार के अन्तर्गत विविध प्रकार के पत्रों की अलग-अलग अपनी शैली होती अथवा रूप-विधान होता है।
अच्छे प्रारूपण की विशेषताएँ
प्रारूपण की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है-
(1) सटीकता सटीकता अर्थात् तैयार प्रारूपण को बिल्कुल सव्यसूचक और तथ्यपरक होना चाहिए। उल्लिखित बातें बिल्कुल एकार्थी हों। ऐसा नहीं होने से प्रारूपण तैयार करने वाले प्रतिष्ठान विशेषतः व्यावसायिक प्रतिष्ठान की साख को धक्का लगता है और सरकारी विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की छोटी गलती भी दण्डात्मक मानी जाती है। अतएव प्रारूपण तैयार करते वक्त अतिशय सावधानी की आवश्यकता होती है।
(2) तथ्यात्मकता- सरकारी आदेश, स्मारक पत्रों, गश्ती पत्रों, अर्द्धसरकारी पत्रों, विज्ञप्तियों आदि का प्रारूपण तैयार करते समय भाषायी तथ्यात्मकता नितांत जरूरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है कि पत्रों में जिस किसी बात का उल्लेख हो वह तथ्य प ही अवलम्बित हो, बेवजह या बिना तथ्यों के आरोप-प्रत्यारोप या किसी कार्य के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराना, ऐसा नहीं होना चाहिए।
(3) पारम्परिक शैली का अनुसरण- प्रारूपण निश्चित शब्दावली, वाक्य संरचना या निश्चित प्रविधि के दायरे में लिखा जाता है, जिसके पीछे सम्बन्धित कार्यालय या विभाग की एक लम्बी परम्परा कार्यरत रहती है। इन पारम्परिक शैलियों का अनुसरण ही प्रारूपकार करता है।
(4) नियमों का पालन- कुछ सरकारी पत्रों के प्रारूपण तैयार करने के कुछ विशिष्ट नियम होते हैं, जिनका अनुपालन आवश्यक हो जाता है। उदाहरणार्थ-‘ज्ञापन के प्रारूपण में’ अभिवादन नहीं होता। अन्य पुरुष में लिखे इन पत्रों की विषय-वस्तु एक अनुच्छेद में समाप्त हो जाती है।
( 5 ) तटस्थता – प्रारूपकार बिना किसी पक्ष की ओर दबाव या झुकाव के पूर्वाग्रह से हीन; यथार्थ को ध्यान में रखते हुए ही एक अच्छे प्रारूप को तैयार कर पाता है। किसी पक्ष विशेष के प्रति अपने व्यक्तिगत झुकाव या हार्दिकता को जाहिर न करते हुए सभी को समान रूप में समझना ही प्रारूपकार का कर्तव्य है।
( 6 ) सत्यनिष्ठा – निष्कर्ष या परिणाम तक पहुंचने में तथ्य सबसे बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। इसलिए अगर प्रारूपण सत्य है तो उसके अनुमोदन से लेकर जारी होने तक की प्रक्रिया के बाद भी कोई संशय, दुविधा या अविश्वास की स्थिति का कोई स्थान नहीं होता है।
(7) संपूर्णता – प्रारूपण तैयार करते समय सम्बद्ध विषय को उद्धृत करना – प्रारूपकार का पहला दायित्व है। पत्रों की प्रस्तुति इस ढंग से हो कि सभी आवश्यक सूचनाएँ, आदेश, विषय-वस्तु, बिल्कुल पूर्ण प्रतीत हों, अनिश्चितता का कोई स्थान नहीं हो ।
( 8 ) संक्षिप्तता – यह बात बिल्कुल स्पष्ट ही जाननी चाहिए कि प्रारूपण चाहे वह राजकीय आदेश हो या पत्र का स्वरूप कैसा हो यह प्रारूपकार की अपनी क्षमता पर ही निर्भर करता है। कम शब्दों में जरूरी सभी बातों का उल्लेख कर देना प्रारूपकार के अच्छे -गुणों में गिना जाता है। किसी भी सरकारी कार्यालय या विभाग में अच्छे प्रारूपण लेखक की मौजूदगी विभाग की गरिमा का विषय होता है।
( 9 ) शिष्टता– शिष्ट और संयत भाषा जितनी प्रभावकारी होती है उतनी ही अनुकूल परिणाम देने वाली भी सरकारी पदाधिकारी जनता के सेवक होते हैं। अतः जनता को सम्बोधित या लिखित पत्र में शिष्टता का विशेष महत्व हो जाता है। कभी-कभी जनता की कोई माँग अस्वीकार कर दी जाती है या सरकारी विभाग में कार्यरत किसी कर्मचारी के विरुद्ध निलंबन आदेश सम्बद्ध विभाग ही जारी करता है, तब ऐसे संवेदनशील मामलों में भाषा की शिष्टता अति विशिष्ट हो जाती है।
(10) औपचारिकता- सरकारी पत्रों में व्यक्तिसूचक शब्दों अथवा अधिक निकटता प्रकट करने वाले शब्दों जैसे- क्षमाप्रार्थी, कष्ट के लिए धन्यवाद आदि का प्रयोग नहीं होता है। वाक्य सदैव अन्य पुरुष में ही होते हैं।
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