रॉबिन्स की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Robbins’ Definition)
डरविन, यूटन, फेजर आदि विद्वानों ने रॉबिन्स की परिभाषा में निम्न दोष निकाले हैं-
(4) ‘साधन’ तथा ‘साध्य’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट नहीं-रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में ‘साधन’ (means) तथा ‘साध्य’ (ends) शब्दों का प्रयोग किया है, किन्तु उन्होंने इन दोनों शब्दों के अर्थ के अन्तर को स्पष्ट नहीं किया है। सम्भव है कि जो आज ‘साध्य’ है वह कल ‘साधन’ बन जाए। उदाहरणार्थ, बी० ए० में पढ़ने वाले विद्यार्थी के लिए बी० ए० की डिग्री प्राप्त करना ‘साध्य’ है। किन्तु बी० ए० की डिग्री प्राप्त कर लेने के पश्चात् जब वह नौकरी की तलाश करता है तो उसकी बी० ए० की डिग्री एक ‘साधन’ बन जाती है।
(5) ‘सीमित’ तथा ‘वैकल्पिक उपयोग’ शब्दों का प्रयोग अनावश्यक आलोचकों के विचार में यह सर्वविदित है कि साधन ‘सीमित’ तथा ‘वैकल्पिक उपयोग’ वाले होते हैं। अतः रॉबिन्स ने इन शब्दों का प्रयोग व्यर्थ ही किया है।
(6) कल्याण का छिपा विचार आलोचकों का कहना है कि रॉबिन्स की परिभाषा में आर्थिक कल्याण’ (economic (welfare) का विचार छिपा हुआ है। असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सौमित साधनों का इस प्रकार से प्रयोग किया जाता है जिससे अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो सके। अधिकतम सन्तुष्टि को अधिकतम कल्याण’ कहा जा सकता है। इस प्रकार रॉबिन्स की परिभाषा में ‘कल्याण’ का विचार ‘चोर दरवाजे’ से प्रवेश कर गया है।
(7) दुर्लभता ही आर्थिक समस्याओं का कारण नहीं आलोचकों के विचार में आर्थिक समस्याएं केवल दुर्लभता (scarcity) के कारण ही उत्पन्न नहीं होतीं। कई आर्थिक समस्याएँ तो बहुलता (abundance) के कारण उत्पन्न होती है। उदाहरणार्थ, बेरोजगारी की समस्या श्रम की अधिकता के कारण उत्पन्न होती है। इसी प्रकार अति उत्पादन (Over-production) तथा मन्दी (Depression) की समस्याएँ वस्तुओं की पूर्ति के माँग से अधिक हो जाने पर उत्पन्न होती हैं।
(8) स्वैतिक अवस्था का अध्ययन-इस परिभाषा के अनुसार, अर्थशास्त्र में लक्ष्यों तथा साधनों को स्थिर (static) मानकर उनका अध्ययन किया जाता है किन्तु वास्तविक जीवन में लक्ष्यों तथा साधनों में परिवर्तन होता रहता है। फिर आर्थिक विकास का प्रमुख उद्देश्य साधनों में वृद्धि करना है। इस प्रकार अर्थशास्त्र में गत्यात्मक (dynamic) अवस्था का भी अध्ययन किया जाता है।
(9) मानव का सदैव विवेकपूर्ण न होना बिन्स ने यह माना कि मानव-व्यवहार सदैव विवेकपूर्ण होता है। किन्तु वास्तविक जीवन में मनुष्य का व्यवहार परम्पराओं, रीति-रिवाजों तथा आदतों द्वारा निर्देशित होता है।
(10) जटिल परिभाषा-आलोचकों के विचार में रॉबिन्स द्वारा दी गई परिभाषा सैद्धान्तिक अधिक तथा व्यावहारिक कम है। इसके सैद्धान्तिक स्वरूप ने परिभाषा को कंठिन तथा जटिल बना दिया है जिस कारण साधारण पाठक इसे आसानी से समझ नहीं पाते।
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