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माँग की कीमत (मूल्य) सापेक्षता (Price Elasticity of Demand)
“किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप जिस दर से उसकी माँग में परिवर्तन होता है उसे माँग की कीमत सापेक्षता कहते हैं।”
-केयर्नक्रास
परिचय (Introduction)- ‘भाँग का नियम’ एक गुणात्मक (qualitative) कथन है जो किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप उस वस्तु की मांग में होने वाले परिवर्तन की दिशा (direction of change in demand) के बारे में जानकारी प्रदान करता है। किन्तु मांग का नियम किसी वस्तु की कीमत में हुए परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में होने वाले परिवर्तन की मात्रा या दर के विषय में कुछ नहीं बताता। दूसरे शब्दों में, माँग का नियम किसी वस्तु की कीमत तथा उसकी माँगी गई मात्रा के बीच किसी परिमाणात्मक सम्बन्ध (quantitative relation) का विवेचन नहीं करता।
मीन का नियम यह भी नहीं बतलाता कि कीमत में हुए परिवर्तनों का सब वस्तुओं की माँग पर एक जैसा प्रभाव क्यों नहीं पड़ता। प्रायः देखने में आया है कि कुछ वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होने से उनकी माँग में थोड़ी सी ही कमी या वृद्धि होती है जबकि कुछ वस्तुओं की कीमतों के परिवर्तित हो जाने पर उनकी मांग में महत्त्वपूर्ण (बड़े) परिवर्तन हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर ‘मॉग की मूल्य सापेक्षता’ की अवधारणा देती है। ‘माँग की मूल्य सापेक्षता एक मात्रात्मक विश्लेषण है जो माँग में परिवर्तन की मात्रा (degree of change in demand) की व्याख्या करता है।
माँग की सापेक्षता का अर्थ तथा प्रकार (Meaning and Kinds of Elasticity of Demand)
अर्थशास्त्र में माँग की सापेक्षता का उल्लेख सर्वप्रथम जे०एस० मिल (J.S. Mill) तथा कूनों (Cournot) ने किया था। बाद में इस अवधारणा का विकास प्रो० मार्शल ने किया था। ‘सापेक्षता’ (लोच) (elasticity) एक तत्त्व (factor) में होने वाले परिवर्तन के कारण किसी अन्य तत्त्व में होने वाले परिवर्तन की माप है। भाँग की सापेक्षता’ किसी एक तत्त्व या घटक में होने वाले परिवर्तन के कारण माँग में होने वाले परिवर्तन की माप है। किसी वस्तु की मांग में परिवर्तन मुख्यतः उसकी कीमत, उपभोक्ता की आय तथा सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन पर निर्भर करता है। अतः किसी वस्तु की कीमत या उपभोक्ता की आय या सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन होने से उसकी माँगी गई मात्रा में जो परिवर्तन होता है उसे माँग की सापेक्षता’ कहते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि मांग की सापेक्षता मुख्य रूप से निम्न तीन प्रकार की होती है
(1) माँग की कीमत (मूल्य) सापेक्षता (Price Elasticity of Demand)
(2) माँग की आय सापेक्षता (Income Elasticity of Demand)
(3) माँग की आड़ी या तिरछी सापेक्षता (Cross Elasticity of Demand)
माँग की कीमत (मूल्य) सापेक्षता का अर्थ (Meaning of Price Elasticity of Demand)
किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में जिस अनुपात या दर से परिवर्तन होता है उसे ‘माँग की कीमत (मूल्य) सापेक्षता’ कहते हैं। संक्षेप में, कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग में होने वाले परिवर्तन की माप को ही “माँग की मूल्य सापेक्षता’ कहते हैं।
परिभाषाएँ (Definitions)- ‘माँग की मूल्य सापेक्षता’ की अवधारणा को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ नीचे प्रस्तुत हैं-
(1) मार्शल (Marshall) के शब्दों में, “मांग की मूल्य सापेक्षता कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा मोंग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।”
(2) एनातोल मुराद (Anatol Murad) के अनुसार, “माँग की मूल्य सापेक्षता कीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में होने वाले सापेक्ष परिवर्तन का अनुपात है। “
(3) मेयर्स (Mayers) के अनुसार, “एक दिए हुए माँग वक़ पर, मूल्य में होने वाले किसी सापेक्ष परिवर्तन के कारण खरीदी जाने वाली मात्रा में जो सापेक्ष परिवर्तन होता है, उसकी माप ही माँग की मूल्य सापेक्षता है।
(4) प्रो० डूली (Porf. Dooley) के शब्दों में, “किसी वस्तु की मूल्य सापेक्षता उस वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के कारण माँग में होने वाले परिवर्तन की अनुक्रियाशीलता को मापती है।
(5) प्रो० बोल्डिंग (Prof. Boulding) के विचार में, “माँग की मूल्य सापेक्षता कीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप मांग में होने वाले परिवर्तन की अनुक्रियता को मापती है।”
(6) जे०के० मेहता (J.K. Mehta) के अनुसार, “किसी वस्तु की कीमत में थोड़े-से परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँग में परिवर्तन होने की क्षमता को माँग की मूल्य सापेक्षता कहते हैं।
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