कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

बाजार मूल्य (कीमत) (Market Price)

बाजार मूल्य (कीमत) (Market Price)
बाजार मूल्य (कीमत) (Market Price)

बाजार मूल्य (कीमत) (Market Price)

“सामान्यतः विधाराधीन समयावधि जितनी छोटी होगी मूल्य पर पड़ने वाले माँग के प्रभाव पर हमें उतना ही अधिक ध्यान देना पड़ेगा और यह समयावधि जितनी लम्बी होगी कीमत पर उतना ही अधिक प्रभाव उत्पादन-जगत का होगा।”

-मार्शल

बाजार कीमत (Market Price)

अर्थ (Meaning)-बाजार कीमत वह कीमत है जो किसी निश्चित समय पर किसी वस्तु की माँग तथा सम्मरण (पूर्ति) की अन्तर्किया द्वारा निर्धारित होती है। दूसरे शब्दों में बाजार कीमत (मूल्य) वह कीमत होती है जो समय-विशेष पर बाजार में वास्तव में प्रचलित होती है। मार्शल के अनुसार बाजार कीमत अति अल्पकाल (Very Short Period) में निर्धारित होती है। यह कीमत बाजार में केवल अल्प समय के लिए ही पायी जाती है, जैसे कुछ घण्टे, एक दिन, एक सप्ताह आदि। इस प्रकार के बाजार में समय इतना थोड़ा होता है कि पूर्ति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता, अर्थात् वस्तु की माँग में वृद्धि होने पर न तो वस्तु की मात्रा (सम्भरण) में वृद्धि की जा सकती है तथा न ही माँग में कमी हो जाने वस्तु की मात्रा को कम किया जा सकता है। स्टिगलर के शब्दों में, “बाजार कीमत समय की उस अवधि के अन्तर्गत विद्यमान होती है जिसमें वस्तु का सम्मरण स्थिर रहता है। बाजार कीमत को अस्थाई कीमत भी कहते हैं, क्योंकि यह तत्कालीन माँग और सम्भरण की शक्तियों के सन्तुलन द्वारा निश्चित होती है, और ऐसा सन्तुलन बदलता रहता है।

बाजार कीमत की विशेषताएँ (Features of Market Price)

बाजार कीमत की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् है-

(1) अस्थाई कीमत- बाजार कीमत अस्थाई कीमत होती है क्योंकि यह वस्तु की माँग और सम्भरण के अस्थाई सन्तुलन द्वारा निर्धारित होती है। यह अस्थाई सन्तुलन प्रतिक्षण, प्रति घण्टा, प्रतिदिन या प्रति सप्ताह बदलता रहता है।

(2) वास्तविक कीमत- बाजार कीमत वास्तविक कीमत होती है जो किसी समय वास्तव में विद्यमान होती है। बाजार कीमत पर ही वास्तव में वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है।

(3) माँग का प्रमुख प्रभाव-चूंकि अति अल्पकाल में वस्तु के सम्मरण (Supply) को माँग में कमी या वृद्धि के अनुसार घटाया बढ़ाया नहीं जा सकता इसलिए कीमत के निर्धारण में सम्मरण की अपेक्षा मांग का अधिक प्रभाव पड़ता है।

(4) मूल्य का सीमान्त लागत से कम या अधिक होना-चूंकि वस्तु का सम्मरण स्थिर होता है, इसलिए माँग में परिवर्तन के अनुसार बाजार कीमत सीमान्त लागत से कम भी हो सकती है तथा अधिक भी। यदि वस्तु की माँग एकदम घटकर बहुत कम रह जाती है तो बाजार कीमत घटकर सीमान्त लागत से कम भी हो सकती है।

(5) सामान्य कीमत से सम्बन्ध- बाजार कीमत सामान्य कीमत के ऊपर-नीचे घूमती रहती है तथा इसमें सदैव सामान्य कीमत के बराबर हो जाने की प्रवृत्ति होती है।

(6) वस्तुओं का स्वभाव- बाजार कीमत पुनरुत्पादनीय वस्तुओं (reproducible goods) तथा निरुत्पादनीय वस्तुओं (non-reproducible goods) दोनों ही प्रकार की वस्तुओं की होती है।

बाजार कीमत का निर्धारण (Determination of Market Price)-किसी वस्तु की बाजार कीमत उसकी माँग तथा सम्भरण की सापेक्ष शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। चूंकि अति अल्पकाल में वस्तु का सम्मरण स्थिर रहता है इसलिए बाजार कीमत के निर्धारण में मांग का ही अधिक प्रभाव रहता है। यदि वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो बाजार कीमत बढ़ जाती है। इसके विपरीत, माँग के घटने पर बाजार कीमत भी घट जाती है। इस प्रकार बाजार कीमत माँग तथा सम्भरण के अस्थाई साम्य (equilibrium) द्वारा निर्धारित होती है।

वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं–(i) नाशवान वस्तुएँ (perishable commodities) कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो शीघ्र नष्ट हो जाती हैं, जैसे दूध, दही, अण्डा, सब्जी, फल आदि, (ii) कम नाशवान वस्तुएँ या टिकाऊ वस्तुएँ (durable commodities), जैसे प्यान, आलू आदि।

(i) नाशवान वस्तुओं की बाजार कीमत का निर्धारण- कुछ वस्तुएँ शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं, जैसे दूध, दही, सब्जी, फल, बर्फ इत्यादि विक्रेता ऐसी वस्तुओं के स्टॉक को जल्दी से जल्दी बेचना चाहते हैं। उदाहरणार्थ, विक्रेता बाजार में आए हुए दूध को उसी दिन बेचने की चेष्टा करते हैं। अतः ऐसी वस्तुओं की कीमत के निर्धारण में सम्भरण की अपेक्षा माँग का ही अधिक प्रभाव पड़ता है। जिस दिन बाजार में इन वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है, उस दिन इनकी कीमत भी बढ़ जाती है तथा जिस दिन इनकी मांग घट जाती है उस दिन इनकी कीमत भी घट जाती है।

(ii) टिकाऊ वस्तुओं की बाजार कीमत का निर्धारण- कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें काफी समय तक के लिए रखा जा सकता हैं, जैसे गेहूं, चाय, चीनी, चावल आदि। चूँकि ये वस्तुएँ शीघ्र नष्ट नहीं होती इसलिए मांग में कमी होने पर इनकी मात्रा को थोड़ा बहुत घटाया जा सकता है। इसके विपरीत, मांग में वृद्धि होने पर इन वस्तुओं की मात्रा को अधिक से अधिक वस्तु के विद्यमान स्टॉक तक ही बढ़ाया जा सकता है। उदाहरणार्थ, यदि गेहूं की मांग में कमी आ जाती है तो इसकी कीमत में अपेक्षाकृत कम गिरावट आएगी क्योंकि यह शीघ्र नष्ट नहीं होता। कीमत के गिरने पर विक्रेता गेहूँ की कुछ मात्रा (सम्भरण) को बाजार से हटा देंगे जिस कारण उसकी कीमत अधिक नहीं गिर पाएगी। इसके विपरीत, गेहूं की माँग के बढ़ने पर विक्रेता बाजार में इसके सम्मरण को बढ़ा देंगे, किन्तु गेहूँ की मात्रा (सम्भरण) को अधिक से अधिक विद्यमान स्टॉक तक ही बढ़ाया जा सकेगा। इस प्रकार अति अल्प काल में टिकाऊ वस्तुओं के कीमत निर्धारण में भी उनकी मांग का ही अधिक हाथ रहता है, सम्भरण या लागत का कीमत पर कम प्रभाव पड़ता है।

टिकाऊ वस्तुओं के विक्रेताओं की एक न्यूनतम या सुरक्षित कीमत (minimum or reserve price) होती है। इस न्यूनतम कीमत से कम कीमत पर वे अपना माल बेचने को तैयार नहीं होते। यदि कीमत घटकर न्यूनतम कीमत से भी कम हो जाती है तो विक्रेता अपने माल को बेचना बन्द कर देते हैं।

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Anjali Yadav

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