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मिन्ट्जबर्ग द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध की भूमिकाएँ क्या हैं ?

मिन्ट्जबर्ग द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध की भूमिकाएँ क्या हैं ?
मिन्ट्जबर्ग द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध की भूमिकाएँ क्या हैं ?

मिन्ट्जबर्ग द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध की भूमिकाएँ क्या हैं ? स्पष्ट कीजिए। What are the roles of management propounded by Mintzberg?

मैकगिल विश्वविद्यालय के प्रो० हेनरी मिन्ट्जबर्ग ने विभिन्न प्रबन्धकों की क्रियाओं पर किये गये शोध में यह पाया कि वह न केवल संस्थान के लिए नियोजन, संगठन, नियन्त्रण समन्वय का कार्य करते हैं बल्कि वह अन्य कई कार्य भी करते है जिन्हें उन्होंने प्रबन्ध की भूमिकाओं के रूप में व्यक्त किया।

प्रो० मिन्ट्जबर्ग ने अपने अध्ययन में कार्यकारी प्रबन्धकों द्वारा सम्पन्न किये जाने वाले कार्यों को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्न तीन वर्गों में विभक्त किया हैं-

(I) अन्तरव्यक्तिगत भूमिकाएँ (Interpersonal Roles) –

प्रबन्धक संस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता है। अतः वह संस्था के लिए निम्नलिखित भूमिकाओं का निर्वाह करता है-

(1) संस्था का अध्यक्ष (Head) – संस्था का अध्यक्ष व मुखिया होने के कारण प्रबन्धक वैधानिक प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करते हैं, सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते हैं तथा समारोह आदि की अध्यक्षता करता है।

(2) नेतृत्व (Leader) – नेता की भूमिका में प्रबन्ध अपने अधीन कार्यरत कर्मचारियों को संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रेरित करता रहता है। वे अपनी सत्ता, समन्वय, तकनीकों तथा अभिप्रेरणा उपायों के द्वारा व्यक्तियों की आवश्यकताओं तथा संगठन के लक्ष्यों में एकीकरण स्थापित करते हैं।

(3) सम्पर्क अधिकारी (Liaison) – प्रबन्धक संस्थान के बाहरी व्यक्तियों से सम्बन्ध एवं विभिन्न विभागों व संगठनात्मक इकाइयों के बीच सम्पर्क सूत्र की भूमिका निभाते हैं। यह भूमिका सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा समन्वय की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।

(II) सूचना सम्बन्धी भूमिकाएँ (Informational Roles)—

इन भूमिकाओं में प्रबन्धक विभिन्न सूचनाओं, तथ्यों व ज्ञान का संकलन एवं वितरण करते हैं। ये भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) निर्देशक (Monitor) – प्रबन्धक को उपकरण के संचालन के लिए विभिन्न सूचनाओं की आवश्यकता होती है। जिन्हें वह विभिन्न स्रोतों से प्राप्त करता है। वह अपने अधिकारियों, अधीनस्थों, सह-प्रबन्धकों तथा अन्य सम्पर्क सूत्रों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करता है।

(2) प्रसारक (Disseminator ) – प्रबन्धक इस भूमिका में एकत्रित सूचनाओं को अपने अधीनस्थों व सम्बन्धित इकाइयों को अवगत तथा वितरित एवं प्रसारित करता है।

(3) प्रवक्ता (Spokesperson ) – प्रवक्ता की भूमिका में प्रबन्धक अपने संगठन की योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों के विषय में बाहरी समूहों जैसे- ग्राहकों, सरकार, समुदाय, संस्थाओं आदि को विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्रेषित करता है

(III) निर्णयात्मक (Decisional Roles) –

इसमें प्रबन्धकों की व्यूह रचना तथा निर्माण सम्बन्धी भूमिकाओं को शामिल किया जाता है। जो निम्नलिखित हैं-

(1) उद्यमी (Enterpreneur) – इस भूमिका में प्रबन्धक अपने संस्थान की सम्भावनाओं, अवसरों व खतरों का पता लगाता है तथा उसी के अनुरूप परिवर्तन व सुधार को लागू करता है। वह वातावरण में होने वाले परिवर्तनों से लाभ उठाने के लिए संगठन में नवप्रवर्तनों को लागू करता है।

(2) उपद्रव निवारक (Disturbance Handler)- इस भूमिका में प्रबन्धक संस्थान में रोज होने वाले झगड़ों, उपद्रव, उत्पाद, मनमुटावों, संघर्षो, अशान्ति आदि को दूर करता है। वह हड़ताल, अनुबन्ध खण्डन, कच्चे माल की कमी, संस्था में कार्यरत कर्मचारियों की शिकायतों पर विचार-विमर्श कर उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।

(3) संसाधन वितरक (Resource Allocator ) – इस भूमिका में प्रबन्धक अधीनस्थों के समय, तकनीकों संसाधनों, कार्यों, आदि के सम्बन्ध में कार्यक्रम बनाता है। वित्त, यन्त्र, कच्चा माल आपूर्ति आदि के सम्बन्ध में निर्णय लेता है। विभिन्न विभागों की प्राथमिकताओं का निर्धारण करता है, बजट तैयार करता है। इस प्रकार प्रबन्धक संगठन के संसाधनों को क्यों, कब, कैसे, किसके लिए खर्च करने सम्बन्धी निर्णय लेता है।

(4) वार्ताकार (Negotiator ) – प्रबन्धक श्रम संघ, पूतिकर्त्ता, ग्राहक, सरकार व अन्य एजेन्सियों के साथ समझौता सम्बन्धी वार्ताएँ करके संगठन को लाभान्वित करता है। वह संस्था में होने वाले विभिन्न विवादों के हल के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रबन्ध संस्था में मूलभूत कार्यों का सम्पादन करता है उनमें नये आयामों को और जोड़कर प्रबन्धक की भूमिकाओं का जो नया दृष्टिकोण विकसित किया गया है, बदलते परिवेश में वह अधिक कारागर है।

आलोचनाएँ (Criticism) – यद्यपि प्रो० मिन्ट्जबर्ग द्वारा प्रबन्धकों की जो भूमिकाएँ दी गयी है, वह एक नवीन दृष्टिकोण है, जो बदलती व्यावसायिक स्थितियों में सही भी है किन्तु निम्न आधारों पर उनकी आलोचना की गयी है-

1. प्रो० मिन्ट्जबर्ग ने केवल पाँच कार्यकारी प्रबन्धकों पर शोध किया जो किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पर्याप्त नहीं है।

2. प्रबन्धकों के सभी कार्य प्रबन्धकीय नहीं होते उनके कुछ कार्य उससे अलग भी होते है जैसे- अंशधारियों से सम्बन्ध, जन सामान्य से सम्बन्ध, विपणन एवं पूँजी प्राप्त करना आदि।

3. मिन्ट्जबर्ग द्वारा प्रतिपादित प्रबन्धकीय भूमिकाएँ अभी भी समस्त प्रबन्धकीय कार्यों को सम्मिलित नहीं करती, अतः वे अधूरी ही मानी जायेंगी।

4. मिन्ट्जबर्ग ने कुछ कार्यों का नया नाम देकर उसे प्रबन्ध के परम्परागत कार्यों को सम्मिलित नहीं किया है, जो सही नहीं है। जैसे- संसाधनों का आवंटन नियोजन का ही भाग है, जबकि नये विचार में उसे अन्तर व्यक्तिगत भूमिकाओं में शामिल किया गया है।

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Anjali Yadav

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