कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

भारत में भूमि बन्धक (विकास) बैंक (Land Mortgage (Development) Banks in India)

भारत में भूमि बन्धक (विकास) बैंक (Land Mortgage (Development) Banks in India)
भारत में भूमि बन्धक (विकास) बैंक (Land Mortgage (Development) Banks in India)

भारत में भूमि बन्धक (विकास) बैंक (Land Mortgage (Development) Banks in India)

भारतीय किसान ऋण में जन्म लेता है ऋण में ही रहता है तथा ऋण में ही मर जाता है।”

-रॉयल कृषि आयोग

भूमि बन्धक (विकास) बैंक का अर्थ तथा भेद

अर्थ (Meaning)–भूमि बन्धक बैंक एक ऐसी बैंकिंग संस्था है जो किसानों को उनकी भूमि को बन्धक रखकर, दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती है। बाद में इन बैंकों को भूमि विकास बैंक के नाम से जाना जाने लगा। किन्तु अब इन्हें सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के नाम से जाना जाता है। ये बैंक भूमि को बन्धक रखकर मुख्यतः भूमि के विकास के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं।

भेद (Kinds)-भूमि विकास बैंकों का दो आधारों पर वर्गीकरण किया जाता है-(I) स्वभाव के आधार पर, तथा (II) क्षेत्रीय संगठन के आधार पर

(I) स्वभाव के आधार पर- इस दृष्टि से इन्हें तीन वर्गों में बांटा गया है- (1) सहकारी भूमि विकास बैंक- इन बैंको में केवल उधार लेने वाले व्यक्ति ही शामिल होते हैं तथा उनकी कोई पूँजी नहीं होती। सदस्यों द्वारा चुकाए गए प्रवेश शुल्क से ही खर्च पूरे कर लिए जाते हैं। जब कभी धनराशि की आवश्यकता पड़ती है तो बन्धक-वॉण्ड निर्गमित कर दिए जाते हैं। (2) पूँजीवादी भूमि विकास बैंक- इस प्रकार के बैंक लाभ की भावना से कार्य करते हैं तथा लाभांश घोषित करते हैं। किन्तु ऐसे बैंकों की कार्यवाहियों पर सरकार का नियन्त्रण होता है ताकि उधार लेने वाले के प्रति कोई कठोरता न बरती जाए। (3) मिश्रित भूमि विकास बैंक- इस प्रकार के बैंकों में ऋण लेने वाले तथा ऋण देने वाले दोनों ही प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित होते हैं। इन बैंकों की हिस्सा पूंजी होती है तथा ये सीमित दायित्व के आधार पर कार्य करते हैं। भारत में इसी प्रकार के भूमि विकास बैंक पाए जाते हैं।

(II) क्षेत्रीय संगठन के आधार पर- इस आधार पर बैंकों को दो वर्गों में बाँटा जाता है- (1) प्राथमिक भूमि- विकास बैंक भारत में ऐसे बैंकों का गठन खण्ड, तहसीत तथा जिला स्तर पर किया जाता है। इनका कृषकों से प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है और ये उन्हें दीर्घकान के लिए ऋण प्रदान करते हैं। इन्हें अब प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ कहा जाता है। [2] केन्द्रीय भूमि विकास बैंक- भारत में इनकी स्थापना राज्य स्तर पर की गई है। ऐसे बैंक किसानों को सीधे ऋण नहीं। देते बल्कि ये प्राथमिक भूमि विकास बैंकों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं तथा उनके ऋणपत्रों (debentures) की बिक्री में सहायता करते हैं। ऐसे बैंकों को अब राजकीय सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ कहा जाता है।

भारत में भूमि विकास बैंकों की आवश्यकता

भारतीय किसानों की मुख्यतः तीन प्रकार के रूणों की आवश्कता पड़ती है-

(1) अल्पकालीन ऋण (Short Term Loan)-हिती के खर्चों को पूरा करने तथा फसल के पककर तैयार होने व बिकने तक अपने और परिवार के जीवन निर्वाह के लिए किसानों को अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे ऋण की फसल बिकने के बाद तुरन्त चुकाया जा सकता है।

(2) मध्यकालीन ऋण (Medium Term Loan)-किसानों को ऐसे ऋणों की आवश्यकता पशु, कृषि यन्त्र तथा अन्य वस्तुएँ खरीदने के लिए होती है। ऐसे ऋणों को थोड़ा-थोड़ा करके चार-पाँच वर्षों की अवधि में चुकाया जा सकता है।

(3) दीर्घकालीन ऋण (Long Term Loan)– कृषि-भूमि में स्वाई सुधार करने, कुएं बनाने, बड़ी-बड़ी कृषि मशीनों को खरीदने तथा पुराने ऋणों को चुकाने आदि कार्यों के लिए किसानों को दीर्घकालीन ऋण की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे ऋण की रकम बहुत अधिक होती है तथा उसे चुकाने में अनेक वर्ष लग सकते हैं। अतः ऐसे ऋणों को प्रतिभूति (maurity) के लिए मीन-जायदाद का बन्धक (mortgage) रखना आवश्यक होता है।

सहकारी समितियाँ तथा महाजन किसानों को केवल अल्पकालीन तथा मध्यकालीन बन ही प्रदान कर सकते हैं। दीर्घकालीन देने के लिए न तो उनके पास इतनी अधिक पूंजी होती है और न ही इतने अधिक समय के लिए आग दे सकते हैं। साधारण वाणिज्यिक बैंक तथा सहकारी बैंक भी दीर्घकाल के लिए ऋण नहीं दे सकते क्योंकि ये अपने कोप अल्पकालीन जमाओं में प्राप्त करते हैं। अतः एक ऐसी संस्था को आवश्यकता पड़ी जो दीर्घकाल के लिए तथा कम व्याज पर किसानों को बड़ी-बड़ी रकम उधार दे सके। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए ही भारत में भूमि विकास बैंकों की स्थापना की गई है।

भूमि विकास बैंकों के लाभ

भूमि विकास बैंकों से निम्न लाभों के प्राप्त होने की आशा की जाती है-

(1) कृषि क्षेत्र का विस्तार- दीर्घकालीन ऋण प्राप्त होने से किसान बेकार पड़ी भूमि में स्थाई सुधार करके उसे खेती-योग्य बना सकते हैं। इससे एक ओर तो कृषि क्षेत्र का विस्तार होगा तथा दूसरी ओर कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी। देश में कृषि का विकास होने से कृषि में आधुनिकीकरण की प्रवृत्ति को बल मिलेगा।

(2) कृषि के आधार का सुदृढ़ होना- किसान अपनी भूमि पर स्थाई सुधार कर सकते हैं जिससे कृषि की प्रकृति पर निर्भरता कम हो जायेगी तथा कृषि का आधार सुहृद हो जाएगा। इससे कृषकों की आय में अनिश्चितता हो जाएगी।

(3) कृषकों के ऋण-भार में कमी- कृषकों की आय के निश्चित होने से उनके ऋण-भार में कमी हो जाएगी।

(4) महाजनों पर निर्भरता में कमी- समुचित मात्रा में भूमि विकास बैंकों की स्थापना हो जाने पर किसानों को पहले की भाँति महाजनों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा बल्कि उन्हें महाजनों के चंगुल से निकलने का अवसर प्राप्त होगा।

(5) व्याज दरों में कमी- जगह-जगह भूमि विकास बैंकों की स्थापना हो जाने पर महाजनों को उनकी प्रतिद्वन्दिता के कारण ब्याजदर कम करनी पड़ेगी।

(6) सहकारी भावना का विस्तार- भूमि विकास बैंक द्वारा किसानों की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताएं पूर्ण होने पर किसानों की इन संख्याओं में आस्या बढ़ेगी जिससे देश में सहकारिता की भावना को बल मिलेगा।

भारत में भूमि विकास बैंक (Land Development Banks in India)

भारत में प्रथम भूमि विकास (बन्धक) बैंक की स्थापना सन् 1920 में पंजाब में झंग नामक स्थान पर की गई थी। किन्तु ऐसे बैंकों का वास्तविक अभ्युदय सन् 1929 में मद्रास में भूमि विकास बैंक की स्थापना के बाद हुआ आजकल देश के अधिकांश राज्यों में दो प्रकार के भूमि विकास बैंक पाए जाते हैं–(1) राज्य स्तर पर केन्द्रीय भूमि विकास बैंक (Central Land Development Banks) तथा (ii) खण्ड, तहसी तथा जिला स्तर पर प्राथमिक भूमि विकास बैंक (Primary Land Development Banks)। ये बैंक अपने कोप मुख्यतः ऋणपत्र (debentures) जारी करके प्राप्त करते हैं। इनके ऋणपत्रों को खरीदने वालों में जीवन बीमा निगम, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया वाणिज्यिक बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, सहकारी बैंक तथा केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारें आती है। सन् 1968-69 में केन्द्रीय भूमि विकास बैंकों तथा प्राथमिक भूमि विकास बैंकों की संख्या क्रमशः 19 तथा 740 थी।

वर्तमान स्थिति- सन् 2003 में देश में 19 केन्द्रीय भूमि विकास बैंक तथा 745 प्राथमिक भूमि विकास बैंक थे। वर्ष 2003 में इन बैंकों ने 10,400 करोड़ तथा प्राथमिक बैंकों ने 1,646 करोड़ ₹ के ऋण दिए। (नोट- वर्ष 2003 के बाद के आँकड़े उपलब्ध नहीं है )

नोट- केन्द्रीय भूमि विकास बैंकों को अब ‘राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ (State Co-operative Agriculture and Rural Development Banik-SCARDB) कप जाता है। प्राथमिक भूमि विकास बैंक अब ‘प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (Primory Co-operative Agriculture and Rural Development Bank PCARDB) कहलाते हैं।

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Anjali Yadav

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