कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

भारत में कृषि का यन्त्रीकरण (Mechanisation of Agriculture in India)

भारत में कृषि का यन्त्रीकरण (Mechanisation of Agriculture in India)
भारत में कृषि का यन्त्रीकरण (Mechanisation of Agriculture in India)

भारत में कृषि का यन्त्रीकरण (Mechanisation of Agriculture in India)

भारत में कृषि का यन्त्रीकरण पश्चिमी राष्ट्रों को गाँति नहीं किया जा सकता। कुछ अपवादों को छोड़कर देश में बड़े-बड़े फार्म भी नहीं हैं जिस कारण ट्रैक्टर से खेती करना अनार्थिक हो गया है।”

– श्रीमनारायण

कृषि के यन्त्रीकरण का अर्थ

कृषि के यन्त्रीकरण से अभिप्राय कुछ कृषि कार्यों को, जो कि प्रायः मनुष्यों व पशुओं द्वारा किए जाते हैं, उपयुक्त मशीनों की सहायता से करने से है। कृषि के यन्त्रीकरण के अन्तर्गत कृषि कार्यों में मानव तथा पशु श्रम का स्थान यान्त्रिक शक्ति (आधुनिक कृषि यन्त्र) ले लेती है। आधुनिक कृषि यन्त्रों में ट्रैक्टर, कम्बाइन्ड ड्रिल, कम्बाइन्ड हारवेस्टर, विनोअर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रो० भट्टाचार्य के शब्दों में, “यान्त्रिक कृषि का अर्थ भूमि सम्बन्धी कार्यों में, जिन्हें सामान्यतः यलों, घोड़ों अथवा अन्य पशुओं की सहायता से अथवा मानव-श्रम द्वारा अथवा पशु-श्रम व मानव-श्रम दोनों के द्वारा किया जाता है, यान्त्रिक शक्ति का प्रयोग करने से है। दूसरे शब्दों में, यान्त्रिक कृषि के अन्तर्गत खेती परम्परागत विधियों तथा साधनों के स्थान पर आधुनिक यन्त्रों व उपकरणों से की जाती है, जैसे खेत की जुताई व बुवाई हल के स्थान पर ट्रैक्टर से करना, सिंचाई कुओं व बैलों से न करके पम्प सैटों से करना, आदि।

भारत में कृषि के यन्त्रीकरण के पक्ष में तर्क (लाभ)

भारत में यान्त्रिक कृषि (mechanical farming) को अपनाने के पक्ष में निम्न तर्क दिए जाते हैं-

(1) प्राकृतिक जोखिम में कमी- यदि वर्षा, आंधी तूफान आादि के कारण खेतों को तैयार करने की अथवा बुवाई की अवधि कम रह जाती है तो मशीनों की सहायता से (मानव व पशु-श्रम की अपेक्षा) सभी कामों को थोड़े समय में किया जा सकता है। इसी प्रकार मशीनों द्वारा फसल को शीघ्रता से काटकर तथा अनाज को भूसे से अलग करके फसल को वर्षा से खराब होने से बचाया जा सकता है।

(2) कृषि उपज में वृद्धि- यन्त्रों के प्रयोग से प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होती है जिससे भारत की खाथ समस्या तथा उद्योगों के कच्चे माल की समस्या को सुलझाया जा सकता है। उदाहरणार्थ, ट्रैक्टर द्वारा गहरी जुताई करने से ज्वार तथा धान की उपज में 20 से 25 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाती है। यह बात सभी प्रकार के कृषि उत्पादों पर लागू होती है।

(3) उत्पादन लागत में कमी- बैलों तथा पुराने यन्त्रों की तुलना में आधुनिक कृषि यन्त्रों से खेती करने की औसत लागत कम आती है।

(4) समय तथा श्रम की वचत- आधुनिक कृषि यन्त्रों की सहायता से विभिन्न कृषि कार्यों को शीघ्रता से किया जा सकता है जिससे समय तथा मानव-श्रम की बचत होती है। उदाहरणार्थ, जो काम एक जोड़ी बैल व हल से 10-12 दिन में किया जाता व है उसे ट्रैक्टर द्वारा एक दिन में किया जा सकता है। इससे किसानों के अवकाश में वृद्धि होती है जिसमें वे अन्य उपयोगी कार्य करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं।

(5) पशु सम्बन्धी व्यय में कमी- पशुओं को तो पूरे वर्ष खिलाना पड़ता है तथा उनकी देखभाल करनी पड़ती है, किन्तु मशीनों पर तभी खर्च (तेल, पैट्रोल आदि) जाता है जब वे कार्यरत होती हैं, अर्थात् निष्क्रियता की अवस्था में मशीनों पर तो व्यय नगण्य होता है किन्तु पशुओं के चारे व देखभाल में कोई कमी नहीं होती। इसके अतिरिक्त, पशुओं को विश्राम देना अति आवश्यक होता है किन्तु मशीनों से पर्याप्त समय तक निरन्तर काम लिया जा सकता है।

(6) सिंचाई-सुविधाओं में सुधार- शक्ति-चालित नलकूपों (tube-wells) द्वारा सिंचाई सुविधाओं का विकास करके भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता कम की जा सकती है।

(7) अधिक फसलें सम्भव- सिंचाई सुविधाओं के विकास से वर्ष में दो या तीन फसलें उगाने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

(8) राष्ट्रीय आय तथा पूंजी निर्माण में वृद्धि- कृषि के क्षेत्र में यन्त्रीकरण से–(i) प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन में वृद्धि होने से किसानों की आय में वृद्धि होती है। (ii) किसानों की आय बढ़ने से उनकी विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है जिससे विभिन्न उद्योग-धन्चों का विकास तथा विस्तार होता है। (iii) निवेश में वृद्धि के फलस्वरूप देश में पूँजी निर्माण बढ़ता है। (iv) उक्त सभी बातों के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय तथा सरकारी आय में वृद्धि होती है।

(9) उपभोक्ताओं को लाभ- यान्त्रिक कृषि द्वारा उत्पादन लागत कम हो जाने से कृषि उपजों की कीमतें कम रहती हैं जिससे उपभोक्ताओं का जीवन स्तर उन्नत होता है।

(10) कुछ विशिष्ट कार्यों के लिए उपयुक्त- ऊसर भूमि को तोड़कर उसे कृषि योग्य बनाने, गड्ढों को भरकर तथा टीलों को साफ करके भूमि को कृषि योग्य बनाने, समोच्च रेखाओं के समान्तर बाँध बनाकर तथा चबूतरे बनाकर (terracing) मिट्टी के कटाव को रोकने आदि कार्यों के लिए मानव तथा पशु श्रम की तुलना में मशीनें कहीं अधिक उपयोगी होती है।

(11) कम जनसंख्या वाले देश के लिए उपयुक्त- ऐसे क्षेत्र में जहाँ जनसंख्या कम हो किन्तु कृषि योग्य भूमि अधिक हो, यान्त्रिक कृषि उपयुक्त तथा सस्ती होती है।

(12) व्यापारिक खेती को बढ़ावा- यान्त्रिक खेती द्वारा ‘जीवन निर्वाह खेती’ (subsistence farming) को व्यापारिक खेती’ में बदला जा सकता है। व्यापारिक खेती के विस्तार से उद्योगों को कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में मिल सकता है जिससे औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलता है।

(13) रोजगार-अवसरों में वृद्धि- व्यापारिक खेती तथा पुराने उद्योग-धन्यों के विस्तार और नए-नए उद्योग धन्थों की स्थापना से देश में रोजगार अवसरों में वृद्धि होती है।

(14) श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि- विभिन्न कृषि यन्त्रों की सहायता से खेती करने पर कृषि श्रमिकों की कुशलता बढ़ती है जिससे समूचा राष्ट्र लाभान्वित होता है।

(15) ग्रामीण जीवन में सुधार- कृषि उपज में वृद्धि होने पर किसानों की आर्थिक दशा सुधरती है तथा उनका जीवन स्तर उन्नत होता है।

भारत में कृषि के यन्त्रीकरण के विपक्ष में तर्क

कृषि के यन्त्रीकरण के विरोध में निम्न तर्क दिए जा सकते हैं-

(1) ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि की आशंका- मशीनों के प्रयोग से कृषि कार्य सरल हो जाएगा तथा अधिकांश पशु तथा मनुष्य वेकार हो जाएंगे।

(2) छोटे व बिखरे हुए खेत- उत्तराधिकार के नियमों तथा जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि के कारण भूमि का निरन्तर उप-विभाजन तथा विखण्डन होने के कारण भारत में अनार्थिक जोतों की भरमार है। देश में 75 प्रतिशत कृषि जोतें 2 हेक्टेयर से भी छोटी हैं तथा औसत आकार 1.82 हेक्टेयर है जबकि अमेरिका में औसत आकार 158 हेक्टेयर तथा कनाडा में 188 हेक्टेयर है। अतः भारत में छोटे खेतों में ट्रैक्टर आदि का प्रयोग सम्भव नहीं है। यहाँ तो छोटे आधुनिक कृषि उपकरण ही काम में लाए जा सकते हैं।

(3) मशीनों का अभाव – गत कुछ वर्षों से ही देश में सीमित मात्रा में ट्रैक्टरों का निर्माण होने लगा है। यान्त्रिक कृषि अपनाने पर हमें भारी मात्रा में कृषि उपकरण आयात करने पड़ेंगे।

(4) अशिक्षा- अधिकांश भारतीय कृषक, अशिक्षित, रूढ़िवादी एवं परम्परावादी हैं। उनमें इतनी योग्यता नहीं है कि ये जटिल कृषि यन्त्रों की कार्यप्रणाली को समझ सकें।

(5) पूँजी की कमी- भारत में सामान्यतः किसान निर्धन हैं। उनके पास इतने वित्तीय साधन नहीं है कि वे महंगे बड़े-बड़े कृषि यन्त्र एवं उपकरण खरीद सकें।

(6) विदेशों पर निर्भरता में वृद्धि- कृषि यन्त्रों के संचालन के लिए पेट्रोल, डीजल और मिट्टी के तेल की आवश्यकता पड़ती है जिनकी भारत में कमी है। फलतः इनका विदेशों से अधिक मात्रा में आयात करना पड़ेगा।

(7) मरम्मत सम्बन्धी असुविधा- ग्रामीण क्षेत्रों में स्पेवर पार्ट्स तथा बच्चों की मरम्मत सम्बन्धी सुविधाओं की कमी है। परिणामतः कृषि यन्त्रों में थोड़ी-सी खराबी होने पर किसानों को बार-बार शहर भागना पड़ेगा, जिससे उनका समय बर्बाद होगा और उत्पादन लागत बढ़ेगी।

(8) प्रशिक्षित कारीगरों का अभाव- कृषि यन्त्रों के संचालन के लिए मिस्त्रियों तथा ड्राइवरों की आवश्यकता पड़ेगी जिनका भारत में अभाव है।

(9) परिवहन के दोषपूर्ण साधन- ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों की स्थिति शोचनीय है जिससे वहीं ट्रैक्टर आदि को ले जाने में कठिनाई होती है। फिर अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में पेट्रोल पम्पों का भी अभाव है।

(10) पशुओं की अधिकता- भारत में पशु बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। कृषि का यन्त्रीकरण करने पर करोड़ों पशु बेकार हो जाएंगे और उन्हें बिना काम में लिए ही जीवित रखने की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर अत्यन्त बुरा प्रभाव पड़ेगा।

(11) अन्य साधनों की कमी- मशीनों द्वारा कृषि उत्पादन करने के लिए भारी मात्रा में उत्तम बीज, खाद, सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं तथा कीटनाशक दवाओं की आवश्यकता पड़ती है जिनकी भारत में कमी है।

भारत में कृषि का यन्त्रीकरण

डान्सन के मत में मशीनों का प्रयोग उन देशों में बांछनीय होता है जहाँ मशीनें सस्ती तथा श्रम महंगा होता है, किन्तु भारत में स्थिति ठीक विपरीत है। यहाँ श्रम की अधिकता तथा पूंजी की कमी है। अतः देश की वर्तमान परिस्थितियों में बड़े पैमाने पर कृषि का यन्त्रीकरण न तो सम्भव है और न ही वांछनीय वस्तुतः हमारे देश में भारी कृषि यन्त्रों के स्थान पर छोटे कृषि यन्त्रों का प्रयोग व्यावहारिक तथा लाभदायक सिद्ध होगा। भारत के कृषि क्षेत्र में ऐसे यन्त्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए जिनसे बेरोजगारी में वृद्धि हुए बिना कृषि की उत्पादकता में वृद्धि की जा सके। साथ ही यन्त्रीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे अपनाई जाए जिससे समस्याएँ उग्र रूप न से सकें और उन्हें धीरे-धीरे हल किया जा सके।

समूचे देश में कृषि उपज बढ़ाने, कृषि कार्यों में अनावश्यक परिश्रम को कम करने, किसानों को विकसति तथा आधुनिक कृषि-मशीनें उपलब्ध कराने तथा यान्त्रिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न सरकारी कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए हैं। कृषि यन्त्रीकरण के लिए बुनियादी ढांचे का विस्तार किया गया है ताकि कृषि-मशीनों के उपयुक्त चयन, संचालन, प्रबन्ध, मरम्मत तथा रख-रखाव के लिए प्रशिक्षण दिया जा सके। बुदनी (मध्य प्रदेश), हिसार (हरियाणा), गालांडित्री (आन्ध्र प्रदेश) तथा विश्वनाथ घरियाली (असम) में कृषि मशीनीकरण प्रशिक्षण केन्द्र खोले गए हैं जहाँ कार्मिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

भारत में कृषि के यन्त्रीकरण की सम्भावनाएं (क्षेत्र)- भारत में इन क्षेत्रों में यान्त्रिक कृषि को सफलतापूर्वक अपनाया जा सकता है-(1) बेकार तथा बंजर पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए. (2) भूमि संरक्षण सम्बन्धी कार्यों के लिए, (3) दलदल वाली भूमि का पानी निकालने के लिए (4) सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने के लिए, (5) कम आबादी वाले क्षेत्रों में कृषि का विस्तार करने के लिए, (6) पीध-संरक्षण के लिए तथा (7) कृषि क्षेत्र में सड़कों के निर्माण के लिए।

पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि का यन्त्रीकरण- पाँचवी योजना में कृषि क्षेत्र में चयनात्मक यन्त्रीकरण (selective mechanisation) अपनाने का निश्चय किया गया जिससे कई फसले प्राप्त की जा सकें, कृषि उत्पादन बढ़े और रोजगार अवसरों में कमी न होने पाए। छटी योजना में भी चयनात्मक यन्त्रीकरण की नीति अपनाने की बात कही गई जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी न फैले। सातवीं योजना में उन्नत उपकरणों की लोकप्रिय बनाने के लिए विशेष प्रयास करने का प्रावधान था। आठवीं योजना में यन्त्रीकरण प्रक्रिया को धीरे-धीरे अपनाने का निश्चय किया गया।

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Anjali Yadav

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