कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

रिकार्डो का लगान सिद्धान्त (Ricandian Theory of Rent)

रिकार्डो का लगान सिद्धान्त (Ricandian Theory of Rent)
रिकार्डो का लगान सिद्धान्त (Ricandian Theory of Rent)

रिकार्डो का लगान सिद्धान्त (Ricandian Theory of Rent)

लगान का अर्थ-लगान की परिभाषा देते हुए रिकार्डों ने बताया, “लगान पृथ्वी की उपज का वह भाग है जो भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के उपयोग के बदले भूस्वामी को दिया जाता है। रिकार्डो ने अपने लगान सिद्धान्त को इन तीन विचारों पर आधारित किया-(i) लगान विभिन्न भूखण्डों की उर्वरता का अन्तर है, (ii) जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होते रहने से खाद्य सामग्री की मांग बढ़ती जाती है, तथा (iii) कृषि में अन्ततः प्रतिफल हास नियम (Law of Diminishing Returns) लागू होता है।

रिकार्डो ने लगान को उत्पादन का आधिक्य (surplus) माना जो कम उपजाऊ भूखण्ड पर खेती किए जाने से अधिक उपजाऊ भूखण्ड के स्वामी को मिलता है। किसी देश की जनसंख्या में वृद्धि होते रहने से वहाँ खाद्यान्न की मांग बढ़ती जाती है। इस बढ़ी हुई मांग के अनुसार खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए और अधिक भूमि पर खेती की जाती है, अर्थात् विस्तृत खेती (extensive cultivation) की जाती है जब अतिरिक्त भूमि भी समाप्त हो जाती है तो खाद्यान्न में वृद्धि के लिए गहन खेती (intensive cultivation) की जाती है।

सिद्धान्त की व्याख्या

रिकार्डो ने बताया कि लगान तीन अवस्थाओं में उत्पन्न होता है–(1) विस्तृत खेती, (2) गहन खेती, तथा (3) खेतों या भूखण्डों की स्थिति

(1) विस्तृत खेती तथा लगान (Intensive Cultivation and Rent)–विस्तृत खेती तब सम्मय होती है जब किसी देश में जनसंख्या तो कम होती है किन्तु भूमि की यहाँ पर अधिकता होती है। ये दोनों शर्तें एक नए बसने वाले देश में पूर्ण होती है। वहाँ पर मनुष्य सर्वप्रथम सबसे अधिक उपजाऊ भूमि पर खेती करते हैं। ऐसी स्थिति में कोई लगान उत्पन्न नहीं होता। किन्तु धीरे-धीरे देश की जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है जिससे खाधान्न की मांग भी निरन्तर बढ़ती जाती है। खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सर्वाधिक उपजाऊ भूमि के समाप्त हो जाने पर उससे कम उपजाऊ भूमि पर खेती करनी पड़ती है। कम उपजाऊ भूमि की उपज अधिक उपजाऊ भूमि की उपज से कम होती है। उपज की इस मात्रा के अंतर को ही रिकाड़ों ने लगान कहा है। ऐसी अवस्था में सर्वाधिक उपजाऊ भूमि के मुस्वामी को लगान प्राप्त होगा। कम उपजाऊ भूमि को रिकाड़ों ने सीमान्त-भूमि (Marginal Land) या लगान राहत भूमि’ (No Rent Land) कहा। लगान का अनुमान सीमान्त भूमि की उपन तथा इससे पहले की अधिक उर्वर भूमि की उपण के अन्तर से लगाया जाता है। रिकार्डों के शब्दों में, जनसंख्या में वृद्धि के प्रत्येक क्रम के साथ, जो देश को खाय पूर्ति में वृद्धि करने हेतु कम उपजाऊ भूमि पर खेती करने के लिए बाध्य करेगो, समस्त अधिक उपजाऊ भूमि पर लगान उत्पन्न होगा।”

(2) गहन खेती तथा लगान (Intensive Cultivation and (Rent)-जब हर प्रकार के भूखण्डों पर खेती कर ली जाती है तो जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होते रहने के कारण खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए। गहन खेती को अपनाना पड़ता है। इसके अन्तर्गत उपलब्ध भूमि (भूखण्डों) पर श्रम तथा पूंजी की अधिक इकाइयां लगाकर खेती की जाती है। इस विधि से उत्पादन में वृद्धि तो होती है किन्तु कृषि में प्रतिफल हात नियम के लागू होने के कारण यह वृद्धि पटते हुए अनुपात में होती है।

(3) स्थिति लगान (Situation Rent)– रिकार्डों के अनुसार लगान केवल भूमि की उपजाऊ शक्ति में विभिन्नता के कारण ही नहीं बल्कि भूमि की स्थिति में अन्तर (difference in situation of land) के कारण भी उत्पन्न श्रम व पूँजी की इकाइयाँ होता है। अर्थात् खेतों के समान रूप से उपजाऊ होने पर भी उनकी स्थिति में अन्तर होने के कारण लगान उत्पन्न हो सकता है। कुछ खेत बाजार के निकट तथा कुछ बाजार से दूर होते हैं। जो खेत बाजार से दूर है उनकी उपज को बाजार तक पहुँचाने में परिवहन पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय करना पड़ेगा। अतः जो खेत बाजार के निकट स्थित हैं उन पर लगान मिलेगा तथा जो खेत बाजार से सबसे अधिक दूरी पर होंगे उन पर कोई लगान नहीं मिलेगा क्योंकि उन्हें रिकार्डो ने सीमान्त-भूमि माना है।

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Anjali Yadav

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