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रिकार्डो सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions)
रिकार्डो का लगान सिद्धान्त निम्नाकित मान्यताओं पर आधारित है-
(1) विभिन्न मूखण्डों की उर्वरता (fertility) में अन्तर होता है, किन्तु बाजार में उन सबकी उपज की विक्री एक ही कीमत पर होती है।
(2) कृषि उपज की कीमत सीमान्त भूमि या लगान रहित भूमि अथवा श्रम व पूंजी सीमान्त इकाई की लागत के बरावर होती है।
(3) भूमि की मात्रा निश्चित है, उसे घटाया बढ़ाया नहीं जा सकता।
(4) कृषि उपज के बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है, जिस कारण एक वस्तु की उपज सारे बाजार में एक ही कीमत पर बिकती है।
(5) भूमि में कुछ मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों होती हैं। भूस्वामी को लगान इन्हीं शक्तियों के उपयोग के बदले मिलता है।
(6) विविध उपजाऊ शक्ति वाले (भूखण्डों) पर खेती उनकी उपजाऊ शक्ति के क्रम में की जाती है।
(7) खेती में प्रतिफल हास नियम लागू होता है।
(8) जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होने के कारण खायान्त्र की माँग लगातार बढ़ती रहती है।
(9) यह सिद्धान्त केवल दीर्घकाल में लागू होता है।
(10) लगान केवल भूमि से ही मिलता है।
(11) लगान उपज की कीमत में शामिल नहीं होता, अर्थात, लगान कीमत को प्रभावित नहीं करता।
सिद्धान्त की आलोचना (Criticism)
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त में मुख्यतः निम्नांकित दोष निकाले गए हैं-
(1) भूमि में मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों नहीं- रिकार्डो के इस विचार की कटु आलोचना की गई है कि भूमि में कुछ मौलिक तथा अविनाशी शक्तियाँ होती हैं। इस अणु-युग में किसी भी वस्तु को अनाशवान समझना महान भूल होगी। फिर निरन्तर खेती करने से सर्वाधिक उपजाऊ भूमि की उर्वरता भी समाप्त हो जाती है। किन्तु रिकार्डो के समर्थकों का कहना है कि जलवायु, स्थिति, पानी आदि किसी भूखण्ड को मिलने वाले प्राकृतिक लाभ मौलिक होते हैं।
(2) खेती का ऐतिहासिक क्रम निराधार- ऐतिहासिक तथ्यों से यह बात सिद्ध नहीं होती कि लोग सबसे पहले सर्वाधिक उपजाऊ भूमि पर खेती करते हैं। किसी नए देश में बसते समय मनुष्य वहाँ के विभिन्न भूखण्डों का निरीक्षण नहीं करते, बल्कि सुरक्षा, पानी की उपलब्धता आदि ऐसे घटक हैं जो उनके बसने को प्रभावित करते हैं।
(3) सीमान्त भूमि का न पाया जाना- रिकार्डो के सीमान्त भूमि’ या ‘लगान-रहित भूमि’ के विचार की भी कटु आलोचना की गई है। वर्तमान युग में जबकि जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी है, कोई भी भूखण्ड लगानरहित नहीं है। आजकल तो इम उपजाऊ भूमि भी दुर्लभ हो चुकी है। अतः लगान के उत्पन्न होने के लिए विभिन्न भूखण्डों की उर्वरता में अन्तर का होना आवश्यक नहीं है। वर्तमान में घटिया से घटिया भूमि पर कुछ न कुछ लगान अवश्य प्राप्त होता है।
(4) लगान केवल भूमि पर ही नहीं मिलता-आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचार में लगान केवल भूमि पर ही प्राप्त नहीं होता बल्कि यह उन सब उपादानों (साधनों) पर प्राप्त होता है जिनका सम्भरण (supply) पूर्णतया मूल्य सापेक्ष नहीं होता। इस दृष्टि से भ्रम, पूंजी तथा उद्यम की इकाइयों भी लगान प्राप्त कर सकती हैं।
(5) लगान का कीमत में शामित होना- रिकार्डों के विचार में लगान कीमत में शामिल नहीं होता, अर्थात नगान के घटने-बढ़ने का कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचारानुसार एक उद्योग की दृष्टि से लगान उत्पादन लागत का एक अंग होता है, तथा लागत के माध्यम से यह वस्तु की कीमत में प्रवेश कर जाता है।
(6) कृषि उपज में अन्तर की उपेक्षा- रिकार्डों का यह विचार भी एकदम गलत है कि अधिक उपजाऊ तथा कम उपजाऊ खेतों की उपज गुण (किस्म) में समान होती हैं तथा बाजार में उनका एक ही कीमत पर क्रय-विक्रय होता है।
(7) अवास्तविक मान्यताएँ- रिकाड़ों का लगान सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता, दीर्घकाल आदि अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। भूस्वामियों तथा किसानों के मध्य पूर्ण व स्वतन्त्र प्रतिस्पर्धा नहीं पाई जाती।
(8) लगान के उदय का कारण सीमितता है- रिकार्डों के अनुसार लगान भूमि के विभिन्न खण्डों उपजाऊपन के अन्तर के कारण उत्पन्न होता है। किन्तु आलोचकों के विचार में लगान भूमि की सीमितता के कारण मिलता है। यदि विभिन्न भूखण्डों की उपजाऊ शक्ति समान है किन्तु उनकी पूर्ति की अपेक्षा उनकी मांग अधिक है तो उन पर भी लगान मिलेगा।
(9) कृषि में सदैव उत्पत्ति हास नियम लागू नहीं होता- आलोचकों के विचार में नए-नए आविष्कारों के परिणामस्वरूप उत्पादन विधियों में सुधार होने पर कृषि में पर्याप्त समय तक उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है। अतः रिकार्डों की यह मान्यता गलत है कि कृषि में केवल उत्पत्ति हास नियम लागू होता है।
(10) भूमि के वैकल्पिक प्रयोग- रिकार्डों की यह मान्यता भी गलत है कि भूमि का केवल एक प्रयोग होता है। वास्तव में भूमि के कई वैकल्पिक प्रयोग (alternative uses) होते हैं जिनका भूमि की माँग तथा लगान पर प्रभाव पड़ता है।
(11) अधूरा सिद्धान्त- रिकार्डो के सिद्धान्त से केवल यह ज्ञात होता है कि समाज की दृष्टि से राष्ट्रीय आय में से लगान का भाग कैसे निर्धारित होता है। इस सिद्धान्त से यह ज्ञात नहीं हो पाता कि उद्योग तथा फर्म के लिए लगान कैसे निर्धारित होता है।
(12) पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता नहीं- कुछ आलोचकों के विचार में जिस प्रकार माँग और पूर्ति के सामान्य सिद्धान्त द्वारा वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण होता है उसी प्रकार लगान भी निर्धारित हो सकता है। अतः लगान के निर्धारण हेतु किसी पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता नहीं है।
रिकार्डों के सिद्धान्त का भारत में लागू न होना
कारण (Causes)– कई कारणों से भारत में रिकार्डों का सिद्धान्त लागू नहीं होता-(1) सीमान्त भूमि का न पाया जाना- भारत में कोई सीमान्त भूमि या लगान-रहित भूमि नहीं है। पहले देश की जनसंख्या कम थी। किन्तु गत वर्षों में देश की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्यात्र की पूर्ति करने हेतु कम उपजाऊ भूमि पर भी खेती की जा रही है।
(2) लगान में निरन्तर वृद्धि- पंचवर्षीय योजनाओं के फलस्वरूप देश में औद्योगिक विकास की गति तीव्र हो रही है जिस कारण औद्योगिक कार्यों के लिए भूमि की माँग में निरन्तर वृद्धि हो रही है और भूमि पर लगान भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में सीमान्त भूमि की कल्पना करना निरर्थक है।
(3) लगान का निर्धारण– देश में लगान का निर्धारण रीति-रिवाज, प्रतियोगिता तथा कानून के अनुसार होता है। अब जमींदार किसानों से मनमाना लगान वसूल नहीं कर सकते।
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